The Lallantop
Advertisement

जजों की चिट्ठी ने खोले राज, फैसले बदलने पर कौन दबाव डाल रहा?

पाकिस्तान में ISI और अदालत के बीच लड़ाई क्यों हुई?

Advertisement
Supreme Court Chief Justice Qazi Faez Isa (2R) administers oath to the newly sworn-in Pakistan’s President Asif Ali Zardari (L) at the President House in Islamabad. (AFP)
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस काज़ी फैज ईसा और राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी (AFP)
28 मार्च 2024
Updated: 28 मार्च 2024 20:15 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

‘ख़ुफ़िया एजेंसी के एजेंट जजों को डराते-धमकाते हैं. जजों के घरों में चौबीस घंटे निगरानी रखवाई जाती है. मनमाफ़िक़ फ़ैसला दिलवाने के लिए जजों की फ़ैमिली को किडनैप किया जाता है. उनको टॉर्चर भी करते हैं.’

ये किसी फ़िल्म की पटकथा नहीं है. बल्कि पाकिस्तान के वरिष्ठ न्यायाधीशों की आपबीती है. 26 मार्च को इस्लामाबाद हाई कोर्ट (IHC) के 06 जजों ने चिट्ठी लिखकर अपना दुखड़ा सुनाया है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. कहा गया, आरोप गंभीर हैं. इसकी जांच होनी चाहिए. लेकिन जांच कौन करेगा? जिनके ऊपर आरोप हैं, उनकी मर्ज़ी के बिना पाकिस्तान में एक पत्ता तक नहीं हिलता.

तो आइए समझते हैं,

- पाकिस्तानी जजों को कौन टॉर्चर कर रहा है?
- पाकिस्तान की न्यायपालिका कैसे काम करती है?
- और, पाकिस्तान में सरकार और अदालत से भी ताक़तवर कौन है?

पाकिस्तान 1973 में लागू हुए संविधान के हिसाब से चल रहा है. पाकिस्तान में हेड ऑफ़ द स्टेट राष्ट्रपति, जबकि सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री हैं. सरकार की शक्तियां तीन अंगों में बंटी है. कार्यपालिका की कमान प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के पास होती है. विधायिका की शक्ति संसद के पास है. और, न्यायपालिका बाकी दोनों से स्वतंत्र मानी जाती है. न्यायपालिका का स्ट्रक्चर क्या है?

पहले इतिहास समझ लेते हैं.

अगस्त 1947 में पाकिस्तान अलग मुल्क बना. भारत से अलग होकर. उस वक़्त पाकिस्तान के पास अपना संविधान नहीं था. इसलिए, ब्रिटिशर्स के बनाए गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1935 को बरकरार रखा गया. जो क़ानूनी व्यवस्था चली आ रही थी, थोड़ा बहुत बदलाव करके उसी को चलाया जाने लगा. लाहौर और सिंध में पहले से हाई कोर्ट था. बलोचिस्तान और नॉर्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रॉविंस (NWFP) में ज्युडिशल हाई कमिश्नर कोर्ट था. उनको चालू रखा गया. पूर्वी पाकिस्तान के ढाका में एक नए हाई कोर्ट की स्थापना की गई. फिर 1948 में फे़डरल कोर्ट बनाया गया. ये आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ पाकिस्तान कहलाया.

फिर 1973 का साल आया. तब तक पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन चुका था. पाकिस्तान में सैन्य सरकारों का दौर बीता. कुर्सी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के पास आई. उन्होंने पाकिस्तान का संविधान बनवाया. इस संविधान ने ज्युडिशल कमिश्नर कोर्ट्स को हाई कोर्ट का दर्ज़ा दिया. 1977 में भुट्टो का तख़्तापलट हो गया. कुर्सी मिलिटरी जनरल ज़िया उल-हक़ ने हथिया ली. 1980 में ज़िया सरकार ने फ़ेडरल शरिया कोर्ट की बुनियाद रखी. इसको ये तय करने का अधिकार मिला कि कोई क़ानून इस्लाम के ख़िलाफ़ तो नहीं है. फिर 2007 में इस्लामाबाद हाई कोर्ट की स्थापना की गई. ये पाकिस्तान का पांचवां हाई कोर्ट बना.

मौजूदा स्ट्रक्चर समझ लेते हैं.

पाकिस्तान में मुख्यत: दो तरह की अदालतें हैं.

पहली है, सुपीरियर ज्युडिशरी.

इसमें सुप्रीम कोर्ट, शरिया कोर्ट और पांच हाई कोर्ट्स आती हैं.

> सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ी न्यायिक संस्था है. सुप्रीम कोर्ट की स्ट्रेंथ 17 है. चीफ़ जस्टिस और 16 अन्य न्यायाधीश.

> पांच हाई कोर्ट्स के क्या नाम हैं?

- लाहौर हाई कोर्ट.
- सिंध हाई कोर्ट.
- पेशावर हाई कोर्ट.
- बलूचिस्तान हाई कोर्ट.
- और इस्लामाबाद हाई कोर्ट.

दूसरी तरह की अदालतों को सब-ऑर्डिनेट ज्युडिशरी की केटेगरी में रखा गया है. इसमें डिस्ट्रिक्ट और सेशंस कोर्ट्स आते हैं.

आज हमारा फ़ोकस सुपीरियर ज्युडिशरी पर रहेगा. क्यों?

जैसा कि हमने पहले भी बताया, 25 मार्च 2024 को इस्लामाबाद हाई कोर्ट (IHC) के 06 जजों ने एक चिट्ठी सुप्रीम ज्युडिशल काउंसिल को भेजी. इन जजों के नाम थे - जस्टिस मोहसिन अख़्तर क़यानी, तारिक़ महमूद जहांगीरी, बाबर सत्तार, सरदार एजाज़ इसहाक़ ख़ान, जस्टिस अरबाब मुहम्मद ताहिर और जस्टिस समन रफ़त इम्तियाज़.

चिट्ठी में क्या था?

- जजों ने लिखा था कि ख़ुफ़िया एजेंसियां अदालत के काम में दखल देती हैं. हमें ये बताया जाए कि इस दखलअंदाज़ी से कैसे बचें.

- ख़ुफ़िया एजेंसियों के एजेंट बेंच के गठन में और फ़ैसले बदलवाने के लिए दबाव डालते हैं. हमें ये नहीं पता कि इसको रिपोर्ट कैसे किया जाए.

- अगर सरकार किसी पॉलिसी के तहत अदालतों के काम में दखल दे रही है तो उसकी भी जांच की जाए.

और क्या-क्या लिखा था?

आरोपों के संदर्भ में कई उदाहरण दर्ज हैं. एक-एक कर जान लेते हैं. 

- जुलाई 2018 में IHC के सीनियर जज शौक़त अज़ीज़ सिद्दीक़ी रावलपिंडी डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में पहुंचे. वहां बोले, ISI कोर्ट की कार्यवाही को तय कर रही है. बेंच में कौन जज होंगे और फ़ैसला क्या होगा, ये भी ख़ुफ़िया एजेंसियां तय कर रही है. वे चाहते थे कि नवाज़ शरीफ़ और उनकी बेटी मरियम नवाज़ को 2018 के चुनाव से पहले जेल से ना निकलें. इसलिए, उन्होंने दबाव डालकर मुझे बेंच से बाहर रखा. 

सिद्दीक़ी ने ये दावा भी किया कि ISI ने उनको चीफ़ जस्टिस बनाने का ऑफ़र दिया था. उस दौर में फ़ैज़ हमीद ISI के मुखिया हुआ करते थे. वो पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़ास थे. जुलाई 2018 के भाषण के बाद सिद्दीक़ी पर कई आरोप लगे. सुप्रीम ज्युडिशल काउंसिल (SJC) में उनकी शिकायत हुई. अक्टूबर 2018 में उन्हें पद से हटा दिया गया. कट टू मार्च 2024. सुप्रीम कोर्ट ने सिद्दीक़ी की बर्खास्तगी को अवैध ठहराया.

