औरंगज़ेब के 49 साल के राज में मुगल राज की सरहदें जहां तक गईं, वहां तक कोई औरमुगल फिर नहीं पहुंचा. लेकिन इस सफर में औरंगज़ेब ने कई ग़लतियां कीं. कहते हैं किऔरंगज़ेब की फौज जहां-जहां जाती थी, मंदिर-गुरुद्वारे-मज़ारें ज़मींदोज़ करती जातीथीं. लेकिन उसने एक बार इसके ठीक उलट काम भी किया था, और इसके पुख्ता प्रमाण हैं.देश-भर में ऐसे मंदिर हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इसे औरंगज़ेब ने तोड़दिया था. भावनाएं सबूतों का इंतज़ार नहीं करतीं. इसलिए मंदिरों का तोड़ा जाना औरफिर दोबारा बनवाया जाना, हिंदुस्तान में सबसे संवेदनशील मुद्दों में से है.इस सब के उलट चित्रकूट में एक ऐसा मंदिर है, जिसके बारे में कहते हैं कि उसे खुदऔरंगज़ेब ने बनवाया और उसके नाम जागीर भी लिखी.चित्रकूट का बालाजी मंदिरजब औरंगज़ेब पेट पकड़ कर बैठ गयाचित्रकूट का बालाजी मंदिर यहां के लोगों का अभिमान है. यहां भगवान बालाजी की एकसोने की मूर्ति है. यहां इस मूर्ति जितना ही महत्व रखने वाला एक फरमान भी है जोऔरंगज़ेब का जारी किया हुआ है. बकौल इंडिया टुडे मंदिर के बारे में यहां के लोगोंकी ज़ुबान पर किस्सा ये है कि जब औरंगज़ेब चित्रकूट आया, तो उसने मंदाकिनी नदी केकिनारे एक शिव मंदिर गिराने का हुक्म दिया. लेकिन जब मंदिर गिराने की कोशिश हुई, तोपूरी फौज के पेट में भयंकर दर्द शुरू हो गया, खुद औरंगज़ेब के भी.शाही हकीम को इत्तला भेजी गई. लेकिन उनके इलाज से कोई आराम न हुआ. तभी मालूम चला किइक्का-दुक्का फौजी इस दर्द से बचे हुए हैं. उन्होंने बताया कि दर्द का इलाज पाससाधु बालकदास के पास है. औरंगज़ेब शहंशाह था. लेकिन पेट दर्द ने उसे ऐसा तंग कियाथा कि सारा ताव भूलकर बालक दास के पास पहुंचा. बाबा ने मंतर दिया या घुट्टी, मालूमनहीं. पर औरंगज़ेब को आराम पड़ गया. बदले में औरंगज़ेब ने हुक्म दिया कि चित्रकूटको बख्श दिया जाए और फौज आगे बढ़ गई. ये किस्सा 1683 से 1686 के बीच का बताया जाताहै.औरंगज़ेब का फरमानऔरंगज़ेब ने यहां एक बालाजी मंदिर भी बनवाया और वहां के पुजारी महंत बालक दास केनाम एक फरमान जारी किया. इस फरमान के तहत मंदिर को औरंगज़ेब का शाही संरक्षण मिला.रख-रखाव के लिए पास के आठ गांव मंदिर की जागीर में लिख दिए गए, जहां से महंत लगानले सकते थे.बकौल हिंदुस्तान टाइम्स ये गांव आज के इलाहाबाद ज़िले के हमुठा, चित्रकूट, रोदरा,सरया, मदरी, जारवा और दोहरिया हैं. फरमान के हिसाब से मंदिर को 330 बीघे ज़मीनहमेशा के लिए लिए मिल गई, वो भी टैक्स फ्री. पास के बाज़ारों से वसूल करके मंदिर कोउस ज़माने का एक रुपया रोज़ देने की बात भी फरमान में लिखी हुई है. फरमान परऔरंगज़ेब के रेवेन्यू (राजस्व) मंत्री सआदत खां की सील लगी हुई है और इसे बहरमंदखां नाम के कातिब ने लिखा है.कुछ गलतियां भी हैं फरमान मेंइससे जुड़े सभी दस्तावेज़ मंदिर में बड़ी अच्छी तरह संभाल कर रखे गए हैं. पुरानाहोने की वजह से दरक रहे फरमान को एक मोटे कागज़ पर चिपका दिया गया है. लेकिन पुरानेफरमान को रीस्टोर करने के फेर में कुछ गलतियां भी हो गई हैं. मसलन फरमान की शुरुआत'अल्लाहो अकबर' से होती है. औरंगज़ेब ने अल्लाहो अकबर की जगह'बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम' कहने का चलन शुरू करवाया था. ऐसे में उसके फरमानपर अल्लाहो अकबर गलती की तरह लगता है. लेकिन फरमान को देखने पर मालूम चलता है किअल्लाहो अकबर बाद में लिख कर चिपकाया गया. इसके अलावा फरमान के पीछे लिखे 'ज़िम्न'(ये फुटनोट की तरह होता है) पर भी फरमान से पहले की तारीख है. ये फरमान से बाद कीहोनी चाहिए थी. लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR) के तब के चेयरमैनऔर जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब का यही कहना था कि फरमान की भाषा, उस पर लगी सीलऔर अफसरों के नाम उसके सही होने की ओर ही इशारा करते हैं. फरमान में हुई गलतियांउसे रीस्टोर करने के दौरान आई होंगी. चूंकि औरंगज़ेब के फरमान वाली बात यहां लोगोंमें खूब मशहूर है, मंदिर से जुड़े किसी भी दस्तावेज़ को औरंगज़ेब का बता दिए जानेका चलन है. पन्ना के राजाओं ने इस मंदिर को जो अनुदान दिए थे, उनके बारे कुछताम्रपत्र (तांबे के पत्तों पर लिखे दस्तावेज़) हैं. इन्हें भी लोग औरंगज़ेब का बतादेते हैं. एक अंग्रेज़ जज के फारसी में लिखे एक आदेश के बारे में भी ऐसा ही कहाजाता है.क्यों खास है फरमान?मुगलों ने इस तरह के कई फरमान जारी किए गए थे. खासकर अकबर और शाहजहां के ज़मानेमें. लेकिन औरंगज़ेब के ज़माने में ऐसे कम ही फरमान आए. जो आए, ज़्यादातर औरंगज़ेबके सूबेदारों के थे. लेकिन चित्रकूट के बालाजी मंदिर के हक में जारी फरमान सीधेऔरंगज़ेब का जारी किया है. इसलिए ये खास है और दुर्लभ भी.ये पक्के तौर पर कहना मुश्किल है कि मंदिर औरंगज़ेब ने ही बनवाया था. इसके भी सबूतनहीं हैं कि औरंगज़ेब सचमुच चित्रकूट आया था या नहीं. लेकिन मंदिर की बनावट पक्केतौर पर मुगल है.15 सितंबर 1987 के इंडिया टुडे के अंक में इस मंदिर और औरंगज़ेब के फरमान के बारेमें तफसील से बताया गया है. पंकज पचौरी की लिखी इस रपट का सबसे मार्मिक हिस्सा वोहै जिसमें मंदिर में रोज़ आ रहे द्वारकाप्रसाद सैनी का बयान है. 1922 से रोज़ मंदिरआते रहे सैनी ने कहा था, "अयोध्या के लोगों को जाकर बता दो, हमारे ठाकुर जी एक ऐसेमंदिर में रहते हैं और इस पर कोई भी लड़ता नहीं है." सैनी के ऐसा कहने के बमुश्किलपांच साल तीन महीने बाद रामलला की जन्मभूमि क्लेम करने के मकसद से अयोध्या मेंबाबरी का विवादित ढांचा तोड़ दिया गया. भगवान राम ही थे जो वनवास के समय चित्रकूटमें भी रहे थे. और यहीं के लोग न सिर्फ ये मानते हैं कि बालाजी मंदिर औरंगज़ेब काबनाया हुआ है, बल्कि इस बात पर फख्र भी करते हैं. --------------------------------------------------------------------------------वीडियो देखें:ये भी पढ़ेंःवो 'औरंगज़ेब' जिसे सब पसंद करते हैंऔरंगजेब का वो बेटा जिसे नाखून और बाल तक कटवाना मना थाये 9 बातें साबित करती हैं कि शिवाजी राज्य चाहते थे 'हिंदू राज्य' नहीं!औरंगज़ेब रोड का नाम बदलने वाले भारत को इतिहास संपादन अमेरिका से सीखना चाहिएअकबर और महाराणा प्रताप दोनों की ही ज़रूरत नहीं है2017 आते-आते हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप जीत गए