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PM मोदी पर सख्त, विपक्ष पर नरम... पर्दे के पीछे अविमुक्तेश्वरानंद की कहानी बहुत कुछ कहती है

Avimukteshwaranand ज्योतिर्मठ के Shankaracharya हैं, उनके इस दावे में कितनी सच्चाई है? PM Modi की आलोचना, Rahul Gandhi का समर्थन और Uddhav Thackeray के लिए आवाज उठाना- ये सारी घटनाएं किस ओर इशारा कर रही हैं?

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Avimukteshwaranand Profile Self Claimed Shankaracharya Critic of PM Modi
अविमुक्तेश्वरानंद के गुरू को ज्योतिर्मठ का 'केयरटेकर' बनाया गया था. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
19 जुलाई 2024 (Updated: 19 जुलाई 2024, 17:13 IST)
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साल 2024 का शुरुआती महीना. माने कि जनवरी. देश भर में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का माहौल बना हुआ था. सुर्खियां बन रही थीं. इस मसले पर राजनीतिक बयानबाजी ने भी ठीक-ठीक जगह बना ली थी. 22 जनवरी को समारोह होना था. लेकिन इसके कुछ दिन पहले ही सुर्खियों का फ्लो टूटा. देश के एक ‘बड़े धर्मगुरु’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़ी आलोचना की. वो भी राम मंदिर के मामले में. इस समारोह को लेकर मोदी सरकार पर कई सवाल उठाए. उन्होंने इसका खुला विरोध किया. 

इन्हीं ‘बड़े धर्मगुरु’ ने लंबे-लंबे इंटरव्यू दिए. और हर इंटरव्यू में उनके निशाने पर थे- PM मोदी. उन्होंने पूरे देश का ध्यान खींचा. तब से ही सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म ने उन्हें पहचानना शुरु कर दिया. इनका नाम है- अविमुक्तेश्वरानंद (Avimukteshwaranand). जिनके ‘शंकराचार्य’ बनने पर विवाद है.

अब थोड़ा फास्ट फॉरवर्ड करते हैं. साल 2024 का जुलाई महीना. अविमुक्तेश्वरानंद को अब सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म ने ठीक-ठीक अपना लिया है. इंस्टाग्राम पर उनकी रील्स तैरने लगी हैं. इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर लोग उनसे धर्म से जुड़े सवाल पूछते हैं. और वो सक्रियता से निरंतर उनका जवाब भी देते हैं. कुल मिलाकर, अविमुक्तेश्वरानंद अब चर्चा में रहने लगे हैं. अब बात एक खास मौके की, जहां उनका सामना होता है- PM नरेंद्र मोदी से. 

Avimukteshwaranand in Ambani Wedding
 अनंत अंबानी की शादी में अविमुक्तेश्वरानंद. (तस्वीर साभार: PTI)
Narendra Modi और Avimukteshwaranand

देश के बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की शादी का मौका था. मुंबई के ग्लोबल जियो कन्वेंशन सेंटर में इसका आयोजन किया गया था. यहां अविमुक्तेश्वरानंद का सामना हुआ PM मोदी से. इसके बाद सब लोग यही जानना चाहते थे कि आखिर दोनों के बीच क्या बात हुई? पत्रकारों ने इस बारे में अविमुक्तेश्वरानंद से सवाल किया. उनका जवाब था,

“वो (PM मोदी) हमारे पास आए थे. उन्होंने प्रणाम किया. हमारा नियम है, हमलोग आशीर्वाद देते हैं. हमारे पास जो लोग आते हैं, उनको आशीर्वाद देते हैं. नरेंद्र मोदी हमारे दुश्मन नहीं हैं. हम उनके हितैषी हैं. सदैव उनके हित की बात करते हैं. जब उनसे कोई गलती हो जाती है, तब भी उनसे कहते हैं कि तुमसे ये गलती हो रही है.”

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'राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप'

अविमुक्तेश्वरानंद के बारे में कहा गया कि वो राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं. कई मौकों पर उन्होंने राजीतिक बयानबाजी की है. इस बात को खुद अविमुक्तेश्वरानंद भी मानते हैं. और इस मसले पर बहुत ही स्पष्ट जवाब देते हैं,

“हम संन्यासी हैं. हमको पॉलिटिकल बयान नहीं देना चाहिए. बिल्कुल सही है. हम इसी सिद्धांत के हैं. लेकिन पॉलिटिकल वाले (नेता) को भी तो धर्म के मामले में आगे नहीं बढ़ना चाहिए. पॉलिटिकल वाला धर्म के मामले में आगे बढ़े तो आपलोग उसका समर्थन करते हो.”

Avimukteshwaranand
वाराणसी में अविमुक्तेश्वरानंद, 16 जुलाई 2024. (तस्वीर साभार: PTI)

इस जवाब में भी वो PM मोदी पर निशाना साधते हैं. जाहिर है कि नाराजगी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी थी. उन्होंने आगे कहा,

"PM मोदी अगर मंदिर में आकर धर्म स्थापना करने लगे तो आपलोग एकदम लाइव दिखाओ. और अगर शंकराचार्य मंदिर या धर्म के बारे में कुछ बोलें तो कहो कि संन्यासी को ऐसा नहीं करना चाहिए. राजनीति के लोग धर्म में हस्तक्षेप करना बंद करें. हम गांरटी दे रहे हैं, राजनीति पर बोलना बंद कर देंगे. लेकिन आप हमारे (हिंदू) धर्म में लगातार हस्तक्षेप कर रहे हो. क्या राजनेताओं को धर्म का पालन नहीं करना चाहिए? क्या हमको विश्वासघात के बारे में लोगों को सचेत नहीं करना चाहिए."

अविमुक्तेश्वरानंद ने जिस विश्वासघात की बात की, वो जुड़ा है महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति से. इस मामले पर उन्होंने क्या-क्या सवाल उठाए हैं? इसकी चर्चा करने से पहले अविमुक्तेश्वरानंद के बारे में कुछ बेसिक बातें जान लेते हैं.

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बचपन का नाम- Uma Shankar Pandey

जन्म- 15 अगस्त 1969. बचपन का नाम- उमाशंकर पांडे. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में जन्म हुआ. उनके पिता एक बार उनको गुजरात लेकर गए. वहां उनकी मुलाकात काशी के संत रामचैतन्य से हुई. उमाशंकर (अविमुक्तेश्वरानंद) वहीं रूक गए. यहीं पढ़ाई और पूजा-पाठ करने लगे. इसके बाद पहुंचे काशी. वहां उनकी मुलाकात स्वरूपानंद सरस्वती से हुई. उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ाई की. उमाशंकर पांडे, स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य बन गए. उन्होंने 2006 में उनसे दीक्षा ली. और इस तरह उनको ‘अविमुक्तेश्वरानंद’ नाम मिला. साल 2022 का सितंबर महीना- अविमुक्तेश्वरानंद के गुरू स्वरूपानंद सरस्वती को हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई. 

Avimukteshwaranand
अविमुक्तेश्वरानंद के बचपन का नाम उमाशंकर पांडे है. (तस्वीर साभार: ANI)
सुप्रीम कोर्ट में गया ‘शंकराचार्य’ का मामला

अविमुक्तेश्वरानंद ने खुद को स्वरूपानंद सरस्वती का उत्तराधिकारी घोषित किया. साल 2022 के अक्टूबर महीने में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रुप में उनका ‘अभिषेक’ होना था. उनपर आरोप लगे कि उन्होंने ‘फर्जी’ तरीके से खुद को स्वरूपानंद और ज्योतिष पीठ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने उनके ‘अभिषेक’ पर रोक लगा दी. 

मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने धर्म के प्रचार के लिए चार मठों की स्थापना की थी. 

  • ज्योतिर्मठ, उत्तराखंड के जोशीमठ में.
  • शारदा मठ, गुजरात के द्वारका में.
  • गोवर्धन मठ, ओडिशा के पुरी में.
  • श्रृंगेरी मठ, कर्नाटक.

शंकराचार्य इन मठों के प्रमुख होते हैं.

कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य?

आदि शंकराचार्य ने मठाम्नाय ग्रंथ लिखा था. इसमें चारों मठो की व्यवस्था से संबंधित बातें लिखी हैं. खासतौर पर चर्चा इस बात की थी कि शंकराचार्य का चुनाव कैसे होगा और इसके लिए किसको योग्य माना जाएगा. ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में शंकराचार्य के चुनाव के लिए 'शास्त्रत्तर्थ' (शास्त्रों के ज्ञान पर सवाल-जवाब) कराए जाते थे. अखाड़ों और काशी विद्वत परिषद की भूमिका महत्वपूर्ण होती थी.

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समय के साथ (अंग्रेजी शासन के बाद) ये प्रक्रिया बदल गई. बाद में शास्त्रार्थ की जगह गुरू-शिष्य परंपरा ने ले ली. अब मौजूदा शंकराचार्य खुद ही अपने उत्तराधिकारी का चयन कर लेते हैं. अविमुक्तेश्वरानंद के गुरू स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिर्मठ और श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य थे. उनकी मौत के बाद उनके निजी सचिव ने एलान किया कि ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद होंगे. और श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती होंगे.

जब गुरू-शिष्य परंपरा में ऐसा किया जा सकता है, तो फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंच गया? और अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य बनने के तरीके पर ‘फर्जीपने’ का आरोप क्यों लगा? इस विवाद की जड़ें पुराने शंकराचार्यों से जुड़ी हैं. खासकर अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु स्वरूपानंद के शंकराचार्य बनने से. उन्हें भी कोर्ट में चुनौती दी गई थी. और कोर्ट ने उनके खिलाफ नरम रवैया नहीं दिखाया था.

साल 1973 से चल रहा है विवाद

1952 में शंकराचार्य थे ब्रह्मानंद. 18 दिसंबर 1952 को उन्होंने अपनी वसीयत में रामजी त्रिपाठी, द्वारिका प्रसाद, विष्णु देवानंद और परमानंद सरस्वती का नाम लिखा. इसके अनुसार, ये चारों एक के बाद एक अगले शंकराचार्य बनते. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. किसी तरह विष्णु देवानंद शंकराचार्य बन गए. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 25 जून 1953 को कृष्ण बोधाश्रम को अपना उत्तराधिकारी बनाया. कृष्ण 10 दिसंबर 1973 तक शंकराचार्य रहे. लेकिन उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की.

उत्तराधिकारी की घोषणा ना होने पर काशी विद्वतपीठ और भारत धर्म महामंडल ने इसकी जिम्मेदारी स्वरूपानंद को दे दी. स्वरूपानंद के शंकराचार्य बनने का विवाद 1973 से ही चल रहा है. स्वरूपानंद और वासुदेवानंद दोनों ने ही ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य के पद पर दावेदारी पेश की थी. मामला इलाहाबाद कोर्ट में गया.

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कोर्ट ने नहीं मानी दावेदारी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2017 के अपने आदेश में दोनों की ही दावेदारी को ठुकरा दिया. कोर्ट ने वासुदेवानंद को इसके लिए अयोग्य बताया. और स्वरूपानंद की नियुक्ति को अवैध बताया. कोर्ट ने अखिल भारतीय धर्म महामंडल (साधुओं का संगठन) और काशी विद्वत परिषद (संस्कृत विद्वानों और संतों का संगठन) को अन्य तीन हिंदू मठों के प्रमुखों के परामर्श से योग्य शंकराचार्य चुनने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा,

"नए शंकराचार्य के चुने जाने तक स्वरूपानंद ज्योतिर्मठ के केयरटेकर के रूप में काम कर सकते हैं."

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स्वरूपानंद. फाइल फोटो: (इडिया टुडे)

आसान भाषा में कहें तो स्वरूपानंद को ज्योतिर्मठ का कार्यवाहक शंकराचार्य बनाया गया. कई मीडिया रिपोर्ट्स में लिखा गया कि स्वरूपानंद को कांग्रेस का और वासुदेवानंद को विश्व हिंदू परिषद का समर्थन प्राप्त था. स्वरूपानंद अपने निधन तक शंकराचार्य बने रहे. उनकी मौत के बाद अविमुक्तेश्वरानंद ने खुद को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने जब उनके ‘पट्टाभिषेक’ पर रोक लगाई तब कोर्ट ने कहा,

“पुरी में गोवर्धन मठ के शंकराचार्य ने हलफनामा दायर किया है कि उन्होंने ज्योतिर्मठ के नए शंकराचार्य के रूप में अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति का समर्थन नहीं किया है. इसलिए उनके अभिषेक पर रोक लगाई जा रही है.”

'Avimukteshwaranand का दावा झूठा?'

इस याचिका में अविमुक्तेश्वरानंद के उस दावे को झूठा बताया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि स्वरूपानंद सरस्वती ने उन्हें ज्योतिष पीठ का उत्तराधिकारी चुना है. ये भी आरोप लगा कि किसी एक अयोग्य और अपात्र व्यक्ति को गलत तरीके से ये पद देने का प्रयास किया जा रहा है. आरोप ये भी लगे कि उनके चयन में संन्यासी अखाड़ों के साथ चर्चा नहीं की गई. हालांकि, इसके बावजूद अविमुक्तेश्वरानंद यहां के शंकराचार्य के रूप में काम कर रहे हैं.

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पुरी के शंकराचार्य ने अविमुक्तेश्वरानंद का विरोध किया. (तस्वीर साभार: इंडिया टुडे)
राम मंदिर पर नाराजगी

अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए जब ट्रस्ट बनाया गया, तबसे लेकर मंदिर के बनने तक अविमुक्तेश्वरानंद की नाराजगी दिखती रही. वो नाराज रहे कि उनको ट्रस्ट का सदस्य नहीं बनाया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रस्ट पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है. उन्होंने मंदिर के भूमि पूजन के लिए तय समय पर भी सवाल उठाया. कहा कि ये समय जानबूझकर तय किया गया है ताकि 'शंकराचार्य' इसमें हिस्सा नहीं ले सकें. जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ तब भी उन्होंने कहा कि मंदिर का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा सही नहीं है.

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अविमुक्तेश्वरानंद कांग्रेसी हैं?

वाराणसी में जब ‘काशी कॉरिडोर’ का निर्माण हो रहा था, तब भी उन्होंने सरकार को घेरा था. उन्होंने कहा कि काशी में हजारों साल पुरानी मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है. उन्होंने कहा था कि यहां की स्थिति देखकर लग रहा है कि महाभारत हो रखा है. उन्होंने कहा,

"मैं इसका विरोध कर रहा हूं. अब सब कहेंगे कि मैं कांग्रेसी हो गया हूं. हम तो धर्म के लोग हैं, हमें राजनीति से क्यों जोड़ते हैं."

कांग्रेस के नाम पर अविमुक्तेश्वरानंद ने सफाई क्यों दी? दरअसल, जानकार इनके कांग्रेस से करीब होने की बात बताते हैं. हालांकि, पुख्ता तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन इतना तो तय है कि इनके गुरु स्वरूपानंद कांग्रेस के करीब रहे. उन्होंने भाजपा और RSS के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला था. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई बताते हैं कि उन्हें ‘कांग्रेस स्वामी’ कहा जाता था. उन्होंने कहा,

"स्वरूपानंद राम मंदिर ट्रस्ट के खिलाफ थे. वो चाहते थे कि शंकराचार्यों के नेतृत्व में राम मंदिर का निर्माण हो. एक वक्त पर सोनिया गांधी को स्वरूपानंद के लिए लगा था कि उन्हें भाजपा की हिंदूवादी राजनीति का काट मिल गया है. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं."

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अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु स्वरूपानंद. (तस्वीर साभार: इंडिया टुडे)

रशीद 2022 की अपनी एक रिपोर्ट में लिखते हैं,

“फरवरी 2002 में स्वरूपानंद ने सोनिया गांधी को विवादित राम मंदिर मामले पर हिंदुत्ववादी ताकतों से मुकाबला करने के लिए प्रोत्साहित किया था. सोनिया गांधी ने तब अयोध्या विवाद पर स्वतंत्र रुख अपनाने के लिए मध्य प्रदेश के दिघौरी में तीन शंकराचार्यों के साथ एक मंच साझा किया था. दिघौरी सम्मेलन, जो मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दिमाग की उपज थी. इसका उद्देश्य राम मंदिर आंदोलन पर विश्व हिंदू परिषद के आधिपत्य को खत्म करना था.”

राजनीति में शंकराचार्यों की भूमिका

राजनीति में शंकराचार्यों की भूमिका पर रशीद किदवई कहते हैं,

"राजनीति और धर्म को अलग-अलग रखने की राय दी जाती है. कहा जाता है कि इन्हें आपस में मिलाना नहीं चाहिए. लेकिन आप आजादी के बाद से देखिए, महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के बीच मतभेद रहा. गांधी धर्म और आस्था को महत्व देते थे. उनका मानना था कि धर्म को नजरअंदाज करना देश का उद्देश्य नहीं हो सकता. जबकि नेहरू धर्म और देश को अलग-अलग रखना चाहते थे. तभी से हिंदूवादी संस्थाओं ने धर्म को महत्व दिया. जिसमें भाजपा भी शामिल है. इन्होंने तमाम धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों को जोड़ा. सब साथ-साथ चले. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद चीजें बदलती हुई नजर आ रही हैं."

किदवई आगे बताते हैं,

“लोग भूल जाते हैं कि शंकराचार्य भी कानूनी मुकदमेबाजी में पड़े रहते हैं. इसलिए उनके लिए भी राजनीतिक कश्मकश बनी रहती है. ऐसे में जब भी कोई धर्मगुरु BJP का विरोध करते हैं तो उन्हें विधर्मी कहा जाता है या उनपर सवाल उठाए जाते हैं. 2024 के बाद चीजें ऐसे बदली हैं- जिस तरह लोकसभा में राहुल गांधी को एंटी हिंदू साबित करने की कोशिश की गई. और इसपर धर्मगुरु (अविमुक्तेश्वरानंद) ने उनका बचाव किया. उन्होंने इस धारणा को तोड़ा कि सिर्फ भाजपा ही हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करती है.”

'Rahul Gandhi को Avimukteshwaranand का समर्थन'

इसी महीने लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बयान दिया. जिसपर विवाद हुआ. राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान उन्होंने BJP पर लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का आरोप लगाया. जवाब में PM मोदी ने कहा कि राहुल ने पूरे हिंदू समुदाय को हिंसक बता दिया है. फिर राहुल का जवाब आया. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी और BJP का मतलब पूरा हिंदू समुदाय नहीं है.

अविमुक्तेश्वरानंद ने राहुल के इस बयान का समर्थन किया. उन्होंने एक वीडियो में दावा किया कि राहुल गांधी का बयान हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं है. उन्होंने कहा कि राहुल स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि हिंदू धर्म में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है.

Maharashtra में Uddhav Thackeray को समर्थन

इसके कुछ ही दिन बाद अविमुक्तेश्वरानंद का एक और बयान आया. उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति पर टिप्पणी की. उन्होंने उद्धव ठाकरे का समर्थन किया और कहा कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है. उन्होंने कहा,

"हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पाप विश्वासघात को बताया गया है. उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है. हमलोगों के मन में इस बात की पीड़ा है. जब तक वो दोबारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन जाते तब तक ये पीड़ा दूर नहीं होगी. विश्वासघात करने वाला हिंदू नहीं हो सकता, जो विश्वासघात सह ले वो हिंदू है. लोकसभा चुनाव से ये प्रमाणित भी हो गया है कि उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है."

Avimukteshwaranand with Uddhav Thackeray
ठाकरे के साथ अविमुक्तेश्वरानंद. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
किसने किया विश्वासघात?

अविमुक्तेश्वरानंद महाराष्ट्र की उस राजनीतिक घटना की ओर इशारा कर रहे थे, जब बगावत के जरिए उद्धव ठाकरे की सत्ता चली गई थी. जून 2022 तक वो महाराष्ट्र के CM थे. लेकिन एकनाथ शिंदे की अगुवाई में उनकी पार्टी शिवसेना टूट गई. पार्टी के 40 से ज्यादा विधायक शिंदे के साथ चले गए. उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. और 30 जून को एकनाथ शिंदे राज्य के CM बन गए. बाद में ठाकरे को अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी खोना पड़ा. लोकसभा चुनाव 2024 में उद्धव ठाकरे शिवसेना UBT (उद्धव बाला साहब ठाकरे) से चुनावी मुकाबले में उतरे. उनकी पार्टी को 9 लोकसभा सीटों पर जीत मिली.

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Avimukteshwaranand with Uddhav Thackeray'
शिव सेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ अविमुक्तेश्वरानंद. (तस्वीर: PTI)

महाराष्ट्र की राजनीति में अविमुक्तेश्वरानंद के बयान पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.

चुनाव में PM मोदी के खिलाफ

NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में उन्होंने वाराणसी में PM मोदी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की कोशिश की थी. साल 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए उन्होंने अनशन किया था. लेकिन तबीतय बिगड़ गई तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. फिर अपने गुरू स्वरूपानंद के कहने पर अनशन खत्म किया.

केदारनाथ मंदिर से सोने की चोरी

अविमुक्तेश्वरानंद के एक और बयान ने तूल पकड़ लिया है. इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि उत्तराखंड के केदारनाथ धाम से 230 किलो सोने की चोरी हो गई है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने इस मामले पर जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि अविमुक्तेश्वरानंद के पास अगर सोना चोरी का सबूत हैं तो उन्हें पुलिस या कोर्ट को सौंपे. उन्होंने कहा कि अगर उनके पास प्रमाण नहीं है तो सुर्खियों में बने रहने के लिए अनर्गल बयानबाजी ना करें.

वीडियो: ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने पीएम मोदी का नाम लेकर क्या कहा?

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