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जातिगत जनगणना का इतिहास, 1931 से अब तक कब-कब क्या-क्या हुआ?

जातिगत जनगणना की बरसों पुरानी मांग, बिहार में इस सर्वे की प्रक्रिया और इस पर केंद्र सरकार का विरोध, ये सब कुछ अब तक समान्तर चलता आया है. जातिगत जनगणना का इतिहास बताता है कि न ये कोई नई चीज है और न इसकी मांग नई है.

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bihar caste census data released
बिहार सरकार ने जनगणना के बाद राज्य की आबादी के जातिवार आंकड़े जारी किए हैं (फोटो सोर्स- ANI, PTI)
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शिवेंद्र गौरव
3 अक्तूबर 2023 (Updated: 3 अक्तूबर 2023, 19:52 IST)
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बिहार सरकार (Bihar Government) ने 2 अक्टूबर, 2023 को जातिगत सर्वे के आंकड़े (Caste Survey) जारी कर दिए.  सुप्रीम कोर्ट में इस सर्वे को चुनौती दी गई थी, जिस पर 3 अक्टूबर को सुनवाई होनी थी. इससे ठीक पहले गांधी जयंती के दिन, सर्वे के नतीजे आए हैं. इधर सुनवाई भी कुछ दिन के लिए टल गई है. जातिगत जनगणना की बरसों पुरानी मांग, बिहार में इस सर्वे की प्रक्रिया और इस पर केंद्र सरकार का विरोध, ये सब कुछ अब तक समान्तर चलता आया है. जातिगत जनगणना का इतिहास बताता है कि न ये कोई नई चीज है और न इसकी मांग नई है.

इतिहास की बात करें उसके पहले, फ़टाफ़ट ये जान लें कि आंकड़ों में क्या-क्या बताया गया है.
आंकड़े बताते हैं कि बिहार में सबसे ज्यादा आबादी अत्यंत पिछड़े वर्ग की है, जिसे राज्य में EBC के रूप में कैटगराइज किया गया है. इनकी आबादी 36 फीसदी है.

-सर्वे के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार है. इसमें बिहार के बाहर रहने वाले करीब 53 लाख 72 हजार अस्थायी प्रवासी भी हैं. यानी बिहार की सीमा में रहने वाले लोगों की संख्या 12 करोड़ 53 लाख है.
-कुल आबादी में पिछड़े वर्ग (OBC) की संख्या 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार है. यानी 27.12 प्रतिशत.
-अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) की आबादी है- 4 करोड़ 70 लाख 80 हजार. यानी 36 प्रतिशत.
-अनुसूचित जाति यानी दलित समुदाय की आबादी 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार है. माने 19.65 प्रतिशत.
-अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी आबादी 21 लाख 99 हजार है. यानी 1.68 फीसदी.
-अनारक्षितों की एक कैटेगरी है, जो तथाकथित अगड़ी जाति माने जाते हैं. उनकी आबादी है- 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार. यानी 15.52 फीसदी.
-राज्य में यादव 14 फीसदी, भूमिहार 2.86 फीसदी, राजपूत 3.45 फीसदी, ब्राह्मण 3.66 फीसदी, कुर्मी 2.87 फीसदी, मुसहर 3 फीसदी, तेली 2.81 परसेंट, मल्लाह 2.60 फीसद हैं. चूंकि जातियों की लिस्ट बहुत लंबी है इसलिए एक साथ सभी को पूरा रखना संभव नहीं है.
-बिहार में किस धर्म के कितने लोग हैं, इसका भी डेटा आया है. हिंदुओं की आबादी 10 करोड़ 71 लाख 92 हजार बताई गई है. यानी 81.99 परसेंट. वहीं मुस्लिमों की आबादी 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार है. यानी 17.70 फीसदी. बौद्ध एक लाख 11 हजार यानी 0.08 परसेंट. ईसाई आबादी है 75 हजार यानी 0.05 फीसदी.

अब बात इतिहास की.

जातिगत जनगणना का इतिहास

अंग्रेज़ों के दौर में भारत में जातियों के हिसाब से लोगों को गिना जाता था. आखिरी बार 1931 में जाति जनगणना हुई थी. 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े पब्लिश नहीं हुए थे. इसकी वजह तब के जनगणना कमीशनर एम डब्ल्यू एम यीट्स ने बताई थी कि पूरे देश की जाति आधारित टेबल तैयार नहीं हो पाई थी.

उन्होंने एक नोट में कहा था,

"सरकारी उपक्रम के हिस्से के तौर पर इस बड़े और महंगे टेबल के लिए अब वक़्त बीत चुका है."

इसके बाद अगली जनगणना से पहले देश आज़ाद हो गया था. 1951 में सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया. यानी अंग्रेज़ों वाले जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया. जनगणना का ये ही स्वरूप कमोबेश अभी तक चला आ रहा है. दूसरे शब्दों में कहें तो साल 1951 से 2011 तक हर बार की जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन OBC और दूसरी जातियों का डेटा नहीं दिया गया.

