जुगुप्सा, संशय और अनिश्चितता से ग्रस्त था महात्मा का यौन-जीवन!
महात्मा के जन्मदिन पर पढ़िए उनके जीवन के अनछुए यौन-प्रसंगों की हकीकत.
महात्माओं का भी एक उन्मुक्त यौन जीवन हो सकता है और उसका काल्पनिक या तथ्यात्मक कैसा भी उद्घाटन भारतीय मानस में कुछ खलबली मचा सकता है... यह यकीन जरूर उन पश्चिमी विचारकों और लेखकों के जेहन में रहता होगा जो महात्मा गांधी के जीवन पर लिखने के बहाने उनके अनछुए या कहें अनहुए यौन-प्रसंगों को उजागर करते आए हैं.
आज महात्मा गांधी का जन्मदिन है और इस मौके पर उनके जीवन पर सोचते हुए यों लगता है कि उनके जीवनकाल में ही यह साफ हो गया था कि उनके जीवन कुछ भी रहस्यमय या गोपनीय नहीं है. लेकिन इस सच को नकारते हुए गांधी की हत्या के बाद उन पर कई किताबें आईं और अब तक आ रही हैं. ये किताबें गांधी के जीवन के रहस्यमय या गोपनीय पक्ष को उजागर करने के दावे के साथ पेश हुईं.
कुछ वर्ष पहले थामस वेबर की एक किताब आई और इसके नाम से ही यह जाहिर था कि यह क्या कहना चाहती है. इसका नाम था – ‘गांधीज रिलेशनशिप विद वेस्टर्न वुमेन’.
इस किताब से पहले पुलित्जर पुरस्कार से नवाजे गए लेखक जोसेफ लेलीवुल्ड की किताब ‘ग्रेट सोल – महात्मा एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया’ में गांधी को समलैंगिक बताते हुए उनके जीवन के अनछुए या कहें अनहुए यौन-प्रसंगों को खोलने की कोशिश की गई. इस वजह से यह किताब गुजरात में प्रतिबंधित भी कर दी गई.
यहां तक आकर यह कहने को जी चाहता है कि यह भारतीय ही नहीं एक सार्वभौमिक मानवीय नजर है कि वह उन व्यक्तियों के रहस्य जानना चाहती है, जो या तो उसकी पहुंच से बहुत दूर होते हैं या जिनकी ‘पब्लिक पोस्चरिंग’ जनसाधारण के बहुत नजदीक रहते हुए भी महात्माओं सरीखी हो जाती है.
सभ्यता की शुरुआत से ही आमजन में व्याप्त रही आई इस रसधर्मी रुचि का फायदा पेशेवर पत्रकार और लेखक उठाते रहे हैं. इस प्रयत्न में कभी-कभी इन ‘प्रोफेशनल्स’ का पतन इस कदर होता है कि वे नितांत मनगढ़ंत तथ्यों को भी पूर्णतः वास्तविक बना कर प्रस्तुत करते हैं.
सूचनाओं के बमबारी वाले इस वक्त में सूचनाएं बताती हैं कि आज सबसे ज्यादा देखी जाने वाली चीज पॉर्न है. मंदी के दौर भी सेक्स की कीमतें और जरूरत नहीं घटा पाए. एक सार्वजानिक समय में सेक्स खाद्य पदार्थों की तरह ही अनिवार्य बना हुआ है.
यहां यह सब बताने का मकसद बस इतना है कि अब कुछ भी उद्घाटित करने के लिए बहुत मामूली पृष्ठभूमि, बहुत कम संदर्भ और बहुत सीमित उत्तरदायित्व की जरूरत है. महात्मा गांधी के संबंध में भी यही हो रहा है.
गांधी के यौन-जीवन में कुछ अप्राकृतिक और असामान्य तत्व थे... इस बात को खुद उन्होंने अपने कहे और लिखे में स्वीकार किया है.
मोहनदास करमचंद गांधी का विवाह 13 बरस की उम्र में ही उनसे एक बरस बड़ी कस्तूरबा से हो गया था. बहुत कामुक और यौनोत्सुक युवा गांधी का वैवाहिक जीवन सामान्य था. घर में एक सुरक्षित और शांत कमरा उन्हें मिला हुआ था जहां वह कस्तूरबा के संग अंतरंग क्षण गुजारते थे. कुछ इस प्रकार के ही अंतरंग क्षणों में जब वह एक रात निमग्न थे, उनके पिता अंतिम सांसें ले रहे थे. गांधी पिता के निकट होते हुए कामावेग के कारण पिता की स्थिति से अंजान रहे.
उस रात हुई पिता की मृत्यु ने गांधी को भीषण दुःख और प्रायश्चित से भर दिया. इस घटना के बाद का गांधी का यौन-जीवन जुगुप्सा, संशय और अनिश्चितता से ग्रस्त है. जीवन की सांध्य-वेला में भी राष्ट्रपिता अपनी देह में उठते हुए यौन-ज्वर को नियंत्रित करने में लगे हुए थे.
महात्मा गांधी का जीवन प्रयोगों और जोखिमों से भरा हुआ एक लंबा सफर है.
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