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डूब रही जेट एयरवेज के संकट की वो इनसाइड स्टोरी, जो कहीं और पढ़ने को नहीं मिलेगी

क्या जेट का हाल भी विजय माल्या की किंगफिशर सरीखा होने वाला है?

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अनिरुद्ध
15 जनवरी 2019 (Updated: 15 जनवरी 2019, 08:04 IST)
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वैसे तो जेट एयरवेज और किंगफिशर एयरलाइंस के बीच हमेशा कारोबारी कॉम्पटीशन रहा. जेट के चेयरमैन नरेश गोयल और डूब चुकी एयरलाइंस किंगफिशर के फाउंडर विजय माल्या एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. मगर जब विजय माल्या भारत से लंदन भागा तो उसने नरेश गोयल की जेट एयरवेज को चुना. वो 2 मार्च, 2016 को जेट की नई दिल्ली से लंदन जाने वाली फ्लाइट 9डब्लू-122 से लंदन के लिए रवाना हुआ. इसके अलावा एक और कनेक्शन है दोनों के बीच. दोनों ने सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई की अगुवाई में बैंकों से लंबे-चौड़े कर्ज ले रखे हैं. विजय माल्या करीब 9 हजार करोड़ रुपए की चपत लगाकर भाग चुका है. नरेश गोयल 8 हजार रुपए के घनघोर कर्जे में डूबे हुए हैं. और एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक जेट भी किंगशिफर के रास्ते जाती नजर आ रही है यानी जेट एयरलाइंस डूबने की कगार पर है. नरेश गोयल इसे बचाने के लिए आखिरी कोशिशें कर रहे हैं. क्या है देश के दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन जेट एयरवेज का संकट? क्यों इस हालत में पहुंच गई कंपनी? आइए सब कुछ समझते हैं आसान भाषा में.
कैसे हुई जेट एयरवेज की शुरुआत?
साल 2007 में जेट ने सहारा एयरलाइन का अधिग्रहण कर लिया. साल 2012 तक जेट एयरवेज देश की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बनी रही. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
साल 2007 में जेट ने सहारा एयरलाइन का अधिग्रहण कर लिया. साल 2012 तक जेट एयरवेज देश की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बनी रही. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.


ये साल 1992 का दौर था. देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. और वित्तमंत्री थे डॉक्टर मनमोहन सिंह. वही मनमोहन सिंह जो आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री हुए. और आजकल फिल्म एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर की वजह से एक बार फिर सुर्खियों में हैं. नरसिम्हा राव की अगुवाई में मनमोहन सिंह ने देश के दरवाजे विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए थे. इसको तकनीकी भाषा में लिबरलाइजेशन या उदारीकरण बोलते हैं. इसी उदारीकरण के दौर में एक कारोबारी जो कभी एक ट्रैवेल एजेंसी में क्लर्क था, उसने लंबी छलांग लगाई. नाम था नरेश गोयल. नरेश गोयल ने 1992 में जेट एयरवेज का गठन किया. और अगले साल यानी 1993 में टैक्सी ऑपरेटर के तौर पर उड़ान शुरू कर दी. साल 1995 आते-आते जेट एयरवेज एक फुल फ्लैज्ड एयरलाइन कंपनी के तौर पर काम करने लगी. कंपनी का मुख्यालय मुंबई में था. 2005 में कंपनी अपना आईपीओ लेकर आई. आईपीओ यानी इनीशियल पब्लिक ऑफर कोई कंपनी तब लेकर आती है, जब वो शेयरों के जरिए पहली बार आम जनता को अपनी हिस्सेदारी बेचती है. साल 2010 आते-आते जेट देश की सबसे बड़ी एयलाइन कंपनी बन गई. इस बीच साल 2007 में जेट ने उस वक्त की दिग्गज एयरलाइंन कंपनी सहारा का अधिग्रहण कर लिया. साल 2012 तक जेट एयरवेज देश की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी बनी रही. मगर इसके साथ ही दुनिया को आर्थिक मंदी की चपेट में ले लिया.
मुसीबत कहां से शुरू हुई?
साल 2008 से दुनिया के तमाम देशों को इकनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक मंदी ने अपनी चपेट में ले लिया था. सांकेतिक तस्वीर, बिजनेस टुडे.
साल 2008 से दुनिया के तमाम देशों को इकनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक मंदी ने अपनी चपेट में ले लिया था. सांकेतिक तस्वीर, बिजनेस टुडे.


