अटल बिहारी वाजपेयी. देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री जो अपना कार्यकाल पूराकर पाए. उन्होंने जो गठबंधन सरकार चलाई वो ढेर सारी पार्टियों का समुच्चय थी. घरमें चार बर्तन हों तो आवाज़ होती है. वाजपेयी के इस घर में 17 थे. इन सबको साधकररखने में जो लोग वाजपेयी के खूब काम आए, उनमें एक बड़ा नाम था प्रमोद वेंकटेश महाजनका. भाई के हाथों अपनी ज़िंदगी के असमय अंत से ठीक पहले तक भाजपा के सबसे कद्दावरनेताओं में से एक.'पॉलिटिकल मैनेजर' शब्द गढ़ा गया था तो महाजन के लिए ही. और मैनेजमेंट भी सिर्फराजनीति का नहीं. अर्थनीति के बिना राजनीति नहीं होती, ये अच्छी तरह समझने वालेप्रमोद महाजन के व्यापार जगत में अच्छे खासे संपर्क थे. लेकिन 1999 में जब आखिरकारएनडीए की सरकार बनी और टिकी, तो महाजन को सूचना प्रौद्योगिकी (IT)और संसदीय कार्यका ज़िम्मा तो मिला, मगर उनकी ड्रीम मिनिस्ट्री नहीं मिली.आईटी और कम्यूनिकेशन प्रमोद महाजन का पहला प्यार था. भाजपा में प्रचार ई कैंपेनिंगके ज़रिए करवाने वालों में वो पहले थे. (फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)लेकिन महाजन का सपना पूरा हुआ. वाजपेयी ने तीसरी बार अपने कैबिनेट में फेरबदल किया.2 सितंबर, 2001 को महाजन ने देश के संचार मंत्री का कार्यभार संभाला. महाजन एकडैशिंग छवि वाले नेता थे. उन दिनों बातें होती थीं कि उनकी सदारत में संचारमंत्रालय तेज़ी से काम कर रहा है. लेकिन फिर कहीं से एक बात लीक हो गई जिसने महाजनकी छवि के साथ हमेशा के लिए एक दाग जोड़ दिया. बात ये कि सितंबर 2002 में रिलायंसइन्फोकॉम ने तीन कंपनियों - 'फेयरएवर ट्रेडर्स', 'सॉफ्टनेट ट्रेडर्स' और 'प्रेरणाऑटो' को कुल एक करोड़ शेयर ट्रांसफर कर दिए. हर शेयर की कीमत एक रुपए. इन तीनोंकंपनियों में एक बात कॉमन थी - आशीष देवड़ा से इनका संबंध.आशीष देवड़ा, पूनम महाजन, राहुल महाजन (प्रमोद के बेटी-बेटे) और आनंद राव (पूनम केपति) के साथ मिलकर 'इंफोलाइन' नाम से एक कंपनी चलाते थे. कहा गया कि रिलायंसइंफोकॉम ने शेयर देकर प्रमोद महाजन से बतौर संचार मंत्री मिले 'फायदे' का एहसानचुकाया था. इस मामले पर बाद में सीबीआई जांच भी बैठी थी. इन्हीं दिनों महाजन औरअरुण शौरी (जो वाजपेयी कैबिनेट में मंत्री थे) के बीच भी टकराव खुलकर सामने आया.भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में (अब उप-राष्ट्रपति) वेकैंया नायडू, अटलबिहारी वाजपेयी और उनके कान में कुछ कहते प्रमोद महाजन. कहा जाता था कि प्रमोदमहाजन अपनी बात सीधे अटल से ही कहते थे. (फोटोःइंडिया टुडे आर्काइव)महाजन के इस्तीफे की मांग होने लगी. 1998-1999 का दौर होता तो वाजपेयी को कम सोचनापड़ता. वो समय महाजन के वनवास का था. वो पार्टी में कुछ दरकिनार से हो गए थे.प्रधानमंत्री वाजपेयी से उनकी ज़ाती करीबी का लगातार क्षय हो रहा था क्योंकि वो जगहब्रजेश मिश्रा ने ले रखी थी. लेकिन 2001 का साल खत्म होते-होते प्रमोद महाजन नेतगड़ी वापसी की थी. उनके पास तीन-तीन मंत्रालय थे. उद्योगपतियों से उनके संबंधअच्छे से बेहतर की ओर बढ़ने लगे और प्रधानमंत्री के राज़दार के तौर पर उन्होंनेब्रजेश मिश्रा को किनारे करते हुए खुद को स्थापित कर लिया था. महाजन पीएम के लिएसिंगल पॉइन्ट ऑफ रेफरेंस हो गए. कहा जाने लगा कि सरकार में तीसरे नंबर पर सबसेताकतवर आदमी प्रमोद महाजन हैं.इसीलिए मोदी को राजधर्म का पालन करने को कह देने वाले वाजपेयी के लिए प्रमोद महाजनसे इस्तीफा लेना कतई आसान नहीं था. लेकिन दबाव बढ़ा तो 2003 में वाजपेयी ने एक बारफिर मंत्रिमंडल विस्तार का ऐलान किया और प्रमोद महाजन कैबिनेट से बाहर हो गए. संचारमंत्रालय गया अरुण शौरी को.प्रमोद महाजन का पुनर्वास किया गया संगठन में. पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव औरप्रवक्ता बना दिया गया.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ेंः उस दिन इतने गुस्से में क्यों थे अटल बिहारी वाजपेयी कि 'अतिथि देवोभव' की रवायत तक भूल गए!अटल ने 90s के बच्चों को दिया था नॉस्टैल्जिया 'स्कूल चलें हम'जब केमिकल बम लिए हाईजैकर से 48 लोगों को बचाने प्लेन में घुस गए थे वाजपेयीजिसने सोमनाथ का मंदिर तोड़ा, उसके गांव जाने की इतनी तमन्ना क्यों थी अटल बिहारीवाजपेयी को?अटल बिहारी वाजपेयी की कविता- 'मौत से ठन गई'वीडियोः सोमनाथ चैटर्जी इस भूल पर हमेशा पछताते रह गए