अर्जुन रणतुंगा के बॉडीगार्ड ने उनके सामने गोली मारकर एक आदमी की जान ले ली
अर्जुन रणतुंगा मरते-मरते बचे हैं और ये बात श्रीलंका में गहराते राजनीतिक संकट से जुड़ी हुई है.

ये पूरा माजरा क्या है, ये समझिए.

अर्जुन रणतुंगा को STF की यूनिफॉर्म पहनाकर निकालना पड़ा. भीड़ काफी हिंसक थी. वो रणतुंगा को जाने ही नहीं दे रही थी (फोटो: श्री लंका टुडे)
श्रीलंका में क्या हुआ? राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को क्यों हटा दिया? 26 अक्टूबर की बात है. रात के समय श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने एकाएक देश के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया. विक्रमसिंघे 2015 में चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने थे. सिरिसेना उनकी जगह पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को ले आए हैं. विक्रमसिंघे ने इसका विरोध किया. कहा, संसद में तत्काल एक आपातकालीन विश्वास मत लाया जाए. ताकि वो दिखा सकें कि उनके पास बहुमत है. इसके जवाब में सिरिसेना ने अगले दिन, यानी 27 अक्टूबर को संसद को ही निलंबित कर दिया. 2015 के चुनाव से पहले सिरिसेना राजपक्षे के सहयोगी हुआ करते थे. 2015 के चुनाव के समय उन्होंने राजपक्षे को हटाने के लिए विक्रमसिंघे से हाथ मिलाया. राजपक्षे के राज में हुए बेपनाह भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ आवाज उठाई. नतीजा ये कि राजपक्षे हार गए. मगर फिर सिरिसेना और विक्रमसिंघे के रिश्ते खराब होने लगे. चीजें बिगड़ते-बिगड़ते यहां तक पहुंच गई हैं.
श्रीलंका में जो हो रहा है, क्या उसके पीछे चीन का हाथ है? राजपक्षे 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे. वो चीन के करीबी माने जाते हैं. ये उनके ही दौर में हुआ, जब श्रीलंका ने चीन से बेतहाशा कर्ज लिया. इसी कर्ज के पैसों की बदौलत श्रीलंका इस हालत में पहुंचा कि उसे अपना हंबनटोटा बंदरगाह लीज पर चीन को देना पड़ाMP @ArjunaRanatunga
— Sunil Jayasiri (@sjayasiri) October 29, 2018
in a STF uniform seen here being escorted by the STF from the CPC Office at Dematagoda after workers prevented him coming out pic.twitter.com/mOUazyN5V6
. ये बस एक बंदरगाह सौंपने की बात नहीं थी. आपको प्रेमचंद की गोदान याद है? शुरुआत में महाजन मीठा-मीठा बोलकर होरी पर कर्ज लाद देता है. होरी उसकी चाल समझ नहीं पाता. आगे चलकर वही कर्ज उसका सुख-चैन सब छीन लेता है. आप श्रीलंका को होरी और चीन को वही शातिर महाजन समझ लीजिए.

सिरिसेना के ऐलान के कुछ ही देर बाद महिंदा राजपक्षे का ट्विटर अकाउंट भी अपडेट हो गया. उन्होंने खुद के इंट्रो में प्रधानमंत्री लिख लिया है.
आज की तारीख में श्रीलंका पर इतना कर्ज है कि उसके कुल राजस्व का लगभग 80 फीसद कर्ज चुकाने में खर्च हो जाता है. चीन को श्रीलंका पर हावी करने का जरिया बने राजपक्षे. इनका वापस लौटना बताता है कि चीन श्रीलंका को बुरी तरह अपनी गिरफ्त में ले चुका है. राजपक्षे चीन के दोस्त हैं. वो श्रीलंका की नहीं, चीन के हितों की परवाह करते हैं. राजपक्षे और भी कई चीजों के लिए बदनाम हैं. 10 साल के उनके राज में खूब भ्रष्टाचार हुआ. मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई गईं. राजपक्षे के ही दौर में लिट्टे को खत्म करने के नाम पर 40,000 से ज्यादा निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई. देखा जाए तो राजपक्षे अपने, अपने सहयोगियों और चीन के अलावा किसी के लिए अच्छे साबित नहीं हुए हैं. इस बात में कोई शक नहीं कि श्रीलंका में पैदा हुए इस संवैधानिक संकट के पीछे चीन का हाथ है.