कालेलकर आयोग की परिणति

संविधान लागू होने के साथ ही में SC-ST के लिए आरक्षण शुरू हो गया था. फिर पिछड़े वर्ग की तरफ से आरक्षण की मांग उठने लगी थी. पिछड़े वर्ग की परिभाषा क्या हो, कैसे इस वर्ग का उत्थान हो, इसके लिए नेहरू सरकार ने 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया था. इस आयोग ने पिछड़े वर्ग का हिसाब लगाया. जाति के आंकड़ों का आधार था 1931 की जनगणना. हालांकि, कालेलकर आयोग के सदस्यों में इस बात पर सहमति नहीं बनी कि पिछड़ेपन का आधार जातिगत होना चाहिए या आर्थिक. कुल मिलाकर ये आयोग इतिहास की एक घटना भर रहा, पिछड़ों को लेकर कोई नीतिगत बदलाव इस आयोग के बाद नहीं हुआ.

मंडल आयोग

अब आइए 1978 में. मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया. दिसंबर 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी. तब तक जनता पार्टी की सरकार जा चुकी थी. मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना के आधार पर ही ज्यादा पिछड़ी जातियों की पहचान की. कुल आबादी में 52 फीसदी हिस्सेदारी पिछड़े वर्ग की मानी गई. आयोग ने पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की. मंडल आयोग की रिपोर्ट पर 9 साल तक कुछ नहीं हुआ. 1990 में वी पी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की एक सिफ़ारिश को लागू कर दिया. ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 फीसदी आरक्षण देने की थी. तब आरक्षण के खिलाफ खूब बवाल हुआ था. देशभर में प्रदर्शन हुए थे. मामला कोर्ट में भी गया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण को सही माना लेकिन अधिकतम लिमिट 50 फीसदी तय कर दी.

इसके बाद 2006 में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने मंडल पार्ट-2 शुरू किया. इस बार मंडल आयोग की एक दूसरी सिफारिश को लागू किया गया. सिफारिश ये थी कि सरकारी नौकरियों की तरह सरकारी शिक्षण संस्थानों मसलन यूनिवर्सिटी, IIT, IIM, मेडिकल कॉलेज में भी पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जाए. इस बार भी बवाल हुआ लेकिन सरकार अड़ी रही और ये लागू भी हुआ. 2010 में आकर फिर जाति आधारित जनगणना की मांग उठी. लालू यादव, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और गोपीनाथ मुंडे जैसे नेताओं ने ज़ोर शोर से ये मांग उठाई.

लेकिन तब कांग्रेस ने इसे लेकर उत्साह नहीं दिखाया. मार्च 2011 में उस वक्त के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने लोकसभा में कहा था,

"जनगणना में जाति का प्रावधान लाने से ये प्रक्रिया जटिल हो सकती है. और जो लोग जनगणना का काम करते हैं –ख़ासतौर पर प्राइमरी स्कूल शिक्षक –उनके पास इस तरह के जातिगत जनगणना कराने का अनुभव या ट्रेनिंग भी नहीं है.''

सरकार ने डेटा छिपाया? 

हालांकि, UPA सहयोगियों के दबाव के बाद मनमोहन सरकार को जाति जनगणना पर विचार करना पड़ा. 2011 में प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में एक कमेटी बनाई. इसने जाति जनगणना के पक्ष में सुझाव दिया. इस जनगणना को नाम दिया गया- ‘सोशियो- इकनॉमिक एंड कास्ट सेन्सस’. 4 हजार 893 करोड़ रुपये खर्च कर सरकार ने जनगणना कराई. ज़िले के हिसाब से पिछड़ी जातियों को गिना गया. जातीय जनगणना का डेटा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को दिया गया. डेटा के कैटेगराइजेशन के लिए नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पंगारिया के तहत एक विशेषज्ञ समूह बनाया गया. लेकिन ये साफ नहीं है कि इसने अपनी रिपोर्ट दी या नहीं. क्योंकि ऐसी कोई रिपोर्ट अब तक सार्वजानिक नहीं की गई है. कुल-मिलाकर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी केंद्र सरकार आज तक ये आंकड़ा जारी नहीं कर पाई है.

जुलाई 2021 में संसद के भीतर मौजूदा सरकार से जातीय जनगणना पर सवाल पूछा गया था. सवाल था कि 2021 की जनगणना जातियों के हिसाब से होगी या नहीं? नहीं होगी तो क्यों नहीं होगी? सरकार का लिखित जवाब आया कि सिर्फ SC-ST को ही गिना जाएगा. यानी OBC जातियों को गिनने का कोई प्लान नहीं है.

इसी साल 17 अप्रैल को कर्नाटक के हुमनाबाद में रैली में राहुल ने कहा था,

“हमें पता करना होगा कि देश में क‍ितने OBC, दल‍ित और आद‍िवासी हैं. अगर हमें यही नहीं मालूम तो उन्हें ताकत कैसे दे सकते हैं. जब 2011 में हमारी सरकार थी हमने जातीय जनगणना करवाई थी. पूरा का पूरा डेटा सरकार के पास उपलब्ध है. लेकिन नरेंद्र मोदी जी ने डेटा पब्लिक नहीं किया है, छिपाया हुआ है. दिल्ली की सरकार को मालूम है कि OBC की आबादी कितनी है लेकिन वो बता नहीं रही.”

हालांकि, जातीय जनगणना की मांग के राजनीतिक निहितार्थ से भी इनकार नहीं किया जा सकता. और इस बीच, बिहार सरकार ने सर्वे के आंकड़े जारी किए हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई होनी है. इसकी तारीख 6 अक्टूबर की तय की गई है. 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: मोदी सरकार जनगणना कराने में क्यों हिचक रही है?

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