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तालिबान लड़ाकों के पीछे दिख रही पेंटिंग का भारत से क्या कनेक्शन है?

ये तस्वीर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के महल में लगी है.

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तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया. राष्ट्रपति के महल में तालिबान लड़ाके ठाठ से बैठे नजर आए. उनके पीछे एक पेंटिंग पर सोशल मीडिया में चर्चा सुनाई दी. (फोटो-एपी)
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अमित
16 अगस्त 2021 (Updated: 16 अगस्त 2021, 13:38 IST)
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अफगानिस्तान और वहां रहने वाले लोगों के लिए वक्त का पहिया मानों 20 साल पीछे घूम गया है. अफगानिस्तान के तमाम प्रांतों पर कब्जा करते हुए तालिबान काबुल (Kabul) पर भी कब्जा जमा चुका है. तालिबान लड़ाके अफगानिस्तान (Afghanistan) के राष्ट्रपति के महल में ठाठ से बैठे हैं. इस सबके बीच एक तस्वीर काफी वायरल है. इसमें अफगान सरदार कुर्सी पर बैठा है और लड़ाके आसपास हथियार लेकर खड़े हैं. हालांकि तस्वीर के वायरल होने की वजह ये नहीं है. असल में इस तस्वीर के पीछे एक पेंटिंग नजर आ रही है, जो इस लिहाज से खास है कि हमारे देश के इतिहास का एक पन्ना इससे खुलता है. जानते हैं इस मशहूर पेंटिंग, इसमें दिख रहे किरदार और भारत से इसके कनेक्शन के बारे में. कहां है ये पेंटिंग? अफगानिस्तान की राजधानी काबुल. यहां के पॉश इलाके में बना है अफगान राष्ट्रपति का महल, जिसका नाम है अर्ग (Arg). तकरीबन 34 हक्टेयर में फैला ये महल 1880 में अपने वर्तमान स्वरूप में तैयार हुआ था. इससे पहले भी यहां पर महल था, लेकिन युद्ध में तबाह हो गया था.
1880 के बाद से ये अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष का निवास रहा है. तालिबान लड़ाकों के इस महल में दाखिल होने के बाद दुनिया के लिए ये बात साफ हो गई कि अब कुछ बाकी नहीं रहा. तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर काबिज़ हो चुका है. और फिर वो तस्वीर आई जिसका जिक्र हम कर चुके हैं.
तस्वीर में सफेद कपड़े पहने दरवेश सा एक शख्स किसी शाही व्यक्ति के सिर पर हाथ रखता नजर आ रहा है. ये शख्स है अफगानिस्तान का पहला शासक अहमद शाह दुर्रानी, जिसे भारत में अहमद शाह अब्दाली के नाम से ज्यादा जाना जाता है.
अहमद शाह दुर्रानी वो शासक था, जिसकी सल्तनत में अफगानिस्तान की सीमाएं ईरान से लेकर हिंदुस्तान तक फैली थीं. अहमद शाह को आधुनिक अफगानिस्तान का पहला शासक कहा जाता है.
Afghanistan Painting Arg Palace
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के महल में लगी ये तस्वीर अफगानिस्तान के उस शासक की कहानी बता रही है जिसने इस देश की स्थापना की.(फोटो-एपी)
हिंदुस्तान से क्या कनेक्शन है? 1722 में अहमद शाह हेरात के गवर्नर के घर पैदा हुआ. दो भाइयों में छोटा. हालांकि जब अहमद शाह पैदा हुआ, तब उसके पिता जेल में थे. मामला कबीलों की रंजिश का था. अभी अहमद शाह चंद बरसों का ही था कि उसके पिता की मौत हो गई. इसके बाद उसे मां ने पाला. इसके बाद अहमद शाह का क्या हुआ, इसकी जानकारी इतिहास में कम ही मिलती है.
इतिहास में अहमद शाह दुर्रानी अपने भाई के साथ दोबारा प्रकट होता है 1732 में. वो भी किसी बहादुरी की कहानी के लिए नहीं. असल में उसके कबीले से दुश्मनी रखने वाले कंधार के शासक मीर हुसैन ने दोनों भाइयों को पकड़ कर कैद में डाल दिया.
फिर 1738 में एक ऐसी घटना घटी जिससे अहमद शाह दुर्रानी की किस्मत बदलने वाली थी. ईरान के क्रूर शासक नादिर शाह ने मीर हुसैन को पराजित कर कंधार पर कब्जा कर लिया. अहमद शाह दुर्रानी को भाई समेत जेल से छोड़ा गया और नादिर शाह से उसकी मुलाकात हुई. वो अहमद शाह की अफगान राजनीति की जानकारी और आध्यात्मिक समझ से प्रभावित हुआ और उसे अपने साथ आने का न्यौता दे दिया. 1740 में अहमद शाह दुर्रानी अपने भाई और पूरे कबीले के साथ नादिर शाह की सेना में शामिल हो गया.
बस यहीं से अहमद शाह दुर्रानी के भारत कनेक्शन की शुरुआत होती है. अफगान शासक नादिर शाह ने लूटपाट की नीयत से हिंदुस्तान पर हमला करना शुरू किया. जब वो भारत का मशहूर हीरा कोहिनूर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया तो उसकी सेना में अहमद शाह दुर्रानी भी शामिल था.
अहमद शाह को भारत की धन-दौलत का अंदाज़ा हो चुका था. वहीं, नादिर शाह शक करने वाला बादशाह था. वो अपने ही किसी न किसी साथी पर शंका करके उसे मारने का हुक्म दे देता था. लेकिन एक रात किसी ने नादिर शाह का ही कत्ल कर दिया. उसकी पत्नी ने करीबी अहमद शाह को इसकी जानकारी दी.
इस बीच नादिर शाह के परिवार में सत्ता पर काबिज होने की सुगबुगाहट शुरू हो गई. लेकिन टेंट में उसकी लाश के पास खड़ा अहमद शाह कुछ और ही सोच रहा था. उसने नादिर शाहर के हाथ से सुल्तान के चिह्न वाली अंगूठी निकाली और खुद पहन ली. कोहिनूर हीरे को अपने कब्जे में लिया और खुद को शासक घोषित कर दिया.
लेकिन सब इस बात पर राजी नहीं थे. ऐसे में नादिर शाह की सल्तनत के कई टुकड़े हो गए. जिस टुकड़े पर अहमद शाह काबिज हुआ वो वर्तमान अफगानिस्तान कहलाया. अहमद शाह की ताजपोशी अफगानिस्तान कई कबीलों को मिल कर बनाई गई सल्तनत थी. ऐसे में उनकी रज़ामंदी के बिना किसी को भी शासक मानना मुमकिन नहीं था. ऐसे में कबीलों की सभा 'लोया जिरगा' साथ बैठी. आखिर में अहमद शाह अब्दाली के नाम पर सहमति बनी. 1747 में अहमद शाह दुर्रानी को अफगान कबीलों ने राजा घोषित कर दिया. कंधार की मस्जिद में राज्याभिषेक का आयोजन हुआ. बहुत साधारण. एक सूफी दरवेश ने 25 साल के अहमद शाह के सिर पर अंजुली भर गेहूं डालने की रस्म अदा की. इसका मतलब था कि अल्लाह ने देश चलाने के लिए उसे चुन लिया है. यही दृश्य उस पेंटिंग में दिखाई दे रहा है जो महल में बैठे तालिबान लड़ाकों के पीछे नजर आ रही है.
Abdali Coronation Wiki
अब्दाली की ताजपोशी की एक तस्वीर. (तस्वीर: विकिमीडिया)

दुर्रानी ने अपना नाम रखा दुर्रे-ए-दुर्रानी मतलब मोतियों का मोती. ये टाइटल उसे नादिर शाह ने दिया था. इसके साथ उसने एक काम और किया. अपने पूरे कबीले का नाम बदल दिया. पुराने नाम अब्दाली की जगह उसने इसे दुर्रानी में तब्दील कर दिया.
'अब्दाली' से कुछ याद आया आपको? ये अहमद शाह दुर्रानी वही अहमद शाह अब्दाली है, जिसने भारत पर बार-बार हमला किया और लूटपाट मचाई. तब तक लूटता रहा जब तक अकूत दौलत अफगानिस्तान नहीं ले गया. भारत से उसकी लूट का सिलसिला ताजपोशी के अगले साल ही शुरू हो गया. अब्दाली की हिंदुस्तान पर चढ़ाई अब्दाली पहली बार 1748 की जनवरी में एक शासक के तौर पर हिंदुस्तान आया था. लेकिन वहां अहमद शाह बहादुर और मीर मन्नू की सेना ने मानूपुर की लड़ाई में उसे हरा दिया था. दो साल बाद 1750 में वो फिर भारत आया. इस बार पंजाब पर कब्जा करने में कामयाब रहा. अब्दाली ने वहां लूटपाट की और लौट गया. अगले साल यानी दिसंबर 1751 में अब्दाली फिर लौटा और सरहिंद और कश्मीर पर कब्जा जमाया. फिर चौथी बार 1757 में वो दिल्ली तक पहुंचा और उसे लूट कर गया. अपने बेटे तैमूर को लाहौर में छोड़ गया, जहान खान के साथ.
और फिर आया 1761. अहमद शाह अब्दाली ने जनवरी में हिंदुस्तान में तारीखी जंग लड़ी. हरियाणा के पानीपत के मैदान में लड़ा गया ये युद्ध भारत के इतिहास का निर्णायक मोड़ साबित हुआ. इतिहास में इसे पानीपत की तीसरी लड़ाई के तौर पर जाना जाता है. ये एक सेनापति और बादशाह के तौर पर अहमद शाह अब्दाली की ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग थी.
ये वो दौर था जब एक तरफ़ मराठा और दूसरी तरफ़ अब्दाली, दोनों ही अपनी बादशाहत का दायरा बढ़ाने में जुटे थे. दोनों ज़्यादा से ज़्यादा लोगों और इलाक़े को अपनी सल्तनत का हिस्सा बनाना चाहते थे. मराठा साम्राज्य लगातार जंगें जीतकर बेहद महत्वाकांक्षी हो रहा था. मराठा क्षत्रपों ने अपने साम्राज्य का तेज़ी से विस्तार किया था. इससे अहमद शाह अब्दाली को अपनी सल्तनत के लिए ख़तरा महसूस हो रहा था. अब्दाली को लग रहा था कि मराठों की बढ़ती ताक़त उनके हिंदुस्तानी सूबों के साथ-साथ अफ़ग़ान प्रांतों के लिए भी ख़तरा बन रही है.
वहीं, इतिहासकार ये भी कहते हैं कि मराठों के हमलों से तंग भारत के दूसरे राज्यों के शासकों ने खुद अब्दाली को भारत आने का न्योता दिया था, क्योंकि मराठों को रोकने की ताकत सिर्फ उसके पास थी.
बहरहाल, पानीपत की जंग में अफ़ग़ान सेना की निर्णायक जीत हुई. लेकिन दोनों ही ख़ेमों के हज़ारों सैनिक और आम लोग जंग में मारे गए थे. अफ़ग़ानिस्तान के लिए ये जंग ऐतिहासिक रूप से इतनी महत्वपूर्ण साबित हुई कि आज भी इसके किस्से कंधार के इलाकों में सुनाए जाते हैं. इस युद्ध पर कहावतें बन गई हैं. कंधार में आज भी ये पश्तो ज़बान की एक कहावत के तौर पर मशहूर है. इसे किसी की ताक़त या उपलब्धियों को चुनौती देने या व्यंग्य करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पश्तूनों के बीच आज भी आम बोलचाल में ये कहा जाता है, "तुम तो ऐसे दावे कर रहे हो, जैसे तुमने मराठों को शिकस्त दे दी है."
भारतीय इतिहास में अहमद शाह अब्दाली का नाम एक क्रूर विदेशी हमलावर के तौर पर लिया जाता है. लेकिन अफगानिस्तान के इतिहास में अब्दाली के शासन को स्वर्णिम काल की तरह देखा जाता है. भारतीय इतिहासकार गेंदा सिंह ने लिखा है,
"अहमद शाह अब्दाली आज भी आम अफ़ग़ान लोगों के दिलों में ज़िंदा है. फिर चाहे वो नौजवान हो या बुज़ुर्ग. हर अफ़ग़ान इस महान विजेता की इबादत करता है. वो उसे एक सच्चा और सादादिल इंसान मानते हैं जो जन्मजात नेता था. जिसने पूरे अफ़ग़ानिस्तान को आज़ाद कर एकजुट किया और ख़ुदमुख़्तार मुल्क बनाया. इसीलिए आम अफ़ग़ान अब्दाली को अहमद शाह बाबा, अहमद शाह महान कहते हैं."
तालिबान लड़ाकों के पीछे दिख रही अहमद शाह अब्दाली की पेंटिंग इतिहास के एक लंबे सफर पर लेकर जाती है. वो बात अलग है कि अफगानिस्तान के इतिहास में बरसों से चल रही हलचल अब भी कायम है.

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