विक्रमसिंघे को बर्खास्त करने की ताकत थी राष्ट्रपति के पास? श्रीलंका के संविधान से जाएं, तो सिरिसेना का PM विक्रमसिंघे को हटाना सरासर गलत है. संविधान कुछ खास परिस्थितियों में ही प्रधानमंत्री को हटाने की ताकत देता है. एक तो अगर मौजूदा PM की मौत हो जाए. तब राष्ट्रपति किसी और को प्रधानमंत्री मनोनीत कर सकता है. या फिर मौजूदा वज़ीर इस्तीफा दे दे. या फिर संसद में अल्पमत में आ जाए. इनमें से कुछ भी हुआ नहीं. सो विक्रमसिंघे को हटाया जाना असंवैधानिक तो है ही. विक्रमसिंघे और उनके समर्थक भी यही कह रहे हैं. विक्रमसिंघे ने खुद की बर्खास्तगी को असंवैधानिक ठहराया है. वो प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास 'टेम्पल ट्रीज़' को भी खाली करने के मूड में नहीं दिख रहे.In Sri Lanka's case, looking forward, not back, means returning to the past, as misguided impunity for the Rajapaksa government's war crimes has enabled a Rajapaksa government to return, with dangerous portents for the Sri Lankan people. https://t.co/nKl1GXIfqs
— Kenneth Roth (@KenRoth) October 29, 2018
pic.twitter.com/iEBFl2JQXY
किसके पास कितना सपोर्ट है? श्रीलंका की संसद में कुल 225 सीटें हैं. बहुमत के लिए 113 का आंकड़ा चाहिए होता है. विक्रमसिंघे के पास 106 सांसदों का सपोर्ट है. उम्मीद है कि छह सांसदों वाला जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) भी विक्रमसिंघे को सपोर्ट करेगा. इसके अलावा एक तमिल नैशनल अलाइंस भी है, जिसके पास 16 सीटें हैं. उम्मीद है कि वो भी विक्रमसिंघे को सपोर्ट करे. दूसरी तरफ राजपक्षे के पास लगभग 95 सांसदों का समर्थन है. लेकिन खबरें ऐसी आ रही हैं कि राजपक्षे पैसे के जोर पर सांसदों को खरीद रहे हैं. 16 नवंबर को संसद दोबारा शुरू होनी है. खरीद-फरोख्त के लिए ये काफी पर्याप्त समय साबित हो सकता है.The U.S. continues to follow developments in #SriLanka
— Heather Nauert (@statedeptspox) October 28, 2018
with concern. We call on President @maithripalas
and the Speaker, to immediately reconvene parliament and allow the democratically elected representatives of the Sri Lankan people to fulfill their responsibilities. pic.twitter.com/skgGhCtLVF
विक्रमसिंघे क्यों गए? विक्रमसिंघे जब से आए थे, श्रीलंका की विदेश नीति को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे. पटरी पर लाने का मतलब है चीन के प्रति उसके झुकाव को खत्म करने की कोशिश. वो श्रीलंका को चीन की तरफ से हटाकर भारत और जापान की ओर ले जा रहे थे. हालांकि श्रीलंका के सिर पर चीन के कर्ज की तलवार फिर भी लटक रही थी. मगर ये किसी मजबूरी की तरह था. वो श्रीलंका की संप्रभुता को बचाने में जुटे थे. देश को चीन के हाथों गिरवी रखने के खिलाफ थे. यही बात उनके खिलाफ गई.Bad news, Rajapaksa is back in Sri Lanka. To all those who said “just forget the past, look forward” - this is why accountability matters. https://t.co/oFPf41Wfa7
— Elaine Pearson (@PearsonElaine) October 28, 2018
अर्जुन रणतुंगा क्या कर रहे हैं अभी? रणतुंगा 18 साल के थे, जब उन्होंने श्रीलंका के लिए अपना पहला टेस्ट मैच खेला था. फिर आगे चलकर वो कैप्टन भी बने. 1996 में जब श्रीलंका की टीम वर्ल्ड कप जीती, तब रणतुंगा ही उसके कैप्टन थे. तकरीबन 18 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बाद रणतुंगा ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया. 2001 में उन्होंने पॉलिटिक्स जॉइन की. 2004 में उन्हें इंडस्ट्री, टूरिज्म और इंडस्ट्री प्रमोशन का डेप्युटी मिनिस्टर बनाया गया. रणतुंगा विक्रमसिंघे के साथ थे. उनके मंत्रालय में पेट्रोलियम मिनिस्टर थे. विक्रमसिंघे को हटाए जाने और संसद बर्खास्त कर दिए जाने के बाद उनके हाथ से मिनिस्टरी भी चली गई.China's Ambassador to #SriLanka
— Mahinda Rajapaksa (@PresRajapaksa) October 27, 2018
Cheng Xueyuan called on newly appointed Prime Minister Mahinda Rajapaksa earlier today to convey congratulatory wishes from Chinese President Xi Jinping. pic.twitter.com/MexZRhdZBH
बॉडीगार्ड्स ने गोली क्यों चलाई? शुक्रवार को, जिस दिन सिरिसेना ने विक्रमसिंघे की गद्दी पलटी, तब रणतुंगा श्रीलंका में नहीं थे. तख्तापलट की खबर मिलने पर वो 27 अक्टूबर को श्रीलंका लौटे. राजधानी कोलंबो में सिलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की एक इमारत है. पेट्रोलियम मंत्री होने के नाते यहीं पर रणतुंगा का दफ्तर भी है. 28 अक्टूबर को दोपहर करीब तीन बजे की बात है. रणतुंगा अपने दफ्तर जा रहे थे. .यहां उनका सामना हुआ राजपक्षे के समर्थकों से. इन्होंने रणतुंगा और उनके साथ के लोगों को अंदर जाने से रोका. कहा, आपकी तो सरकार ही चली गई. मंत्री नहीं रहे, तो दफ्तर कैसा? रणतुंगा ने कहा कि ऑफिस में उनका पर्सनल सामान रखा है. वही लेने जा रहे हैं. ये कहकर वो दफ्तर में घुस गए.“They tried to kill me, around 50 mob entered with poles & one of them tried to grab the weapon of my PSD officer, Then he shot, There is CCTV evidence, Media can get them and see how they behaved” Arjuna Ranatunga explains what happened pic.twitter.com/kPhMJ3Ycw9
— Azzam Ameen (@AzzamAmeen) October 28, 2018
थोड़ी ही देर में वहां राजपक्षे के ढेर सारे समर्थक जुट गए. ऐसी स्थिति हो गई मानो रणतुंगा बिल्डिंग में कैद हो गए हों. खूब हो-हल्ला हुआ. इसी बीच कुछ लोग रणतुंगा के दफ्तर में घुस गए. रणतुंगा के समर्थकों का कहना है कि इन लोगों ने उनके ऊपर गोली चलाने की कोशिश की. उनके मुताबिक रणतुंगा को बचाने के लिए उनके बॉडीगार्ड्स ने गोली चलाई. इसमें एक आदमी मारा गया. उसके साथ के दो लोग जख्मी हो गए. फिर बॉडीगार्ड्स ने बाहर जुटी भीड़ को डराने के लिए कुछ और राउंड गोलियां चलाईं. भीड़ बौखलाई हुई थी. उसके पास हथियार भी थे. काफी हिंसक और खतरनाक स्थिति बन गई थी वहां. इतने में पुलिस वहां पहुंच गई. उसने रणतुंगा और उनके सहयोगियों को वहां से निकाला. रणुतंगा फिर भागे-भागे PM के आवास 'टेम्पल ट्रीज़' पहुंचे. रणतुंगा के बॉडीगार्ड को अरेस्ट कर लिया गया है.
मालदीव में हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भारत के लिए थोड़ी राहत लाए थे. बहुत दिनों बाद किसी पड़ोसी मुल्क में हमारे लिए कुछ अच्छा हुआ था. श्रीलंका के बिगड़े हालात वहां के लोगों, खासतौर पर तमिल अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक हैं. भारत के लिए भी ये बुरी स्थिति है. एक तरफ पाकिस्तान. दूसरी तरफ चीन. नेपाल अलग सिर दर्द दे रहा है. श्रीलंका में चीजें बेहतर होती दिख रही थीं, मगर वहां भी ये सब हो गया. भारत कितने मोर्चों पर एकसाथ टेंशन अफॉर्ड कर सकता है? हम इजरायल जितने मजबूत तो हैं नहीं.“I only returned to the country this morning, I informed the ministry secretary and went to take my personal belongings so a new minister can assume duties when appointed” Arjuna Ranatunga on why he went to the ministry pic.twitter.com/K9SUhyyPeC
— Azzam Ameen (@AzzamAmeen) October 28, 2018
वीडियो: मालदीव चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सालेह के जीतने से भारत पर क्या असर पड़ेगा?

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