- दूसरा मामला मार्च 2023 का है. केस का नाम था, मोहम्मद साजिद बनाम इमरान ख़ान नियाज़ी. इमरान खान पर मोहम्मद साजिद नाम के पूर्व क्रिकेटर ने आरोप लगाया था कि इमरान की टिरियन वाइट नाम की बेटी है. वो ब्रिटेन में रहती है. इमरान उसके लिए पैसे भी भेजते हैं. मगर उन्होंने इसकी जानकारी छिपाई. इलेक्शन के नॉमिनेशन में भी कोई ज़िक्र नहीं किया है. इसलिए, उन्हें उनकी पार्टी से डिसक्वालीफाई कर दिया जाना चाहिए. इस्लामाबाद हाई कोर्ट को ये डिसाइड करना था कि मुकदमे का कोई आधार है या नहीं. इसकी सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच बैठी. बेंच के अध्यक्ष ने माना कि मुकदमा चलना चाहिए. बाकी दोनों जजों का ओपिनियन ख़िलाफ़ में था. जिन जजों ने मुकदमे को खारिज करने की बात कही थी, उनको ISI ने काफ़ी परेशान किया. उनके दोस्तों और घरवालों को टॉर्चर किया गया. जिसके बाद जजों को अपने घरों की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी. एक जज को हाई ब्लड प्रेशर के चलते वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. मई 2023 में हाई कोर्ट के सभी जज चीफ़ जस्टिस से उनके घर पर मिले. चीफ़ जस्टिस ने भरोसा दिलाया कि उन्होंने ISI के मुखिया से बात कर ली है. अब उन्हें कोई परेशान नहीं करेगा. मगर उसके बाद भी दखल जारी रहा.

- तीसरा वाकया मई 2023 का है. जब इस्लामाबाद हाई कोर्ट के एक जज के साले को ISI एजेंट्स ने किडनैप कर लिया था. बिजली के झटके दिए गए. टॉर्चर किया गया. इतना ही नहीं, उससे जबरन एक वीडियो रिकॉर्ड करवाया गया. इसमें जज के ख़िलाफ़ बयान दिलवाया गया था. 24 घंटे बाद उसको छोड़ दिया गया. हालांकि, उसके वीडियो के आधार पर सुप्रीम ज्युडिशल काउंसिल में जज की शिकायत की गई. उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया.

- 3 मई 2023 को इस्लामाबाद हाई कोर्ट को शिकायत मिली कि एक डिस्ट्रिक्ट और सेशनल जज को धमकी मिली है और उनके घर के अंदर पटाखे फेंक दिए गए थे. ये मामला इस्लामाबाद हाई कोर्ट के टी हॉल में भी डिस्कस किया गया लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला. जिस जज ने ये मामला रिपोर्ट किया था, उसको डिमोट कर दिया गया.

- 2023 में ही इस्लामाबाद हाई कोर्ट के एक जज के घर मरम्मत का काम चल रहा था. उसी दौरान पता चला कि बल्ब के अंदर कैमरा फिट किया गया है. उसके साथ एक सिमकार्ड भी अटैच्ड था. जांच करवाई गई तो मास्टर बेडरूम में भी कैमरा मिला. कई जगहों पर USB और सर्विलांस डिवाइसेस भी पकड़ में आए. घर की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स कहीं और भेजी जा रहीं थी.

ये कुछ उदाहरण भर हैं. ये ऐसे मामले हैं, जिनकी शिकायत हुई या जिनके बारे में कहा-सुना गया. कहानी इससे कहीं ज़्यादा वीभत्स है. जज पहले भी इस तरह के आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन कभी उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया. जब 06 जजों ने सुप्रीम ज्युडिशल काउंसिल (SJC) को चिट्ठी लिखी, तब जाकर हलचल मची है.
अब तक SJC का नाम कई बार आ चुका है. ये क्या है?

- SJC पाकिस्तान की न्यायपालिका की निगरानी रखने वाली संस्था है. इसमें कुल 05 सदस्य होते हैं. - पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस इसके मुखिया होते हैं. उनके अलावा कौन-कौन होते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे सीनियर जज और पांचों हाई कोर्ट्स में से दो सबसे सीनियर जज.

SJC क्या करती है?

- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स के जजों की योग्यता की जांच कर सकती है.
- जजों को पद से हटाने की सलाह दे सकती है.

चिट्ठी बाहर आने के बाद 27 मार्च को चीफ़ जस्टिस काज़ी फ़ैज़ ईसा ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की आपातकालीन बैठक बुलाई. दो घंटे तक मीटिंग चली. इसमें पाकिस्तान सरकार के अटॉर्नी जनरल भी मौजूद थे. मीटिंग के बाद उन्होंने कहा, आरोप गंभीर है. इसकी जांच होनी चाहिए.

आज यानी 28 मार्च को प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने चीफ़ जस्टिस से मुलाक़ात की. पाकिस्तानी अख़बार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक़, जजों की चिट्ठी को 29 मार्च को फ़ेडरल कैबिनेट के सामने रखा जाएगा. इसके बाद जांच कमीशन बनाने पर फ़ैसला लिया जाएगा.

आगे क्या होगा?

जानकार कहते हैं, कुछ दिनों का शोर है. फिर सब शांत पड़ जाएगा. जैसा चलता आ रहा है, चलता रहेगा. ऐसा क्यों? ख़ुफ़िया एजेंसी ISI मिलिटरी एस्टैब्लिशमेंट के अंडर काम करती है. और, एस्टैब्लिशमेंट की मर्ज़ी के बिना पाकिस्तान में कुछ नहीं होता. सरकार बनाने से लेकर गिराने तक में उनकी भूमिका रहती है. इसका सजीव उदाहरण फ़रवरी 2024 में हुए आम चुनावों में दिखा. इसलिए, किसी बड़े बदलाव की उम्मीद बेमानी है. इतना ज़रूर है कि फ़ौज की एक और कारस्तानी इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है.

अब कुछ सुर्खियां जान लिजिए,

पहली सुर्खी फ़्रांस से है. एक हाई स्कूल प्रिंसिपल के इस्तीफ़े ने फ़्रांस में हंगामा खड़ा कर दिया है. France24 की रिपोर्ट के मुताबिक़, ये मामला फ़रवरी 2024 में शुरू हुआ था. प्रिंसिपल ने तीन स्टूडेंट्स को स्कूल के अंदर हिजाब उतारने के लिए कहा. दो ने तो बात मान ली. लेकिन तीसरी स्टूडेंट बहस करने लगी. बाद में शिकायत कर दी कि प्रिंसिपल ने उसके साथ बुरा बर्ताव किया और पीटा भी. जांच में ये शिकायत फ़र्ज़ी निकली. इस बीच प्रिंसिपल को इंटरनेट पर जान से मारने की कई धमकियां मिलने लगीं. नतीजतन, 26 मार्च को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. चिट्ठी में लिखा, सुरक्षा कारणों की वजह से नौकरी छोड़ रहा हूं.

असली कहानी तब शुरू हुई, जब इस्तीफ़े की ख़बर बाहर आई. फ़्रांस 2004 में ही स्कूलों में धार्मिक पहचान जाहिर करने वाले प्रतीकों को पहनने पर पाबंदी लगा चुका है. इसलिए, प्रिंसिपल की आपत्ति वाजिब थी. दूसरी बात, इंटरनेट की धमकी ने मामले को और गंभीर बना दिया. फ़्रांस में पहले भी टीचर्स कट्टरपंथी इस्लाम का निशाना बन चुके हैं. अक्टूबर 2020 में पैरिस में सैमुअल पैटी नामक टीचर की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. हत्यारा चेचेन मूल का मुस्लिम शरणार्थी था. वो पैटी के ख़िलाफ़ चल रहे सोशल मीडिया कैंपेन से प्रेरित हुआ था. दरअसल, एक स्टूडेंट ने आरोप लगाया था कि पैटी ने क्लास में शार्ली हेब्दो का इस्लाम-विरोधी कार्टून दिखाया था. दूसरी घटना अक्टूबर 2023 में घटी. जब चेचेन मूल के मोहम्मद मोगुचकोव ने अराज़ शहर में एक स्कूल में चाकूबाज़ी की. इसमें एक टीचर की मौत हो गई. दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे.

इसके अलावा, फ़्रांस लंबे समय से इस्लामी आतंकवाद से जूझ रहा है. मुल्क में कई बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं.

- जनवरी 2015 में शार्ली हेब्दो अख़बार के दफ़्तर पर हमला हुआ. इसमें 12 लोग मारे गए थे. इसमें इस्लामिक स्टेट का हाथ था.
- नवंबर 2015 में एक रात में पैरिस में अलग-अलग जगहों पर बम धमाके हुए. इसमें 138 लोगों की मौत हुई थी. इस्लामिक स्टेट ने इसकी ज़िम्मेदारी ली.
- जुलाई 2016 में नीस शहर में बास्तील डे परेड चल रही थी. उसी दौरान एक ट्रक भीड़ में घुस गया. इसमें 86 लोगों की मौत हुई थी. आतंकी ट्यूनीशिया मूल का मुस्लिम था. पुलिस के साथ मुठभेड़ में वो मारा गया. इसके बाद इस स्तर की कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई है. मगर छिटपुट स्तर पर गोलीबारी या चाकूबाज़ी आम हो चुकीं हैं. अधिकतर मामलों में इस्लामी आतंकियों का नाम सामने आया है.

फ़्रांस अपनी सेकुलर पहचान के लिए जाना जाता है. अरब स्प्रिंग के बाद आए मिडिल-ईस्ट क्राइसिस में उसने काफ़ी लोगों को अपने यहां शरण दी. दक्षिणपंथी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सेकुलरिज़्म के नाम पर फ़्रांस के नागरिकों का हक़ छीना जा रहा है. इसके चलते घर्षण पैदा हुआ. कई दफ़ा दंगे भी हो चुके हैं.

इन्हीं वजहों से हालिया घटना को गंभीरता से लिया जा रहा है.

इस मामले में क्या अपडेट्स हैं?

- विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को निशाने पर लिया है. आरोप लगाया है कि सरकार स्कूलों की सुरक्षा करने में अक्षम है. कट्टरपंथी इस्लाम फल-फूल रहा है. ये सरकार की हार है.

- फ़्रांस के प्रधानमंत्री गैब्रियल एटल ने कहा है कि स्टूडेंट पर मुकदमा चलेगा. प्रिंसिपल पर फ़र्ज़ी आरोप लगाने के लिए.

- डेथ थ्रेट्स के आरोप में दो लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. हालांकि, उनकी पहचान अभी जाहिर नहीं की गई है.

दूसरी सुर्खी अमेरिका से है. दो दिनों में दूसरी बार अमेरिका ने भारत के इंटरनल मैटर पर बयान दिया है. आपत्ति जताने के बावजूद. पहला बयान 25 मार्च को आया. जब अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी से जुड़ा सवाल पूछा गया. प्रवक्ता मैथ्यू मिलर का जवाब था, मामले पर हमारी नज़र बनी हुई है. हमारी उम्मीद है कि ये निष्पक्ष, पारदर्शी और समयसंगत क़ानूनी प्रक्रिया का पालन होगा. भारत ने इसपर कड़ी आपत्ति जताई. फिर अमेरिकी दूतावास की ‘कार्यवाहक डिप्टी चीफ़ ऑफ़ मिशन’ ग्लोरिया बारबीना को समन भेजा. 27 मार्च को लगभग 45 मिनट तक मीटिंग चली. उसके बाद बयान जारी हुआ. भारत ने कहा, डिप्लोमैसी में ये उम्मीद की जाती है कि एक देश दूसरे के इंटरनल मैटर और संप्रभुता का पूरा ख़याल रखेगा. लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है. ऐसा नहीं करने से ग़लत परंपरा शुरू हो सकती है.

उम्मीद जताई गई कि इसके बाद अमेरिका आपत्ति का मान रखेगा. इस मामले पर नहीं बोलेगा. मगर 27 मार्च को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कोई परहेज नहीं किया. प्रेस कॉन्फ़्रेंस में केजरीवाल की गिरफ़्तारी के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के बैंक अकाउंट्स फ़्रीज़ होने पर भी राय रखी. कहा, दोनों मामले हमारे संज्ञान में हैं. हम अपनी पिछली बात पर कायम हैं. निष्पक्ष, पारदर्शी और समयसंगत क़ानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए. हमें नहीं लगता कि इससे किसी को आपत्ति होनी चाहिए.

ख़ैर, अमेरिका से पहले जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने भी केजरीवाल की गिरफ़्तारी पर बयान दिया था. कहा था कि केजरीवाल को निष्पक्ष ट्रायल मिलना चाहिए. जिसके बाद उनके राजदूत को तलब किया गया था. 27 मार्च को जर्मनी में केजरीवाल से जुड़ा सवाल फिर से उठा. इस बार उनका बयान बदला-बदला दिखा. जर्मनी ने कहा, भारत का संविधान बुनियादी मानवीय मूल्यों और आज़ादी की गारंटी देता है. और, हम भारत के साथ इन लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं.

अंतिम सुर्खी श्रीलंका से है. 

श्रीलंका में एक बार फिर से चीन के दखल की आशंका बढ़ गई है. 25 मार्च को श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धना छह दिनों के दौरे पर बीजिंग पहुंचे. वहां चीन के प्रीमियर ली चियांग से मिले. फिर 27 मार्च को कहा कि चीन हम्बनटोटा बंदरगाह और कोलम्बो एयरपोर्ट के विकास के लिए राज़ी है. हम्बनटोटा बंदरगाह 2017 से चीन के पास है. 99 बरस की लीज पर. जबकि कोलम्बो एयरपोर्ट के लिए फ़ंड जापान ने दिया था. फिर 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट आया. विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी हो गई थी. जिसके चलते बुनियादी चीज़ों की कमी हुई. फिर प्रोटेस्ट हुआ. तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षा को कुर्सी छोड़नी पड़ी. इस्तीफा भी देना पड़ा. इस उथल-पुथल के बीच कोलम्बो एयरपोर्ट का काम रुक गया था.

श्रीलंका को संकट से बाहर निकालने में भारत सबसे आगे था. उसने इंटरनैशनल मॉनिटरी फ़ंड (IMF) से बहुत पहले मदद भेज दी थी. श्रीलंका सरकार ने इसके लिए भारत को शुक्रिया भी कहा था.

हालांकि, श्रीलंका पर अभी भी भारी क़र्ज़ा है. इंटरनैशनल मॉनिटरी फ़ंड (IMF) ने लगभग 25 हज़ार करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज की घोषणा की है. मगर IMF की कई शर्तें थीं. सबसे ज़रूरी ये था कि श्रीलंका के क़र्ज़दाता डेट् रिस्ट्रक्चरिंग के लिए राज़ी हों. यानी लोन की शर्तों में ढील दें. चीन सबसे बड़ा क़र्ज़दाता है. श्रीलंका के कुल लोन का 52 फ़ीसदी चीन से मिला है. दूसरे नंबर पर जापान है. तीसरे पर भारत का नाम आता है. जापान और भारत तो तैयार थे ही.

मार्च 2023 में चीन ने भी रज़ामंदी दे दी. इसके बाद IMF ने पैसा रिलीज़ करना शुरू किया. ये कई क़िस्तों में मिलने वाला है. हर बार क़र्ज़दाताओं की सहमति ज़रूरी होती है.
श्रीलंका के पीएम दिनेश गुणवर्धना के चीन दौरे का एक एजेंडा ये भी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, चीन लोन कम करने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि, वो इंटरेस्ट कम करने और समयसीमा बढ़ाने पर विचार कर रहा है. जानकार कहते हैं, इसी वजह से श्रीलंका अपनी अर्थव्यवस्था में चीन का दखल कम नहीं कर पा रहा है. कोलम्बो एयरपोर्ट और हम्बनटोटा बंदरगाह में चीन की एंट्री का एक कारण ये भी है.

श्रीलंका से पहले चीन ने मालदीव के साथ रक्षा समझौते किए हैं. दोनों देश हिंद महासागर में हैं. इनके ज़रिए चीन अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकता है. ग्लोबल शिपिंग रूट पर निगरानी रख सकता है. दक्षिण की तरफ़ से भारत को घेर सकता है. ये भारत और अमेरिका के लिए चिंता की बात है. श्रीलंका का दावा है कि हम्बनटोटा पर चीन की मिलिटरी कभी नहीं आएगी. मगर वो भरोसा ही क्या, जिसे चीन ने ना तोड़ा हो.

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement