यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति सुव्रत अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा प्रकृतिसंभवहे, अपने वचनों और कर्तव्यों का पालन करने वाले (सुव्रत), जब भी धर्म का इंडेक्सगिरता है, अधर्म का ऊपर जंप मारता है, तब एक स्त्री शक्ति आती है. और सब दुरुस्त करदेती है. - अद्भुत रामायण, महर्षि वाल्मीकि--------------------------------------------------------------------------------इस श्लोक के साथ अमीष की नई किताब शुरू होती है. 'सीता- वॉरियर ऑफ मिथिला'. ये उनकीरामचंद्र सीरीज की दूसरी किताब है. पहली किताब 'सायन ऑफ इक्ष्वाकु' (इक्ष्वाकु केवंशज) में राम के नजरिए से कथा कही गई. सीता-हरण तक की. दूसरी किताब में सीताकेंद्र में हैं. यहां भी कहानी हऱण पर खत्म होती है. अमीष ने इस किताब में पूरीसीरीज का स्ट्रक्चर भी समझाया है. इसके तहत राम और सीता की कहानी एक बिंदु तक पहुंचगई है. तीसरी किताब 'रावण- ऑर्फन ऑफ आर्यावर्त' (आर्यावर्त का अनाथ) में लंकापति कीकहानी होगी. यह कहानी भी सीता-हरण पर खत्म होगी. और फिर तीनों की कहानी एक साथ आगेबढ़ेगी. एक ऐसे बिंदु पर, जहां सब शुरुआतों को सार्थकता मिलेगी.किताब 'सीता- वॉरियर ऑफ मिथिला' का कवर (बाएं) और इसके लेखक अमीष (दाएं)'सीता- मिथिला की योद्धा' में सबसे नया क्या है. यह प्रस्तावना कि सीता विष्णु काअवतार थीं. विष्णु यानी कि एक पद, जो हमारी अब तक की समझ के मुताबिक राम को मिलाथा. मगर ये किताब एक बेहद दिलचस्प और मजबूत थ्योरी लाती है. इसके मुताबिक मलयपुत्र(विष्णु को निर्धारित करने वाली ट्राइब) सीता को विष्णु निर्धारित करती है. वहींवायुपुत्र (महादेव को निर्धारित करने वाली ट्राइब) राम के समर्थन में है. सीता औरराम का विचार है कि अब दो विष्णु के एक साथ होने और एक साथ काम करने के विचार कासमय आ चुका है. मगर इस समय में एक रोड़ा है. सीता को समर्थ बनाने वाले गुरुविश्वामित्र, जो राम के गुरु वशिष्ठ से चिढ़ते हैं. दोनों का लगाव-दुराव उनकेलौंडपने तक जाता है. जब वे आश्रम में दोस्त थे और फिर नंदिनी नाम की महिला के फेरमें दुश्मन हो गए.अमीषहमने पूर्ववर्ती शास्त्रों में पढ़ा कि नंदिनी गाय थी, जिसके अधिपति वशिष्ठ थे औरजिस पर राजा विश्वामित्र कब्जा करना चाहते थे. ये पहले का पढ़ा ही मुझे अमीष कोपढ़ने के लिए प्रेरित करता है. पौराणिक कथाओं का बिल्कुल नया एंगल. कई बार पुरानेडॉट्स जोड़ता. कई बार सिरे से तोड़ता. 'सीता- मिथिला की योद्धा' में भी यही क्रमबदस्तूर जारी है.यह किताब पढ़ने के बाद सीता के बारे में धारणा बदल जाती है. अब तक सीता आदर्शस्त्री थी, मगर उसके आदर्श क्या थे. पतिव्रता होना. सतीत्व से भरपूर होना. पति केसाथ वन जाना. रावण की लंका में भी राम को जपना. लौटकर आने पर अग्निपरीक्षा देना.राम को उत्तराधिकारी दे धरती में समा जाना. ये पारंपरिक कथा सूत्र हैं. अमीष इसेशीर्षासन करा देते हैं. उनकी किरदार सीता वीरांगना है. मगर सिर्फ बाहुबली ही नहीं,ज्ञानबली भी है. वह प्रधानमंत्री के रूप में अपने दार्शनिक पिता जनक के कमजोरसाम्राज्य मिथिला को दुरुस्त करती है. स्वयंवर के सब विधान खुद रचती है. राम को इसविचार पर सहज करती है और बेहद प्रतिकूल स्थितियों में भी साहस और संयम नहीं खोती.ये बिल्कुल नए किस्म की सीता है. राम के साथ बराबरी से खड़ी. सिर्फ तस्वीरों में भीनहीं. हर घटना और उसमें भागीदारी के स्तर पर भी. हम अक्सर पढ़ते हैं, वाल्मीकि कीरामायण अलग थी और तुलसी की रामायण (रामचरित मानस) अलग. सब देशकाल के हिसाब सेमूल्यों को प्रतिष्ठित करती. अमीष उस परंपरा को आगे बढ़ाते हैं. वो अधुनातन मूल्योंको रोचक और तार्किक ढंग से अपने कथा सूत्र में प्रतिष्ठित करते हैं. उनकी सीताफेमिनिस्ट है, मगर टेक्स्टबुक वाली नहीं. वो रिवर्स सेक्सिज्म से सनी नहीं है. औरजब एक किरदार समिचि ऐसा करती नजर आती है, तो सीता उसे दुरुस्त भी करती है.यही खूबी 'सायन ऑफ इक्ष्वाकु' में भी थी. उसके राम और उनके बाकी तीन भाई ज्यादामानवीय थे.'सायन ऑफ इक्ष्वाकु' किताब का कवररामचंद्र सीरीज की एक और खासियत है, जो इसे अमीष की पिछली सीरीज 'शिवा ट्रिलिजी' सेअलग भी करती है. वह है भारत वर्ष के मौजूदा मुद्दों को ज्यादा सीधे ढंग से पुरातनकहानी में प्रतिष्ठित करना. रामचंद्र सीरीज की पहली किताब में दिल्ली गैंगरेप साप्रसंग आता है, जब अयोध्या की सबसे अमीर कारोबारी मिथिला की बेटी और राम कीमुंहबोली बहन रौशनी का गैंगरेप होता है. नाम पर गौर करिए. रौशनी. क्या आपको इसकानिर्भया से संबंध पता है. पता ही होगा.अमीष की शिवा ट्रिलिजीयहीं पर वो रोचक बहस भी होती है कि नाबालिग अपराधी, जो हिंसा के दौरान सबसे सक्रियथा, उसका क्या हो. कानून पालन के लिए निबद्ध राम कहते हैं, विधि का पालन हो. भरतकहते हैं, विधि से ज्यादा जनमत के लिए न्याय का बोध जरूरी है. और उसी क्रम में एकछिपे हुए ऑपरेशन में भरत अपने तईं न्याय करते हैं. उस नाबालिग अपराधी को दंडित कर.इसी तरह से सीता, य़ानी सीरीज की दूसरी किताब में प्रसंग हैं. एक जगह जल्लीकट्टू आताहै. एक मुद्दा, जिस पर एक हफ्ते तक एक स्टेट और पूरा मीडिया जूझता रहा. केंद्रसरकार और सुप्रीम कोर्ट भी पार्टी बन गए. अमीष इस प्रसंग का इस्तेमाल अपने एककिरदार बाली को इंट्रोड्यूस करने में करते हैं. इतना ही नहीं, इसके बहाने वहजलीकट्टू के समर्थन में अपने तर्क भी पेश करते हैं.वैसे ही मिथिला पर हमले का एक प्रसंग है, जहां कई स्वार्थी कायरतावश युद्ध के खिलाफअपने तर्क पेश कर रहे हैं. ऐसा लगा कि एक टीवी विंडो खुल गई, जहां पाकिस्तान औरकश्मीर के मसले पर शांति और संयम का राग अलाप रहे बुद्धिजीवियों की खिंचाई की जारही हो.किताब में कोई कमी लगी क्या? मुझे लगी. शायद आगे दुरुस्त हो जाए. किताब सीता-हरण परखत्म हो गई. यानी अब तक राम और सीता की कहानी सुनाई जा चुकी है. इस कहानी के इसबिंदु तक कुछ बहुत रोचक चीजें हुईं, जो अमीष के कथा-विस्तार में नहीं आ पाई हैं. येबातें थीं सीता का ऋषियों के साथ संवाद. मसलन, अत्रि ऋषि के आश्रम में अनुसुइया केसाथ सीता की बातचीत. ये स्त्रीत्व को समझने-समझाने का एक अच्छा बाइस हो सकता था.किताब में कई जगह कुछ दोहराव आ जाता है. शायद ये इसलिए जरूरी था कि पिछली किताब केप्रसंग याद आ जाएं. ये मानकर न चला जाए कि पाठक अभी-अभी पिछली किताब खत्म कर इसेपढ़ना शुरू कर रहा है.अमीष की ये किताब आपको पढ़नी चाहिए. भारतीय चिंतन और दर्शन को नई रौशनी में रोचकढंग से देखने समझने का बढ़िया मौका देती हैं उनकी नॉवेल. अस्तु.किताब- सीता: वॉरियर ऑफ मिथिला राइटर- अमीष पब्लिशर- वेस्टलैंड पब्लिकेशन कीमत- 240रुपए (ऐमजॉन पर)-------------------------------------------------------------------------------- दी लल्लनटॉप ने ढेर सारी किताबों के रीव्यू किए हैं, पढ़िए:कश्मीर में पत्थर क्यों फेंके जा रहे हैं, ये सफीना की कहानी बताती हैबॉलीवुड के प्यारे लड़के करण जौहर की 6 खूबसूरत बातें'इस रेशम की थान को पढ़ोगे तो Quotes गिराने लगोगे''जब उसका पांचवां पति भी मानसिक रोगी निकलता है, तो वो उसे छोड़ देती है'क्या खुलासे किए हैं कन्हैया कुमार ने अपनी किताब 'बिहार से तिहाड़ तक' में