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बजट में बिहार को मिले 58,900 करोड़ रुपये, क्या बदल जाएगी बिहार की सूरत?

Finance Minister Nirmala Sitharaman ने बिहार के लिए कम से कम 58,900 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. सवाल उठता है कि इससे बिहार का कितना भला होगा? और, क्या इससे Special Status की मांग अब नहीं रहेगी?

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बिहार को 58,900 करोड़ के प्रोजेक्ट्स मिले हैं. (फोटो-इंडिया टुडे)
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आकाश सिंह
25 जुलाई 2024 (Published: 20:30 IST)
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मंगलवार, 23 जुलाई को निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया, उसपर मिली-जुली प्रतिक्रिया है. कुछ ने मिडिल क्लास की उपेक्षा के आरोप लगाए, तो कुछ ने रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सराहना की. अन्य बातों के साथ बिहार और आंध्र प्रदेश को मिलने वाले स्पेशल पैकेज की भी चर्चा है. इसके राजनीतिक निहितार्थ के इतर देश के 28 राज्यों में सबसे ज़्यादा आर्थिक मदद बिहार को मिली है. इसका फ़ायदा बिहार वासियों को कैसे होगा, यही बताएंगे.

बदलेगी बिहार की सूरत?

प्राचीन और आधुनिक इतिहास में राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर बिहारियों का दबदबा बना रहा. मगर आर्थिक मोर्च पर ये दबदबा धुंधला गया. ग़रीबी, बेरोज़गारी, पलायन, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हावी होते गए. विकास जो ग़ायब हुआ था, उसने न लौटने की क़सम खा ली. निराशा का आलम ये कि बने-बनाए पुल ख़ुद नदियों मे बहने लगे. सड़कों के गड्ढे विज्ञान के बड़े प्रयोगों की याद दिलाने लगे. मगर इन प्रयोगों में बदलाव की भूमिका नहीं थी. ये भूमिका बनी, एक संयोग से. संयोग संख्या-बल का, जिसने केंद्र की सरकार को सहारा दिया हुआ है. इशारा ये कि इस छप्पर में एक खंभा बिहार का भी है, जिसकी कुंजी प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास है. 

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नीतीश जनता दल यूनाइटेड (JDU) के मुखिया हैं. पार्टी के पास लोकसभा में 12 सांसद हैं, जो मोदी 3.0 के लिए अहम हो गए हैं. उनके बिना सरकार की स्थिरता ख़तरे में पड़ सकती है. इसी वजह से नीतीश कुमार की बार्गेनिंग पॉवर बढ़ गई है. इसके सहारे उन्होंने अपनी बरसों पुरानी मांग को झाड़-पोंछकर बाहर निकाल लिया है. कौन सी मांग? बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा. आसान भाषा में बिहार के लिए एक्स्ट्रा आर्थिक मदद. इसी के नाम पर वो कई दफ़े पाला बदल चुके हैं.

इस बार भी उनकी मांग पूरी तरह पूरी नहीं हुई. स्पेशल स्टेटस तो नहीं मिला, पर ज़्यादा मांगो तो थोड़ा मिल ही जाता है. बजट में बिहार के लिए हज़ारों करोड़ रुपये की मदद की गई है. मोदी 3.0 के पहले आम बजट में बिहार को एक्सप्रेसवे, टेम्पल कॉरिडोर, मेडिकल कॉलेज और स्पोर्ट्स इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए पैसा दिया गया है. बिहार को कम से कम 58,900 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स मिले हैं. 26 हज़ार करोड़ रुपये सड़क प्रोजेक्ट्स के लिए, पावर प्लांट के लिए 21,400 करोड़, बाढ़ रोकने के लिए 11,500 करोड़ रुपये. 

मगर सवाल उठता है कि इससे बिहार का कितना भला होगा? और, क्या इससे स्पेशल स्टेटस की मांग अब नहीं रहेगी? इसी विषय पर विस्तार से बात करेंगे. और समझेंगे:

  • एक्सप्रेसवे से क्या फ़ायदा होगा?
  • टूरिज़्म बढ़ाने में टेम्पल कॉरिडोर्स की कितनी भूमिका होती है?
  • क्या इससे बिहार के लोगों की आर्थिक हालत सुधर जाएगी?

