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संजय सिंह की गिरफ़्तारी पर अरविंद केजरीवाल और केंद्र सरकार ने क्या कहा?

कौन है दिनेश अरोड़ा, कथित शराब घोटाले में जिसका नाम आप सांसद संजय सिंह के साथ जोड़ा जा रहा है?

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sanjay singh arrest
घंटों की पूछताछ के बाद संजय सिंह को गिरफ्तार कर ले जाती ED
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आयूष कुमार
4 अक्तूबर 2023 (Updated: 5 अक्तूबर 2023, 09:40 IST)
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4 अक्टूबर की सुबह Enforcement Directorate यानी ED की एक टीम राज्यसभा सांसद संजय सिंह के घर पहुंची. छापा मारा गया, पूछताछ हुई और फिर अरेस्ट कर लिया गया.

इस मामले में आप कार्यकर्ताओं ने प्रोटेस्ट करना शुरू कर दिया है. दिल्ली और लखनऊ से ऐसे प्रोटेस्ट की तस्वीरें सामने आ रही हैं. और भाजपा ने दिल्ली में पोस्टर लगाकर सीएम अरविन्द केजरीवाल का इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया है. संजय सिंह के अरेस्ट के बाद भाजपा भी हमलावर पज़िशन में है.

अब जानते हैं कि संजय सिंह के अरेस्ट का मामला क्या है? मामला वही है - दिल्ली कथित शराब घोटाला. ये वही मामला है, जिसमें AAP के मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन इस समय जेल में है.

अब इस मामले को थोड़ा विस्तार से समझते हैं. सबसे पहले एक नाम सुन लीजिए - दिनेश अरोड़ा. ये दिल्ली शराब केस के मुख्य आरोपी हैं और रेस्तरां व्यापारी हैं. दिल्ली शराब केस में  ED ने मई के महीने में सप्लीमेंट्री प्रोसीक्यूशन कंप्लेन दायर की थी. ये एक शिकायती पत्र होता है, जिसको चार्जशीट के बराबर माना जाता है. इस शिकायत में ED ने संजय सिंह का नाम लिया था और कहा था कि दिनेश अरोड़ा ने सबसे पहले संजय सिंह से ही मुलाकात की थी.  और संजय सिंह ने ही दिनेश अरोड़ा की मुलाकात मनीष सिसोदिया से कराई थी. इसको लेकर संजय सिंह ने ED को एक कानूनी नोटिस भेजा था, जिस पर ED ने जवाब दिया कि संजय सिंह का नाम "अनजाने में" चला गया.

लेकिन जिस मई के महीने में ED और संजय सिंह के बीच ये बातचीत हो रही थी, उसी महीने में ED ने संजय सिंह के दो सहयोगियों अजीत त्यागी और सर्वेश मिश्रा के घर पर भी छापा भी मारा था. इसके अलावा मनीष सिसोदिया के खिलाफ दायर की गई  ED की चार्जशीट में सिंह का नाम आता है.  ED की चार्जशीट के मुताबिक, दिनेश अरोड़ा ने संजय सिंह के कहने पर दिल्ली चुनाव के लिए पार्टी फंड इकट्ठा करने का काम किया था. इसके लिए संजय सिंह ने कथित तौर पर दिनेश अरोड़ा को फोन किया और कहा था-

"चुनाव आने वाले हैं, और पार्टी को पैसे के जरूरत हैं. कुछ रेस्तरां वालों से संपर्क करिए."

आरोप हैं कि अरोड़ा ने कई रेस्तरां मालिकों से बात की थी. उनके संपर्क से पैसा इकट्ठा किया था. 82 लाख रुपये का एक चेक भी सिसोदिया को सौंपा. ED ने ये भी आरोप लगाया है कि संजय सिंह ने दिनेश अरोड़ा का आबकारी विभाग से जुड़ा एक मुद्दा भी सुलझाया था.

बहरहाल, 82 लाख का चेक सौंपने के बाद दिनेश अरोड़ा और सिसोदिया करीब आ गए- ऐसे आरोप ED ने लगाए. इसके बाद दिनेश ने संजय सिंह की मुलाकात और कुछ व्यवसायियों से कराई, जिसमें प्रमुखता से अमित अरोड़ा नाम के व्यक्ति का नाम लिया जा रहा है.

