The Lallantop
X
Advertisement

दिल्ली में खतरनाक स्तर पर पहुंचा प्रदूषण, सांस लेने के लिए भी सुरक्षित नहीं है हवा, कौन है इस स्थिति का जिम्मेदार?

इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए?

Advertisement
air pollution
सांकेतिक फोटो (इंडिया टुडे)
pic
अभिनव पाण्डेय
8 नवंबर 2022 (Updated: 8 नवंबर 2022, 23:42 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

गणित मज़बूत हो, तो एक सवाल का जवाब बताइए. 16 लाख को 365 से भाग देने पर क्या मिलता है. परेशान मत होइए. हम बता देते हैं. 16 लाख को 365 से भाग देने पर मिलता है मौत का आंकड़ा - 4 हज़ार 383. इन दिनों प्रदूषण पर खूब बात हो रही है. हम भी जानते हैं, और आप भी जानते हैं कि जैसे ही दिल्ली के आसमान से धुआं छंटेगा, प्रदूषण पर बात बंद हो जाएगी. और बात बंद हो जाएगी, तो ये तथ्य भी हवा हो जाएगा कि साल दर साल वायु प्रदूषण कितने लोगों की जान ले लेता है. याद कीजिए कोरोना काल. जब रोज़ कभी हज़ार, तो कभी दो हज़ार तो कभी तीन हज़ार लोगों के मारे जाने की खबर आती थी. और हम सिहर जाते थे. लगता था कि क्या स्थिति वाकई इतनी भयावह है, कि लोग तिल-तिल कर मर रहे हैं?

कोरोना की ही तरह अगर भारत में वायु प्रदूषण के चलते होने वाली बीमारियों से मारे गए लोगों का काउंटर चलता, तो आप जानते कि रोज़ कम से कम 4 हज़ार 383 लोगों का दम घुंट जा रहा है. ये वैसा ही है कि रोज़ 18 प्लेन क्रैश हो रहे हों. मई 2022 में लैंसेट कमीशन ऑन पलूशन एंड हेल्थ ने एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसके मुताबिक साल 2019 में भारत में प्रदूषण के चलते तकरीबन 24 लाख लोगों की जान गई थी. इनमें से 16 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते मारे गए थे. दुनिया में किसी और देश में प्रदूषण का ऐसा खौफनाक असर नहीं देखा गया. नंबर 1 और 2 पर प्रदूषण करने वाले अमेरिका और चीन में भी नहीं.

एक साल आगे आइए. साल 2020. इस साल ग्रीनपीस ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा कि भारत में साल 2020 में 1 लाख 20 हज़ार लोगों की जान वायु प्रदूषण के चलते गई. संभव है कि लैंसेट और ग्रीनपीस ने अलग अलग तरीकों से रिपोर्ट तैयार की हो. लेकिन अगर 1 लाख 20 हज़ार के आंकड़े को ही सही मान लें, तब भी हम रोज़ाना 328 लोगों के मारे जाने की बात कर रहे हैं. माने रोज़ दो फ्लाइट्स क्रैश होना.

साल 2020 कोरोना का साल था. तो इसका फर्क भी पड़ा होगा. सो गाड़ी रिवर्स गियर में डालकर 2017 पर आते हैं. इस साल के लिए ग्रीनपीस ने एक रिपोर्ट छापी एयरपॉकलिप्स नाम से. इसमें बताया गया कि भारत में हर साल तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इन तीन रिपोर्ट्स से आपको अंदाज़ा लग गया होगा कि प्रदूषण सिर्फ ठंड के मौसम की नहीं, हर मौसम की समस्या है. इससे पहले कि आप विदेशी NGO द्वारा साज़िश वाले एंगल पर जाएं, ये जान लीजिए कि 2017 वाली ग्रीनपीस की रिपोर्ट राज्यों के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से निकाली गई जानकारी पर ही आधारित थी.और इसके लिए RTI एक्ट का इस्तेमाल हुआ था.

तो प्रदूषण कितना खतरनाक है, ये तो हमने स्थापित कर ही दिया. किस किस के लिए खतरनाक है, अब वहां आते हैं. भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करता है केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड CPCB. इन दिनों बोर्ड की वेबसाइट को धड़ाधड़ विज़िटर मिल रहे हैं. क्योंकि इसी पर लाइव एयर क्वालिटी इंडेक्स, माने AQI देखने को मिलता है. ये वो आंकड़ा है, जो बताता है कि आपकी हवा में कितना ज़हर है. गूगल आपके शहर के लिए जो AQI बताता है, वो CPCB की वेबसाइट से ही आता है. बोर्ड रोज़ाना एक बुलेटिन भी जारी करता है, जिसमें बीते 24 घंटों के लिए भारत के प्रमुख शहरों का AQI बताया जाता है. दी लल्लनटॉप ने 8 नवंबर को जारी बुलेटिन का अध्ययन किया है. लेकिन आंकड़े बताने से पहले आप ये जान लें कि इनका मतलब क्या है. हम पहले भी बता चुके हैं, ये बस एक छोटा सा रीकैप है.

>0-50 -  गुड.  इतने AQI पर आपके स्वास्थ्य पर न्यूनतम असर पड़ेगा.
>51-100 - माने सैटिसफैक्ट्री. जिन्हें प्रदूषण से जल्द तकलीफ हो जाती है, उन्हें इतने AQI पर सांस लेने में कुछ तकलीफ हो सकती है. 
>101-200 -  मॉडरेट. फेफड़े या दिल के मरीज़ या जिन्हें अस्थमा हो, उन्हें इतने AQI पर सांस लेने में तकलीफ होती है.
>201-300 - पुअर. ज़्यादा देर ऐसी हवा में रहने पर हर किसी को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. माने स्वस्थ लोगों के लिए भी इस हवा में रहना मुश्किल है.
> 301-400 - वेरी पुअर. इस हवा में लंबे समय तक रहने पर सांस की बीमारी हो जाती है.
> 401-500 - सिवियर. इस हवा में स्वस्थ लोगों पर असर होता है. जिन्हें पहले से सांस या दिल की बीमारी है, उनपर गंभीर असर होता है.

अब आप शहरों के नाम सुनते जाइए. और अंदाज़ा लगाते जाइए कि यहां के लोगों का हाल क्या होगा. इतना तो आप जानते ही हैं कि लिस्ट में दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों का नाम होगा. हम चाहते हैं कि आप बाकी शहरों के आंकड़े ज़रा ज़्यादा ध्यान से देखिए-

दिल्ली - 372
कटिहार (बिहार) - 372
जींद  (हरियाणा) - 368
बेगूसराय (बिहार) - 355
ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) - 348
लुधियाना (पंजाब) - 351
मोतिहारी (बिहार) - 324
बल्लभगढ़ (हरियाणा) - 311
नवी मुंबई (महाराष्ट्र) - 305
अंबाला (हरियाणा) - 283 
आसनसोल (पश्चिम बंगाल) - 222
भोपाल (मध्यप्रदेश) - 250
बागपत (उत्तर प्रदेश) - 290

आंकड़े 8 नवंबर 2022 की दोपहर 4 बजे तक के हैं. और ये बीते 24 घंटों का औसत ही बताते हैं. इसका मतलब प्रदूषण का स्तर इससे ज़्यादा भी रहा था. मिसाल के लिए आज ही दिल्ली के कई केंद्रों पर AQI 400 के पार रहा. लेकिन दोपहर 4 बजे तक औसत 372 ही था. यहां जितने शहरों के नाम आपने सुने, वहां ऐसी हवा बह रही है कि स्वस्थ लोगों को बीमार कर दे. आंकड़े साफ बता रहे हैं कि ये टीवी पर भले दिल्ली का विज़ुअल चले, लेकिन ये गंगा के पूरे कछार की समस्या है माने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल तक का इलाका. इन सूबों में आम आदमी पार्टी, भाजपा, जदयू-राजद महागठबंधन और तृणमूल कांग्रेस की सरकार है. माने हर रंग का झंडा नज़र आता है. याद कीजिए कौनसे दल ने ईमानदारी से प्रदूषण को लेकर सख्त कदम उठाया.

तमाम सियासी दल मुफ्त के वादे करते हैं, कोई राशन देता है, कोई बिजली-पानी. मगर साफ हवा कीमत मुफ्त के वादों में नहीं लगाई जा सकती. उदाहरण समेत और तस्वीर क्लीयर करते हैं.

दिल्ली के लोग मुफ्त में हर महीने 200 यूनिट तक बिजली पाते हैं.
दिल्ली के लोग मुफ्त में 20 हजार लीटर पानी पाते हैं.
देश की राजधानी के वही नागरिक मुफ्त में पहले से मिलती आ रही हवा के लिए एयर प्यूरिफायर खरीदने को मजबूर हैं. क्योंकि हवा शुद्ध नहीं है. अब इसका नुकसान क्या है उसे समझिए. आर्थिक सहयोग और विकास परिषद यानी OECD के मुताबिक, 

1. कोरोना काल में स्कूल बंद होने से बच्चों की जीवन भर की आय में 5.5 फीसदी तक की कमी हो सकती है. यानी अभी प्रदूषण की वजह से स्कूल जब बंद करने पड़ते हैं तो इसका असर बच्चों की आजकी शिक्षा और भविष्य की कमाई तक पर पड़ता है. यानी आपके बच्चों का आर्थिक नुकसान.

2- दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत खतरनाक लेवल पर है. जिसके बाद BS-6 से नीचे की सभी डीजल कार समेत सभी डीजल वाहनों के दिल्ली में चलने पर फिलहाल रोक लगी है तो बहुत से लोगों को या तो सार्वजनिक परिवहन का सहारा लेना होगा या फिर समय ज्याद उसमें लगने पर प्राइवेट टैक्सी लेनी होगी, जिसमें ज्यादा पैसा लगेगा. नुकसान यहां भी हुआ. 

3- प्रदूषण की वजह से अगर इस वक्त मामूली सा इंफेक्शन भी होता है तो डॉक्टर की फीस, जांच, और पांच दिन की दवा का आधार लें तो औसत 2000 रुपए का खर्च होता है. नुकसान यहां भी हुआ.  

4- कई लोगों को अस्थमा या ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां हैं. वो लोग घर में एयर प्यूरीफायर लगवाते हैं. घर में एयर प्यूरीफायर लगवाना भी एक बड़ा खर्च है, जो 7 से 35 हजार रुपये के बीच बैठता है. जिसका हिसाब कोई दल कोई नेता जनता को कभी नहीं बताता.

5- लोकल सर्किल के एक सर्वे में 27 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रदूषण से बचने के लिए वो दिल्ली से बाहर कहीं दूर जाएंगे. यानी दिल्ली के प्रदूषण से बचने के लिए दूसरे शहर में स्वच्छ हवा लेने का भी अपना अलग से खर्चा. 

अगर इन सबको जोड़ दें तो चुनावी मुफ्त वाले वादों के बदले होने वाले फायदे के मुकाबले जनता को प्रदूषित हवा की वजह से कई गुना ज्यादा खर्चा उठाना पड़ता है. कहने का मतलब ये कि जनता को मुफ्त में सुविधा मुहैया करना सरकारों का काम है, वेलफेयर स्टेट को इससे परिभाषित भी किया जाता है. लेकिन अगर हमारी सरकारें शुद्ध हवा दिला दें तो मुफ्त के मुनाफों से कई गुना ज्यादा उनका बेफिजूल में होने वाला खर्च बच सकता है. 

वीडियो: वो कौन सी ‘बीमारी’, जो हर साल 14 लाख लोगों की जान ले रही है?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement