The Lallantop
Advertisement

चांद पर जब एस्ट्रोनॉट्स ने किया एक सीक्रेट अनुष्ठान!

चांद पर एस्ट्रोनॉट ने ऐसा क्या किया कि बात छुपानी पड़ गई

Advertisement
Apollo 11, Moon landing chandrayan
अपोलो 11 मिशन इंसान को चांद पर पहुंचाने वाला पहला मिशन था. इस मिशन ने नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा की सतह पर चलने वाला पहला व्यक्ति बनाया (तस्वीर- Wikimedia commons/Getty)
pic
कमल
21 जुलाई 2023 (Updated: 20 जुलाई 2023, 22:03 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

चांद पर कदम रखने वाला पहला आदमी कौन था. झट से जवाब सूझा होगा, नील आर्म स्ट्रोंग(Neil Armstrong). तो चलिए एक सवाल और. चांद पर दूसरा कदम रखने वाल आदमी कौन था? ये भी नील आर्म स्ट्रोंग ही थे. अब पहला जिसने रखा, दूसरा भी तो वो ही रखेगा ना. पीजे के लिए माफ़ी. आपसे भी और बज ऑल्ड्रिन(Buzz Aldrin) से भी. बज वो शख़्स थे, जो नील के पीछे चांद पर उतरे थे. दोनों को चांद पर कई काम करने थे. झंडा लगाना था. चांद के टुकड़े इकट्ठा करने थे. चांद पर अमेरिका का झंडा एकदम आयकॉनिक इमेज है. लेकिन ये झंडा पहले नहीं लगा. पहले नील आर्म स्ट्रोंग ने जल्दी जल्दी में कुछ मिट्टी इकट्ठा कर ली. वो इसलिए कि अगर कहीं इमरजेंसी में तुरंत निकलना पड़ जाए तो कम से कम कुछ तो हो, साथ ले जाने के लिए. (Apollo 11)

यहां पढ़ें- वो षड्यंत्र जिसके चलते हर तीसरे साल आपको फोन बदलना पड़ता है!

दूसरी तरफ बज ऑल्ड्रिन नील आर्मस्ट्रोंग के 20 मिनट बाद बाहर आए. लेकिन बाहर आते ही एक मुसीबत खड़ी हो गई. नेचर के बनाए एक गोले से दूसरे गोले पर पहुंचते ही बज को नेचर का कॉल आ गया. सुस्सु लग गई. बज ने सोचा बाक़ी काम बाद में. पहले यही निपटा लेते हैं. सारा सिस्टम स्पेस सूट में बना हुआ था. सो बज ऑल्ड्रिन वहीं फ़ारिग हो लिए और इस तरह बन गए चांद पर सुस्सु करने वाले पहले होमो सेपियन. (Moon landing)

Astronauts Apollo 11
नासा के अपोलो 11 मिशन में शामिल एस्ट्रोनॉट्स - नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज ऑल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस (तस्वीर- Wikimedia commons)

21 जुलाई के दिन भारतीय समयानुसार आठ बजकर 26 मिनट पर नील आर्म स्ट्रोंग ने चांद पर कदम रखा. इंसान का छोटा सा कदम. इंसानियत की लम्बी छलांग. तो इसी छलांग उर्फ़ अपोलो11 मिशन से जुड़े कुछ दिलचस्प क़िस्से आज आपके साथ साझा करेंगे.

यहां पढ़ें- जब जर्मन फ़ौज ने देखा ‘असली’ कैप्टन अमेरिका!

चांद पर पहला कदम रखने वाले ने जब इंदिरा से माफी मांगी 

साल 2023, जुलाई के महीने में भारत का एक और चन्द्रयान चांद की तरह कदम बढ़ा चुका है. और उम्मीद है जल्द ही मानव युक्त मिशन भी चांद पर भेजे जाएंगे. चन्द्रयान के लांच के मौक़े पर लोगों का जोश आपने देखा, आपका खुद का जोश भी हाई रहा होगा. सोचिए तब क्या होगा जब कोई भारतीय चांद पर कदम रखकर भारत की ज़मीन पर लौटेगा. ये बात भविष्य के गर्भ में हैं. फ़िलहाल जानते हैं, क्या हुआ जब अपोलो मिशन पर गए 3 लोग, वापिस लौटने के बाद भारत की यात्रा पर आए. बज ऑल्ड्रिन, नील आर्मस्ट्रोंग और माइकल कॉलिंस.