साल 2008 से दुनिया के तमाम देशों को इकनॉमिक स्लोडाउन यानी आर्थिक मंदी ने अपनी चपेट में ले लिया था. आर्थिक मंदी उन हालात को कहते हैं, जब उद्योग और कारोबारी गतिविधियां धीमी पड़ जाती हैं. दुनिया भर की तमाम एयरलाइंस इसकी चपेट में आती जा रही थीं. भारत में ही विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस, 2010 में कंपनी का सर्विस टैक्स नहीं चुका पाई. कंपनी ने कर्मचारियों का टीडीएस तक जमा नहीं किया. कोई भी कंपनी टीडीएस कर्मचारियों की तनख्वाह से काटती है. हालात इस कदर बिगड़े कि किंगफिशर अपने हवाई जहाज़ों के तेल की उधारी भी नहीं चुका पाई. साल 2012 आते-आते तेल कंपनियों ने किंगफिशर को तेल देना तक बंद कर दिया. उसकी कोई 50 देशी और विदेशी रूट पर उड़ानें बंद हो गईं. उसकी 66 में सिर्फ 16 उड़ानें बचीं. साल 2011-12 में जेट एयरवेज को 1 हजार 236 करोड़ रुपए का घाटा हुआ. उस वक्त कंपनी पर 13 हजार करोड़ रुपए कर्ज था. देश की दो बड़ी कंपनियों और सरकारी एयर इंडिया की खस्ता हालत देखकर सरकार ने साल 2012 में ही देशी विमान सेवाओं में 49 फीसदी विदेशी निवेश यानी विदेशी पैसा लगाने की इजाजत दे दी.
एतिहाद से क्या समझौता किया?
जेट ने अबूधाबी की कंपनी एतिहाद एयरवेज को साल 2013 में 24 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी थी. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
जेट ने अबूधाबी की कंपनी एतिहाद एयरवेज को साल 2013 में 24 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी थी. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.


नरेश गोयल विमानन क्षेत्र के अच्छे जानकार माने जाते हैं. इस घाटे के साथ ही नरेश गोयल को लग गया कि हालात जल्दी न संभाले गए, तो और बिगड़ सकते हैं. लंदन में रहने वाले नरेश गोयल ने अपने परिवार के साथ दुबई में बसने का फैसला लिया. अब तक किंगफिशर पूरी तरह बैठ चुकी थी. नरेश गोयल ने सरकार की पॉलिसी का फायदा उठाया. और अबूधाबी की कंपनी एतिहाद एयरवेज को 24 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी. साल 2013 में ये हिस्सेदारी 2058 करोड़ रुपए में बेची गई. इस सौदे से नरेश गोयल को बड़ी उम्मीदें थीं. उनका मानना था विदेशी पैसा लगते ही जेट एयरवेज संकट से निकल आएगी. अब तक जेट एयरवेज की हालत इतनी खराब हो गई कि उसको कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ने लगे. मगर नरेश गोयल का अनुमान सही नहीं निकला. उल्टे इस सौदे को लेकर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार को विपक्ष ने सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया. सीपीएम के सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली परिवहन, पर्यटन और संस्कृति मामलों की संसदीय समिति ने इस सौदे को गलत बताया. कमेटी के सदस्य भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता, भाजपा के जसवंत सिंह, तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी और तब जनता पार्टी के सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस सौदे पर बखेड़ा खड़ा कर दिया. प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर अपनी नाराजगी जताई. मगर ये सौदा पूरा होना था तो हो गया. कर्ज लेने के बाद भी सुधार क्यों नहीं हुआ?
विदेशी पैसा मिल जाने के बाद भी जेट की हालात में सुधार नहीं हुआ. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
विदेशी पैसा मिल जाने के बाद भी जेट की हालात में सुधार नहीं हुआ. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.


खाड़ी देश की एतिहाद से समझौते के बाद भी जेट एयरवेज के दिन बहुत ज्यादा नहीं बदले. तो ऐसा क्या हुआ, जो विदेशी पैसा मिल जाने के बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ. इसकी दो बड़ी वजहें थीं. पहली, हवाई जहाज का महंगा होता तेल, जिसे एटीएफ कहते हैं. और दूसरी वजह थी, कंपनी के बेतहाशा खर्चे. रिसर्च एजेंसी स्टेट बैंक कैपिटल की एक रिपोर्ट के मुताबिक जेट का प्रति किलोमीटर खर्च 3 रुपया 17 पैसा है. इसके मुकाबले स्पाइसजेट का प्रति किलोमीटर खर्च 2 रुपया 53 पैसे और इंडिगो का खर्च सिर्फ 2 रुपया 4 पैसा है. जाहिर है जेट का खर्च सबसे ज्यादा है. इस वजह से कंपनी पर दबाव भी सबसे ज्यादा है.
इस वक्त क्या हालात हैं जेट के?
जेट को मार्च 2019 तक 3120 करोड़ रुपए का लोन चुकाना है. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
जेट को मार्च 2019 तक 3120 करोड़ रुपए का लोन चुकाना है. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.


जेट एयरवेज सितंबर, 2018 तक 13 हजार करोड़ रुपए के घाटे में थी. कंपनी पर इस वक्त करीब 8 हजार करोड़ रुपए कर्ज है. कंपनी को मार्च 2019 तक 3120 करोड़ रुपए का लोन चुकाना है. 2021 तक 6 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हर हाल में लौटाना है. इससे उलट कंपनी की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. 120 विमानों वाली जेट एयरलाइन कर्मचारियों को सैलरी और कर्ज का ब्याज तक नहीं निकाल पा रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक जेट की उड़ान चलती रहे, इसके उसे फौरन 3500 करोड़ रुपए की जरूरत है. लेकिन किंगफिशर की हालत से बैंक पूरी तरह सतर्क हो गए हैं. बैंक अब एयरलाइंस के धंधे वालों को आसानी से पैसा देने को तैयार नहीं हैं. बैंकों ने जेट से कहा है कि कंपनी पहले अपना रिवाइवल का प्लान बताए फिर देखेंगे. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक जेट के पास एयरलाइंस चलाने के लिए कैश बहुत कम बचा है. जेट ने इमरजेंसी लोन के लिए बैंकों से गुहार लगाई है, पर जवाब मिला कि पहले वो शेयर बेचकर पैसा जुटाए फिर नया कर्ज मिलेगा. जेट को लोन देने वालों में भारतीय स्टेट बैंक, एचएसबीसी बैंक और एक्सिस बैंक शामिल हैं.
एसबीआई ने बहीखातों की जांच शुरू कराई
स्टेट बैंक ने हाल ही में जेट एयरवेज के बहीखातों के फॉरेंसिक ऑडिट यानी लेखा परीक्षण का आदेश दिया है. सांकेतिक तस्वीर. इंडिया टुडे.
स्टेट बैंक ने हाल ही में जेट एयरवेज के बहीखातों के फॉरेंसिक ऑडिट यानी लेखा परीक्षण का आदेश दिया है. सांकेतिक तस्वीर. इंडिया टुडे.


भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में जेट एयरवेज के बहीखातों के फॉरेंसिक ऑडिट यानी लेखा परीक्षा का आदेश दिया है. इसके तहत अप्रैल 2014 से मार्च 2018 के बीच के बहीखातों की जांच-पड़ताल की जाएगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक एसबीआई ने जेट एयरवेज को 8,000 करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा है. इस बीच कंपनी का शेयर साल भर में 70 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है. 15 जनवरी, 2018 को जेट एयरवेज का शेयर 821 रुपए पर था. साल भर बाद 11 जनवरी, 2019 को कंपनी का शेयर 253 रुपए के आस-पास कारोबार कर रहा था. कंपनी की हालत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है. ब्रोकरेज हाउस HSBC ने तो अनुमान जताया है कि जेट एयरवेज का शेयर भाव 150 रुपए तक गिर सकता है.

कोई निवेशक क्यों नहीं मिल रहा?


 एतिहाद ने निवेश के बदले जेट के सामने कड़ी शर्तें रख दी हैं. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
एतिहाद ने निवेश के बदले जेट के सामने कड़ी शर्तें रख दी हैं. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.


एक रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की शर्तों को देखते हुए जेट ने पहले टाटा ग्रुप से जेट में निवेश की चर्चा शुरू की थी. मगर इस पर बात नहीं बन सकी. फिर उसने अपनी पुराने निवेशक एतिहाद से एक बार फिर चर्चा चलाई है. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक एतिहाद ने निवेश के बदले जेट के सामने कड़ी शर्तें रख दी हैं. एतिहाद ने नरेश गोयल से अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी के आस-पास करने को कहा है. अभी जेट में नरेश गोयल और उनकी पत्नी सुनीता गोयल की 51 फीसदी हिस्सेदारी है. बाकी में 24 फीसदी हिस्सेदारी एतिहाद एयरलाइन की है. इसका मतलब ये है कि जेट एयरवेज पर पूरा कब्जा एतिहाद का हो जाएगा. एतिहाद जेट एयरवेज की खातिर और कर्ज देने के लिए अपने हिस्से के इसके शेयर गिरवी रखने को तैयार नहीं है. बैंकों की शर्त है जब तक जेट को उसके मौजूदा शेयरहोल्डर्स यानी मालिकों से और पैसा नहीं मिलेगा, तब तक वे कंपनी को और कर्ज नहीं देंगे. जेट में जितना पैसा एतिहाद लगाएगी, भारतीय बैंक कंपनी को उससे दोगुना कर्ज देने को तैयार हैं. जेट दिसंबर, 2018 में लोन की किस्त नहीं दे पाई थी. पिछले साल वो एंप्लॉयीज को लगातार देरी से सैलरी देती रही. उसके कई हवाई जहाज जमीन पर खड़े हैं. उसने इस संकट से उबरने के लिए छंटनी की है और फ्लाइट्स की संख्या घटाई है. मगर इन सबसे जेट का संकट सुलझता नजर नहीं आ रहा है.


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