यूट्यूबर मनीष कश्यप पर लगे NSA की कहानी, जिसे सुन बड़े-बडे़ माफिया कांप जाते हैं
मनीष कश्यप ने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी. इसके बाद NSA लग गया.
बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप (Youtuber Manish Kashyap) पर तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मजदूरों की कथित पिटाई का फर्जी वीडियो वायरल करने के मामले में कानूनी कार्रवाई जारी है. वीडियो वाले मामले में जो मुक़दमे लगने थे वो तो लगे ही. अब तमिलनाडु पुलिस (Tamilnadu Police) ने मनीष पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत भी मामला दर्ज कर लिया है.
ऐसे में अब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) पर बात हो रही है. NSA कब और क्यों लगाया जाता है? कौन लगा सकता है? किन अपराधियों पर लगाया जाता है? विस्तार से इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं.
लेकिन पहले जान लें कि मनीष कश्यप के मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है-
-मनीष कश्यप का कहना था कि तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मजदूरों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है. उसने इससे जुड़ा एक वीडियो भी शेयर किया. जिसे तमिलनाडु और बिहार की पुलिस ने फर्जी करार दिया.
-पुलिस मनीष कश्यप को पकड़ने की कोशिश कर रही थी और 18 मार्च, 2023 को मनीष कश्यप ने सरेंडर कर दिया.
-मनीष कश्यप पर मामले दर्ज करके न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
-बिहार पुलिस की पूछताछ के बाद मनीष कश्यप को तमिलनाडु पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर ले गई.
- 3 अप्रैल को मदुरै की कोर्ट ने मनीष को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.
-तमिलनाडु पुलिस ने कोर्ट से मनीष की न्यायिक हिरासत बढ़ाने की मांग की थी. जिसपर 5 अप्रैल को कोर्ट ने फैसला सुनाया और मनीष को 19 अप्रैल तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
-5 अप्रैल को ही मनीष ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी. उसने सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत देने और अलग-अलग राज्यों में दर्ज हुईं FIR को एक साथ क्लब करने की गुजारिश की थी.
-लेकिन अब मनीष पर NSA के तहत भी मामला दर्ज कर लिया गया है.
NSA या रासुका, एक ऐसा कानून है जिसके तहत किसी खास खतरे के चलते व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है. अगर स्थानीय प्रशासन को किसी शख्स से देश की सुरक्षा और सद्भाव का संकट महसूस होता है तो ऐसा होने से पहले ही वह उस शख्स को पकड़ सकता है. ये कानून, प्रशासन को किसी व्यक्ति को महीनों तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है. इस कानून को 1980 में देश की सुरक्षा के लिए सरकार को ज्यादा शक्तियां देने के लिए जोड़ा गया था. कुल मिलाकर ये कानून सरकार को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति की गिरफ्तारी की शक्ति देता है.
सरकार को अगर लगता है कि कोई शख्स देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने से उसे रोक रहा है, तो भी उस शख्स को गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त और राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में कर सकते हैं. अगर सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति बिना किसी मतलब के देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तार किए जाने की जरूरत है, तो सरकार उसे भी गिरफ्तार करवा सकती है.
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा है, तो ऐसे में बात नेशनल सिक्योरिटी की भी कर लेते हैं. इस संबंध में हमने नालसर यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा से बात की थी. उन्होंने बताया था,
"NSA कानून में यह बताया ही नहीं गया है कि नेशनल सिक्योरिटी क्या है. ये कानून सिर्फ इस बात की जानकारी देता है कि किस स्थिति में खतरा महसूस होने पर गिरफ्तारी की जा सकती है. NSA के सेक्शन-3 का सब क्लॉज-2 सरकार को गिरफ्तारी की ताकत देता है. इसमें कहा गया है कि सरकार किसी ऐसे शख्स को गिरफ्तार कर सकती है, जिससे पब्लिक ऑर्डर या कानून व्यवस्था को खतरा हो."
अब सवाल है कि NSA कब और किन परिस्थितियों में बनाया गया?
NSA का इतिहास क्या है?NSA एक प्रिवेंटिव या निरोधक कानून है. मतलब इसमें किसी घटना के होने से पहले ही सरकार किसी को गिरफ्तार कर सकती है. प्रिवेंटिव कानूनों का इतिहास आजादी से पुराना है. 1881 में अंग्रेज सरकार ने 'बंगाल रेगुलेशन थर्ड' नाम का एक्ट बनाया था. इसमें भी घटना होने से पहले गिरफ्तारी की व्यवस्था थी. फिर साल 1919 में 'रौलट एक्ट' आया. इसमें ट्रायल की व्यवस्था तक नहीं थी. मतलब हिरासत में लिया शख्स कोर्ट भी नहीं जा सकता था. इसे 'गलघोंटू' या 'गैगिंग एक्ट' कहा गया. इसके विरोध प्रदर्शन के दौरान ही जलियांवाला बाग कांड हुआ था.
भारत आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सबसे पहले 1950 में 'प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट' लाए थे. 31 दिसंबर 1969 में इस एक्ट की अवधि खत्म हो रही थी. ऐसे में इंदिरा गांधी के PM रहते हुए 1971 में सरकार, विवादित कानून मीसा या 'मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट' (MISA) लाई. 1975 में इमरजेंसी के दौरान राजनैतिक विरोधियों के दमन के लिए इस कानून का बहुत सख्ती से इस्तेमाल किया गया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, तब इस कानून को 44वें संविधान संशोधन के तहत खत्म किया गया. इंदिरा गांधी जनवरी 1980 में फिर प्रधानमंत्री बनीं. जिसके बाद उनकी सरकार ने 23 सितंबर 1980 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून संसद से पास करवाया और 27 दिसबंर 1980 को ये तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी की मंजूरी के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के रूप में जाना जाने लगा.
NSA के नियम-कायदे क्या हैं?रासुका में संविधान से मिले सबसे बड़े अधिकार मतलब आजादी के अधिकार पर रोक लगाई जाती है. इसके नियमों में शामिल है-
# कानून के तहत किसी को भी 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है.
# जरूरत पड़ने पर 3-3 महीने के लिए हिरासत की अवधि बढ़ाई जा सकती है.
# रासुका या NSA के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना कोई आरोप लगाए 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है.
# गिरफ्तारी के बाद जिला अधिकारी को राज्य सरकार को बताना पड़ता है कि किस आधार पर गिरफ्तारी की गई है.
# हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिर्फ हाई कोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील कर सकता है.
# मुकदमे के दौरान रासुका लगे व्यक्ति को वकील की अनुमति नहीं मिलती. जब कोर्ट में मामला जाता है तो सरकारी वकील मामले की तफ्सील कोर्ट को देता है और जज ही उसकी मेरिट जांचता है.
एक और सवाल, क्या हमेशा गलत लोगों पर ही NSA या रासुका लगाया जाता है?
किस पर लगता है रासुका?क़ानून के जानकार मानते हैं कि रासुका जैसे कानूनों को अपराधी के भीतर डर पैदा करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसके कथित राजनीतिक इस्तेमाल से दिक्कतें पैदा हो रही हैं. सरकारों पर ऐसे लोगों के खिलाफ भी रासुका का इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं, जो सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लेते हैं. डॉ. कफील खान वाला मामला आपको याद होगा. गोरखपुर के बाबा राघव दास (BRD) मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील खान के खिलाफ कार्रवाई हुई थी. बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में उनपर रासुका भी लगाया गया था, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट में सरकार यह साबित नहीं कर पाई थी कि कफील के सिर्फ भाषण भर देने से कानून-व्यवस्था का संकट पैदा हो गया था. ऐसी ही स्थिति दलित एक्टिविस्ट चंद्रशेखर रावण के मामले में देखने को मिली थी. उन पर भी सरकार ने NSA लगाया था, लेकिन कोर्ट में इस कानून के टिकने लायक जवाब नहीं दे सकी.
हालांकि, खतरनाक अपराधियों पर भी रासुका लगाकर सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि वे कानूनी शिकंजे से छूटने न पाएं. ऐसे मामलों में कोर्ट भी रासुका लगाने की इजाजत देता है. देशभर में कई राज्यों में सरकारें NSA का इस्तेमाल दुर्दांत अपराधियों के खिलाफ करती रही हैं. मिसाल के तौर पर कानपुर में 8 पुलिसवालों की हत्या के मामले में विकास दुबे के सहयोगियों पर रासुका लगाया गया था. नोएडा में 2009 में कार रोककर 10 लोगों ने एक महिला के साथ उसके दोस्त के सामने रेप किया. इस मामले में भी पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ NSA लगाया था. उड़ीसा की बेरहामपुर पुलिस ने 10 हत्याओं के आरोपी कैलाश गदेई पर भी रासुका लगाया. कुल मिलाकर कानून से ज्यादा, उसका इस्तेमाल करने वालों पर इसके इस्तेमाल की जवाबदेही है.
डॉ. कफील के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में तफ्सील से समझाया था कि NSA जैसे कानून का इस्तेमाल कैसे होना चाहिए. कोर्ट का कहना था,
ऐसे सख्त कानून का इस्तेमाल बहुत ही अभूतपूर्व स्थिति में और कोई रास्ता न मिलने पर ही किया जाए.
मनीष कश्यप के मामले के बहाने हमने NSA को समझने की कोशिश की. आगे मनीष पर क्या कार्रवाई होती है, सजा क्या मिलती है, इस बारे में हमारी समृद्ध न्यूज़ टीम आपको अपडेट करती रहेगी.