फिर एक मीटिंग हुई मनीष सिसोदिया के आवास पर. इसमें थे मनीष सिसोदिया, दिनेश अरोड़ा, अमित अरोड़ा और संजय सिंह. इस मीटिंग में सिसोदिया ने कथित तौर पर कहा कि वो दिल्ली की शराब पॉलिसी में बदलाव करेंगे. इसके एवज में संजय सिंह के करीबी विवेक त्यागी को अमित अरोड़ा के बिजनेस में हिस्सेदारी मिलती.  

आपको पता ही होगा कि दिल्ली शराब पॉलिसी मामले में दो केस चल रहे हैं. एक केस CBI ने दर्ज किया है और एक केस ED ने. दिनेश को साल 2022 में सबसे पहले CBI ने अरेस्ट किया. दिनेश ने कोर्ट में कहा कि वो इस मामले में सरकारी गवाह बनना चाहते हैं. राऊस एवेन्यू कोर्ट ने ये बात स्वीकार कर ली. बाहर आ गए.फिर जुलाई 2023 में दिनेश को ED ने अरेस्ट कर लिया. और संजय सिंह पर छापा पड़ने के ठीक एक दिन पहले यानी 3 अक्टूबर को दिनेश अरोड़ा ED केस में भी सरकारी गवाह बन गए थे. दिनेश अरोड़ा के सरकारी गवाह बनने के ठीक अगले दिन संजय सिंह के यहां  ED का छापा पड़ गया और वो अरेस्ट हो गए. आम आदमी पार्टी से जुड़े कुछ लोग दबी जुबान में दिनेश अरोड़ा के सरकारी गवाह बनने और अगले दिन संजय सिंह के यहां छापा पड़ने की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं.

दिल्ली के बाद चलते हैं बंगाल. 

तृणमूल के नेता नई दिल्ली स्थित कृषि भवन पहुंचे हुए थे. कृषि भवन यानी दिल्ली के सबसे VIP और सुरक्षित इलाके में मौजूद वो बिल्डिंग, जहां केंद्र सरकार के कई सारे मंत्रालयों के ऑफिस हैं.  यहां पर TMC नेताओं की मुलाकात होनी थी केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति से. एजेंडा था कि सरकार से मनरेगा का पैसा मांगा जाए. कैसा पैसा? दरअसल केंद्र सरकार ने लंबे समय से पश्चिम बंगाल को दिया जाने वाला मनरेगा फंड रोककर रखा हुआ है. इसको लेकर ही गरमागरमी चल रही है.

लेकिन मुद्दे की तह में आयें, उससे पहले समझ लेते हैं कि 3 अक्टूबर को हुआ क्या था. तो TMC का जो दल साध्वी ज्योति से मिलने पहुंचा था, उसकी अगुवाई महुआ मोइत्रा के अलावा दो और नेता कर रहे थे -
राज्यसभा सांसद डेरेक ओब्रायन और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी. और इनके साथ थे पश्चिम बंगाल से आने वाले कुछ कैबिनेट मंत्री और मजदूर संगठनों से जुड़े लोग. और जब ये लोग मंत्रालय पहुंचे, उसके कुछ ही देर बाद ये खबरें आने लगीं कि इन नेताओं को, सांसदों को मंत्रालय से बाहर निकाल दिया गया है. बाहर कैसे निकाला गया? वीडियो आपने देख ही लिया, पुलिस द्वारा पकड़कर बाहर निकाला गया. अब ऐसी नौबत क्यों आई? यहां पर दोनों पक्षों से आरोप सामने आते हैं.

पहला पक्ष- TMC
जब सांसदों को निकाला गया तो महुआ मोइत्रा ने खुद को निकाले जाने का ट्वीट किया. उन्होंने कहा कि हमें मिलने का समय दिया गया, उसके बाद हमें 3 घंटे तक इंतजार कराया. और फिर चुने हुए सांसदों को ऐसे निकाला जा रहा है.

दूसरा पक्ष- केंद्र सरकार और भाजपा
मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने अपने अकाउंट से एक वीडियो शेयर किया. 31 सेकंड के इस वीडियो में समय दिख रहा था - 8 बजकर 16 मिनट. वीडियो में साध्वी ज्योति अपने खाली दफ्तर में बैठकर काम कर रही थीं, और ऐसा लग रहा था कि उनके अलावा उस कमरे में बस वीडियो बनाने वाला शख्स ही मौजूद था. वीडियो लगाते हुए उन्होंने लिखा-

"आज ढाई घंटे का समय व्यर्थ गया. आज तृणमूल के सांसदों की प्रतीक्षा करते करते साढ़े 8 बजे कार्यालय से निकली हूं. मेरी जानकारी के अनुसार तृणमूल के सांसद और बंगाल के मंत्रियों के प्रतिनिधिमण्डल ने कार्यालय में 6 बजे मिलने का समय लिया था. लेकिन बाद में वे तृणमूल के कार्यकर्ताओं को जनता बताकर मिलना चाह रहे थे,जो कार्यालय की व्यवस्था के विरुद्ध था"

साध्वी ज्योति के इस दावे के बाद TMC के खेमे से महुआ मोइत्रा आईं. उन्होंने साध्वी की इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा-  

"माफ करें साध्वी ज्योति जी, लेकिन मैं बहुत शालीनता से कह रही हूँ कि आप झूठ बोल रही हैं. आपने हमें समय दिया. और अंदर आने के पहले हमारे साथ आने वाले सारे नामों की आपने जांच की. हमें 3 घंटे इंतजार कराया और पिछले रास्ते से भाग गईं."

TMC से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जब साध्वी ज्योति ऑफिस से चली गईं, तो उनसे मिलने गया डेलीगेशन वहीं धरने पर बैठ गया, और प्रोटेस्ट करने लगा. पुलिस और अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियाँ आईं. और उन्हें उठाकर ले गई. ताज़ा खबरों के मुताबिक, डेलीगेशन से जुड़े कुछ लोगों को कुछ देर के लिए डीटेन किया गया, उसके बाद रिहा कर दिया गया.

मामला क्या है?

इस सवाल का छोटा जवाब - केंद्र सरकार ने बीते लगभग दो सालों से बंगाल सरकार का मनरेगा फंड रोककर रखा है. इस फंड को रोकने को लेकर बंगाल में कई बार मनरेगा के तहत काम करने वालों ने प्रदर्शन किए. इसके बाद अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में मनरेगा से जुड़े लगभग ढाई हजार लोग दिल्ली आए. इन लोगों ने 2 और 3 अक्टूबर को जंतर मंतर पर प्रोटेस्ट किया. और 3 अक्टूबर को साध्वी निरंजन ज्योति से मुलाकात की प्रक्रिया में ही ये बवाल हुआ.

अब चलते हैं इस सवाल के बड़े जवाब की ओर. कि बंगाल में हुआ क्या. पहले छोटे में जान लेते हैं कि मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम क्या है? मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में लोगों को साल में न्यूनतम सौ दिनों का काम मिलता है. काम करने वाले इन मजदूरों के जॉब कार्ड बनाए जाते हैं. और काम करने के बाद इन्हें रोजाना के हिसाब से एक राशि का भुगतान किया जाता है. ये राशि कितनी होती है? हर राज्य के लिए ये राशि अलग-अलग है और बंगाल के लिए है 330 रुपये प्रतिदिन.मजदूरों की पगार और दूसरे जरूरी पैसे का ये फंड केंद्र द्वारा राज्य सरकारों को दिया जाता है, और एवज में राज्य सरकार काम का ब्यौरा केंद्र को सौंपती है. इसी प्वाइंट पर बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच झगड़ा हो रहा है.

समझने के लिए चलते हैं दिसंबर 2021 में. इस महीने केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि बंगाल को दिए जाने वाले मनरेगा फंड को रोका जा रहा है. ऐसा करने के लिए केंद्र सरकार ने एक नियम का हवाला दिया - NREG एक्ट के सेक्शन 27 का.

क्या कहता है ये सेक्शन?

ये कहता है कि अगर फंड्स में अनियमितता दिखाई दे या शिकायत हो, तो केंद्र सरकार एक निश्चित समय के लिए मनरेगा का पैसा रोक सकती है. खबरें बताती हैं कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से बंगाल के लगभग 21 लाख मजदूर प्रभावित होते हैं. ये 21 लाख वो मजदूर है, जिन्होंने दिसंबर 2021 तक काम किया था, और उसका पैसा इन्हें अभी तक मिलना है. लेकिन केंद्र सरकार ने पैसा ही रोक दिया, लिहाजा नो पेमेंट.

आपको मालूम है ये कितना पेमेंट है? मिलाजुलाकर ये संख्या है 3 हजार 732 करोड़. मतलब इतना पैसा आ जाए, तो मजदूरों को उनकी दिहाड़ी मिल जाएगी. लेकिन बस इतना ही पैसा नहीं फंसा है. मनरेगा से जुड़े राज्यों के और भी खर्च होते हैं, जो मजदूरी से अलग होते हैं. इनको हम नॉन-वेज पेमेंट कहते हैं. और इस मद में केंद्र सरकार ने रोक रखे हैं 3 हजार 175 करोड़. दोनों जोड़ दें तो केंद्र सरकार का टोटल बकाया हो जाता है 6 हजार 907 करोड़.

अब यहां पर अगला सवाल आता है कि केंद्र सरकार ने ऐसा कदम उठाया क्यों? इसलिए क्योंकि बंगाल सरकार पर आरोप लग रहे थे कि उसने केंद्र से मिलने वाले मनरेगा फंड का दुरुपयोग किया. लेकिन शुरुआत में छिटपुट आरोप ही लग रहे थे. लेकिन निर्णायक मोड़ तब आया, जब साल 2022 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह के पास चिट्ठी आई. ये चिट्ठी भेजी थी बंगाल के नेता विपक्ष सुवेन्दु अधिकारी ने. इस चिट्ठी में सुवेन्दु अधिकारी ने कहा कि बंगाल में मजदूरों के झूठे जॉब कार्ड बनाए जा रहे हैं, और इन्हीं फर्जी जॉब कार्ड के आधार पर केंद्र के नाम पर मनरेगा का लंबा चौड़ा बिल फाड़ा जा रहा है. सुवेन्दु ने ये  भी कहा कि केंद्र से मिल रहे मनरेगा के पैसों को TMC नेता इस्तेमाल कर रहे हैं.

इस मामले को लेकर गिरिराज सिंह और सुवेन्दु अधिकारी की हालिया सक्रियता भी काबिले-गौर है. 3 अक्टूबर यानी कल की तारीख ही ले लीजिए. इस दिन साध्वी ज्योती TMC नेताओं से मिलतीं, उनसे कुछ घंटे पहले ही पहले ही सुवेन्दु अधिकारी साध्वी ज्योति से मुलाकात कर चुके थे. और यही बात कह रहे थे  - झूठे जॉब कार्ड बनाए गए, केंद्र के पैसों को TMC नेता खा गए, इसमें बंगाल सरकार के अधिकारी भी शामिल हैं. फिर मीटिंग में जो हुआ, वो हमने आपको बता दिया. इसके अलावा जब मजदूर और TMC नेता  2-3 अक्टूबर को प्रोटेस्ट कर रहे थे, तो गिरिराज सिंह ये कह रहे थे कि बंगाल में सरकारी स्कीमों की सीबीआई जांच करानी चाहिए.

वापिस पैसा रोकने वाले पीरियड में चलते हैं. जब सरकार ने दिसंबर 2021 में मनरेगा का पैसा रोक दिया तो इसी समय केंद्र सरकार की टीमें राज्य का दौरा भी कर रही थीं. लगभग 16 टीमों ने अलग-अलग इलाकों का दौरा किया. इंडिया टुडे मैगजीन के ताज़ा अंक में छपी अर्कमोय दत्ता मजूमदार की रिपोर्ट बताती है कि इन टीमों को बहुत सारे साक्ष्य भी मिले - पैसे गबन करने के साक्ष्य, काल्पनिक काम बनाने और काल्पनिक मजदूर बनाने के साक्ष्य.

अब जो ये केंद्र सरकार की टीमें गई थीं, उस टीम ने ममता सरकार से कहा कि वो इन आरोपों पर एक एक्शन टेकेन रिपोर्ट सौंपें. एक्शन टेकेन रिपोर्ट यानी क्या किया, कैसे किया, पैसे का कहां इस्तेमाल किया टाइप सवालों के जवाब.

सितंबर 2022 में ममता सरकार ने केंद्र सरकार को एक्शन टेकेन रिपोर्ट भेज दी. बंगाल सरकार को उम्मीद थी कि केंद्र सरकार इस रिपोर्ट के बाद मनरेगा का फंड रिलीज कर देगी. लेकिन नहीं. केंद्र सरकार ने ममता सरकार से कहा कि रिपोर्ट पर कुछ सफाई चाहिए. क्लैरिफिकेशन चाहिए. फिर आया दिसंबर 2022. ममता सरकार ने एक रिप्लाई अपनी सफाई के साथ केंद्र सरकार को भेज दिया. फिर से आशा वही - अब पैसा रिलीज कर दिया जाएगा.

लेकिन अब अक्टूबर 2023 चल रहा है और केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा का फंड नहीं रिलीज किया गया है. लेकिन अभी तक ये जानकारी भी सामने नहीं आ सकी है कि दिसम्बर 2022 में सबमिट किया गया रिप्लाई केंद्र ने मान लिया है? या उस पर भी सफाई मांगी है?

जो भी हुआ हो, लेकिन साफ है कि भ्रष्टाचार के आरोपों और केंद्र की कार्रवाई के बीच कुछ असली मजदूरों की दिहाड़ी भी रुकी हुई है. इन सबके बीच राज्य सरकार के आला अधिकारी हैं, जो कुछ गड़बड़ियों की बात स्वीकार भी करते हैं. लेकिन ये भी कहते हैं कि केंद्र के निर्देश पर बहुत सारे काम सुधारे भी जा चुके हैं.

ये मामला कोर्ट में भी गया है. पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने 2023 की शुरुआत में कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दायर की. मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी रिलीज करवाने का आग्रह किया. जून 2023 में कोर्ट ने केंद्र और राज्य दोनों को आदेश दिया कि इस दिशा में जल्द से जल्द काम करें. और राज्य सरकार से कहा कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाए. कोर्ट ने केंद्र और राज्य दोनों को सलाह दी कि मनरेगा को राजनीतिक खाद-पानी की तरह इस्तेमाल न करें.

लेकिन दोनों कहां मानने से रहे? भाजपा और tmc भिड़े पड़े हैं. भाजपा ने इस कथित भ्रष्टाचार को tmc पर अटैक करने का अपना टूल बना लिया है, वहीं tmc इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है. वो केंद्र सरकार पर बंगाल राज्य और राज्य के लोगों से भेदभाव करने के आरोप लगा रही है.

लेकिन दोनों राज्यों की सरकारों में गतिरोध का बिन्दु बस यही एक मनरेगा नहीं है. केंद्र की एक और स्कीम है - प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण. गरीबों का घर बनवाने की स्कीम. केंद्र सरकार ने बंगाल का इस स्कीम के तहत भी पैसा रोककर रखा है. नवंबर 2022 से.  कितना पैसा रोका गया है? 8 हजार 141 करोड़. ये पैसा क्यों रोककर रखा गया है? केंद्र के पास इसको लेकर दो कारण हैं-

कारण नंबर एक - अयोग्य लोगों को पीएम आवास योजना के तहत घर बांटे गए और योग्य लोगों के नाम लिस्ट से मिटा दिए गए.
कारण नंबर दो - इस योजना का नाम बदलकर बंगलार बाड़ी आवाज योजना कर दिया गया और योजना का लोगो भी हटा दिया गया.

इस योजना को लेकर भी केंद्र सरकार की 69 टीमों ने बंगाल का दौरा किया. बंगाल सरकार ने भी एक जांच का आदेश दिया. बंगाल सरकार को इस अपनी ही जांच में पता चला कि लगभग 17 लाख अयोग्य लोगों को घर मिले. लेकिन अब भी ये मामला लटका हुआ है, लगभग एक साल से ये योजना भी अधर में लटकी हुई है.

लेकिन इसको लेकर भी राजनीति अपने स्तर पर हो रही है. किसी का घर अधूरा है, किसी की मजदूरी नहीं मिली है. और कुछ भ्रष्टाचारी कानून की पकड़ से दूर हैं. और राजनीति चरम पर है. देश ऐसे नहीं चलना चाहिए, कोई राज्य भी ऐसे नहीं चलना चाहिए. भ्रष्ट को सजा हो और मजदूर को समय से मिले उसकी दिहाड़ी.

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