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जब हिटलर रबड़ के हथियारों से जंग हार गया

कैसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी जनरल जॉर्ज पैटन के एक नाटक ने हिटलर की हार सुनिश्चित कर दी थी?

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हिटलर को कतई अंदाजा नहीं था ऐसा भी हो जाएगा
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अभय शर्मा
13 नवंबर 2023 (Updated: 13 नवंबर 2023, 16:57 IST)
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26 सितम्बर 1918. उत्तर-पूर्व फ्रांस का चेप्पी इलाका. सुबह के करीब छह बजे का वक्त था. गहरा कोहरा. उजाला मानो अंधेरे को पीछे छोड़ने की जल्दी में हो. जल्दी किसी और को भी थी और ये था अमेरिकी सेना का 32 साल का एक मेजर. जो अपने कुछ सैनिकों और एक टैंक के साथ तेजी से उस इलाके को पार करना चाहता था. वो जर्मन सैनिकों की नजरों से बचने की कोशिश में था. जो प्रथम विश्व युद्ध में उसके दुश्मन थे. दस्ते से करीब आधा किमी आगे और आधा किमी पीछे एक-एक सैनिक चल रहा था, इससे आगे या पीछे दुश्मन के होने का पता जल्द लग जाता था.

अचानक दोनों ही सैनिक मेजर के पास दौड़ते हुए आए, हांफते हुए बोले- 'जर्मन सैनिकों ने घेर लिया.' चूंकि अब ये सब जर्मन सैनिकों की नज़र में आ गए थे, तो पीछे हटने का भी अंजाम वही था, जो आगे जाने का. मौत को सामने देख युवा मेजर के दिल की धड़कन बढ़ गई. अचानक वो सोच में पड़ गया, मानो उसे ये लगा कि उसके पूर्वज जो अमेरिकी क्रांति और गृहयुद्ध में शहीद हुए थे, उससे कह रहे हों, लड़ो और आखिरी सांस तक लड़ो. अब मेजर की कंपकंपी बंद हो चुकी थी. अपने सैनिकों की ओर देख कुछ बड़बड़ाते हुए बोला- 'पूर्वजों की जमात में शामिल होने का वक्त आ गया है.'

तकरीबन एक घंटे तक गोलीबारी हुई. फिर कहीं से एक गोली आई और मेजर के बाएं पैर की जांघ में जा धंसी. मेजर बेहोश हो गए. एक सैनिक ने किसी तरह अपने मेजर की जान बचाई. लेकिन, इस एक घटना ने उस 32 साल के मेजर के दिल से मौत का खौफ हमेशा के लिए निकाल दिया. खौफ भी ऐसा निकला कि 20 साल बाद हुए दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर सबसे ज्यादा इसी मेजर से डरता था. जो तब तक जनरल बन चुका था. इसका नाम था-  जॉर्ज एस पैटन (US Army General George s. patton biography).

तारीख में आज बात करेंगे 20वीं सदी के सबसे महान सेनापतियों में शुमार अमेरिकी जनरल जॉर्ज एस पैटन की. जानेंगे कि कैसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जॉर्ज पैटन के एक नाटक ने हिटलर की हार सुनिश्चित कर दी थी.

बात 1940 की है. दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. हिटलर की नाजी सेना ने यूरोप के कई देशों में कहर बरपाना शुरू कर दिया था. इसका पहला बड़ा शिकार था फ्रांस. जर्मनी ने फ्रांस पर 10 मई, 1940 को हमला किया. लड़ाई करीब छह हफ्ते चली और आखिरकार फ्रांस ने 14 जून, 1940 को एक भी गोली चलाए बिना हिटलर के आगे घुटने टेक दिए. इसके बाद हिटलर की सेना ने अन्य देशों में कोहराम मचाना शुरू किया. अब उसकी नजर थी ब्रिटेन पर. 7 सितंबर, 1940 से लंदन पर हिटलर के फाइटर प्लेन्स ने बमबारी शुरू कर दी.

फ्रांस पर कब्जे के बाद वहां पहुंचा एडोल्फ हिटलर

ये सब देख इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल दौड़े-दौड़े अमेरिका पहुंचे. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट से सामरिक सहायता की अपील की. पहले तो अमेरिका ने बाहर से मदद दी, फिर वो 8 सितंबर, 1941 को आधिकारिक तौर पर युद्ध में उतर गया.

इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध अमेरिकी जनरल डी आइजनजहावर की अगुवाई में लड़ा गया. उनके दो मेन कमांडर थे. और दोनों ही दुनियाभर में मशहूर थे. एक ब्रिटिश जनरल बर्नार्ड मोंटगोमरी और दूसरे थे अमेरिकी जनरल जार्ज पैटन. 1943 में दोनों की तैनाती फ्रांस के तटों पर की गई. जनरल मोंटगोमेरी को फ्रांस के उत्तरी तट यानी नॉर्मेंडी इलाके में भेजा गया, जबकि जार्ज पैटन दक्षिण में 'पा डी काले’ के आसपास मोर्चा संभालने पहुंचे. दोनों से कहा गया कि उन्हें जर्मन सेनाओं को फ्रांस से खदेड़ना है.

जब ये बात हिटलर को पता लगी

द्वितीय विश्व युद्ध में तब तक हिटलर यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुका था. और इस कब्जे को बरकरार रखने के लिए उसने सुरक्षा की पुख्ता तैयारी भी की थी. उसने फ्रांस से नार्वे तक तटीय इलाके में दीवार और किले के साथ एक सुरक्षा व्यवस्था बनाई थी. इसे अटलांटिक दीवार के नाम से जाना जाता था. इनके बूते वह लंबे अरसे से अमेरिका और इंग्लैंड के सहयोगी देश यानी अलाइड ताकतों को हमला करने से रोकता आ रहा था.

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हिटलर को जब जनरल मोंटगोमेरी और जार्ज पैटन की तैनाती की भनक लगी. तो उसने एक विशेष रणनीति बनाई. नवम्बर, 1943 में हिटलर ने अपने जनरलों को एक गोपनीय दस्तावेज सौंपा - ‘डायरेक्टिव 51.’ इसमें अलाइड ताक़तों की फौजों के फ्रांस पर आक्रमण को ध्वस्त करने की रणनीति थी. इसके बाद उसने अपने सबसे काबिल जनरलों कार्ल वोन रुन्स्देट और एर्विन रोम्मेल को फ्रांस के ‘पा डी काले’ तट पर तैनात कर दिया. जनरलों ने इस पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया. यहां एंटी टैंक माइंस बिछा दी गईं.

 ‘पा डी काले’ पर तैनात हिटलर की सेना
क्यों हिटलर ने ज्यादा ताकत दक्षिण में 'पा डी काले’ तट पर लगा दी?

हिटलर के ‘पा डी काले’ को छावनी बनाने के पीछे की पहली वजह तो जॉर्ज एस पैटन ही थे. जैसा कि हमने पहले बताया कि पैटन पहले विश्व युद्ध में ही काफी नाम कमा चुके थे. ऐसे में हिटलर को अगर किसी से खौफ़ था तो वो पैटन थे. दूसरा पैटन इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर जहां तैनात थे, वो जगह 'पा डी काले’ तट से सबसे कम दूरी पर थी.

इसके अलावा उस समय हिटलर के जासूसों ने उसे दो अलग-अलग रिपोर्ट्स भेजी थीं. पहली में साफ़ बताया गया था कि अमेरिका और उसकी अलाइड ताक़तें पांच से सात जून के बीच नॉर्मेंडी तट पर हमला बोलने जा रही हैं, न कि 'पा डी काले’ पर. दूसरी रिपोर्ट इसके उलट थी. उसमें कहा गया था कि कुछ दिन पहले इंग्लैंड के जनरल बर्नार्ड मोंटगोमरी को अफ्रीका में देखा गया है. वो फ्रांस के नॉर्मेंडी तट पर जून के आखिर तक लौटेंगे. और हमला इसके बाद ही हो सकता है.

जॉर्ज पैटन अपने सैनिकों के साथ

हिटलर के पास जॉर्ज पैटन की तैनाती वाली जगह के फोटो भी आए. जिसमें बड़ी संख्या में बड़े- बड़े टैंक दिख रहे थे, करीब दो दर्जन लड़ाकू विमान भी. ऐसा लग रहा था मानो जल्द ही जंग की तैयारी हो. ऐसे में हिटलर को लगा अब नॉर्मेंडी तट से हमला नहीं होगा, बल्कि हमला ‘पा डी काले’ तट से जनरल जॉर्ज पैटन करेंगे.

पांच जून 1944 की रात को हिटलर को एक और सूचना मिली, जिसे वो और निश्चिंत हो गया. ये जानकारी मौसम से जुडी थी जिसमें कहा गया था कि इंग्लिश चैनल में छह और सात जून को तूफ़ान आने की प्रबल संभावना है. नॉर्मेंडी तट इंग्लिश चैनल के नज़दीक ही था. अब हिटलर को बिलकुल साफ हो गया था कि लड़ाई ‘पा डी काले’ में ही होनी है. वो मन ही मन खुश हुआ. क्योंकि 'पा डी काले’ तट पर उसके दो सबसे बेहतरीन जनरल तैनात थे. तैयारी पुख्ता थी. हिटलर बेफिक्र हो गया और चादर तानकर सो गया.

फ्रांस के तटों पर तैनात हिटलर की आर्मी

अगले दिन यानी छह जून की सुबह जब वो उठा तो उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई. पता लगा कि भयंकर तूफ़ान के बीच ही अमेरिका और अलाइड फोर्सेस नॉर्मेंडी तट से फ्रांस में घुस गई हैं. सब तहस-नहस करके वो आगे बढ़ रही हैं. कुछ देर बाद ‘पा डी काले’ तट पर तैनात उसके जनरल कार्ल वोन रुन्स्देट और रोम्मेल ने उसे सन्देश भेजा. इसमें सेना को नॉर्मेंडी भेजने की इजाज़त मांगी गई थी. दोनों जनरलों को अभी भी लग रहा था कि वो जंग जीत सकते हैं.

बताते हैं कि हिटलर उन्हें नॉर्मेंडी तट पर पहुंचने का आदेश देने ही वाला था कि खबर आ गई कि ‘पा डी काले’ तट पर जॉर्ज पैटन ने हलचल तेज कर दी है और जल्द ही वहां से जर्मन सेना पर अटैक होगा. सुबह से शाम हो गई, लेकिन हिटलर कोई फैसला नहीं ले पाया. और इससे अलाइड ताक़तों ने पहले नॉर्मेंडी पर फ़तह पाई और फिर फ्रांस पर.

जॉर्ज पैटन ने कैसे रचा पूरा नाटक?

इस हमले के कुछ समय बाद इसके पीछे की पूरी कहानी सामने आई. पता लगा ये हिटलर को फंसाने का प्लान था और इसे रचा था जॉर्ज पैटन ने. कैसे?? आइए आपको बताते हैं. जैसा कि हमने पहले बताया कि जॉर्ज पैटन फ्रांस के 'पा डी काले’ इलाके के करीब स्थित ब्रिटेन के दक्षिणी तट पर मोर्चा संभाले हुए थे. यहां के ही टैंक और लड़ाकू विमानों के फोटो हिटलर तक पहुंचे थे, जिससे वो समझा कि यहीं से हमला होगा. लेकिन, जिन टैंको और विमानों के फोटो उस तक पहुंचे वो नकली और रबड़ के थे. इन्हें वहां हिटलर को गच्चा देने के लिए लाया गया था. लेकिन, हिटलर और उसके सेनापति उन्हें असली टैंक और विमान समझ बैठे.

नकली टैंक

इसके अलावा पैटन ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत अलाइड देशों के अफ़सरों की बातचीत जर्मन सैनिकों तक पहुंचवाई थी. जिनमें 'पा डी काले' इलाके पर हमले की रणनीति की बात होती थी. एक बहुत बड़ा खेल और भी खेला गया था. इंग्लैंड के जनरल बर्नार्ड मोंटगोमरी के अफ्रीका में होने की जानकारी भी लीक कराई गई. और इन सब जानकारियों के आधार पर ही हिटलर ने निश्चय कर लिया था कि हमला 'पा डी काले' तट पर ही होगा.

कुल मिलाकर इस हार के बाद से ही द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर का पतन शुरू हो गया था. इसलिए छह जून, 1944 को दुनिया ‘डी-डे’ (D-Day) के रूप में मनाती है.

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