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क्या अमेरिका से ड्रोन डील में भारत को चूना लग रहा?

कीमतों पर सवाल उठे, तो सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि सौदा तय नहीं हुआ है.

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india usa drone deal
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे पर सहमति का ऐलान हुआ (फोटो सोर्स- आज तक, रायटर्स)
27 जून 2023 (Updated: 28 जून 2023, 10:11 IST)
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भारत, अमेरिका से अत्याधुनिक MQ-9B ड्रोन खरीदने जा रहा है. लेकिन इस सौदे की कीमत को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि भारत बाकी देशों की तुलना में ये ड्रोन कहीं ज्यादा कीमत पर खरीद रहा है. इस पर रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये सौदे को ‘पटरी से उतारने’ की कोशिश है. और अभी डील की कीमत और दूसरी शर्तें अभी तय नहीं हुई हैं.

ऐसे में असली कीमत क्या है? और किन रिपोर्ट्स के आधार पर कहा जा रहा है कि भारत महंगे ड्रोन खरीद रहा है? आइए इन सवालों के जवाब तलाशें. 

डील क्या है?

PM मोदी की अमेरिका में स्टेट विजिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और PM मोदी की तरफ से एक संयुक्त बयान जारी कर ड्रोन डील के बारे में बताया गया. साझा बयान के 16 वें पैराग्राफ में लिखा है कि ड्रोन भारत में असेंबल किए जाएंगे. और इन्हें बनाने वाली जनरल एटॉमिक्स, भारत में एक MRO (मेंटेनेंस, रिपेयर एंड ऑपरेशन्स) सेंटर स्थापित करेगी. लेकिन ड्रोन्स की संख्या और मूल्य के बारे में कुछ नहीं बताया गया.

फिर कीमत पर बवाल कहां से खड़ा हुआ?

15 जून को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद समिति DAC ने 31 MQ-9B ड्रोन्स की खरीद के लिए एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी AoN जारी की. ये रक्षा खरीद का पहला चरण होता है. इसके ज़रिए, सरकार ने ये मान लिया कि सेनाओं को इन ड्रोन्स की आवश्यकता है. इसीलिए इन्हें खरीदा जाएगा. 31 में से 15 ड्रोन सी गार्डियन होने वाले थे. माने ये नौसेना को मिलते. और 16 ड्रोन स्काय गार्डियन, जिनके बारे में ये कहा जा रहा है कि ये सेना और वायुसेना में बंटेंगे.

जब DAC की अनुमति वाली खबर आई थी, तब कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कुल 18 ही ड्रोन लिए जाएंगे, जिनकी कुल कीमत होगी 14 हज़ार 824 करोड़ रुपए. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत होती 823 करोड़ 50 लाख. वैसे अब पत्र सूचना कार्यालय PIB की जो प्रेस रीलीज़ हमारे सामने है, उसके मुताबिक AoN में 31 ड्रोनों के सौदे की अनुमानित कीमत 3.072 बिलियन डॉलर यानी करीब 25 हजार 203 करोड़ रुपए आंकी गई है. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत करीब 813 करोड़ रुपए बैठती है.

तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता साकेत गोखले ने 24 जून को इन कीमतों पर सवाल उठाए. उन्होंने एक ट्वीट किया, जो आपको यहां नज़र आ रहा है -

साकेत ने एक के बाद एक ट्वीट करके कई बातें कहीं-

- मोदी सरकार ने 3.1 बिलियन डॉलर से ज्यादा में 31, प्रिडेटर ड्रोन की खरीद के समझौते पर साइन किए हैं. यानी प्रति ड्रोन 110 मिलियन डॉलर. ड्रोन की असली कीमत से इस आंकड़े की तुलना करें तो अमेरिका प्राइवेट कंपनियों से 56.5 मिलियन डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से खरीद करता है.

-साल 2016 में UK ने भी जनरल एटॉमिक्स से यही ड्रोन खरीदे थे. तब UK ने 16 ड्रोन,  200 मिलियन डॉलर में खरीदे थे. जो उसे 2024 तक मिल जाएंगे. इस हिसाब से एक ड्रोन करीब 12.5 मिलियन डॉलर का है.

-ऑस्ट्रेलिया ने भी 130 मिलियन डॉलर प्रति ड्रोन के हिसाब से 12 ड्रोन का ऑर्डर दिया था. लेकिन इन ड्रोन के साथ कई और दूसरे सिस्टम भी थे, जो भारत वाले 110 मिलियन डॉलर के ड्रोन के साथ नहीं आएंगे. और फिर ऑस्ट्रेलिया ने ये डील महंगी होने के चलते कैंसिल भी कर दी.

साकेत आगे कहते हैं कि राफेल डील की ही तरह, ऐसा लगता है कि मोदी सरकार फिर से 'सुपर ओवरप्राइज्ड' कॉस्ट (बहुत ज्यादा कीमत) पर अमेरिकी ड्रोन खरीद रही है. साकेत उन दावों को भी नकारते हैं जिनमें कहा गया है कि मोदी सरकार ऊंची कीमतों पर सौदा इसलिए कर रही है क्योंकि डील में ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी भी शामिल है. बता दें कि ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी के तहत हथियारों की बिक्री के साथ-साथ उसकी तकनीक भी दूसरे देशों से साझा की जाती है. साकेत एक और ट्वीट में कहते हैं कि साल 2017 में सरकार ने संसद में बताया था कि ड्रोन, Buy (Global) केटेगरी के तहत खरीदे जा रहे हैं और इनमें तकनीक का ट्रांसफर नहीं किया जा रहा है.

सरकार की तरफ से क्या जवाब आया?

साकेत ने 24 जून को आरोप लगाए, तो 25 जून को PIB फैक्ट चेक ने उनके ट्वीट को भ्रामक बता दिया. इसी रोज़ रक्षा मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज़ भी जारी की. कहा,

‘’एक्सेपटेंस ऑफ़ नेसेसिटी' (AoN) में 3 हजार 72 मिलियन डॉलर की कीमत का अनुमान है. अमेरिकी सरकार से पॉलिसी अप्रूवल मिलने के बाद कीमत पर मोलभाव किया जाएगा. रक्षा मंत्रालय, खरीद की लागत की तुलना उन कीमतों से करेगा जिसपर जनरल एटॉमिक्स ने दूसरे देशों को ड्रोन बेचे हैं. 
इसके बाद भारत की तरफ से अमेरिकी सरकार को एक लैटर ऑफ़ रिक्वेस्ट (LOR) भेजा जाएगा. इसमें ड्रोन, बाकी ज़रूरी उपकरण और सौदे की शर्तें शामिल होंगी. इसी LOR के आधार पर अमेरिकी सरकार और भारत का रक्षा मंत्रालय लैटर ऑफ़ ऑफर एंड एक्सेप्टेंस (LOA) तय करेंगे. इस LOA में सौदे की कीमत और बाकी शर्तों पर मोलभाव होगा. 

सौदे की कीमत को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ अटकलों वाली रिपोर्ट्स सामने आई हैं. ये खरीद प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं. कीमत और सौदे की बीकी चीज़ें अभी तय नहीं हुई हैं. बातचीत चल रही है.

जब PIB द्वारा गोखले के दावे को गलत ठहराया गया तो उन्होंने फिर से PIB पर सवाल दागते हुए कहा कि सरकार की डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने 31 ड्रोनों के लिए 3 बिलियन डॉलर की रकम मंजूर कर दी है. क्या ये सही नहीं है? 26 जून को साकेत ने फिर कुछ ट्वीट किए. और कहा कि सरकार ने पहले डील पर साइन हो जाने का दावा किया गया था. अब जब उन्होंने इसकी कीमत पर सवाल उठाया तो सरकार ने यू-टर्न लिया और कहने लगी कि अभी तो बात चल रही है.

दोनों तरफ से हुए दावों का सच क्या है?

कीमतों की तुलना के लिए फिलहाल हम भारत सरकार द्वारा जारी AoN के आंकड़ों को ही आधार बना रहे हैं. इनके मुताबिक एक ड्रोन की अनुमानित कीमत 99.00 मिलियन डॉलर हुई. अब पुराने सौदों पर गौर करते हैं. 

अमेरिका

अमेरिकी वायुसेना की वेबसाइट पर हमें MQ-9A (रीपर) के बारे में जानकारी मिली. फैक्टशीट में एक यूनिट की कीमत 56.5 मिलियन डॉलर बताई गई. यहां एक यूनिट से मतलब एक ड्रोन नहीं है. इसमें चार ड्रोन हैं. सेंसर, ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन और प्राइमरी सैटेलाइट लिंक शामिल थे. माने सारा साज़ो सामान. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत 14 मिलियन डॉलर (मय साज़ो सामान) के करीब बैठती है. ये कीमत 2008 के हिसाब से है. नए रीपर ड्रोन अमेरिका 32 मिलियन डॉलर के भाव पर खरीद रहा है. 

ब्रिटेन 

डिफेंस न्यूज़ की एक खबर के मुताबिक UK ने साल 2020 में अमेरिका के साथ तीन MQ-9B ड्रोन के लिए कुल 80 मिलियन डॉलर का करार किया था. इस हिसाब से एक  MQ-9B ड्रोन की कीमत करीब 26.6 मिलियन डॉलर बैठती है. जबकि इस डील में तीन ग्राउंड स्टेशन, और ड्रोन से जुड़े बाकी उपकरण भी दिए जाने की बात कही गई थी. ये कहा गया था कि पहले ड्रोन का टेस्ट साल 2023 में अमेरिका में होगा. और साल 2024 में इसे UK को सौंप दिया जाएगा. UK में इन्हें ‘प्रोटेक्टर’ कहा जाएगा.

साकेत ने अपने दावे में कहा है कि साल 2016 में UK ने 200 मिलियन डॉलर में 16 MQ-9B ड्रोन का करार किया था. माने एक ड्रोन 12.5 मिलियन डॉलर का बैठा. जबकि द वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर के मुताबिक, UK ने साल 2016 में जो सौदा किया, वो तकरीबन 1 बिलियन डॉलर का था. इस सौदे में 16 ड्रोन खरीदने की डील थी. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत 62.5 मिलियन डॉलर बैठती है. इस डील में एक फॉलो-ऑन ऑप्शन था. माने UK 10 ड्रोन और खरीद सकता था. 

ऑस्ट्रेलिया

डिफेंस पोस्ट की एक खबर के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया ने साल 2021 में लंबी बातचीत के बाद अमेरिका से 1.6 बिलियन डॉलर में 12 MQ-9B ड्रोन खरीदने के लिए हामी भरी थी. इस हिसाब से एक ड्रोन की कीमत करीब 133 मिलियन डॉलर होती है. माने भारत के अनुमान से भी 34 मिलियन डॉलर ज़्यादा. इस डील में ड्रोन के अलावा ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन, सेटेलाइट टर्मिनल और कम्युनिकेशन जैसे और भी कई उपकरण ऑस्ट्रेलिया को दिए जाने थे. हालांकि ये डील अगले ही साल 2022 में कैंसिल हो गई. इसकी वजह ये बताई गई कि सरकार को 7.4 बिलियन डॉलर की रकम अगले दस साल में एक दूसरे सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च करनी है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस प्रोजेक्ट का नाम था रेडस्पाइस. इसके तहत ऑस्ट्रेलियन सिग्नल्स डायरेक्टरेट (ASD) की साइबर क्षमताओं को बढ़ाया जाना है.

बेल्जियम

द डिफेंस पोस्ट की एक खबर के मुताबिक बेल्जियम ने 4 MQ-9B ड्रोन के लिए 600 मिलियन डॉलर यानी प्रति ड्रोन करीब 150 मिलियन डॉलर में डील की है. जापान और UAE जैसे देशों ने भी इस आधुनिक ड्रोन के लिए अमेरिका के साथ करार किया है.

कौनसी कीमत सही, कौनसी गलत?

एक ही ड्रोन की कई कीमतें हमारे सामने हैं. 26 मिलियन डॉलर से लेकर 133 मिलियन डॉलर तक. इनमें से कौनसी कीमत सही या गलत (महंगी) है, ये बताना मुश्किल है. क्योंकि रक्षा सौदों के वक्त वास्तव में किन-किन चीज़ों पर करार हुआ, ये प्रायः सार्वजनिक नहीं होता. ड्रोन्स या किसी दूसरे एयरक्राफ्ट के मामले में सारी कीमत सिर्फ एयरक्राफ्ट की नहीं होती. ट्रेनिंग, हथियार और कस्टमर सपोर्ट के लिए भी पैसा जोड़ा जाता है. इसीलिए जो देश पहले से ये ड्रोन उड़ा रहे हैं, उनके लिए एक ड्रोन की कीमत अपेक्षाकृत कम रह सकती है. क्योंकि उन्हें बाकी उपकरण/तकनीक पर ज़ीरो से शुरुआत नहीं करनी है.

फिर इस बात से भी फर्क पड़ेगा कि हम एक ही ड्रोन के अलग-अलग वर्ज़न की कीमतों की तुलना तो नहीं कर रहे. ये स्वाभाविक ही है कि MQ-9A और MQ-9B के दाम अलग होंगे, क्योंकि दूसरा ड्रोन, पहले का अपग्रेडेड वर्ज़न है. लेकिन कुछ नई तकनीक के आ जाने से ये भी नहीं होगा कि ड्रोन की कीमतों में कौड़ी और हीरे का फर्क आ जाए. 

कीमतों पर सौदे की शर्तों के चलते भी फर्क पड़ता है. अगर खरीदार चाहे कि अमुक हथियार की कुछ तकनीक उसे दी जाए, या उसके यहां निर्माण आदि हो, तब बेचने वाला सौदे में इसकी कीमत भी वसूलता है. ये हम पूर्व के कई रक्षा सौदों में देख चुके हैं. जब-जब भारत ने ऑफसेट क्लॉज़ जोड़कर डील की, हमें उन शर्तों के दाम भी चुकाने पड़े. हम अमेरिका से चाहते हैं कि वो ड्रोन्स में 15-20 फीसदी उपकरण ऐसे लगाए, जो भारत में बनें. लेकिन अमेरिका फिलहाल 8-9 फीसद तक ही भारत निर्मित उपकरण ड्रोन्स में शामिल करना चाहता है. जब मोलभाव होगा, तब इस बिंदु को लेकर भी विस्तृत बातचीत होने की उम्मीद है. 

इसीलिए कीमतों की तुलना एक जटिल विषय है. बावजूद इसके, हमने देखा कि जब कीमतों पर सवाल उठा दिए गए, तो सरकार को ये कहना पड़ा कि अभी तो मोलभाव चलेगा, कीमतें और शर्तें तय नहीं हुई हैं.

वीडियो: मास्टरक्लास: MQ-9B प्रिडेटर ड्रोन क्यों चीन-पाकिस्तान के लिए है बड़ी टेंशन?

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