सितम्बर 1969 में इन तीनों को 22 देशों की यात्रा पर भेजा गया. इनमें से एक भारत भी था. अक्टूबर महीने में तीनों भारत पहुंचे. मुम्बई में एक सार्वजनिक समारोह में इनका सम्मान किया गया. उन्हें देखने के लिए 10 लाख लोग मुम्बई में इकट्ठा हुए. इस मौक़े पर मुम्बई के एक व्यापारी ने तीनों को एक-एक लॉटरी भी दे दी. लॉटरी का क्या हुआ, ये तो नहीं पता लेकिन इसके बाद ये जाकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले. इंदिरा का अपोलो 11 से एक ख़ास रिश्ता था. इस मिशन के साथ एक डिस्क भेजी गई थी. जो एस्ट्रो नॉट्स ने चांद पर ही छोड़ दी. इसमें 73 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के संदेश भरे थे. जिनमें एक संदेश इंदिरा गांधी का भी था. इंदिरा ने अपने संदेश में लिखा था

"इस मौक़े पर, जब इंसान धरती के सबसे नज़दीक के पड़ोसी पर कदम रखने जा रहा है, मैं उन बहादुर अंतरिक्ष यात्रियों को शुभकामनाएं देती हूं. साथ ही ये उम्मीद करती हूं, ये घटना पूरी मानव जाति के लिए शांति के युग की शुरुआत करेगी"

अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने इस दौरे पर जब इंदिरा से मुलाक़ात की. इस दौरान एक और दिलचस्प वाक़या हुआ. पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह इस क़िस्से का ज़िक्र कर बताते हैं, मैंने नील आर्मस्ट्रोंग से कहा,

"मिस्टर आर्मस्ट्रोंग, आपको जानकर अच्छा लगेगा कि मून लैंडिंग देखने के लिए प्रधानमंत्री सुबह साढ़े चार बजे तक जगी हुई थी".

नटवर सिंह बताते हैं इस पर आर्म स्ट्रोंग ने जवाब देते इंदिरा से कहा,

“मैं माफ़ी चाहूंगा, हमारी वजह से आपको दिक़्क़त हुई. अगली बार कोशिश करुंगा कि मून लैंडिंग ऐसे समय पर हो जब आपको कोई दिक़्क़त ना झेलनी पड़े”

आर्म स्ट्रोंग ने ये बात मज़ाक़ में कही थी. लेकिन उनके लिए दूसरा मौक़ा फिर कभी नहीं आया. अपोलो 11 मिशन के बाद वो फिर किसी स्पेस मिशन पर नहीं गए.

Apollo 11 American Flag
चंद्रमा कि सतह पर बज ऑल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने अमरीका का झंडा भी लगाया था (तस्वीर- Wikimedia commons)
अपोलो 11 जब चांद पर पहुंचा, वहां पहले से कोई था  

भारत के बाद अब बात स्पेस रेस में अमेरिका के प्रतिद्वंद्वी सोवियत रूस की. ये तो आपको मालूम ही है कि स्पेस रेस कोल्ड वार का नेतीजा था. स्पेस तक रूस पहले पहुंचा, इसलिए चांद तक पहले पहुंचने के लिए अमेरिका ने पूरा ज़ोर लगा दिया. जिस रोज़ अपोलो 11 मिशन के तहत अमेरिकी स्पेस क्राफ़्ट चांद की कक्षा में पहुंचा, एक अजीब चीज़ हुई. पता चला कि एक सोवियत अंतरिक्ष विमान पहले से उनका इंतज़ार कर रहा है.

इस विमान का नाम था लूना 15. जो अपोलो 11 से तीन दिन पहले लांच हुआ था. चूंकि रूस का ये मिशन अपोलो मिशन के ठीक पहले लांच हुआ था. इसलिए अमेरिकियों को शक हुआ कि हो ना हो रूस जासूसी करना चाहता है. अमेरिका के एक पूर्व एस्ट्रोनॉट फ़्रैंक बोर्मन ने दावा किया कि रूस ने चांद की मिट्टी लेने के लिए लूना-15 को भेजा है. बोर्मन कुछ रोज़ पहले ही मॉस्को से लौटे थे, और उनके अनुसार वहां उन्होंने इस बारे में बातें सुनी थी. बोर्मन ने कहा, सोवियत रूस अमेरिका से पहले चांद की मिट्टी लेकर आना चाहता है. ताकि अमेरिका पहले चांद पर पहुंचने का दावा न कर पाए.

