The Lallantop
Advertisement

बॉक्स ऑफिस पर सबसे पहले की एक करोड़ कमाई, फिर बंद कैसे हुआ देविका रानी का बॉम्बे टॉकिज?

बॉलीवुड की नींव रखने वाले Bombay Talkies को Himanshu Roy ने बनाया था. कलकत्ता से कानून की पढ़ाई करने वाले हिमांशु बैरिस्टर बनने London गए. वहां थियेटर से जुड़े और एक्टिंग का हुनर सीखा. भारत वापस आ कर उन्होंने बनाया जिसने आगे चलकर अशोक कुमार, Dileep Kumar, और Madhubala जैसे सितारों को जन्म दिया.

Advertisement
The Rise and Fall of Bombay Talkies
बॉम्बे टॉकीज की कहानी
pic
कमल
9 अक्तूबर 2024 (Updated: 9 अक्तूबर 2024, 12:24 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

1934 की एक शाम, बंबई की धूल भरी सड़कों पर एक पुरानी फ़िएट कार तेजी से दौड़ रही थी. कार में बैठे थे हिमांशु रॉय (Himanshu Roy) और देविका रानी (Devika Rani). दो ऐसे लोग जिन्होंने भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) की तकदीर बदलने का सपना देखा था. उनकी आंखों में एक जुनून था. भारतीय फिल्मों को दुनिया के नक्शे पर लाने का जुनून. कार मलाड की ओर बढ़ रही थी, जहां एक खाली प्लॉट पर उनका सपना साकार होने वाला था. वह प्लॉट जो कल तक सूना था, आज भारतीय सिनेमा का मक्का बनने जा रहा था. हिमांशु और देविका ने तय किया था कि यहीं पर वे अपने सपनों का स्टूडियो बनाएंगे. यह कहानी है बॉम्बे टॉकीज़ (Bombay Talkies) की. भारत का पहला कॉरपोरेट फिल्म स्टूडियो, जिसने अशोक कुमार (Ashok Kumar), दिलीप कुमार (Dileep Kumar), और मधुबाला (Madhubala) जैसे सितारों को जन्म दिया. यहीं बोया गया वो वो बीज, जो आगे चलकर बॉलीवुड (Bollywood) का विशाल वृक्ष बना.

लंदन से बंबई तक

बॉम्बे टॉकीज़ को बनाया था हिमांशु रॉय ने. उनकी कहानी कलकत्ता (अब कोलकाता) से शुरू होती है, जहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की. फिर वे बैरिस्टर बनने के लिए लंदन चले गए. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. लंदन में उन्हें थियेटर का कीड़ा लग गया. 1922 में उन्होंने कानून की पढ़ाई छोड़ दी और निरंजन पाल के नाटक 'द गॉडेस' में लीड रोल निभाया.
इस नाटक ने हिमांशु की जिंदगी बदल दी. उन्होंने 'द इंडियन प्लेयर्स' नाम से एक थियेटर ग्रुप बनाया और ब्रिटेन में टूर किया.

The indian players theatre group- himanshu rai
‘द इंडियन प्लेयर्स’ थियेटर ग्रुप के दौरान हिमांशु रॉय

हिमांशु और निरंजन का मकसद था भारत की असली तस्वीर दुनिया के सामने पेश करना. उस वक्त ब्रिटेन में भारत पर बनी ज्यादातर फिल्में सनसनीखेज होती थीं. इनमें भारत को एक अजीब और रहस्यमयी देश दिखाया जाता था. हिमांशु ने अपने सपने को साकार करने के लिए बंबई से पैसे जुटाए और 'द लाइट ऑफ एशिया' नाम की फिल्म बनाने का फैसला किया. 1924 में वे निरंजन के साथ म्यूनिख गए, जहां उन्होंने एमेल्का स्टूडियोज के साथ डील की. एमेल्का ने क्रू और इक्विपमेंट देने का वादा किया, जबकि हिमांशु और निरंजन ने फंड्स और इंडियन कास्ट का इंतजाम किया.

The Light of Asia
हिमांशु रॉय और निरंजन पाल की साइलेंट फिल्म ‘द लाइट ऑफ एशिया’
साइलेंट फिल्मों का दौर

हिमांशु रॉय और निरंजन पाल ने तीन शानदार साइलेंट फिल्में बनाईं, जो भारतीय कहानियों पर आधारित थीं. 'द लाइट ऑफ एशिया' (1925) महात्मा बुद्ध के जीवन पर आधारित थी, 'शिराज' (1928) ताजमहल की प्रेम कहानी थी, और 'ए थ्रो ऑफ डाइस' (1929) महाभारत से प्रेरित थी. 

इन फिल्मों की शूटिंग भारत में हुई. हिमांशु ने खुद लीड रोल निभाया. कई राजा-महाराजाओं ने अपने महल और मंदिर शूटिंग के लिए खोल दिए. हाथी, कीमती जवाहरात, और हजारों एक्स्ट्रा - सब कुछ फिल्मों के लिए मुहैया करॉया गया. जर्मन डायरेक्टर फ्रांज ओस्टेन और कैमरामैन जोसेफ विर्शिंग ने प्रोडक्शन टीम का नेतृत्व किया. उन्होंने अपना अनुभव भारतीय क्रू के साथ बांटा. फिल्मों के नेगेटिव जर्मनी ले जाकर प्रोसेस और एडिट किए गए. ये फिल्में यूरोप में खूब चलीं, लेकिन भारत में उतनी लोकप्रिय नहीं हुईं.

ये भी पढ़ें - तारीख: क्या सच में न्यूटन के सर पर सेब गिरा था?

1928 में हिमांशु की मुलाकात देविका रानी से हुई. देविका गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की परपोती थीं. उन्होंने अपना ज्यादातर बचपन इंग्लैंड में बिताया था. देविका फैब्रिक डिजाइनर थीं, और हिमांशु ने उन्हें 'ए थ्रो ऑफ डाइस' के प्रोडक्शन में मदद करने के लिए बुलाया. इसी फिल्म में काम करते हुए दोनों में प्यार हुआ और 1929 में दोनों ने शादी कर ली.

‘कर्मा’

'कर्मा' देविका रानी की पहली फिल्म थी और बतौर अभिनेता हिमांशु रॉय की आखिरी फिल्म. इस फिल्म में रियल लाइफ कपल ने दो पड़ोसी राज्यों के शासकों का किरदार निभाया, जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं. फिल्म में परंपरागत और प्रगतिशील मूल्यों के बीच टकराव, बाघ का शिकार, और जहरीले सांप का काटना जैसे रोमांचक दृश्य थे.

Karma_movie
देविका रानी की पहली फिल्म 'कर्मा'

'कर्मा' पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे अंग्रेजी और हिंदुस्तानी दोनों वर्जन में शूट किया गया. फिल्म को पूरा होने में दो साल लगे. बाहरी दृश्य भारत में शूट किए गए, जबकि इंडोर शूटिंग लंदन के स्टॉल स्टूडियोज में हुई. फिल्म की एडिटिंग भी लंदन में की गई.

ग्रेट डिप्रेशन के दौर में हिमांशु को फिल्म पूरी करने और डिस्ट्रीब्यूटर ढूंढने में बहुत मुश्किलें आईं. भारतीय बिजनेसमैन, जिन्होंने फिल्म में पैसा लगाया था, परेशान थे कि उन्हें अपने निवेश पर रिटर्न मिलने में इतना वक्त क्यों लग रहा है. इसी के चलते कर्मा के रिलीज़ में देर हुई और आखिरकार 1933 में जाकर फिल्म रिलीज हो पाई. मीडिया में फिल्म की खूब चर्चा हुई. देविका रानी की खूबसूरती और उनके उच्चारण की तारीफ़ों के पुल बांधे गए. हालांकि, फिल्म की कहानी कमजोर थी और इसमें हिमांशु की पिछली साइलेंट फिल्मों जैसा विजुअल आकर्षण नहीं था. 'कर्मा' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही, लेकिन इसकी पब्लिसिटी से हिमांशु और देविका के अगले प्रोजेक्ट का फाइनेंसर मिल गया.

बॉम्बे टॉकीज का जन्म

1934 में हिमांशु रॉय और देविका रानी भारत लौटे और बम्बई में बॉम्बे टॉकीज लिमिटेड की स्थापना की. बंबई के बड़े बिजनेसमैन, राजनारॉयण दूबे ने इस प्रोजेक्ट में पैसा लगाया. स्टूडियो बंबई के दूरदराज इलाके मलाड में बनाया गया.

Bombay_Talkies
1934 में बना बम्बई में बॉम्बे टॉकीज लिमिटेड

हिमांशु के साथ फ्रांज ओस्टेन और जोसेफ विर्शिंग भी जुड़ गए, जिन्होंने उनकी साइलेंट फिल्मों पर काम किया था. लेखक निरंजन पाल भी टीम का हिस्सा बने. बॉम्बे टॉकीज अपने स्टाफ के साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए मशहूर था. स्टूडियो ने यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स को फिल्म मेकिंग सिखाने के लिए एक ट्रेनिंग प्रोग्राम भी शुरू किया. बॉम्बे टॉकीज ने भारतीय सिनेमा में कई नए प्रयोग किए. 

यहां पहली बार साउंड और इको-प्रूफ स्टेजेस, लेबोरेटरीज, एडिटिंग रूम्स और प्रिव्यू थिएटर बनाए गए. स्टूडियो ने हॉलीवुड की तरह क्रिएटिव और बिजनेस पहलुओं को अलग-अलग रखा. बिजनेस साइड राजनारॉयण दूबे देखते थे, जबकि हिमांशु और देविका क्रिएटिव काम पर ध्यान देते थे. यह अप्रोच भारतीय सिनेमा में एक नया एक्सपेरिमेंट था, जिसने स्टूडियो को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

बॉम्बे टॉकीज की फिल्में तकनीकी रूप से बेहद इंप्रेसिव होती थीं. जर्मन तकनीशियनों के अनुभव ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी. स्टूडियो ने कई प्रभावशाली इन्वेस्टर्स को भी अपनी ओर खींचा, जिनमें वकील सर फिरोजशाह मेहता, पूर्व बॉम्बे गवर्नर के बेटे सर रिचर्ड टेम्पल, और मशहूर बिजनेसमैन एफ.ई. दिनशॉ शामिल थे.

बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म

फिल्मों की बात करें तो बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म थी 'जवानी की हवा', जो 1935 में रिलीज़ हुई. ‘जवानी की हवा' एक थ्रिलर फिल्म थी जिसने दर्शकों का दिल जीत लिया. लेकिन असली धमाका हुआ 'अछूत कन्या' (1936) से. यह फिल्म न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर हिट रही, बल्कि इसने छुआछूत जैसे संवेदनशील विषय पर बात करने का साहस भी दिखाया.

Jawani ki hawa
जवानी की हवा फिल्म के दौरान तस्वीर में बीचों बीच देविका रानी

1936 में ही आई 'जीवन नैया', जिसने अशोक कुमार को स्टारडम दिया. इसके बाद 'किस्मत' फिल्म ने तो इतिहास ही रच दिया. इस फिल्म में था मशहूर गीत 'दूर हटो ऐ दुनियावालो', जिसने देशभक्ति की एक नई लहर पैदा कर दी. 'किस्मत' ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया और 1 करोड़ रुपये का कलेक्शन करने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई - एक ऐसा रिकॉर्ड जो कई सालों तक कायम रहा.

बॉम्बे टॉकीज ने सिर्फ फिल्में ही नहीं बनाईं, बल्कि कई सुपरस्टार्स को भी जन्म दिया. देविका रानी, अशोक कुमार, लीला चितनिस, दिलीप कुमार, और मधुबाला - ये सभी बॉम्बे टॉकीज की देन हैं. इन सितारों ने भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग की नींव रखी. देविका रानी को 'भारतीय सिनेमा की फर्स्ट लेडी' का खिताब मिला. उनकी खूबसूरती और अदाकारी ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. 

दिलीप कुमार ने बॉम्बे टॉकीज में पहले कैंटीन में काम किया, फिर एक्टर बने. 'जिद्दी' (1948) ने उन्हें स्टारडम दिया. 1949 में आई महल फिल्म ने मधुबाला को रातोंरात सेंसेशन बना दिया. ये सभी कलाकार आगे चलकर भारतीय सिनेमा के दिग्गज बने. बॉम्बे टॉकीज सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं, बल्कि सोशल चेंज का भी जरिया बना. 'अछूत कन्या' जैसी फिल्मों ने छुआछूत जैसे मुद्दों पर बात की. स्टूडियो ने पूरब और पश्चिम के बेहतरीन एलिमेंट्स को मिलाया. बॉम्बे टॉकीज की फिल्मों ने भारतीय समाज के बदलते चेहरे को दिखाया. परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष, महिलाओं की बदलती भूमिका और राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव.

ये भी पढ़ें -तारीख़: प्लेन क्रैश में बचे 16 लोग क्यों बन गए विलेन?

बॉम्बे टॉकीज बंद क्यों हुआ?

बॉम्बे टॉकीज ने 40 के आसपास फ़िल्में बनाई लेकिन इसका सफर उथल पुथल से भरा रहा. 1936 में इस स्टूडियो का नाम पहली बार एक स्कैंडल से जुड़ा जब 'जीवन नैया' की शूटिंग के दौरान देविका अपने को-स्टार नजमुल हसन के साथ कलकत्ता चली गईं. हिमांशु ने उन्हें वापस आने के लिए मना तो लिया, लेकिन इस घटना से रिश्ते में दरार पड़ चुकी थी. नजमुल हसन ‘जीवन नैया' के हीरो थे. हिमांशु रॉय ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया. और जल्दबाजी में नए हीरो की तलाश में हिमांशु ने लैब टेक्नीशियन अशोक कुमार को लीड रोल दे दिया. यह फैसला भारतीय सिनेमा के लिए गेम चेंजर साबित हुआ. अशोक कुमार रातोंरात स्टार बन गए और उनका करियर 1990 के दशक तक चला.

बॉम्बे टॉकीज के लिए अगली मुसीबत शुरू हुई 1939 में. जब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा, ब्रिटिश सरकार ने स्टूडियो के जर्मन तकनीशियनों को युद्ध के काम के लिए भर्ती कर लिया. यह स्टूडियो के लिए एक बड़ा झटका था. फ्रांज ओस्टेन और जोसेफ विर्शिंग जैसे प्रतिभाशाली लोगों के बिना, तकनीकी गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया.

Franz Osten_Josef Wirsching
फोटो के दाहिनी तरफ जोसेफ विर्शिंग और बाई तरफ फ्रांज ओस्टेन

ये सब मुसीबतें चल ही रही थी कि साल 1940 में महज 48 साल की उम्र में, हिमांशु रॉय का देहांत हो गया. यह बॉम्बे टॉकीज के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान था. हिमांशु की मौत के बाद, देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज की कमान संभाली. उस ज़माने में किसी औरत का एक फिल्म स्टूडियो चलाना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम था. लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं. 1943 में स्टूडियो के भीतर पावर स्ट्रगल शुरू हो गया. प्रोड्यूसर शशधर मुखर्जी और अशोक कुमार जैसे दिग्गजों ने बगावत कर दी. उन्होंने बॉम्बे टॉकीज छोड़कर 'फिल्मिस्तान' नाम से एक नया स्टूडियो शुरू कर दिया.

Filmistan film studio
बॉम्बे टॉकीज को छोड़ कलाकारों ने बनाया ‘फिल्मिस्तान’ स्टूडियो 

1945 में देविका रानी ने रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोएरिख से शादी कर ली और बॉम्बे टॉकीज के शेयर बेच दिए. वो फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह कर बैंगलोर चली गईं. देविका रानी के जाने के बाद, बॉम्बे टॉकीज को बचाने की कई कोशिशें हुईं. लेकिन स्टूडियो अपने पुराने गौरव को वापस नहीं पा सका. 1953 में तोलाराम जालान नाम के एक बिजनेसमैन ने इसे खरीद लिया और बंद करने का फैसला किया. जून 1954 में बॉम्बे टॉकीज की आखिरी फिल्म रिलीज हुई. इस तरह, एक युग का अंत हो गया. 

वीडियो: तारीख: कहानी 'इजरायल' की जिसने 6 देशों को एक साथ जंग में हराया?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement