कहानी अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की, जिसने सारे काले काम सफेदी से अंजाम दिए
अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति Donald Trump ने पूर्व जासूस John Ratcliffe को खुफिया एजेंसी CIA का मुखिया नियुक्त किया है. जॉन रैटक्लिफ इससे पहले भी डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में नेशनल इंटेलीजेंस के डायरेक्टर रहे हैं. दुनिया की सबसे शातिर खुफिया एजेंसी कही जाने वाली CIA आखिर काम कैसे करती है.
अमेरिका से एक खबर आई है. Donald Trump ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का नया डायरेक्टर चुन लिया है. John Ratcliffe सीआईए के अगले चीफ होंगे. सीआईए के कारनामों पर खूब सारी फिल्में और वेबसीरीज़ बनी हैं. पर वास्तविकता और फिल्मों में अंतर होता है. तो जानते हैं कि क्या है CIA की कहानी और कैसे काम करती है दुनिया की सबसे उन्नत मानी जाने वाली एजेंसी.
इतिहास के पन्नों सेअक्टूबर 1962, अमेरिका के राष्ट्रपति John F Kennedy, शतरंज के खेल में पिछले एक साल से बार-बार मात खा रहे थे. जितनी तगड़ी प्लानिंग उतनी बुरी और शर्मनाक हार. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से मतवाले हाथी की चाल चलने वाले अमेरिका की इस दुर्गति की वजह था एक देश, क्यूबा. ग्लोब में अमेरिका के दक्षिण में, छोटे से टापू पर बसा ये देश कभी अमेरिका का साथी था. लेकिन सिगार पीने वाले एक करिश्माई नेता ने सब कुछ बदल दिया.
साल 1959 - फिदेल कास्त्रो की सदारत में क्यूबा में कम्युनिस्ट क्रांति हुई. और क्यूबा- अमेरिका, उसी रोज़ दुश्मन बन गए. क्यूबा से कम्युनिस्टों के सफाए के लिए अमेरिका ने कई कोशिशें की. यहां तक कि 1500 ट्रेंड विद्रोही भेजे. लेकिन ये सभी या तो क्यूबा में मारे गए या फिर कैद कर लिए गए. एक तरफ मिशन फेल हुआ, दूसरी तरफ क्यूबा ने सोवियत संघ से हाथ मिला लिया. इस दोस्ती ने अमेरिका की नींद उड़ा दी, खासकर तब जब सितम्बर 1962 उन्हें ये पता चला कि सोवियत संघ, क्यूबा में न्यूक्लियर मिसाइल बेस बनाने में जुटा हुआ है. ये स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के लिए एक बुरे सपने से कम नहीं थी. अमेरिका से सिर्फ कुछ सौ किलोमीटर दूर ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन न्यूक्लियर मिसाइलों का बेस बना रहा था. केनेडी की एक गलती- पूरी दुनिया सीधे तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा सकती थी. केनेडी के लिए क्यूबा उनके कार्यकाल का सबसे बड़ा संकट साबित हुआ.
हालांकि इस कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू था एक दस्तावेज़, जिसने इस कहानी को नया मोड़ दे दिया. अमेरिका को अचानक एक गुप्त रिपोर्ट हाथ लगी. जिसमें लिखा था कि सोवियत संघ का मिसाइल प्रोग्राम उतना मजबूत नहीं था जितना वो दिखा रहे थे. इस खुलासे ने कैनेडी को एक मौका दिया - शांति से इस संकट को सुलझाने का लेकिन सवाल ये है कि वो गुप्त दस्तावेज़ आखिर अमेरिका तक पहुंचे कैसे? इसके पीछे था एक व्यक्ति Oleg Penkovsky (ओलेग पेनकोव्स्की) जो सोवियत संघ की सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल था. और सालों से सोवियत संघ से जुड़े हज़ारों दस्तावेजों को अमेरिका पंहुचा रहा था.पेनकोव्स्की ने सोवियत संघ की नाक के नीचे बैठकर उनके ब्रह्मस्त्र को डिफ्यूज कर दिया. क्यूबा संकट को सुलझाने के लिए केनेडी को खूब वाहवाही मिली. लेकिन इस सफलता था असली श्रेय जाता था, अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी को. जिसे आज हम CIA के नाम से जानते हैं.
सीआईएCIA, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी दुनिया की सबसे ताकतवर ख़ुफ़िया एजेंसी मानी जाती है. पिछले 100 सालों में दुनिया के जितने तख्तापलट हुए, अगर उनकी कहानी पढ़ेंगे तो आपको CIA के फुट प्रिंट्स मिलेंगे. कोल्ड वॉर के दौर में अगर कोई देश अमेरिका की बात अनसुनी करता, CIA पीछे लग जाती थी. और एक बार CIA पीछे लग गई तो, आपकी खैर नहीं. दूसरे देशों की क्या कहें, खुद अपने देश के नागरिकों पर CIA जासूसी कर चुका है. CIA पर अपने ही नागरिकों के ऊपर साइकोलॉजिकल एक्सपेरिंट्स के आरोप हैं.
CIA क्यों बनी?दिसंबर 1941. पर्ल हार्बर पर जापानी हमले के बाद अमेरिका की दूसरे विश्व युद्ध में एंट्री हो चुकी थी. इस युद्ध में जीत के लिए ताकत के साथ जरूरत थी इंटेलिजेंस इनपुट्स की. इस सोच ने जन्म दिया ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विसेस (OSS). OSS का काम था- खुफिया जानकारी जुटाना, दुश्मनों के खिलाफ साइकोलॉजिकल वॉरफेयर करना, और कोवर्ट ऑपरेशन्स को अंजाम देना. साइकोलॉजिकल वॉरफेयर यानी दुश्मन को इंटेलिजेंस और इनफॉर्मेशन के दम पर बेवक़ूफ़ बनाना या उसे ट्रैप करना. कोवर्ट ऑपरेशन यानी चुपके से किसी बड़े मिशन को अंजाम देना. जैसे किसी बड़े व्यक्ति की हत्या करवाना.
OSS ने WWII के दौरान यूरोप, एशिया और मिडिल ईस्ट में कई बड़े ऑपरेशन्स किए. इनमें सबसे दिलचस्प था ऑपरेशन ग्रीनअप. इस मिशन में OSS एजेंट्स को ऑस्ट्रिया में भेजा गया. ऑस्ट्रिया इस समय जर्मनी के अधीन था. OSS एजेंट्स ने नाज़ियों की हवा टाइट कर दी. वे घायल जर्मन सोल्जर का भेस बनाकर नाज़ी हेडक्वार्टर में घुसे और वहां से कई सीक्रेट जानकारियां, जैसे सैनिकों के मूवमेंट की जानकारी जुटाई. इसके साथ ही नाज़ियों के रेल नेटवर्क और कम्युनिकेशन नेटवर्क को तबाह कर दिया. इससे अमेरिका और उसके साथियों को जर्मनी में आसानी से अटैक करने का मौका मिल पाया.
WWII खत्म होने के बाद 1945 में OSS को बंद कर दिया गया. उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन को इसकी जरूरत नहीं लगी. लेकिन फिर कुछ ही साल बाद शुरुआत हुई कोल्ड वॉर की. सोवियत संघ के प्रीमियर जोसेफ स्टालिन ने पूर्वी यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया. दे दना दन एक के बाद एक देश कम्युनिस्ट होने लगे.सरमाएदारी निजाम के पुरोधा अमेरिका को ये मंजूर नहीं था. ट्रूमैन कम्युनिस्टों को रोकने का रास्ता खोज की रहे थे कि तभी सोवियत संघ के अमेरिकी दूतावास में बैठे अमेरिकी राजदूत जॉर्ज एफ केनन ने ट्रूमैन को एक टेलीग्राम भेजा. जिसमें कन्टेनमेंट पालिसी का जिक्र था. माने सोवियत की चालों को समझने और उसका मुकाबला करने के लिए अमरीका को एक स्थाई इंटेलिजेंस एजेंसी चाहिए थी. इन खतरों और डिप्लोमेटिक चैनल्स से आते इनपुट्स को देखते हुए, राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने 1947 में एक कानून पास किया. National Security Act,1947. जिससे जन्म हुआ सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी यानी CIA का.
CIA काम कैसे करती है?किसी भी संस्था के काम करने का तरीका, इस बात पर निर्भर करता है कि संस्था का उद्देश्य क्या है. अपने जन्म से CIA का फोकस दो चीजों पर था- पहला, अमरीका के बाहर बैठे अमेरिका के दुश्मनों के बारे में जानकारी जुटाना और उन्हें खत्म करना. दूसरा, दुनियाभर में अमेरिकी हितों की रक्षा करना. इसके लिए CIA तीन तरीकों का इस्तेमाल करती है. सबसे पहला है, कोवर्ट ऑपरेशंस. माने सिक्रेट मिशंस, दूसरा है, प्रोपेगैंडा और प्रॉक्सी का इस्तेमाल, और तीसरा है,इंटेलिजेंस इकट्ठा करना. तीनों तरीकों से काम निपटाने के चक्कर में कई बार CIA ने एथिकल बाउंड्री लांघी है. और ये गुनाह उसने सिर्फ दूसरे देशों के नागरिकों के साथ ही नहीं बल्कि अपने देश के नागरिकों के साथ भी किया है. उन सब किस्सों पर आयेंगे. पहले CIA के मोड्स ऑपरेंडी को डिटेल में समझ लेते हैं.
कोवर्ट ऑपरेशंसऑपरेशन Ajax- सीआईए के इस ऑपरेशन की भूमिका दरअसल दशकों पहले लिखी जा चुकी थी. साल था 1908… ईरान में तेल के कुओं की खोज हुई. पहले ब्रिटेन और फिर अमेरिका की कुछ कंपनियों ने इसमें निवेश किया और ईरान से सस्ते दामों पर तेल निकाल इंटरनेशनल मार्केट में बेचने लगी. ईरान को समझ आया कि उनके साथ खेला हो गया है. तब ईरान में उस वक्त मोहम्मद मोसद्देग प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उन्होंने पूरी पेट्रोलियम इंडस्ट्री को नेशनलाइज़्ड कर दिया. ब्रिटेन और अमेरिका के हितों का नुकसान और मिडिल ईस्ट में कमजोर होती पकड़. बस CIA के लिए इतना कारण पर्याप्त था. CIA ने ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी, MI6 के साथ मिलकर तख्तापलट की प्लानिंग शुरू कर की. 1950 के दशक में CIA ने ईरान में प्रो और एंटी-गवर्नमेंट गुट खड़े किए. इनके बीच दंगे करवाए.
पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकार, Tim Weiner ने CIA के इतिहास पर एक किताब लिखी है- Legacy of Ashes. वीनर लिखते हैं, CIA ईरान की सड़कों पर हिंसा फैलाना चाहती थी. ताकि अशांति का माहौल बने और फिर धीरे से देश की पूरी राजनीति बदली जा सके. सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ. प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देग को हटाकर शाह रज़ा पहलवी को ईरान की सत्ता सौंप दी गई. इस ऑपरेशन की सक्सेस के बाद CIA ने तख्तापलट की लड़ियां लगा दीं. ग्वाटेमाला, चिली, कांगो जहां भी सत्ता अमेरिका का विरोध करती, या उसके हितों का नुकसान होता वहां तख्तापलट का मिशन शुरू हो जाता. पर ये तो बात हुई कोवर्ट ऑपरेशंस की. अब समझते हैं कैसे फेक, न्यूज प्रोपेगैंडा और अपने प्रॉक्सी के दम पर CIA अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाती है.
प्रोपेगैंडा युद्धCIA के बनने के पीछे एक बड़ी वजह थी, पूर्वी यूरोप के देशों का कम्युनिज्म की तरफ बढ़ता झुकाव. इसे काउंटर करने के लिए CIA ने प्रोपागैंडा कैंपेन शुरू किए. इसे एक उदाहरण से समझिये. एक किताब है, द सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी - An Encyclopedia. इसके अनुसार CIA ने Eastern Europe में प्रो-डेमोक्रेसी कंटेंट ब्रॉडकास्ट किये. जैसे “Radio Free Europe” और “Radio Liberty”. ये स्टेशन कम्यूनिस्ट प्रभाव वाले देशों में एंटी सोवियत नैरेटिव फैलाते, जिससे लोगों में प्रतिरोध की भावना बढ़ती. इसके अलावा CIA ने कई प्रोजेक्ट्स को भी फंड किया ताकि बुद्धजीवियों में कम्युनिज़्म के खिलाफ विरोध को बढ़ावा दिया जा सके.
CIA का असर हॉलीवुड तक भी फैला था. द सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी - An Encyclopedia. इसका जिक्र है. उस दौर में जॉर्ज ऑरवेल की किताब, एनिमल फार्म पर एक फिल्म बनी थी. जिसकी फंडिंग में CIA का हाथ था. ये किताब साम्यवाद के खतरों को दर्शाती थी. इसलिए CIA ने इसका खूब इस्तेमाल किया. CIA प्रोपेगेंडा का एक बड़ा उदाहरण है- ऑपरेशन Mockingbird. इसके तहत अमेरिका के पक्ष में प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए CIA ने कई मीडिया संस्थाओं में अपने लोगों को बैठाना शुरू किया. एक किताब है, ‘इनसाइड द CIA’. इसके मुताबिक CIA ने कई बड़ी बड़ी मीडिया संस्थानों जैसे टाइम मैगजीन और वाशिंगटन पोस्ट में अपने लोगों को बैठाया, उनके कुछ बड़े पत्रकारों को अपना खबरी बनाया और बेहद सलीके से इन्हें फंड किया. CIA के ये एजेंट्स अमेरिका के पक्ष में माहौल तो बनाते ही थे, CIA की काली करतूतों पर भी पर्दा डालने में मदद करते थे. ये ऑपरेशन इतना सफल रहा था कि मीडिया संस्थाओं को भी ये पता नहीं चला कि वो CIA के लिए काम कर रही हैं.
प्रॉक्सी वॉरप्रॉक्सी माने ऐसा तरीका जिससे आप तमाम काले काम कर सकें लेकिन आपका नाम कहीं न आए. CIA ऐसा करती थी, संस्थाओं के बल पर. जो नाम से CIA से अलग थीं. लेकिन उनके जरिए CIA का काम निकाला जाता था ये प्रॉक्सी वहां काम आते थे जहां अमेरिका खुद नहीं जा सकता था. जैसे, अफगानिस्तान. Directorate S: The CIA and America’s Secret Wars in Afghanistan and Pakistan के लेखक Steve Coll लिखते हैं,
“अफगानिस्तान में CIA ने अपने सबसे बड़े ऑपरेशन्स को अंजाम दिया. जिसमें हथियारों, ट्रेनिंग और इंटेलिजेंस सपोर्ट का एक विशाल नेटवर्क खड़ा करना शामिल था.”
CIA के एजेंट्स ने मुजाहिदीन फाइटर्स को गुरिल्ला युद्ध सिखाया, जिससे सोवियत संघ को अफगानिस्तान में भारी नुकसान हुआ. और सोवियत को अफगानिस्तान से जाना पड़ा. इन ऑपरेशन्स ने CIA की दुनिया भर में एक अलग छवि गढ़ी. CIA एक ऐसी एजेंसी बन गई जो न सिर्फ राजनीतिक स्थितियों को प्रभावित कर सकती है बल्कि युद्ध और मीडिया के ज़रिए लोगों की सोच को भी आकार दे सकती है.
इंटेलिजेंस जुटाना‘Inside the CIA’ किताब में CIA के कुछ ऐसे ऑपरेशन का जिक्र है. जो पहली बार सुनने में किसी जासूसी फिल्म की कहानी लगती है. लेकिन यही वाक़िए CIA को बाकी एजेंसियों से अलग बनाते हैं. इसमें एक किस्से का ज्रिक है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी दो हिस्सों में बंट गया था. ईस्ट जर्मनी सोवियत के कंट्रोल में था और वेस्ट जर्मनी अमेरिका और ब्रिटेन के कंट्रोल में. सोवियत संघ में जासूसी करने के लिए CIA ने किसी जासूस को नहीं भेजा. बल्कि 1400 फीट लम्बा टनल बनाया. ईस्ट जर्मनी जो सोवियत के कंट्रोल में था. वहां जमीन के नीचे से सोवियत संघ की फोन और बाकी कम्युनिकेशन लाइंस को टेप किया. इस सुरंग की वजह से लगभग एक साल तक CIA को सोवियत की योजनाओं, सैनिकों की मूवमेंट पर नज़र रखने का मौका मिला.
इंटेलिजेंस जुटाने का एक और तरीका भी था. अमेरिका में ह्यूमन राइट्स को लेकर काफी कड़े कानून है. ऐसे में आतंकवादियों और दुश्मनों के एजेंट्स को इंटेरोगेशन करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए CIA ने दुनिया के कुछ देशों में ब्लैक साइट्स बनाई हैं. ये हाई सिक्योरिटी वाली जेल्स हैं. जहां इनफॉर्मेशन उगलवाने के लिए कैदी पर किसी भी हद तक बर्बरता की जाती है. इसका एक बेहद बदनाम किस्सा भी है.
वियतनाम युद्ध के दौरान, CIA ने Phoenix Program की शुरुआत की. Legacy of Ashes, किताब के मुताबिक, CIA के ऑपरेटिव्स वियतनाम में विद्रोहियों को पकड़ते और उनसे इनफॉर्मेशन निकलवाने के लिए बर्बरता करते. बाद में ये प्रोग्राम CIA के इतिहास के सबसे कॉन्ट्रोवर्शियल मिशंस में से एक बना. CIA ने 9/11 के बाद भी आतंकवादियों का पता लगाने के लिए ऐसे कई मिशंस चलाए थे.
रिक्रूटमेंट और ट्रेनिंगCIA का recruitment सिस्टम काफी स्ट्रक्चर्ड है. ये बड़ी चालाकी से पोटेंशियल कैंडिडेट्स को ढूंढकर उन्हें ग्रूम करती है. कैसे? इसका जवाब है MICE.
पहला, M माने मनी यानी पैसा - आर्थिक परेशानियों में घिरे लोगों को रिक्रूट करना काफी आसान होता है. CIA उन्हें पैसों का लालच देकर अपना एजेंट बनाती और फिर सेंसिटिव जानकारी हासिल कर लेती थी. उदाहरण, Oleg Penkovsky, जिसने क्यूबा क्राइसिस के समय CIA को इनफॉर्मेशन पहुंचाई. Oleg Penkovsky को CIA ने अमेरिका में एक पैसे वाली और अच्छी जिंदगी का लालच दिया था. जिसके बदले में उसने सोवियत की सेना में होने के बावजूद CIA को इनफॉर्मेशन पहुंचाई.
दूसरा, I यानी आइडियोलॉजी या विचारधारा- CIA ने प्रोपेगैंडा वारफेयर में अक्सर उन लोगों को तवज्जो दी जो अमेरिका की पूंजीवादी और डेमोक्रेटिक वैल्यूज को मानते थे. इसमें स्टूडेंट्स, जर्नलिस्ट्स और कई बुद्धजीवी शामिल थे.
तीसरा है C माने coercion या दबाव डालना - जब बात पैसे और आइडियोलॉजी से न बने तब CIA बर्बरता और क्रूरता के तरीकों को आजमाती थी. ऐसे मिशंस के लिए कुछ ख़ास लोगों को चुना जाता था जो इस इंटेरोगेशन के जरिए इनफॉर्मेशन आसानी से निकलवा पाएं.
चौथा है, E माने ईगो. कोल्ड वॉर के दौरान कई महत्वाकांक्षी नेताओं और अधिकारियों को करियर एडवांसमेंट का लालच दिया जाता. उनको फंडिंग दी जाती थी, बदले में वो CIA और अमेरिका के लिए गुप्त रूप से काम करते. ऐसा अक्सर उन जगहों पर होता था, जहां CIA ने तख्तापलट को अंजाम दिया था.
CIA की ट्रेनिंग में सबसे पहले 4 चीज़ें सिखाई जाती हैं. सर्विलांस करना, भेष बदलना, हथियार चलाना और विदेशी भाषाएं सीखना. इसको सीखने के बाद एजेंट्स को ट्रेनिंग के सबसे मुश्किल पड़ाव में भेजा जाता है. “द फार्म” ये अमेरिका के वर्जीनिया स्टेट में CIA की ट्रेनिंग फैसिलिटी है. यहां नए रिक्रूट्स को एक सिमुलेशन के जरिये असल दुनिया में कैसे जासूसी की जाती है, उसकी ट्रेनिंग मिलती है. ये बिलकुल वैसी ट्रेनिंग है जैसी कोई पायलट ट्रेनी असल प्लेन उड़ाने से पहले एक मशीन पर प्रैक्टिस करता है. वैसे ही नए लोगों को जासूसी की ट्रेनिंग के लिए अलग-अलग सिनैरियो में डाला जाता है. Inside the CIA के मुताबिक,
"द फार्म पर ट्रेनी एजेंटों को उनके फिजिकल और मेंटल लिमिट तक पुश किया जाता है, और उनके मॉक इंटरोगेशन तक किये जाते हैं."
CIA ट्रेनिंग का एक और पहलू साइकोलॉजिकल कंडिशनिंग है. माने दिमागी तौर पर एजेंट को तैयार करना. इसके लिए एजेंट्स को टार्चर बर्दाश्त करना, लाई डिटेक्टर से बचना सिखाया जाता है. इन सभी स्किल्स को हर रिक्रूट में ड्रिल किया जाता है क्योंकि फील्ड में एक गलती ज़िन्दगी और मौत का फर्क बना सकती है. ये तो बात हुई रिक्रूटमेन्ट की. लेकिन कोई इंटेलिजेंस एजेंसी कब तक देश के लिए अच्छी है और कब वो अचानक से देश की दुश्मन बन जाये, इसका हिसाब लगाना मुश्किल है. CIA का हाल भी कुछ ऐसा ही था. ये एजेंसी खुले आम अमेरिकी नागरिकों पर जानलेवा और खतरनाक एक्सपेरिमेंट कर रही थी.
अपने देश में सेंधसाल 1955. CIA ने ऑपरेशन मिडनाइट नाम का एक ऑपरेशन शुरू किया. इसके लिए CIA ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर में सेक्स वर्कर्स को हायर करना शुरू किया. ये सेक्स वर्कर अनजान लोगों को एक होटल में लेकर आतीं. जिन्हें कोई खबर न होती कि होटल का ये कमरा CIA का अड्डा है. कमरा खास तौर पर तैयार किया जाता. माइक्रोफोन और कैमरों से हर समय कमरे में होने वाली हरकतों पर नजर रखी जाती. हर कमरे में एक स्पेशल शीशा लगा होता. जिससे वहां के लोगों को बिना पता चले दूसरे कमरे में बैठा शख्स देख सकता था. कमरे में लाकर लोगों को ड्रग दिए जाते. जिस ड्रग का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता था, उसका नाम था, LSD. एक वक्त CIA ने यहां तक कोशिश की कि दुनिया में जितना भी LSD है, उसे खरीद ले. इस काम के लिए CIA के दो एजेंट स्विट्ज़रलैंड भेजे गए. लेकिन उनके हाथ सिर्फ 10 ग्राम LSD लगा. अंत में एक फार्मा कंपनी की मदद से LSD की ज्यादा मात्रा पैदा कराई गई. बहरहाल अपने खास होटल में लोगों को LSD देकर, CIA ने दिमाग कंट्रोल करने वाले परीक्षण किए. क्या LSD लेने के बाद आदमी का बर्ताव बदल रहा है. यदि हां, तो किस तरह. क्या सेक्स और ड्रग के जोड़ से वो आसानी से जानकारी उगल रहा है?. ये सब बातें परीक्षण का हिस्सा थीं.
मिडनाइट क्लाइमेक्स ऐसा अकेला ऑपरेशन नहीं था. CIA ऐसे एक्स्पेरिमेंट्स दुनिया भर में कर रही थी. विदेशों में इस प्रोग्राम को एक अलग कोड दिया गया था- MK-डेल्टा. यहां तक कि विश्वविद्यालय भी इससे अछूते नहीं थे. टेड कजिंस्की नाम का एक आतंकी, जो आगे चलकर युनाबॉम्बर नाम से फेमस हुआ, हार्वर्ड में पढ़ते हुए CIA के एक्सपेरिमेंट्स का शिकार हुआ था. ऐसे ही चार्ल्स मेंसन, जिसके गिरोह ने एक हॉलीवुड हिरोइन की हत्या की थी, वो भी जेल में माइंड कंट्रोल एक्सपेरिमेंट्स से गुजरा था. इस काम के लिए CIA ऐसे ही लोगों को चुनती थी, जो आम लोगों से अलग थे. अधिकतर लोग मनोरोगी या किसी मामले में सजा काटने वाले होते थे. उन्हें ये भी पता नहीं होता था कि उनके साथ कोई एक्सपेरिमेंट हो रहा है. 20 साल तक CIA MK-अल्ट्रा को बेरोकटोक चलाती रही. फिर साल 1970 के दशक में एक इत्तेफाक के चलते इस ऑपरेशन का खुलासा हुआ.
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