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'असली NCP' शरद पवार की या अजित पवार की? आगे का खेल दिमाग और घुमा देगा

एक आम समझ है कि जिस गुट के पास दो तिहाई विधायक होंगे, उन्हें पार्टी का अधिकार मिल जाएगा या सिंबल उनके पास चला जाएगा. ये पूरा सच नहीं है.

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Sharad Pawar AJit Pawar
बगावत के बाद दोनों गुट पार्टी के फैसले ले रहे हैं (फोटो- PTI)
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साकेत आनंद
4 जुलाई 2023 (Updated: 4 जुलाई 2023, 20:46 IST)
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नक्कालों से सावधान!

हमारी कोई शाखा नहीं है!!

यहां की दुकान फलां मोहल्ले में शिफ्ट हो गई है!!! 

अब तक ये वाक्य पार्टी दफ्तरों के बाहर नहीं देखे गए. लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा, ऐसा कहा नहीं जा सकता. क्योंकि हाल के दिनों में ये दूसरी बार हुआ है. पहले शिवसेना और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में बगावत के बाद बने दोनों गुट ‘असली’ NCP की तरह बर्ताव कर रहे हैं. शिंदे-फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के बाद अजित पवार ने पार्टी पर दावा ठोक दिया. दावे का आधार उतनी पार्टी है, जितनी वो अपने साथ ले जा पाए हैं. 8 सरकार में शामिल हुए और 40 के समर्थन की बात उड़ाई गई है, जिसकी पुष्टि का सबको इंतज़ार है. फिर भी अजित दादा का गुट फैसले ले रहा है. प्रफुल्ल पटेल ने सुनील तटकरे को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. अनिल भाईदास पाटिल को विधानसभा में चीफ व्हिप बना दिया.

उधर बची हुई पार्टी (और दादा के मुताबिक टूटकर अलग हुई पार्टी के भी) राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने हार नहीं मानी है. वो भी फैसले ले रहे हैं. उन्होंने बगावत करने वाले नेताओं को पार्टी से निकाल दिया. अजित के जाने से खाली हुई नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर जीतेंद्र आव्हाड को बैठाया गया है. आव्हाड पार्टी के मुख्य सचेतक माने चीफ व्हिप भी होंगे. सूबे में पार्टी के अध्यक्ष जयंत पाटिल थे, वो अपने पद पर बने हुए हैं.

दोनों गुटों की तरफ से हुए फैसलों के बाद सूबे में NCP के ही दो पार्टी अध्यक्ष और दो चीफ व्हिप हो गए हैं. पवार खेमे वाले अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कह दिया है कि अगर अजित खेमे के लोग पार्टी सिंबल का इस्तेमाल करते पाए गए तो कानूनी कार्रवाई कर देंगे. जवाब में दादा खेमे वाले प्रफुल्ल पटेल ने जयंत पाटील को पद ‘हटाने’ का ऐलान कर दिया. मज़े की बात ये है कि खुद शरद पवार 3 जुलाई के रोज़ प्रफुल्ल पटेल को NCP से निकालने की घोषणा कर चुके थे. 

इस कंफ्यूज़न के बीच सिर्फ एक चीज़ को लेकर क्लैरिटी थी कि शरद पवार राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. लेकिन उन्होंने भी अब कह दिया कि जब तक वो ज़िंदा हैं, वही तय करेंगे कि उनकी तस्वीर का इस्तेमाल कौन करे, कौन नहीं. जो उनकी विचारधारा छोड़ गए, वो तस्वीर का इस्तेमाल करने के हकदार नहीं. और ये सब होने के बाद भी विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर कह रहे हैं कि पार्टी में टूट हुई हो, ऐसा लेटर तो किसी खेमे से नहीं मिला! 

खैर, इस खिचड़ी को और चलाएंगे, तो खीर बन जाएगी. हम आते हैं इस सवाल पर कि टूट के बाद ये कैसे तय होता है कि असली पार्टी कौनसी है? पार्टी और सिंबल पर दावा कैसे तय होता है?

साइज़ डज़ नॉट मैटर

लोकतंत्र में संख्या का महत्व इसीलिए होता है, ताकि लोगों की पसंद-ना पसंद का फैसला किया जा सके. ऐसे में ये आम समझ है कि जिस गुट के पास दो तिहाई विधायक होंगे, उसे पार्टी का अधिकार मिल जाएगा या सिंबल उनके पास चला जाएगा. ये पूरा सच नहीं है. पार्टी के संविधान, स्पीकर के विवेक (सदन के भीतर पार्टी के मामले में) और चुनाव आयोग पर भी काफी कुछ निर्भर करता है. कोर्ट जाने का रास्ता तो खुला रहता ही है.

इसीलिए दोनों गुटों ने टूट के आकार पर स्पष्ट टिप्पणी नहीं की है. अजित पवार के साथ 8 विधायक महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुए थे. लेकिन उनके गुट की ओर से 40 विधायकों के समर्थन की बात कही गई. अब तो वो ज़्यादातर विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं. लेकिन किसी संख्या की पुष्टि ना तो अजित पवार ने की है ना ही किसी कागज पर ये समर्थन दिख रहा है. शरद पवार खेमे ने भी 8 लोगों के निष्कासन की बात की, लेकिन अब पार्टी में कितने विधायक बचे हैं, उसे लेकर कोई कागज़ वगैरह जारी नहीं किया. 

हमारे समाने दो लोगों के दावे हैं - 4 जुलाई को अजित पवार महाराष्ट्र मंत्रिमंडल की बैठक में भी शामिल हुए. इस बैठक के बाद अजित ने कहा कि वो और उनके साथी विधायक सरकार से NCP के तौर पर जुड़े हैं. लेकिन इसके तुरंत बाद शरद पवार ने कह दिया कि लोग ये तय करेंगे कि पार्टी किसकी है.

दो दावों के बाद दो लोगों द्वारा दिए संकेत हैं - 3 जुलाई को प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रफुल्ल पटेल ने कह दिया कि आखिर में चुनाव आयोग को फैसला लेना है. हम नहीं चाहते कि कोई आंतरिक लड़ाई हो या ये मुद्दा चुनाव आयोग तक जाए. हमें मिलकर काम करना चाहिए. हम चुनाव आयोग के पास नहीं जाना चाहते. 

दूसरा संकेत महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर राहुल नर्वेकर ने दिया है. इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा कि पार्टी में बंटवारे का लेटर नहीं मिला. वे ‘’संविधान के हिसाब से'' जल्द से जल्द फैसला करेंगे कि NCP सरकार का हिस्सा है, या विपक्ष में है. माने विधायकों की संख्या का वज़न है तो, लेकिन दूसरे कारकों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

पार्टी और सिंबल पर दावा कैसे मिलेगा?

चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिह्न देने का अधिकार है. हर राष्ट्रीय दल को पूरे देश और राज्य स्तर की पार्टी को पूरे राज्य में इस्तेमाल के लिए एक प्रतीक चिह्न दिया जाता है, जो उस पार्टी का चुनाव चिह्न बनता है.

चुनाव चिह्न आदेश के पैराग्राफ-15 में टूट वाली स्थिति का जिक्र किया गया है. चुनाव आयोग के मुताबिक, किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल में कोई गुट बगावत करता है और पार्टी पर दावा करता है तो आयोग के पास निर्णय लेने का अधिकार है कि पार्टी किस गुट के पास रहेगी. इसके लिए आयोग दोनों गुटों के दावों, मौजूद तथ्यों की पड़ताल करता है. आयोग जिस गुट के दावों से संतुष्ट होता है, उसके हक में फैसला सुनाता है. इसका अधिकार सिर्फ चुनाव आयोग के पास ही है.

चुनाव आयोग सबसे पहले किसी गुट के पास विधायकों की संख्या और संगठन में उसकी शक्ति को देखता है. इसके अलावा पार्टी के संविधान और पार्टी के पदों पर बैठे लोगों की सूची की जांच की जाती है. आयोग यह भी देखता है कि संगठन की टॉप बॉडी के कितने सदस्य बागी गुट का समर्थन करते हैं. इसके अलावा विधायकों और सांसदों का समर्थन भी देखा जाता है.

इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा कहते हैं, 

"पार्टी के पूरे स्ट्रक्चर को चेक किया जाता है. आयोग राज्य इकाई से लेकर जिला इकाई और मंडल इकाई तक बहुमत को जांचता है. सिर्फ बहुमत का दावा नहीं, उन्हें लिखकर भी देना पड़ेगा कि हम किस गुट के साथ हैं. गुट अपना दावा करते हैं, फिर चुनाव आयोग उसकी जांच करता है."

जांच के बाद चुनाव आयोग किसी एक गुट के पक्ष में फैसला सुनाता है. अगर यह तय नहीं हो पाता है कि किस गुट के पास बहुमत है तो आयोग पार्टी सिंबल को फ्रीज भी कर देता है. अगर तुरंत चुनाव होने वाला हो तो इसका समाधान भी अस्थायी तरीके से निकलता है. आयोग दोनों गुटों को अस्थायी चुनाव चिह्न और नाम दे देता है. अस्थायी नाम और चिह्न दोनों गुटों की तरफ से दिए गए सुझावों के बाद ही तय होता है.