शुरुआत एक्सप्रेसवे से. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार में दो एक्सप्रेसवे बनाने का एलान किया है. पहला एक्सप्रेसवे, बक्सर को भागलपुर से जोड़ेगा. दूसरा, पटना को पूर्णिया से जोड़ेगा. इसके अलावा बोधगया को राजगीर, वैशाली और दरभंगा को भी इन एक्सप्रेसवे से जोड़ा जाएगा. 

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भारत में बने एक्सप्रेस वे (फोटो-आजतक)

एक्सप्रेस-वे होते क्या हैं? ऐसी सड़कें, जो तेज़ गति से चलने वाली गाड़ियों के लिए डिज़ाइन की जाती हैं. आम सड़कों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत और टिकाऊ. इनमें ट्रैफ़िक का फ़्री फ़्लो सुनिश्चित किया जाता है. एक्सप्रेसवे को आबादी वाले इलाक़ों से दूर बनाया जाता है. ताकि जाम की समस्या न हो. जब-जब इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास की बात आती है, एक्सप्रेसवे का नाम ज़रूर आता है. लेकिन इसमें ख़ास क्या है? एक्सप्रेसवे के फायदे को हम 3 हिस्सों में समझ सकते हैं.

जनता का फ़ायदा

- एक्सप्रेसवे से ट्रैवल टाइम कम हो जाता है. उदाहरण: पटना से पूर्णिया की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है. आम स्थिति में साढ़े छह से सात घंटे का वक़्त लगता है. औसत स्पीड 45 किलोमीटर प्रतिघंटे. ये इतने लंबे रूट के लिए काफ़ी कम है. एक्सप्रेसवे पर इसी औसत स्पीड को बढ़ाया जा सकता है और टाइम घटाकर चार से साढ़े चार घंटे तक किया जा सकता है.

- लॉजिस्टिक्स गुड्स यानी सामान के ट्रांसपोर्टेशन में भी फ़ायदा होता है. सड़क बेहतर होगी तो सामान समय से अपने गंतव्य तक पहुंच सकेगा. मान लीजिये, एक ट्रक को पटना से पूर्णिया सामान पहुंचाने में सात घंटे लगते हैं. इस वजह से एक दिन में एक ट्रक पटना से पूर्णिया सामान लेकर जाता है. फिर दूसरे दिन वो पूर्णिया से पटना वापस लौटता है. यानी दो दिन में एक राउंड पूरा होगा. एक महीने में 15 राउंड. अगर सात घंटे वाला समय घट कर चार घंटे हो जाए, तो एक दिन में पटना से पूर्णिया आया और जाया जा सकताहै . यानी महीने में एक ट्रक 30 राउंड लगा सकता है. माने उतने ही समय में दोगुना व्यापार. इससे ख़र्चे में कमी आएगी और कमाई बढ़ेगी.

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अच्छा, इस स्थिति में ट्रक का मालिक ट्रांसपोर्टेशन के रेट में कुछ कमी करेगा. ऐसा क्यों? इसके पीछे सप्लाई-डिमांड वाला लॉजिक है. जब भी सप्लाई बढ़ती है, तो दाम कम हो जाता है. 

सरकार का फायदा

एक्सप्रेसवे सरकार ने बनाया. ये सरकार की संपत्ति हो गई. जैसे हमारी-आपकी संपत्ति है - गाड़ी, घर, सोना, बैंक में रखी सेविंग्स, FD आदि. सरकार की संपत्ति क्या-क्या है? रेलवे स्टेशन, सड़क, ट्रेन, एयरपोर्ट आदि. ऐसा कैसे? क्योंकि सरकार इनके ज़रिए कमाई तो करती ही है. इनको लीज़ पर भी दे सकती है. जैसे, हाइवे पर जो टोल टैक्स लिया जाता है वो सरकार के खज़ाने में जाता है. अगर सरकार टोल प्लाज़ा को प्राइवेट कंपनियों को लीज़ पर देती है, तो बदले में फ़ीस लेती है. प्राइवेट कंपनियां टोल टैक्स कलेक्ट करके अपनी कमाई करती हैं. साथ ही साथ, सड़कों का रखरखाव भी करती है. यही चीज़ बाक़ी सरकारी संपत्तियों पर भी लागू होती है.

साझा फायदे 

इसमें अर्थशास्त्र का एक नियम लागू होता है. इसको कहते हैं मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट. जब सरकार किसी संपत्ति में निवेश करती है, तो इकोनॉमी में रफ़्तार आती है. और, लोगों को रोज़गार मिलता है. कैसे? मान लीजिए, सरकार को एक एक्सप्रेसवे बनाने में 1000 करोड़ रुपये का खर्चा आया. स्वाभाविक है कि ये खर्चा कॉन्ट्रैक्टर, इंजीनियर, मैटेरियल सप्लायर और मजदूरों में बंटेगा. यानी, 1000 करोड़ सरकार के खज़ाने से निकल कर हाइवे बनाने वालों के पास पहुंचेंगे. अगर वे लोग अपनी कमाई का 20 फीसदी बचाते हैं और बाकी 80 फीसदी रकम खर्च करते हैं, तो मार्केट में अलग-अलग चीज़ों की डिमांड बढ़ेगी.

यानी एक तरह से 1000 करोड़ का 80 फीसदी (800 करोड़) मार्केट में वापस आ जाएगा. इससे डिमांड में इज़ाफ़ा होगा. बाजार में तेज़ी आएगी, और इकोनॉमी को मिलेगा फ़ायदा. 

ये 1000 करोड़ रुपए मार्केट में घूमते-घूमते कई गुणा तक बढ़ सकता है. इसी को मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट कहते हैं.

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फ़रवरी 2022 में निर्मला सीतारमण ने संसद में बताया था कि जब सरकार कैपिटल एक्सपेंडिचर में एक रुपया खर्च करती है, तो उसी बरस में सरकार को 2 रुपये 45 पैसे वापस मिलते हैं. कुल जमा बात ये है कि एक्सप्रेसवे से ट्रैवल टाइम घटेगा, वस्तुओं की कीमत कम होगी, रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे और इकोनॉमी को भी तेज़ी मिलेगी. 

टेम्पल टूरिज्म

23 जुलाई के बजट में टेम्पल टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसके लिए सरकार की विष्णुपद मंदिर और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर को विकसित करने की योजना है. आगे चलें, उससे पहले दोनों मंदिरों के बारे में जान लेते हैं. 

  • विष्णुपद मंदिर: गया ज़िले में फल्गु नदी के किनारे है. मंदिर में 40 सेंटीमीटर लंबा पैर का निशान बना है. मान्यता है कि ये निशान भगवान विष्णु के पैर का है. इस मंदिर का मौजूदा स्ट्रक्चर 1787 में बना था. बनवाया था, मालवा रियासत की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने.
  • महाबोधि मंदिर: ये मंदिर बोधगया में है. इसका इतिहास भगवान गौतम बुद्ध से जुड़ा है. मान्यता है कि सत्य की खोज में बुद्ध गया शहर के पास जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीच ध्यान में बैठ गए. इसी जगह उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. 
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महाबोधि मंदिर (फोटो- आजतक)

विष्णुपद और महाबोधि मंदिर के साथ-साथ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के विकास का प्लान भी है. लेकिन इसका फ़ायदा क्या है? इसके लिए आपको देश में धार्मिक पर्यटन की स्थिति जाननी होगी. जुलाई, 2023 में टूरिज्म मिनिस्ट्री ने अपनी रिपोर्ट पब्लिश की थी. इसके मुताबिक़, 2022 में देशभर के धार्मिक स्थलों में पर्यटन से 1 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपये की कमाई हुई.

बीते बरसों में धार्मिक पर्यटन से हुई कमाई:

  • 2018 में 1 लाख 94 हज़ार करोड़ रुपये.
  • 2019 में 2 लाख करोड़ रुपये.
  • 2020 और 2021 में कमाई काफ़ी घटी. कमाई का आंकड़ा क्रमश: 50 हज़ार करोड़ और 65 हज़ार करोड़ रुपये तक सीमित रहा. इसका कारण था कोरोना महामारी और लॉकडाउन.
  • 2022 में लॉकडाउन में ढील मिली. तब धार्मिक पर्यटन से होने वाली कमाई में 100 फीसदी की बढ़त देखी गई.

पर्यटकों की संख्या कितनी थी? धार्मिक स्थलों पर पहुंचने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 140 करोड़ थी. सवाल उठ सकता है कि भारत की कुल आबादी ही 140 करोड़ है, तो क्या सारे लोग धार्मिक पर्यटन पर गए थे? ऐसा नहीं है. दरअसल, 140 करोड़ की संख्या यूनिक टूरिस्ट्स की नहीं है. व्यक्ति भले एक ही है, लेकिन गिनती उसकी कुल यात्राओं की होती है. भारतीय पर्यटकों के अलावा, 66 लाख से ज्यादा विदेशी मेहमानों ने भी धार्मिक स्थलों का दौरा किया. 

नैशनल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (NSO) के एक सर्वे के मुताबिक़, देश में टेम्पल इकोनॉमी का आकार 3 लाख करोड़ से अधिक का है. ये देश की कुल GDP का 2.3 फीसदी है. 

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टेम्पल कॉरिडोर्स बनाने से कितना फ़ायदा होता है? इसको बनारस के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उदाहरण से समझते हैं.

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, 2021 में बनकर तैयार हुआ था. इसके बाद धार्मिक पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी दिखी. 2019 में जहां 68 लाख लोग बनारस आए थे, वहीं 2022 में 7 करोड़ 20 लाख लोग पहुंचे थे. पहले के मुकाबले 10 गुना ज़्यादा.

Kashi Vishwanath Corridor
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (फोटो-आजतक)

टूरिज़्म अर्थव्यस्था को क्या फ़ायदा पहुंचाती है, ये जगज़ाहिर है. आदमी कहीं से कहीं जाएगा, तो ट्रेन का टिकट लेगा. रेलवे को पैसा मिलेगा. जगह पहुंचकर होटल में कमरा लेगा, तो होटल वालों की कमाई होगी. रेस्टोरेंट में खाना खाएगा, तो उनकी कमाई हुई. जिस शहर जाएगा, घूमने और मंदिर जाने के लिए ऑटो लेगा. ऑटो वाले कमाएंगे. फूल माला खरीदा. ऐसे ही एक साइकल शुरू होगी.

बजट में बिहार को और क्या-क्या मिला है?

21,400 करोड़ रूपये की लागत से 2400 मेगावाट का पावर प्लांट लगाने का प्रस्ताव है. साथ ही नए एयरपोर्ट्स और मेडिकल कॉलेज बनाने की बात भी बजट में है. कुल मिलाकर कहें, तो फ़ोकस इंफ़्रास्ट्रक्चर पर रखा गया है. अर्थशात्रियों का मानना है कि इंफ़्रास्ट्रक्चर किसी भी इंडस्ट्री की स्थापना और उसके विकास के लिए सबसे ज़रूरी होता है. इंडस्ट्री होगी तो बिहार की तरक्की होगी. पलायन और बेरोज़गारी के मुद्दे सुलझेंगे. 

मगर सनद रहे! ये घोषणाएं हैं. अभी प्रोजेक्ट्स की डिटेल्स सामने नहीं आईं हैं. इन चीज़ों पर काम कबसे शुरू होगा और सबसे बड़ी बात काम कब पूरा होगा, ये अभी स्पष्ट नहीं है. 

वीडियो: क्या इस बजट से बदलेगी बिहार की तस्वीर?

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