अमेरिकी स्पेस एजंसी NASA के लिए हालांकि इससे भी बड़ी चिंता कुछ और थी. उन्हें डर था कि लूना 15 का कम्यूनिकेशन सिस्टम, अपोलो की मून लैंडिंग में बाधा डालेगा. लिहाज़ा उन्होंने संदेश भेजकर रूस से लूना-15 के ओर्बिटल डेटा की मांग की. अचरज की बात ये कि रूस तैयार भी हो गया. और उसने लूना-15 का डाटा अमेरिका को दे दिया. आगे क्या हुआ? अपोलो 11 का लूनार मॉड्यूल, जिसका नाम ईगल था, वो तो चांद पर उतरने में कामयाब रहा. लेकिन लूना ऐसा नहीं कर पाया. चांद पर उतरने की कोशिश में वो क्रैश कर गया. अमेरिका की जीत हुई, लेकिन इसमें थोड़ी मदद रूस ने भी की. इस अहसान का बदला अमेरिका ने चुकाया. नील आर्म स्ट्रोंग चांद पर जितनी चीजें छोड़कर आए, उनमें दो मेडल भी थे. ये मेडल सोवियत एस्ट्रोनॉट यूरी गागरिन और व्लादिमीर कोमारोव के सम्मान में बनवाए गए थे. यानी दोनों देशों में दुश्मनी चाहे तगड़ी थी लेकिन थोड़ा बहुत सम्मान एकदूसरे का करते थे.

चांद पर सीक्रेट अनुष्ठान

शुरुआत में हमने आपको बज ऑल्ड्रिन के स्पेस में फ़ारिग होने का किस्सा सुनाया था. फ़ारिग होने की जहां तक बात है, अमेरिका ने चांद पर अपना झंडा ही नहीं छोड़ा, अपोलो और बाक़ी सभी मिशनों को मिलाकर अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स 96 बैग भी चांद पर छोड़कर आए. क्या था इन बैग्स में? मूत्र एंड मल. रोचक बात ये है कि कई वैज्ञनिक ये संभावना जताते हैं कि इस मल मूत्र में बैक्टीरिया आदि परजीवी हो सकते हैं. और अगर वो बचे रह गए तो दूसरे ग्रहों पर जीवन के फलने फूलने की क्या संभवना है, ये गुत्थी भी सुलझ सकती है.

अब बैक्टीरिया बचे या ना बचे, ये जानने के लिए हमें साल 2025 का इंतज़ार करना होगा. इस साल NASA आर्टेमिस 3 मिशन के तहत एक मानव युक्त मिशन चांद पर भेजने वाला है. बहरहाल बात मलमूत्र पर पहुंच गई. लेकिन हम बताना चाह रहे थे, चांद पर खाने की चीजों की. चांद पर तो कुछ नहीं होता. लेकिन कुछ था, जो वहां खाया गया और कुछ पिया भी गया. क्या चीज़ थी ये? ये था ब्रेड का एक टुकड़ा और थोड़ी सी वाइन. ये दोनों चीजें ईसाई धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा होती है. बज ऑल्ड्रिन अपने चर्च की इजाज़त से ये दोनों चीजें वहां लेकर गए थे. लूनर मॉड्यूल से निकलने से पहले उन्होंने एक धार्मिक अनुष्ठान किया. और बाइबल का एक पैसेज भी पढ़ा.

Apollo 11 Moon Landing
धरती से रवाना होने के 102 घंटे और 45 मिनट बाद, यानी 20 जुलाई 1969 के दिन लूनर मॉड्यूल ईगल चंद्रमा पर उतरा था (तस्वीर- Wikimedia commons)

ये बात पूरी तरह गुप्त रखी गई. क्योंकि ये अमेरिका था. अपोलो 8 के दौरान इसी तरह अंतरिक्ष में बाइबल का एक पैसेज पढ़ा गया था. कुछ लोगों ने इस बात पर NASA पर केस कर दिया. क्योंकि अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन के अनुसार सरकार किसी एक धर्म को बढ़ावा देती हुई नहीं दिखाई दे सकती. अपोलो 8 वाला केस रद्द कर दिया गया. लेकिन दोबारा हंगामे के डर ने NASA ने धार्मिक अनुष्ठान वाली बात को एकदम गुप्त रखा.

दस साल की बच्ची ने अपोलो मिशन को डूबने से बचा लिया.

कहानी यूं है कि मार्ग्रेट हैमिलटन नाम की एक महिला हुआ करती थीं. मार्ग्रेट अपोलो मिशन से जुड़ी हुई थी और सॉफ़्टवेयर हेड की ज़िम्मेदारी संभाल रही थीं. उनकी एक 10 साल की बेटी थी. जिसका नाम लॉरेन था. एक रोज़ मार्ग्रेट लॉरेन को अपने साथ ऑफ़िस लेकर आई. लॉरेन ने जैसे ही कम्प्यूटर के बटन देखे, वो उनसे खेलने लग गई. कंप्यूटर पर एक सिम्युलेशन चल रहा था. अचानक लॉरेन ने एक बटन दबाया और सिम्युलेशन में रॉकेट टेक ऑफ़ करने लगा. लॉरेन ने वही बटन एक बार दोबारा दबा दिया. और देखते देखते पूरा सिस्टम क्रैश हो गया.

मार्ग्रेट ने लॉरेन से पूछा, उसने ऐसा क्या किया कि सिस्टम क्रैश कर गया. लॉरेन ने बताया कि उसने टेक ऑफ़ वाला बटन दो बार दबाया था. ये सुनकर मार्ग्रेट को अहसास हुआ, ऐसी गलती तो असली मिशन पर भी हो सकती है. उन्होंने ये बात NASA की मीटिंग में रखी लेकिन उनके सीनियर्स ने इस बात को नज़र अन्दाज़ कर दिया. उनका कहना था कि एस्ट्रोनॉट, 10 साल की बच्ची जैसी गलती नहीं कर सकते. कहानी यहीं ख़त्म हो गई.

इसके कुछ महीने बाद NASA का अपोलो 8 मिशन लांच हुआ. लेकिन जैसे ही रॉकेट टेक ऑफ़ कर कुछ ऊंचाई पर पहुंचा, एक एस्ट्रो नॉट ने ठीक वही गलती कर दी, जो लॉरेन ने की थी. उसने किसी बटन को दोबारा दबा दिया, और सिस्टम ओवर लोड हो गया. क़िस्मत से कोई हानि नहीं हुई. लेकिन मिशन को बीच में ही रोक देना पड़ा. इसके बाद तुरंत सॉफ़्टवेयर में अप्डेट्स कराए गए. कुछ इस तरह कि अगर एक से ज़्यादा कमांड देने पर सिस्टम ओवर लोड हो जाए तो सिस्टम बाक़ी कमांड को नज़रंदाज़ कर सबसे ज़रूरी कमांड को प्राथमिकता दे.

इत्तेफाक देखिए कि जब अपोलो 11 का लूनार मॉड्यूल लैंड करने वाला था, ठीक उसी समय कम्प्यूटर ने एक एरर बताना शुरू कर दिया. नील आर्मस्ट्रोंग को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने ज़मीन पर मौजूद मिशन कंट्रोल से मदद मांगी. उस वक्त मार्ग्रेट ने आर्मस्ट्रोंग को संदेश भेजा कि एरर को इग्नोर करें और लैंडिंग जैसी हो रही, होने दे. मार्ग्रेट जानती थी कि सिस्टम एरर इसलिए दिखा रहा था, क्योंकि वो ओवरलोड हो चुका था, इसके बावजूद उसने सबसे ज़रूरी काम यानी लैंडिंग को प्राथमिकता दी और मॉड्यूल सुरक्षित तरीक़े से चांद पर लैंड हो गया.

Apollo 11 return to earth
24 जुलाई 1969 के दिन तीनों एस्ट्रोनॉट्स चांद से वापस धरती पर लौटे. उन्हें सुरक्षित वापस लाने वाला मॉड्यूल प्रशांत महासागर में लैंड हुआ (तस्वीर- Wikimedia commons)
अपन साला फ़्रॉड आदमी है

अब आख़िरी किस्सा जो असल में किस्सा ना होकर एक समस्या का हल है.

‘अपन साला फ़्रॉड आदमी है’

“कभी कभी लगता है, जो भी मैंने हासिल किया है, महज़ इत्तेफ़ाक है. लोग जितना सोचते हैं, उतना बड़ा तीस मार खान मैं नहीं हूं.”

ये वाले ख़्याल क्या आपको भी कभी आते हैं? मनोविज्ञान की भाषा में इसे इम्पोस्टर सिंड्रोम कहते हैं. यानी ऐसा महसूस होना कि मैं ढोंगी हूं. ज़िंदगी में कभी ना कभी हम सबको ये महसूस होता है. ब्रिटिश लेखकर, नील गायमन इस क़िस्से का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, अपोलो मिशन के क़ई साल बाद एक सम्मेलन में गायमन और आर्मस्ट्रोंग की मुलाक़ात हुई. बातों बातों में आर्मस्ट्रोंग ने गायमन से कहा,

"मैं इन सब काबिल लोगों को देखता हूं और सोचता हूं, मैं इनके बीच क्या कर रहा हूं. इन लोगों ने महान काम किए हैं. मैंने क्या किया. सिर्फ़ वहां चला गया, जहां मुझे भेजा गया था".

यानी चांद पर पहला कदम रखने वाला आदमी, जिसका नाम अगले हज़ार सालों तक याद रखा जाएगा, उसे अपनी क्षमता पर संदेह हो रहा था. तो फिर आप और हम तो ज़मीन पर ही हैं. और कभी कभी ऐसा महसूस करना भी लाज़मी है. एक तरह से देखिए तो ये ख़्याल आपको ज़मीन पर रखता है, उड़ने नहीं देता.

वीडियो: तारीख: बड़ौदा का करोड़ों का ख़ज़ाना देश से बाहर कौन ले गया?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement