16 अगस्त 2018. शाम के पांच बजकर पांच मिनट हो रहे थे. दिल्ली के सबसे बड़े अस्पतालएम्स के बाहर देश-दुनिया की मीडिया के साथ ही नेताओं का भी जमावड़ा लगा हुआ था.सबको उम्मीद थी कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी को लेकर कुछ अच्छी खबरआएगी. खबर आई भी, लेकिन बुरी खबर आई. भारत के तीन बार के प्रधानमंत्री रहे अटलबिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री को सभी नेअपनी-अपनी तरह से याद किया, लेकिन वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री ऐसे काम किए थे,जिसके लिए देश और देश के लोग ताउम्र उन्हें याद करेंगे. 1. सर्व शिक्षा अभियान नेताबनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी से एक बार पूछा गया था कि आप सबसे ज्यादा क्या मिसकरते हैं. वो बोले, कविताएं नहीं लिख पाता हूं. पढ़ना-लिखना मिस करता हूं. इसीपढ़ने-लिखने की ही जिद थी कि उनके कार्यकाल में हर घर में पढ़ाई-लिखाई पहुंचाने कीरूपरेखा बन पाई. 2001 में बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्व शिक्षाअभियान नाम की एक योजना लॉन्च की. इस योजना का मुख्य उद्देश्य था 6 से 14 साल केबच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना. इसके लिए वाजपेयी सरकार को भारतीय संविधान में86वां संशोधन करना पड़ा. इस संशोधन के बाद देश के हर बच्चे को पढ़ने का संवैधानिकअधिकार मिल गया. इसी वजह से इस योजना की टैग लाइन रखी गई थी कि सब पढ़ें-सब बढ़ें.इस योजना का नतीजा हुआ कि 4 साल के अंदर ही स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों कीसंख्या में 60 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी. हालांकि इस योजना के बीज 1993-94में ही नरसिम्हा राव सरकार में बो दिए गए थे. इस दौरान डिस्ट्रिक्ट प्राइमरीएजुकेशन प्रोग्राम चला था, जिसमें 18 राज्यों के 272 जिलों को कवर किया जाना था.लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसे पूरे देश में लागू किया और बच्चे-बच्चे की जुबान परनारा आ गया स्कूल चले हम. 2. बड़े शहरों से लेकर छोटे गांव भी जुड़ गए सड़क सेवाजपेयी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि थी सड़क. देश के महानगरोंसे लेकर छोटे गांव तक सड़कों से जोड़े गए. सबसे पहली योजना थी नॉर्थ-साउथ औरईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर. इस योजना की शुरुआत 1998 में हुई थी. इसके तहत उत्तर मेंश्रीनगर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी और पूर्व में असम के सिलचर से लेकर पश्चिममें गुजरात के पोरबंदर को जोड़ा जाना था. इस योजना के तहत कुल 7142 किलोमीटर लंबीसड़क बननी थी. 31 मार्च 2018 तक 6875 किलोमीटर लंबी सड़क बन गई थी. दूसरी सबसे बड़ीयोजना स्वर्णिम चतुर्भुज योजना थी, जिसके तहत देश के चार प्रमुख महानगरों यानी किउत्तर में दिल्ली, दक्षिण में चेन्नई, पूर्व में कोलकाता और पश्चिम में मुंबई कोजोड़ा गया. इस योजना की शुरुआत 2001 में हुई थी. इस पूरी परियोजना की लंबाई 5846किलोमीटर है, जो देश के 13 राज्यों से होकर गुजरता है. अगर आंकड़ों में बात करें तोइसे चार चरणों में बांटा गया है. पहला चरण दिल्ली से कोलकाता का है, जो 1454 किमीलंबा है. इसके तहत दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगालजैसे राज्य जुड़ते हैं. दूसरा चरण कोलकाता से चेन्नई का है, जिसकी लंबाई 1684 किमीहै. इसके तहत पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु राज्य जुड़ते हैं.तीसरे चरण की लंबाई 1290 कि.मी. है, जिसके जरिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेशऔर तमिलनाडु जुड़ते हैं. वहीं चौथा चरण 1418 किमी का है, जो महाराष्ट्र, गुजरात,राजस्थान, हरियाणा और नई दिल्ली को जोड़ता है. इसके अलावा गांवों को सड़कों सेजोड़ने के लिए वाजपेयी ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की थी. 25 दिसंबर2000 को शुरू हुई इस योजना के तहत 2003 तक उन गांवों को सड़कों से जोड़ना था, जिनकीआबादी 1000 या उससे ज्यादा थी. वहीं 2007 तक 500 या उससे अधिक की आबादी वाले गांवोंको सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य था. पहाड़ी, आदिवासी और मरुस्थल वाले इलाके में 500या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों में 2003 तक सड़क पहुंचनी थी. वहीं 2007 तक 250या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों में सड़क पहुंचने की योजना थी. 3. अंत्योदय अन्नयोजना देश के गरीबों के लिए वाजपेयी सरकार की ओर से चलाई गई ये सबसे बड़ी योजना थी.25 दिसंबर 2000 को वाजपेयी के जन्मदिन पर इस योजना की शुरुआत की थी. इस योजना केतहत गरीबों में भी ज्यादा गरीब लोगों को रियायती दर पर गेहूं और चावल उपलब्ध करवानाथा. इसके तहत 1 करोड़ परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो की दर से 35 किलो गेहूं औरतीन रुपये प्रति किलो की दर पर चावल उपलब्ध करवाना था. इसके बाद 2003 में इस योजनाको बढ़ाया गया और 50 लाख परिवार जोड़ दिए गए. 2004 में योजना एक बार फिर से बढ़ाईगई और फिर से 50 लाख परिवारों को जोड़ा गया. कुल मिलाकर इस योजना के तहत 2 करोड़परिवारों को सस्ती कीमत पर राशन मुहैया करवाना था. इन 2 करोड़ परिवारों की पहचानकरने के लिए वाजपेयी सरकार ने पूरे देश में व्यापक स्तर पर सर्वे करवाए थे और उनकेलिए राशन कार्ड बनवाए थे. 4. मोबाइल क्रांति हमारे-आपके हाथ में जो मोबाइल फोन है,उसके पीछे सबसे बड़ा फैसला पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का है. 1999 में जब वाजपेयीतीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने नई टेलिकॉम पॉलिसी लॉन्च की. इसपॉलिसी का मकसद था पारदर्शिता और कॉम्पिटीशन को बढ़ावा देना. उस वक्त देश की दोबड़ी कंपनियां बीएसएनएल और एमटीएनएल ही थीं, जो ग्रामीण इलाकों में टेलिफोन काविस्तार नहीं कर पा रही थीं. इसे देखते हुए देश में प्राइवेट प्लेयर्स को मौका देनेकी नीति बनाई गई. प्राइवेट प्लेयर्स आए और फिर देश के गांव-गांव में मोबाइल सेवाएंपहुंच गईं. पीसीओ का कल्चर खत्म हो गया और हर हाथ में मोबाइल आ गया. वाजपेयी की हीदेन थी कि मोबाइल कंपनियों को प्रति सेकेंड के हिसाब से भी कॉल दरें तय करनी पड़ीं.5. डिसइन्वेस्टमेंट जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, तो सरकार सुई बनाने से लेकर होटलचलाने तक का काम खुद के जिम्मे रखती थी. इनमें से कई कंपनियां फायदे में थीं, तो कईकंपनियां घाटे में. जो कंपनियां घाटे में थीं, उन्हें बचाने के लिए सरकार वक्त-वक्तपर राहत पैकेज देती रहती थीं. जब वाजपेयी पीएम बने, तो उन्होंने तय किया कि जोकंपनियां सुरक्षा के लिहाज से बेहद ज़रूरी न हों, उन्हें सरकार निजी हाथों में सौंपदे. इसके लिए वाजपेयी सरकार ने एक नया मंत्रालय बनाया, जिसे नाम दिया गयाDepartment of Investment and Public Asset Management. मंत्रालय बनने के बादवाजपेयी सरकार ने भारत एल्युमिनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्सकॉरपोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी घाटे वाली कंपनियों की सरकारीहिस्सेदारी को निजी हाथों में बेच दिया. इस योजना से फाइटर जेट बनाने वाली कंपनीजैसे हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को दूर रखा गया. घाटे में चल रही कंपनियों कोबेचकर वाजपेयी सरकार ने 28,282 करोड़ रुपये जुटाए थे.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें: उस दिन इतने गुस्से में क्यों थे अटल बिहारी वाजपेयी कि ‘अतिथि देवोभव’ की रवायत तक भूल गए! अटल ने 90s के बच्चों को दिया था नॉस्टैल्जिया ‘स्कूल चलेंहम’ जब केमिकल बम 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