प्लेन की ऊंचाई 37 हजार फीट, नीचे धधकता ज्वालामुखी और इंजन हो गया ठप, फिर क्या हुआ?
जब 37 हज़ार फ़ीट पर ज्वालामुखी के ठीक ऊपर उड़ते प्लेन का इंजन बंद हो गया! साफ़ मौसम के बीच आखिर प्लेन में नीली बिजलियां क्यों कौंधने लगीं? प्लेन के चारों इंजन अचानक फेल कैसे हुए? और इसके बाद प्लेन में सवार 263 लोगों का क्या हुआ?
37 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ते एक विमान में अचानक धुंआ भरने लगता है. ये उस दौर की बात जब प्लेन में सिगरेट पीने की इजाजत हुआ करती थी. लेकिन ये सिगरेट का धुंआ नहीं था. इसका रंग नीला था और इसमें सल्फर की गंध आ रही थी. धुंआ कहां से आया, कोई कुछ समझ पाता, इतने में कॉकपिट की स्क्रीन पर बिजलियां कौंधने लगीं. वो भी नीले रंग की. राडार में देखा तो पता चला मौसम साफ़ है. फिर बिजलियां कहां से आईं. इस सवाल का जवाब मिलता, इससे पहले ही अचानक प्लेन के एक इंजन ने काम करना बंद कर दिया. प्लेन में चार इंजन थे. लेकिन फिर दूसरा इंजन भी बंद हो गया. और एक-एक कर चारों इंजनों ने काम करना बंद कर दिया.हवा में ग्लाइडर बने इस प्लेन में क्रू को मिलाकर 263 लोग सवार थे. जिनकी जिन्दगी अब हवा में लटक गई थी.
आखिर साफ़ मौसम के बीच प्लेन में नीली बिजलियां क्यों कौंधने लगीं?
प्लेन के चारों इंजन अचानक फेल कैसे हुए?
और इसके बाद प्लेन में सवार 263 लोगों का क्या हुआ?
24 जून 1982 की तारीख. ब्रिटिश एयर वेज़ की फ्लाइट 009 अपने आख़िरी लेग में क्वालालंपुर से ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर की ओर उड़ान भर रही थी. रात के आठ बजकर 48 मिनट हुए थे. स्पीकर से एक अनाउंसमेंट हुआ. ये पायलट की आवाज़ थी,
“देवियों और सज्जनों. ये आपका कैप्टन बोल रहा है. एक 'छोटी' सी समस्या आन पड़ी है.”
क्या थी ये छोटी सी समस्या? पायलट साहब ने खुद अपने मुंह से आगे बताया. बोले- “प्लेन के चारों इंजन बंद हो चुके हैं.”
पायलट का नाम - कैप्टन एरिक मूडी. मूडी को उड़ान का लम्बा अनुभव था. लेकिन उस रोज़ जो कुछ उनके और प्लेन के साथ हो रहा था, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. इंजन का फेल होना आख़िरी चरण था. क्योंकि मुसीबतों की शुरुआत काफी पहले हो चुकी थी. डिनर के बाद कैप्टन मूडी फ्रेश होने के लिए टॉयलेट जाने के लिए उठे. तभी उन्हें कॉकपिट में धुआं सा दिखाई दिया. मूडी को लगा, लोग सिगरेट पी रहे होंगे. लेकिन ये धुंआ तम्बाकू का नहीं था, ये नीले रंग का धुंआ था, जिसमें सल्फर की गंध थी.
मूडी ने प्लेन के सिस्टम चेक किए. कहीं कोई आग नहीं लगी थी. मूडी कुछ समझ पाते, इतने में कॉकपिट की स्क्रीन पर उन्हें चिंगारी दिखने लगी. नीली और बैंगनी रंग की बिजलियां, जिन्हें एविएशन की भाषा में सेंट एल्मोस फायर कहते हैं. आम तौर से ऐसा तब होता है जब प्लेन ख़राब मौसम या बादलों के बीच से उड़ान भरता है. यूं सेंट एल्मोस फायर से कोई खतरा नहीं होता. लेकिन उस रोज दिक्कत ये थी कि मौसम एकदम ठीक था. इसके बावजूद पूरा प्लेन सेंट एल्मोस फायर से घिरा हुआ था.
बिन बादल बिजली दिखेपायलट मूडी ने मौसम का राडार चेक किया. राडार भी यही बता रहा था कि मौसम एकदम साफ़ है. मूडी ने फर्स्ट ऑफिसर रॉजर ग्रीव्स की ओर देखा. ग्रीव्स ने इंजीनियर बैरी फ्रीमैन की तरफ निगाह डाली. इन सब का मिला-जुला उड़ान का अनुभव 50 साल से ज्यादा का था. लेकिन फिर भी किसी को कोई आईडिया नहीं था कि ये सब हो क्यों रहा है. फर्स्ट ऑफिसर रॉजर ग्रीव्स ने एहतियातन सभी यात्रियों के लिए सेफ्टी बेल्ट का साइन ऑन कर दिया. पीछे यात्रियों को ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था. धुंआ अन्दर भरता जा रहा था. और साथ में अन्दर तापमान में भी इजाफा हो रहा था. खिड़की पर बैठे एक यात्री ने बाहर निगाह डाली. उसने देखा कि प्लेन का इंजन नीली चिंगारियों में नहाया हुआ है.
शाम के 8 बजकर 42 मिनट पर अचानक ज़ोरों की एक आवाज आई. फर्स्ट ऑफिसर ग्रीव्स ने पायलट को बताया कि प्लेन का चौथा इंजन बंद हो चुका है. कैप्टन मूडी कुछ परेशान हुए लेकिन अभी चिंता की कोई बात नहीं थी. प्लेन में कुल चार इंजन थे. लेकिन फिर अगले ही मिनट चिंता की बात हो गई. क्योंकि प्लेन के बाकी तीन इंजन भी एक-एक कर बंद हो गए. यानी 11 हजार, 300 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहा, साढ़े तीन लाख टन का विमान मिनटों के अन्दर ग्लाइडर बन गया था.
प्लेन के कैप्टन मूडी जिन्हें जल्द से जल्द कोई फैसला लेना था. क्योंकि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं था. उन्होंने हिसाब लगाकर पता लगाया कि प्लेन का ग्लाइडिंग रेशियो 15 टू 1 का है. मतलब अगर प्लेन 15 किलोमीटर आगे की ओर जाएगा, तो इस दौरान हाईट में एक किलोमीटर की गिरावट आएगी. प्लेन अभी 11 हजार 300 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहा था. इस हिसाब से वो ग्लाइड करते हुए कुल 23 मिनट तक उड़ान जारी रख सकता था. और 168 किलोमीटर आगे की यात्रा कर सकता था. मूडी ने हिसाब लगाया कि इतनी देर में वो इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंचकर लैंड करने की कोशिश कर सकते हैं. प्लान अच्छा था लेकिन इसमें एक अड़चन थी. जकार्ता से पहले ऊंचे पहाड़ पड़ते थे. जिन्हें पार करने के लिए कम से कम साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई बरक़रार रखनी जरूरी थी.
प्लेन पानी में लैंड कराने का फैसला लियाकैप्टन मूडी ने क्रू से कहा, अगर हम ऐसा न कर पाए तो प्लेन को मोड़कर इंडियन ओशियन में लैंड कराने की कोशिश करेंगे. प्लेन को पानी में लैंड करने की ट्रेनिंग उन सभी को मिली थी. लेकिन इससे पहले कभी किसी बोईंग 747 को पानी में लैंड नहीं कराया गया था. बहरहाल क्रू के पास और कोई आप्शन नहीं था. इसलिए फर्स्ट ऑफिसर ग्रीव्स ने जकार्ता एयर ट्रैफिक कंट्रोल से बात कर उन्हें इस इमरजेंसी से अवगत कराया. लेकिन एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने उनकी बात को सीरियसली नहीं लिया. वजह थी कम्युनिकेशन के दौरान हुआ एक कन्फ्यूजन. ग्रीव्स ने ATC को बताया कि उनके चारों इंजन फेल हो चुके हैं. लेकिन ATC को लगा सिर्फ चौथा इंजन फेल हुआ है. इसलिए उन्होंने इसे बड़ी इमरजेंसी नहीं माना. कुछ देर बाद ग्रीव्स ने एक दूसरे प्लेन से संपर्क स्थापित किया. उस प्लेन के पायलट ने ग्रीव्स की बात ATC को बताई. ATC ने ग्रीव्स को लैंडिंग की मंजूरी दे दी.
उधर पायलट मूडी की तमाम कोशिशों के बावजूद प्लेन तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. इंजन के साथ-साथ बाकी इंस्ट्रूमेंट्स भी काम करना बंद कर चुके थे. जिसकी वजह से प्लेन के अन्दर हवा का दबाव गिरता जा रहा था. यानी ऑक्सीजन की कमी होती जा रही थी. मदद के लिए लोगों ने इमरजेंसी ऑक्सीजन मास्क का सहारा लिया. कॉकपिट में भी ऑक्सीजन मास्क की जरुरत थी. लेकिन फर्स्ट ऑफिसर ग्रीव्स के मास्क ने उसी समय काम करना बंद कर दिया. कई और लोगों के ऑक्सीजन मास्क ऐसी ही दिक्कतें दे रहे थे.
पायलट मूडी ने जब ये देखा, उन्होंने प्लेन को नीचे की ओर तेज़ी से ले जाकर 4 हजार मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा दिया. इस ऊंचाई पर क्रू और बाकी लोग बिना मास्क के भी सांस ले सकते थे. लेकिन इस चक्कर में प्लेन इतना नीचे आ चुका था कि अब उसके जकार्ता के पहाड़ों के ऊपर से उड़ने की कोई संभावना नहीं थी. पहले से बनाए प्लान के अनुसार कैप्टन के पास सिर्फ एक चारा था. उन्होंने प्लेन को मोड़ा और उसे इंडियन ओशियन में लैंड करने की तैयारी शुरू कर दी. कैबिन में यात्री समझ चुके थे कि स्थिति गंभीर है. इसके बावजूद कैप्टन ने अनाउंसमेंट करते हुए उनसे कहा,
"देवियों और सज्जनों. मैं आपका कैप्टन बोल रहा हूं. प्लेन के चारों इंजन ख़राब हो चुके हैं. हालांकि घबराने की कोई बात नहीं है".
शायद कैप्टन के संयम का असर था कि प्लेन के अन्दर कोई भगदड़ नहीं मची. लोग शान्ति से अपनी सीटों पर बैठे थे. हालांकि कईयों ने एयर होस्टेस से कलम और कागज़ मांगा. ताकि वो अपने प्रियजनों के नाम आख़िरी संदेश लिख सकें. प्लेन नीचे की ओर लैंड हो रहा था. इंजन अभी भी बंद थे. रीड और बाकी क्रू ने इंजन चालू करने की कई कोशिशें कीं. लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था. घड़ी में समय हो चुका था 8 बजकर 55 मिनट. फ्लाइट 009, जिसे स्पीडबर्ड 9 भी कहा जाता था, पानी में क्रैश होने जा रही थी कि तभी एक कमाल हुआ. अचानक प्लेन के इंजन नंबर 3 में हरकत महसूस होने लगी. धीरे-धीरे उसने अपनी पूरी स्पीड पकड़ी और मिनटों के अन्दर बाकी तीन इंजन भी चालू हो गए.
कैप्टन मूडी ने तुरंत प्लेन की कमान संभाली और फ्लाइट को साढ़े चार हजार फीट तक ले गए. उन्होंने जकार्ता एयरपोर्ट से संपर्क किया. इतनी देर में प्लेन का एक इंजन फिर बंद हो गया. बाकी तीन इंजन भी कभी भी बंद हो सकते थे. इसलिए जल्द से जल्द लैंडिंग करना जरुरी था. कैप्टन मूडी ने रनवे पर निगाह डालने की कोशिश की. लेकिन उन्हें कुछ नज़र नहीं आया. सब धुंधला नज़र आ रहा था. जबकि पहले की ही तरह, मौसम अब भी पूरी तरह साफ़ था. जब प्लेन एयरपोर्ट के एकदम नजदीक पहुंच गया, तब जाकर कैप्टन मूडी को अहसास हुआ कि प्लेन का सामने का शीशा किसी चीज से ढका हुआ है. ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उस पर पेंट कर दिया हो. आखिर में मूडी ने एयर पोर्ट के लैंडिंग गाइडेंस सिस्टम की मदद ली. और लगभग ब्लाइंड लैंड करते हुए प्लेन को नीचे उतारा.
फिर इंजन बंद होने की क्या वजह पता लगी?किस्मत से प्लेन लैंड हो गया. प्लेन में बैठे किसी यात्री को खरोंच तक नहीं आई. मूडी और उनके साथी खुश थे लेकिन उन्हें एक बात अभी भी समझ नहीं आ रही थी कि साफ़ मौसम में प्लेन में एल्मोस फायर क्यों दिखी और प्लेन के इंजन बंद क्यों हुए, और फिर अपने आप स्टार्ट कैसे हो गए. तहकीकात से ये बात भी सामने आई. पता चला प्लेन के बंद होने की वजह एक ज्वालामुखी था. प्लेन जकार्ता के पास एक एक्टिव ज्वालामुखी के ऊपर उड़ रहा था. जिसके चलते ज्वालामुखी से उठने वाले धुंए और राख के कारण प्लेन के इंजन ठप हो गए थे. चूंकि ये राख पूरी तरह सूखी हुई थी, ऐसे में प्लेन का मौसम राडार भी इसका पता नहीं लगा पाया.
प्लेन जब नीचे उतरा और ज्वालामुखी के धुंए से दूर पहुंचा, उसके इंजन में जमी राख साफ़ हो गयी, जिसके कारण इंजन एक बार फिर स्टार्ट हो गए. प्लेन के शीशे से कुछ न दिखाई देने का कारण भी ये राख ही थी, जिसने शीशे पर एक मोटी चादर जमा दी थी. कैप्टन मूडी और उनके क्रू को इस बात का कुछ पता नहीं था. इसके बावजूद उन्होंने संयम बनाए रखा और लगभग 20 मिनट तक बिना इंजन के प्लेन उड़ाते रहे. इस घटना के महज 15 दिन बाद एक और ऐसी ही घटना हुई. तब इंडोनेशिया की सरकार ने ज्वालामुखी के ऊपर से जाने वाला रूट बंद कर दिया. और ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए एक नए रास्ते की निशानदेही की गई.
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