बाबरी मस्जिद ढांचे पर कुदाल चलाने वाले पहले कारसेवकों को तब शायद इसका एहसास भीनहीं रहा होगा. उन्हें नहीं पता होगा कि वे मुल्क में सियासत का जो किरदार तय कररहे हैं, वो कई साल के लिए देश के मजहबी ताने-बाने को झकझोर देगा. और हिंदुस्तानीजम्हूरियत की स्थाई टीस बन जाएगा.तारीख थी 6 दिसंबर 1992. अयोध्या में बाबरी का विवादित ढांचा कुछ ही घंटों मेंढहाकर वहां एक नया, अस्थायी मंदिर बना दिया गया. BJP-VHP-शिवसेना नेताओं और हजारों'आक्रोशित' कारसेवकों पर केस दर्ज हुए. कांग्रेस ने न सिर्फ 1996 का चुनाव हारा, 8साल तक केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई. यूपी में तो उसका सफाया ही हो गया. सियासतमें ये मुद्दा आज भी मरा नहीं है. कोई इसे सियासत के 'काले सफहे' के तौर पर यादकरता है तो कोई 'शौर्य दिवस' मनाते हुए मिठाई बांटता है.क्लिक करके पढ़िए "दी लल्लनटॉप" पर अयोध्या भूमि विवाद की टॉप टू बॉटम कवरेज.पर क्या आप उन नामचीन हस्तियों की कहानी जानते हैं, जो राम मंदिर आंदोलन और बाबरीमस्जिद विवाद से जुड़े रहे? थोड़ा चलताऊ तरीके से कहें तो ये ही वे लोग थे जो इसविवाद के नायक और खलनायक कहे गए. फैक्ट आपके सामने, चश्मा आपका अपना.1. राजीव गांधी: ताला खुलवाकर बोतल में बंद जिन्न बाहर निकालावे प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही थे, जिन्होंने 1985 में बाबरी मस्जिद परिसर का तालाखोलने की कार्रवाई की प्लानिंग की. कहा जाता है कि उन्होंने तत्कालीन प्रदेश सरकारपर दबाव बनाया और सरकारी अमले ने कोर्ट में कह दिया कि मस्जिद का ताला खोलने से कोईबवाल नहीं होगा. फिर सारा विवाद नए सिरे से शुरू हो गया.राजीव गांधी शाहबानो केस में मुस्लिम कंजर्वेटिव लीडरों का पक्ष लेने के आरोप झेलरहे थे. माना जाता है कि 'पॉलिटिकल बैलेंस' बनाने के चक्कर में उन्होंने हिंदुओं को'साधने' का फैसला किया. राजीव गांधी ने बाबरी परिसर का ताला खुलवा दिया. इससे पहलेपुजारियों को साल में सिर्फ एक बार अंदर जाकर पूजा की इजाज़त थी. इस घटना के बादराम जन्मभूमि आंदोलन ने नए सिरे से जोर पकड़ लिया. और फिर हिंसक रूप ले लिया. बहुतलोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री, स्टेट्समैन और एक कांग्रेसी के तौर पर ये राजीवगांधी की बहुत बड़ी भूल थी.2. लाल कृष्ण आडवाणी: मंदिर के लिए रथयात्राबीजेपी की राजनीति को 'ऐतिहासिक माइलेज' राम मंदिर आंदोलन से ही मिला और इसका सबसेबड़ा चेहरा थे लाल कृष्ण आडवाणी. वही आडवाणी जो आज बीजेपी में सबसे वरिष्ठ हैं. औरहाशिए पर हैं.सितंबर 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण से अयोध्यातक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की थी. आडवाणी का रथ जिन शहरों से गुजरा,उनमें से कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई और कई लोग मारे गए. रथ बिहार पहुंचा तोवहां की नई नवेली लालू यादव सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इसके बावजूद देशभर से बड़ी संख्या में कारसेवक और संघ परिवार के लोग अयोध्या पहुंचे और बाबरी ढांचेपर हमले की कोशिश की. पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों ने उन्हें रोकने की कोशिश की,दोनों पक्षों में संघर्ष हुआ और कई कारसेवक मारे गए. केंद्र की वीपी सिंह सरकार कोकमजोर बताते हुए बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद हुए यूपी विधानसभा चुनावऔर बीजेपी को मिला बहुमत. लोकसभा में भी उसकी हिस्सेदारी बढ़ गई.सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक आडवाणी अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद गिरानेकी 'साजिश' के मुख्य सूत्रधार थे. आडवाणी ने 6 दिसंबर 1992 को कहा था, 'आज कारसेवाका आखिरी दिन है. कारसेवक आज आखिरी बार कारसेवा करेंगे.'3. अशोक सिंघल: आंदोलन का चीफ आर्किटेक्टअगर किसी को राम मंदिर आंदोलन का चीफ आर्किटेक्ट कहा जा सकता है तो वेदिवंगत वीएचपी अध्यक्ष अशोक सिंघल थे. सीबीआई चार्जशीट के मुताबिक, 20 नवंबर 1992को वे शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मिले और उन्हें कारसेवा में हिस्सा लेनेका न्यौता दिया. 4 दिसंबर 1992 को बाल ठाकरे ने शिवसैनिकों को अयोध्या जाने का आदेशदिया. अशोक सिंघल ने ये भी कहा था कि 6 दिसंबर की कारसेवा में बाबरी की इमारत सेमुगल कमांडर मीर बाकी का शिलालेख हटाया जाएगा, क्योंकि यही इकलौता चिह्न मस्जिद काप्रतीक है. दूसरे दिन 5 दिसंबर को अशोक सिंघल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा- 'मंदिरनिर्माण में जो भी बाधा आएगी, हम उसे दूर कर देंगे. कारसेवा केवल भजन कीर्तन के लिएनहीं है, बल्कि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए है.'चार्जशीट में अशोक सिंघल पर आरोप है कि वे 6 दिसंबर को राम कथा कुंज पर बने मंच सेनारा लगवा रहे थे कि 'राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे. एक धक्का और दो बाबरीमस्जिद तोड़ दो.' आरोप है कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो आरोपी प्रसन्न थेऔर मंच पर मिठाई बांटी जा रही थी. उत्तेजित कारसेवकों ने पहले बाबरी मस्जिद ढहाई.उसी दिन अयोध्या में मुसलमानों के कुछ घर तोड़े और जलाए गए.अशोक सिंघल 2011 तक वीएचपी अध्यक्ष बने रहे. फिर स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देदिया. उम्र के आखिरी पड़ाव तक वे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे और विवादास्पद बयानदेते रहे. लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी में भगवान राम कीआत्मा प्रवेश कर गई है. 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया. मोदी ने श्रद्धांजलिदेते हुए उन्हें 'इंस्टीट्यूशन' कहा और उनके निधन को 'निजी नुकसान' बताया.4. विनय कटियार: बजरंग दल के पहले अध्यक्षराम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए वीएचपी ने 1 अक्टूबर 1984 में अपनी एक'दबंग' शाखा बनाई, जिसे 'बजरंग दल' नाम दिया गया. संघ प्रचारक और दो साल पहले हिंदूजागरण मंच बनाने वाले तेजतर्रार 30 वर्षीय युवक विनय कटियार को इस संगठन का पहलाअध्यक्ष बनाया गया. बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने जन्मभूमि आंदोलन को उग्र बनाया.विवादित ढांचा गिराए जाने से एक दिन पहले 5 दिसंबर को अयोध्या में विनय कटियार केघर पर एक बैठक हुई, जिसमें आडवाणी के अलावा शिव सेना नेता पवन पांडे भी मौजूद थे.माना जाता है कि इसी बैठक में विवादित ढांचा गिराने का आखिरी फैसला किया गया.चार्जशीट के मुताबिक, कटियार ने 6 दिसंबर को अपने भाषण में कहा था, 'हमारेबजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरीमस्जिदों को ध्वस्त कर देगा.विवादित ढांचे के ढहाए जाने के बाद कटियार का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ा. वह बीजेपीके राष्ट्रीय महासचिव भी बनाए गए. फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट से वह तीन बार चुनेगए. वर्तमान में पार्टी में किनारे लगा दिए गए हैं. जब-तब राम मंदिर की मांगदोहराते रहते हैं.5. मुरली मनोहर जोशी: दूसरे बड़े भाजपाई चेहराआडवाणी के बाद मुरली मनोहर जोशी दूसरे बड़े बीजेपी नेता थे, जिन्होंने राम मंदिरआंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 6 दिसंबर को जोशी भी मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे.चार्जशीट के मुताबिक, मस्जिद का गुंबद गिरने पर उमा भारती आडवाणी और मुरली मनोहरजोशी से गले मिल रही थीं.मुरली मनोहर जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर आरोप लगा कि 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्टसे प्रतीकात्मक कारसेवा का फैसला हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे प्रदेश मेंसांप्रदायिकता से ओत-प्रोत भाषण दिए, जिनसे सांप्रदायिक जहर फैला. अमित शाह कीअगुवाई वाली बीजेपी ने उन्हें आडवाणी की तरह पार्टी के 'मार्गदर्शक मंडल' में डालकरराजनीतिक रूप से किनारे कर दिया है.6. कल्याण सिंह: 'गोली नहीं चलाऊंगा' को गर्व से कहने वाला CMमस्जिद गिराए जाने के वक्त कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उन पर आरोपहै कि उग्र कारसेवकों को उनकी पुलिस और प्रशासन ने जानबूझकर नहीं रोका.कल्याण सिंह उन 13 लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने की'साजिश' में शामिल होने का आरोप लगा. इसके मुताबिक, 1991 में CM पद की शपथ लेने केबाद कल्याण सिंह ने मुरली मनोहर जोशी और दूसरे नेताओं के साथ अयोध्या जाकर शपथ लीथी कि विवादित जगह पर ही मंदिर बनेगा.अक्टूबर 1991 में उनकी सरकार ने बाबरी मस्जिद कॉम्प्लेक्स के पास 2.77 एकड़ जमीन काअधिग्रहण टूरिज्म प्रमोशन के नाम पर किया. जुलाई 1992 में संघ परिवार ने प्रस्तावितराम मंदिर का शिलान्यास किया और बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द खुदाई करके वहांसीमेंट-कंक्रीट की 10 फुट मोटी परत भर दी गई. कल्याण सिंह सरकार ने इसे भजन करने कास्थान बताया और वीएचपी ने इसे राम मंदिर की बुनियाद घोषित कर दिया.केंद्र सरकार ने 195 कंपनी सेंट्रल मिलिट्री फ़ोर्स मदद के लिए भेजी थी, लेकिनकल्याण सिंह सरकार ने उसका इस्तेमाल नहीं किया. 5 दिसंबर को यूपी के प्रमुख सचिव(गृह) ने केंद्रीय बल का प्रयोग करने का सुझाव दिया, लेकिन कल्याण इस पर भी राजीनहीं हुए. ढांचा गिराए जाने के समय वे अयोध्या में नहीं थे, फिर भी उन पर साजिश मेंशामिल होने का आरोप लगा. 6 दिसंबर की शाम को ही घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुएउन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेशविधानसभा भंग कर दी.घटना के बाद कल्याण सिंह ने जो 'ऐतिहासिक और विवादित' भाषण दिया, वह आज भी यूट्यूबपर मौजूद है. इस भाषण में उन्होंने कहा- 'कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो,जांच आयोग बैठाना है तो मेरे खिलाफ बैठाओ. किसी को दंड देना है तो मुझे दो. दोपहर 1बजे केंद्रीय गृहमंत्री शंकरराव चह्वाण का मेरे पास फोन आया. मैंने उनसे कहा कि येबात रिकॉर्ड कर लो चह्वाण साहब कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा, गोली नहीं चलाऊंगा.'7. सैयद शहाबुद्दीन: वीएचपी विरोध के सबसे बड़ा अगुवाशाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जिन मुस्लिम संगठनों ने राजीवगांधी सरकार पर दबाव बनाया था, उनमें सबसे आगे था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉबोर्ड और इसके बड़े नेता थे सैयद शहाबुद्दीन.अयोध्या में जो कुछ हो रहा था, उस वक्त मुसलमानों के सबसे बड़े पैरोकार बनकरउभरे शहाबुद्दीन उसके सख्त आलोचक थे. 6 दिसंबर के बाद बाबरी ध्वंस और संघ परिवार केखिलाफ देश में जो आवाज उठी, खास तौर से मुसलमान समुदाय की ओर से, शहाबुद्दीन उसकेसबसे बड़े चेहरों में से एक थे. कई लोग उन्हें धर्मनिरपेक्ष मानते हैं, जबकि कईउन्हें सेक्युलर चोगे में धार्मिक रूढ़िवादी बताते हैं. इस सवाल का जवाब 2011 मेंअतहर फारूकी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने दिया.उन्होंने कहा, 'मैं आधिकारिक तौर पर किसी पार्टी से नहीं जुड़ा था, लेकिन विचारोंसे वामपंथी था. मैंने संसद में मुस्लिम पर्सनल लॉ और बाबरी मस्जिद को छोड़ कभी भीलेफ्ट पार्टियों से अलग लाइन नहीं ली.'8. हाशिम अंसारी: 60 साल तक काटे कचहरी के चक्करहाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद विवाद के मुद्दई थे, लेकिन 2014 में उन्होंने यह कहतेहुए मुकदमे से हटने का फैसला किया कि वह रामलला को आजाद देखना चाहते हैं. हाशिम नेअयोध्या मसले पर 60 साल से ज्यादा वक्त तक बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून केदायरे में अदालती लड़ाई लड़ी.लेकिन 2014 में मुकदमे से खुद को अलग करते हुए उन्होंने कहा, 'चाहे हिंदू नेता होंया मुस्लिम, सब अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैं और मैं कचहरी केचक्कर लगा हूं.'हाशिम के जितने भी बयान मीडिया में मौजूद हैं, उनमें एक भी बयान किसी समुदाय विशेषके खिलाफ नहीं है. उनके मुताबिक, 'मैं सन 49 से मुक़दमे की पैरवी कर रहा हूं, लेकिनआज तक किसी हिंदू ने हमको एक लफ्ज ग़लत नहीं कहा. हमारा उनसे भाईचारा है. वो हमकोदावत देते हैं. मै उनके यहां सपरिवार दावत खाने जाता हूं.'यहां तक कि विवादित स्थल के दूसरे प्रमुख दावेदारों में निर्मोही अखाड़ा के रामकेवलदास और दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस से हाशिम की आखिरी वक्त तक गहरी दोस्तीरही. परमहंस और हाशिम तो अकसर एक ही रिक्शे या कार में बैठकर मुकदमे की पैरवी केलिए अदालत जाते थे और साथ ही चाय-नाश्ता करते थे.9. उमा भारती: महिलाओं की रहनुमाईबात 1984 से शुरू होती है, जब भागवतकथा वाचक उमा भारती पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ींऔर हार गईं. 1989 और फिर 1991 में वे मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट से लोकसभा चुनावजीत गईं. लेकिन उनका राजनीतिक कद बढ़ा राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका से. उमाभारती के उग्र भाषणों से आंदोलन को गति मिली और महिलाएं बड़ी संख्या में कारसेवा केलिए पहुंचीं.6 दिसंबर को जब ढांचा गिराया गया, वे अन्य बीजेपी और वीएचपी नेताओं के साथ मौके परथीं. लिब्रहान आयोग ने बाबरी ध्वंस में उनकी भूमिका दोषपूर्ण पाई. भारती ने भीड़ कोउकसाने के आरोपों से इनकार किया. लेकिन ये भी कहा कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं हैऔर वह ढांचा गिराए जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं.बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद उमा भारती लगातार सांसद और अटल बिहारी सरकार मेंमंत्री रहीं. फिर उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासनको खत्म कर एमपी में बीजेपी की सत्ता वापसी हुई. 2004 में अनुशासनहीनता के नाम परउन्हें पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया. उन्होंने नई पार्टी बना ली.लेकिन 7 जून 2011 को फिर बीजेपी में आ गईं. अभी वे यूपी की झांसी सीट से सांसद औरमोदी सरकार में मंत्री हैं.उमा भारती के अलावा ग्वालियर के राजघराने की विजयराजे सिंधिया और साध्वी ऋतंभरा भीआंदोलन की महिला अगुवा थीं. साध्वी ऋतंभरा बाबरी ध्वंस के बाद राजनीतिक रूप सेलो-प्रोफाइल हो गईं. 2002 में प्रदेश की बीजेपी सरकार ने आश्रम के लिए उन्हें 17हेक्टेयर जमीन 99 साल के लिए एक रुपए सालाना की फीस पर आवंटित कर दी. उस वक्त इसजमीन की कीमत थी 20 करोड़ रुपए के आसपास. उनके आश्रम 'वात्सल्य ग्राम' ने कई अनाथबच्चियों को आश्रय दिया है. उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च भी उठाता है.10. पीवी नरसिम्हा राव: ढांचा गिरते वक्त पूजा कर रहे थेजब बाबरी का ढांचा गिराया गया तब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. बाबरीमस्जिद विध्वंस में पहले से ही उनकी भूमिका सवालों को घेरे में रही. इसका खामियाज़ाउन्हें और उनकी पार्टी को कई चुनावों में भुगतना पड़ा. कांग्रेस ने न सिर्फ उनसेकिनारा कर लिया, बल्कि घटना का पूरा ठीकरा भी उन्हीं के सिर फोड़ने की कोशिश की.जाने माने पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'मेरी जानकारी है किनरसिम्हा राव की बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में भूमिका थी. जब कारसेवक मस्जिद ढहा रहेथे, तब वे पूजा में बैठे हुए थे. वे वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटादिया गया.'बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, घटना के बाद उनके कैबिनेट के सदस्य अर्जुन सिंहने पंजाब से उनसे फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उनसे कहा गया कि प्रधानमंत्रीकिसी से बात करने के लिए उपलब्ध नहीं हैं. अर्जुन सिंह ने पूछा, 'वे कब से फ़ोननहीं ले रहे? वे दिल्ली में हैं भी या नहीं?'जवाब आया, 'वे दिल्ली में हैं. लेकिन उन्होंने अपने आपको एक कमरे में बंद कर रखाहै. और हमें निर्देश हैं कि उन्हें किसी भी हाल में डिस्टर्ब न किया जाए.'बीबीसी की रपट के मुताबिक, उस जमाने के कुछ अफसरों का मानना था कि नरसिम्हा राव नेधर्मनिरपेक्षता का मुखौटा जरूर पहन रखा था, लेकिन उनकी सहानुभूति हिंदुत्व आंदोलनके साथ थी.लिब्रहान आयोग ने राव को भले ही क्लीन चिट दे दी हो, लेकिन राहुल गांधी का यह कहनाकि अगर उन दिनों गांधी परिवार के किसी व्यक्ति के हाथों में देश की बागडोर होती तोबाबरी मस्जिद नहीं गिरती, काफी अहम है.राव इस मामले पर जिंदगी भर चुप रहे, लेकिन मौत से एक साल पहले उन्होंने चुप्पीतोड़ी. अपनी किताब ‘अयोध्या 6 दिसंबर 1992’ में. उन्होंने लिखा, 'अयोध्या में जोकुछ हुआ वो उनके काबू से बाहर था. तकनीकी और कानूनी रूप से विवादित भूमि का कब्जाकेंद्र के पास नहीं था.'2004 में नरसिम्हा राव का हार्ट अटैक से निधन हो गया.--------------------------------------------------------------------------------ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए कुलदीप सरदार ने की थी.--------------------------------------------------------------------------------