अडानी पर फूटा हिंडनबर्ग जैसा बम, राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर बोला हमला
राहुल गांधी ने अडानी मामले में हुई SEBI जांच पर भी सवाल उठाए हैं.
दुनियाभर के खोजी पत्रकारों की एक संस्था है- OCCRP यानी ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट. OCCRP से जुड़े 24 गैर-लाभकारी खोजी पत्रकारिता केंद्र यूरोप, एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रिका में फैले हुए हैं. इसकी स्थापना साल 2007 में ड्रिव सुलिवन और पॉल राडू ने की गई थी. OCCRP के मुताबिक़, संगठन की फंडिग जॉर्ज सोरोस और रॉकफेलर ब्रदर्स फंड द्वारा की जाती है. साल 2007 में OCCRP की स्थापना के बाद से दुनिया भर में वित्तीय अनियमित्ताओं, संदिग्ध लेनलेन और टैक्स चोरी के मामलों में कई खोजी रिपोर्ट इस नेटवर्क ने प्रकाशित की है. संगठन का दावा है कि उनकी रपटों के जरिए दुनिया भर में 398 से अधिक जांचें हुई हैं, 10 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया गया है. संगठन के मुताबिक, उसकी खोजी पत्रकारिता के चलते अब तक 702 से अधिक अधिकारियों को इस्तीफा देना पड़ा या उन्हें उनके पदों से निलंबित किया गया है. नेटवर्क की रपटों के आधार पर 620 से अधिक मुक़दमें चलाए गए.
OCCRP के खुलासे की बात सामने आते ही एक नाम फिर खबरों की दुनिया में तैरने लगा जॉर्ज सोरोस. आपने पहले भी सुना होगा. तो आपको संक्षेप में बता देते हैं, कौन हैं जॉर्ज सोरोस?
अमेरिका में रहने वाले दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक. ब्लूमबर्ग के मुताबिक़, सोरोस की कुल संपत्ति 8.5 बिलियन डॉलर - यानी लगभग 70 हजार करोड़ रुपये है. 1973 में जॉर्ज ने हेज फंड की स्थापना की थी. और, 1992 में वो चर्चा में तब आए जब उन्होंने ब्रिटेन के करेंसी मार्केट में भूचाल ला दिया. इस प्रकरण को ब्लैक वेडनेसडे कहते हैं. बहुत विस्तार में नहीं बताएंगे. बस समझ लीजिए कि उन्होंने पाउंड को घुटने पर ला दिया था. उन्होंने बड़ें पैमाने पर पाउंड बेच दिए थे, जिसकी वजह से क़ीमतें नीचे आ गई थीं. अनुमान हैं कि उन्होंने 1 बिलियन डॉलर (माने 8 हजार करोड़ रुपये) का मुनाफ़ा कमाया. सोरोस की पर्सनल डिटेल्स, जैसे - उम्र, परिवार, जीवन हमारे लिए यहां ज़रूरी नहीं है. इसीलिए हम आ जाते हैं उनके दूसरे परिचय पर, जिसकी चलते वो विवादों के केंद्र में रहते हैं. एक तरफ़ तो सोरस एक खाटी व्यापारी हैं और दूसरी तरफ़ ओपन सोसायटी फाउंडेशन के संस्थापक. ये संस्था लोकतंत्र, पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाले समूहों और व्यक्तियों को अनुदान देता है. ऐसा संस्था की वेबसाइट पर लिखा है.
कोल्ड वॉर ख़त्म होने के बाद सोरोस ने चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, रूस और यूगोस्लाविया में इस फाउंडेशन की स्थापना की. इस शताब्दी की शुरुआत तक, ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन 70 से ज़्यादा देशों में सक्रिय हो चुकी है. सक्रिय राजनीति में भी शामिल रही है. और इसी तर्ज़ पर सोरोस की भी राजनीतिक बयानबाज़ी बढ़ी है. उन्होंने बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन और जो बाइडेन के राष्ट्रपति अभियान का समर्थन किया. और, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर भी इन्होंने बोला था और भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर इनके बयान की निंदा की थी. क्या कहा था? कहा था - "यह भारत की संघीय सरकार पर मोदी की पकड़ को काफी कमजोर कर देगा और बहुत जरूरी संस्थागत सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए दरवाजा खोल देगा. मुझे भारत में एक लोकतांत्रिक पुनरुद्धार की उम्मीद है."
सत्ता पक्ष के समर्थक दलील देते रहे हैं कि जॉर्ज सोरोस भारत को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं. अडानी समूह पर आई रिपोर्ट को भी इसी एंगल से डिफेंड करने की कोशश की जा रही है. खैर, पक्ष-विपक्ष की राजनीति को पीछे छोड़, अपन चलते हैं रिपोर्ट पर. ये रिपोर्ट बनी है OCCRP के उन डॉक्यूमेंट्स के आधार पर, जो उसने दो ब्रिटिश अखबारों फायनेंशियल टाइम्स और द गार्डियन के साथ साझा किये हैं. दोनों अखबारों ने भी इस पर विस्तृत रिपोर्ट की है.
इस रिपोर्ट में सबसे पहले नाम आता है दो व्यक्तियों का. UAE के नासिर अली शबान अहली और ताइवान के चांग चुंग लिंग का. फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक, दोनों व्यक्ति का संबंध बरमुडा की एक निवेश कंपनी Global Opportunities Fund से है. रिपोर्ट बताती है कि दोनों ने कंपनी के फंड से अडानी ग्रुप के शेयरों में बड़ा हिस्सा ले रखा है. आरोप है कि दोनों का संबंध गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी से है. दोनों के निवेश को विनोद अडानी के कर्मचारी ही देखते हैं. विनोद अडानी दुबई में रहते हैं. हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भी कहा गया था कि विनोद अडानी कई ऑफशोर शेल कंपनियों को मैनेज करते हैं. आरोप लगा था कि विनोद अडानी से जुड़ी कंपनियों ने अडानी ग्रुप की 10 कंपनियों के शेयर को मैनिपुलेट किया था. हालांकि अडानी समूह कहता रहा है कि कंपनी के रोजमर्रा के मामलों में विनोद अडानी की कोई भूमिका नहीं रही है. इससे पहले विनोद का नाम पनामा पेपर और पैंडोरा पेपर जैसे बड़े खुलासों में भी आया था.
अब इस नई रिपोर्ट में बड़ी बात क्या है, उस पर बात करते हैं. हिंडनबर्ग रिपोर्ट के दावों के बाद यह पहली बार हुआ है कि अडानी ग्रुप के स्टॉक मैनिपुलेशन के आरोपों में किसी व्यक्ति का नाम सामने आया है. आरोपों का सार एक पंक्ति में कहें, तो अडानी ग्रुप के शेयर्स में जिन्हें "आम निवेशक" बताया गया, वो असल में अडानी के "इनसाइडर" ही थे. माने उन्होंने अपना ही पैसा किसी और के नाम से लगवाया है. और, अगर ये आरोप सिद्ध होता है तो ये भारत के क़ानून का उल्लंघन है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन जांच एजेंसियां इन निवेशकों की पहचान नहीं कर पाई.
आपने जानकारों को सुना ही. अब थोड़ा हम भी समझाने की कोशिश करते हैं. दस्तावेज़ों के मुताबिक़, जनवरी 2017 में अहली और चुंग लिंग ने सीक्रेट तरीक़े से अडानी ग्रुप की तीन कंपनियों के 13 फ़ीसदी पब्लिक शेयर्स पर कंट्रोल कर लिया था. भारत में नियम है कि किसी भी कंपनी के 25 फ़ीसदी शेयर्स को "फ्री फ़्लोट" रखा जाना चाहिए. इसका मतलब है कि 25 फीसद शेयर्स स्टॉक एक्सचेंज पर आम निवेशकों के लिए उपलब्ध हैं. जबकि 75 फीसद शेयर प्रमोटरों के पास हो सकते हैं. माने वो लोग जिनकी कंपनी के साथ अपनी सीधी भागीदारी है. विनोद अडानी से इन दोनों के संबंध इसलिए मायने रखते हैं क्योंकि विनोद अडानी को हाल ही में समूह द्वारा एक प्रमोटर के रूप में स्वीकार किया गया है. अगर भारत का शेयर मार्केट रेगुलेटर, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) इन दो व्यक्तियों को विनोद अडानी का प्रॉक्सी मानती है तो इसका मतलब होगा कि अडानी ग्रुप ने बार-बार नियमों का उल्लंघन किया. रिपोर्ट ये भी बताती है कि अहली और चुंग लिंग ने अडानी ग्रुप के स्टॉक में साल 2013 में निवेश करना शुरू किया था. जब ग्रुप ने पब्लिक शेयरहोल्डिंग बढ़ाने के लिए अपनी हिस्सेदारी निजी निवेशकों को बेचा था.
OCCRP का दावा है कि ये जानकारियां पुलिस जांच, कॉरपोरेट रजिस्ट्री, बैंक रिकॉर्ड, स्टॉक मार्केट डेटा और आंतरिक ईमेल से जुटाई गई हैं. अडानी ग्रुप को लेकर ये रिपोर्ट साल 2012 से 2018 के बीच केंद्रित है. जब अडानी ग्रुप की संपत्ति दोगुनी-रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ी और ग्रुप ने एनर्जी, पोर्ट और माइनिंग जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व बढ़ाया.
रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2014 में अडानी ग्रुप के खिलाफ दो अलग-अलग जांच चल रहे थे. डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) ने सेबी को पत्र लिखा था. क्योंकि सेबी तब अडानी ग्रुप की कंपनियों की शेयर मार्केट में डील को लेकर जांच कर रही थी. DRI ने सबूतों के साथ सेबी को बताया था कि अडानी ग्रुप में निवेश के तौर पर शेयर मार्केट में आया पैसा हवाला से जुड़ा था. हालांकि तीन साल बाद DRI ने अडानी को साफ बताते हुए केस बंद कर दिया था.
दावा है कि अडानी के शेयरों में एक भारतीय फाइनेंशियल फर्म 360 वन ने भी इसी तरीके से निवेश किया. हालांकि इस फर्म के वकील ने भी अडानी ग्रुप के साथ किसी कनेक्शन से इनकार किया. जिन दो व्यक्तियों का नाम पहले आया था- शबान अहली और चुंग लिंग, उनके विनोद अडानी के साथ रिश्ते और पीछे जाते हैं. जुलाई 2009 में. DRI के कागजातों से पता चलता है कि अहली ने दुबई में एक कंपनी बनाई, जिसने बिजली के उपकरण बनाने वाली एक कंपनी के साथ एक समझौता किया. ये डील भारत में अडानी प्रोजेक्ट के लिए उपकरण भेजने के लिए हुई थी.
उसी समय अहली ने मॉरीशस में एक शेल कंपनी बनाई. अक्टूबर 2009 में जिसका मालिकाना उसने चुंग लिंग को ट्रांसफर कर दिया. शेल कंपनियां वे कम्पनियां होती हैं जो कागजों पर तो होती हैं लेकिन असल में नहीं होतीं. ये मनी लॉन्ड्रिंग का आसान जरिया होती हैं. इन्हें 'मुखौटा कम्पनी' या 'छद्म कम्पनी' भी कह सकते हैं. और जहां ये कंपनियां खुलती हैं, वो देश कहलाते हैं टैक्स हेवन. माने वो स्वर्ग, जहां टैक्स और नियमों का झंझट काफी कम होता है.
विनोद अडानी ने 2010 में दोनों कंपनियों को अपने हाथ में ले लिया. दुबई वाली कंपनी को इलेक्ट्रोजन इन्फ्रा और मॉरीशस कंपनी को इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा होल्डिंग्स नाम दे दिया. दावा किया है कि दुबई वाली इलेक्ट्रोजन इन्फ्रा ने 2011 से 2013 के बीच मॉरीशस वाली कंपनी को 7 हजार करोड़ से ज्यादा ट्रांसफर किए. तब इलेक्ट्रोजेन मॉरीशस ने विनोद अडानी की एक और कंपनी असेंट ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट को 827 करोड़ रुपये का उधार दिया. विनोद अडानी ने ही कर्ज देने वाले और लेने वाले दोनों डॉक्यूमेंट्स पर साइन किए थे. फिर, असेंट ट्रेड ने इस 827 करोड़ रुपये को भारतीय स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट किया. ये कैसे हुआ? बरमुडा की उसी निवेश कंपनी Global Opportunities Fund के जरिये.
कागज़ात के मुताबिक, शबान अहली और चुंग लिंग का नाम 2013 में फिर सामने आता है. तब SEBI ने 100 से ज्यादा कंपनियों पर उनके प्रमोटर होल्डिंग्स को लेकर कार्रवाई की थी. इसी दौरान, अडानी स्टॉक में बड़ा हिस्सा खरीदने को लेकर दो महत्वपूर्ण निवेशकों के नाम सामने आए थे. इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स (EIFF) और ईएम रिसर्जेंट फंड (EMRF). जब SEBI ने अगस्त 2013 में इन दो फंड के मालिकों के बारे में पता लगाने की कोशिश की तो '360 वन' ने बरमूडा की Global Opportunities Fund का नाम लिया था. इन दोनों ने सालों तक अडानी ग्रुप की चार कंपनियों- अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन, अडानी पावर और बाद में अडानी ट्रांसमिशन के शेयर खरीदे. रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि ऑफशोर कंपनियों से पैसा, गुप्त तरीके से पब्लिकली लिस्टेड कंपनियों (शेयर मार्केट में रजिस्टर्ड) के शेयर्स में फ्लो हो सकता है.
द गार्डियन अखबार की रिपोर्ट बताती है कि मई 2014 में इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स के पास अडानी ग्रुप की तीन कंपनियों के 1571 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर थे. जबकि ईएम रिसर्जेंट फंड ने अपने पूरे पोर्टफोलियो का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अडानी समूह की कंपनियों के शेयर ख़रीद रखे थे. जिनका कुल मूल्य क़रीब 578 करोड़ रुपये था. ऐसा भी लगता है कि दोनों फंड्स ने उस पैसे का इस्तेमाल किया जो चांग और नासिर के कंट्रोल वाली कंपनियों से आया था. एक और रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि चांग और नासिर की 4 ऑफशोर कंपनियों ने अडानी के शेयर्स में लगभग 21 सौ 50 करोड़ रुपये का निवेश किया. दस्तावेजों की माने तो यह निवेश अगले तीन सालों में बढ़ता हुआ दिखाई दिया. मार्च 2017 तक, चांग और नासिर की ऑफशोर कंपनियों ने अडानी ग्रुप के शेयर्स में 35 सौ 56 करोड़ का निवेश किया. ये उनके पोर्टफोलियो की पूरी सौ फीसदी रकम है.
विनोद अडानी की तरह इन दोनों ने भी शेल कंपनियों से Global Opportunities Fund के जरिये निवेश किया. इन कंपनियों के निवेश का सोर्स नहीं पता चल पाया. लेकिन Global Opportunities Fund में उनके अकाउंट्स की देखरेख विनोद अडानी की एक कंपनी एक्सेल इन्वेस्टमेंट एंड एडवाइजरी सर्विसेज कर रही थी.
अब इन आरोपों पर अडानी ग्रुप ने क्या जवाब दिया है, वो भी जान लीजिये. फायनेंशियल टाइम्स के सवालों पर अडानी ग्रुप के एक प्रवक्ता ने रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया. बताया कि शेयर मार्केट में उनकी लिस्टेड कंपनियां सभी कानूनों का पालन करती है. अडानी ग्रुप ने एक बयान भी जारी किया. नए आरोपों पर अडानी समूह ने कहा है कि नए सबूत और दावे कुछ भी नहीं हैं बल्कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए निराधार आरोपों का दोहराव है. ये भी लिखा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर उनका जवाब उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध है. बताने के लिए ये पर्याप्त है कि अडानी ग्रुप और उसके प्रमोटर्स के खिलाफ इन आरोपों में न तो कोई सच्चाई है और न ही कोई आधार है और हम इन सभी को स्पष्ट रूप से खारिज करते हैं.
इस रिपोर्ट के सामने आते ही राजनैतिक हलकों में चर्चा होने लगी. राहुल गांधी ने गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी की भूमिका पर सवाल उठाए. चूंकि अडानी पर ये ताज़ा आरोप सामने आए हैं, इसीलिए न्यूज़ के कलाकार इसे "हिंडनबर्ग-2.0" कह रहे हैं. रिपोर्ट का असर क्या होगा, ये तो समय ही बताएगा. अभी हम आपको एक बार हिंडनबर्ग-अडानी सागा की टाइमलाइन याद दिला देते हैं.
> 24 जनवरी, 2023. अमेरिका की इनवेस्टमेंट रिसर्च फ़र्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी की. टाइटल, 'कैसे दुनिया का तीसरा सबसे अमीर आदमी कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला कर रहा है?' अडानी समूह पर आरोप लगे कि समूह ने संदिग्ध तौर-तरीक़े अपनाए हैं. स्टॉक मैनिपुलेशन और बही-खातों में हेर-फेर की है. इसके अलावा, दो मुख्य बातें और थीं कि समूह गले तक क़र्ज़ में डूबा है और समूह के शेयरों का भाव, वास्तविक क़ीमत से कहीं ज़्यादा है. यहां एक बात रेखांकित की जाएगी. कि हिंडनबर्ग एक शॉर्ट सेलर है. सादी भाषा में, बाज़ार का एक ऐसा खिलाड़ी, जिसे किसी कंपनी के शेयर गिरने से फायदा हो. माने अडानी का नुकसान, हिंडनबर्ग का फायदा. लेकिन ये बात किसी से छिपी नहीं है. हिंडनबर्ग ने जो रिपोर्ट छापी थी, उसी में लिख दिया था कि उसने अडानी समूह में एक शॉर्ट पोज़ीशन ली है.
> रिपोर्ट जारी होने के बाद ग्रुप की सभी नौ कंपनियों के शेयर्स में भारी गिरावट आई. अगले ही दिन कंपनी को बाज़ार मूल्य में क़रीब एक लाख करोड़ रुपयों का नुक़सान हो गया. अडानी ग्रुप ने बयान जारी किया कि वो हिंडनबर्ग पर उनकी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट के लिए मुक़दमा करने वाले हैं. जवाब में, हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि वो अपनी रिपोर्ट पर क़ायम हैं.
> रिपोर्ट आने से पहले ही अडानी ग्रुप ने एलान किया हुआ था कि वो 20 हज़ार करोड़ रुपये FPO के ज़रिए जुटाने जा रहे हैं. लेकिन रिपोर्ट के बाद, उन्होंने मार्केट के नाज़ुक हालात का हवाला देते हुए FPO कैंसल कर दिया.
> फ़रवरी की शुरुआत तक तो गौतम अडानी, दुनिया के अमीरों की लिस्ट में दूसरे नंबर से गिरकर 21 पर आ गए.
> फ़रवरी के आख़िरी तक समूह ने अपनी स्थिति संभालने के लिए अपनी स्ट्रैटजी बदली. मुंद्रा पेट्रोकेम प्रोजेक्ट्स, डीबी पावर के अधिग्रहण और अन्य प्रोजेक्ट्स से हाथ खींच लिया.
> मार्च में कंपनी में कुछ निवेश आया. हालात कुछ सुधरे. लेकिन तब तक सुप्रीम कोर्ट में कई PIL दायर की जा चुकी थीं. कोर्ट ने सभी PILs को मिला दिया और पिक्चर में एंट्री हुई मार्केट नियामक SEBI की. और ये जांचने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए एम सप्रे की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई, कि क्या सौदे में कोई नियामकी विफलता हुई थी? इस समिति में ICICI बैंक के पूर्व-CEO केवी कामथ, SBI के पूर्व अध्यक्ष ओपी भट्ट, इंफोसिस के अध्यक्ष नंदन नीलेकणि, पूर्व जस्टिस जेपी देवधर और वकील सोमशेखर सुंदरेसन भी शामिल थे.
> मैटर को "कॉम्प्लेक्स" बताते हुए SEBI ने अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए 6 महीने का समय और मांगा. 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने SEBI से कहा कि वो अपनी जांच रिपोर्ट 14 अगस्त तक जमा करे.
> दो दिन बाद - 19 मई को - सप्रे समिति ने अडानी समूह को क्लीन चिट दे दी. अपनी 173 पन्नों की रिपोर्ट में बताया कि उन्हें विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों (FPI) के स्वामित्व पर "संदेह" है, लेकिन साफ़ नहीं है कि उल्लंघन कैसे हुआ.
> इधर कंपनी में और निवेश आने लगा. इनवेस्टमेंट कंपनी GQC Partners ने अडानी ग्रुप में अपना निवेश उन्होंने समूह में अपने निवेश 28 हज़ार करोड़ रुपयों तक कर लिया.
> फिर आया 14 अगस्त. वो तारीख़, जब मार्केट नियामक SEBI को अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी. 14 को SEBI ने आला अदालत से फिर 15 दिन का एक्सटेंशन मांग लिया. इससे पहले, SEBI ने अदालत को बताया था कि FPI की संरचना अपारदर्शी है. मानदंड बहुत सख़्त हैं. ऊपर से उनके सामने ये भी चुनौती है कि FPI को नियंत्रित करने वाली संस्थाएं अधिकार क्षेत्र में हैं. इससे उन संस्थाओं के बारे में अस्पष्टता रह जाती है जिनका FPI में हित है, लेकिन सामने से कोई नियंत्रण नहीं.
> ख़बरों के मुताबिक़, बीते 25 अगस्त को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी स्टेटस रिपोर्ट सौंपी है. जांच रिपोर्ट नहीं, स्टेटस रिपोर्ट -- जो जांच का स्टेटस बताती है. सेबी का कहना है कि वो कुछ डेटा का इंतज़ार कर रही हैं, जिससे समूह से जुड़े विदेशी निवेशकों के असली लाभार्थियों की पहचान हो सके.
> इसी मामले में 29 अगस्त को इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट छपी. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा है कि एक दर्जन कंपनियों ने अडानी ग्रुप के शेयर्स की शॉर्ट सेलिंग से 'सबसे ज्यादा मुनाफा' कूटा है. इन 12 कंपनियों में से 3 भारत की हैं. इन तीन में से एक विदेशी बैंक की भारतीय ब्रांच है. जबकि 4 कंपनियां मॉरीशस की हैं और एक-एक फ्रांस, हांगकांग, केमैन द्वीप, आयरलैंड और लंदन की कंपनियां हैं. इनमें से किसी भी कंपनी ने इनकम टैक्स ऑफिसर्स को अपने मालिकाना हक़ के बारे में जानकारी नहीं दी है.
चंद महीनों के भीतर ये दूसरी बार है जब अडानी समूह के वित्तीय प्रबंधन और शेयर मार्केट में उनके बिज़नेस के तौर तरीकों पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं. चूंकि समूह भारत में व्यापार करता है, इसीलिए भारतीय नियामकों की भूमिका भी सवालों में है. अब ये ज़िम्मेदारी संस्थाओं की है, कि जो आरोप लगे उनका सच सामने आए. आरोपों को खारिज करने में जल्दबाज़ी की जगह विस्तृत जांच हो, ताकि निवेशकों का कोई नुकसान न हो.