पिछले साल शिवसेना के मामले में ऐसा हुआ था. जब उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट पार्टी पर अपनी तरफ से दावा करने लगे तो मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा था. अक्टूबर 2022 को चुनाव आयोग ने एक अंतरिम आदेश जारी किया. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे कैंप को पारंपरिक चुनाव चिह्न 'धनुष और बाण' का इस्तेमाल करने से रोक दिया था. आयोग ने कहा कि जब तक वे इस निर्णय पर नहीं पहुंच जाते हैं कि 'असली शिवसेना' कौन है, तब तक दोनों में से कोई समूह चुनावी गतिविधियों में इसका इस्तेमाल न करे. दोनों गुटों को अलग-अलग नाम और अलग चिह्न दिये गये थे.

हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाया था और कहा था कि उनके गुट को ही असली शिवसेना माना जाएगा. आयोग के फैसले के बाद पार्टी का नाम और चिह्न 'धनुष तीर' शिंदे गुट के पास चला गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि शिंदे गुट ने चुनाव आयोग के सामने खुद को साबित किया है.

ऐसे में ये सवाल भी उठता है, कि क्या हो अगर बाद में दोनों गुट फिर से एक हो जाएं? ऐसी स्थिति में वे फिर से चुनाव आयोग का रुख करेंगे और एक ही पार्टी के तौर पर आइंडेडिफाई होने की मांग कर सकते हैं. चुनाव आयोग के पास शक्ति है कि वो इस विलय को मान्यता दे. बाद में वो सिंबल और मूल पार्टी के नाम को दोबारा बहाल कर सकता है.

विधायकों की अयोग्यता कैसे तय होगी?

साल 1985 में संविधान में 52वां संशोधन कर दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी. इसमें ये प्रावधान किया गया कि यदि संसद और राज्य विधायिका का कोई सदस्य पार्टी बदलता है तो उसे सदन से बर्खास्त किया जाएगा. इसे ‘दल-बदल विरोधी कानून' के रूप में भी जाना जाता है.

इस अनुसूची के दूसरे पैराग्राफ में कहा गया है कि सदन का कोई भी सदस्य, चाहे वो किसी भी पार्टी का हो, यदि पार्टी बदलता है या पार्टी के निर्देश के विपरीत वोट करता है या फिर पार्टी की इजाजत के बिना सदन की कार्यवाही से गैरहाजिर रहता है और वोट नहीं करता है, तो ऐसे व्यक्ति की सदन से सदस्यता खत्म कर दी जाएगी.

सदस्यता खत्म करने का मतलब है कि वो व्यक्ति सांसद या विधायक नहीं रह जाएगा. ये कानून इसलिए ही लाया गया था ताकि मौका पाते ही एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से विधायकों या सांसदों को रोका जा सके. हालांकि इसी कानून में कहा गया है कि अगर विधायक या संसदीय दल के दो-तिहाई सदस्य ऐसा करें, तो उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.

महाराष्ट्र विधानसभा में NCP के 53 विधायक हैं. अगर अजित पवार गुट के पास दो तिहाई यानी 36 विधायक होंगे, तो दसवीं अनुसूची के तहत ही उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. अब आप समझ गए होंगे कि टूट के बाद 40 विधायकों के अजित के साथ होने की खबर क्यों चली थी.

संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत सदन के स्पीकर को भी शक्तियां दी गई हैं, जिसके तहत वे निर्णय लेंगे. इसके पैराग्राफ 6(1) में कहा गया है कि सदन के सदस्य की बर्खास्तगी से जुड़ा यदि कोई सवाल उठता है तो उसे अध्यक्ष के सामने पेश किया जाना चाहिए और इसे लेकर उनका (अध्यक्ष या स्पीकर) निर्णय अंतिम यानी कि फाइनल होगा.

माने अब इस खेल में कई खिलाड़ियों की भूमिका तय है. चुनाव आयोग, स्पीकर, पार्टी काडर/नेता और कोर्ट ये तय करेंगे कि असली NCP कौन है. रही बात लोगों की, तो उन्हें चुनाव (या उपचुनाव) आने तक का इंतज़ार करना होगा. फिलहाल वो दर्शक दीर्घा में बैठकर इस खेल का आनंद ले सकते हैं. या माथा पीट सकते हैं.

वीडियो: शरद पवार कुछ ऐसा करने वाले हैं जिससे बाजी ही पलट जाएगी? या अजित पवार को बचा लेगी BJP?

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