अंक 1बांका का चुनावी वीरभारतीय रेल की दिल्ली-हावड़ा मेन लाइन पर जब पटना से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर आगेहावड़ा की ओर बढ़ते हैं तो एक जगह आती है, मलयपुर. जिला जमुई लगता है. यहीं के एकबड़े जमींदार परिवार में चंद्रशेखर सिंह उर्फ लल्लू बाबू का जन्म हुआ. आजादी मिलतेवक्त 20-21 साल के लल्लू बाबू इकनॉमिक्स में एमए कर रहे थे. पिता को लगा, अंग्रेजोंके जाने पर प्रशासन में पढ़े लिखों को सीधे एसडीएम और डिप्टी एसपी बनाया जा रहा है.चंद्रशेखर भी ऐसा ही करेगा. लेकिन उनका इरादा सियासत का था.1952 में पहले चुनाव हुए. इसके लिए नियम था, 25 साल उम्र जरूरी हो. चुनाव मार्चअप्रैल 1952 में हुए, मगर चंद्रशेखर 17 अगस्त 1952 को 25 साल के हो रहे थे. लेकिनतब नामांकन में वैसी सख्ती नहीं होती थी. साधारण सा प्रपत्र जिसमें बस जन्म का साललिखना होता था. कोई सपोर्टिंग डॉक्युमेंट भी नहीं. नाम, जन्म का वर्ष, गांव-जिला,दो चार प्रस्तावक और पार्टी का सिंबल. बस काम हो गया.चंद्रशेखर का काम पहले ही चुनाव से बन गया. चकाई विधानसभा से विधायक बन वह पटनापहुंचे तो पाया, सबसे कम उम्र के माननीय बन गए हैं. सिलसिला चल निकला. अध्ययनशीलचंद्रशेखर ने विधानसभा की बहसों में हिस्सा लिया तो वरिष्ठों का उन पर ध्यान गया.सत्तर के दशक से लाल बत्ती भी मिलने लगी. केदार, गफूर और जगन्नाथ मिश्र की सरकारमें. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां मिलीं 1980 के एक चुनावी मुकाबले से.ये मुकाबला था महाराष्ट्र के समाजवादी नेता और बिहार के बांका से सांसद मधु लिमयेसे. ये वही मधु लिमये थे, जिन्होंने जनता पार्टी में जनसंघ वालों की दोहरी सदस्यताका मुद्दा उठा बवाल काट दिया. लिमये का तर्क था कि जनता पार्टी के नेता सांप्रदायिकसंगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सक्रिय नहीं रह सकते. इस अड़ेबाजी के फेर मेंआगे चलकर पार्टी और सरकार, दोनों टूटे. लिमये की एक और पहचान थी. धारदार वक्ता.संसद में खड़े होते तो तर्कों और प्रमाणों से मंत्रियों की सियासी बलि ले लेते.अब 80 के लोकसभा चुनाव पर लौटते हैं. बांका लोकसभा सीट पर इन्हीं मधु लिमये कामुकाबला कांग्रेस (आई) यानि इंका के उम्मीदवार चंद्रशेखर सिंह से था. दोनों के बीच1977 के लोकसभा चुनाव में भी मुकाबला हुआ था लेकिन तब बाजी जनता पार्टी के मधुलिमये के हाथ लगी थी. 1980 के चुनाव में दोनों की पार्टी बदल गई थी. 1977 में जनतापार्टी से चुनाव लड़े मधु लिमये इस बार चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टीके टूटे धड़े जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार बने, जबकि 1977 में कांग्रेस केउम्मीदवार रहे चंद्रशेखर सिंह इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के टूटे धड़ेकांग्रेस (ई) यानी इंका के उम्मीदवार बने. नतीजे आए तो विजेता के खांचे के आगे नामलिखा था, चंद्रशेखर सिंह.चंद्रशेखर अनुभवी विधायक थे और बड़े विपक्षी नेता को हरा दिल्ली पहुंचे थे. इंदिराने इसका ख्याल रखा और उन्हें मंत्रिपरिषद में स्थान दिया.अंक 2दिल्ली टु पटना, डायरेक्ट फ्लाइटपटना में राज्य मंत्रिपरिषद चला रहे थे जगन्नाथ मिश्र. तीन साल के अंदरगुटबाजी,विवादास्पद प्रेस बिल, बॉबी हत्याकांड, को-ऑपरेटिव की कथित धांधली, मिनरलपॉलिसी का विरोध. इन सब सुर्खियों के बाद पार्टी के ताकतवर महासचिव राजीव गांधी नेतय किया. भ्रष्ट छवि वाले मुख्यमंत्रियों को विदा किया जाए. महाराष्ट्र के एआरअंतुले, कर्नाटक के गुंडूराव और बिहार के जगन्नाथ की विदाई हो गई. अगस्त के पहलेहफ्ते में जगन्नाथ मिश्र का इस्तीफा हो गया. और शुरू हो गई नए मुख्यमंत्री की खोज.इंका आलाकमान ने दो पर्यवेक्षकों (वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और 'बक्सावाले' अरुणनेहरू) को पटना भेजा. एक-एक कर विधायकों की राय ली गई लेकिन कोई सहमति बनती दिखीनहीं. कई लोग दावेदार हो गए थे. इंका कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी, इंदिरा कैबिनेट मेंशहरी विकास मंत्री भीष्म नारायण सिंह का नाम जोर शोर से चल रहा था. ऐसे मेंपर्यवेक्षकों को दिल्ली से फोन पर संदेश मिला,'केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री और बांका के सांसद चंद्रशेखर सिंह के नाम पर सबकोसहमत कराओ'.मैराथन बैठकें होने लगीं और एक हफ्ते में सहमति बन गई. 13 अगस्त 1983 को प्रणवमुखर्जी ने चंद्रशेखर सिंह को इंका विधायक दल का नेता चुने जाने की घोषणा की. इसघोषणा में Consensus शब्द पर बहुत जोर था. इससे पहले विधायक दल की बैठक में जगन्नाथमिश्र से ही चंद्रशेखर सिंह के नाम का प्रस्ताव रखवाया गया जबकि उनकी सरकार केशिक्षा मंत्री करमचंद भगत ने प्रस्ताव का समर्थन किया. राजीव ने जगन्नाथ के पूरीतरह पर कतरने का फैसला किया था. इसलिए अगले रोज जब चंद्रशेखर ने कैबिनेट समेत शपथली तो जगन्नाथ खेमे के लोगों का खेत खलिहान लुटा नजर आया.चंद्रशेखर कैबिनेट में बड़े नेताओं के सगे-संबंधियों की भरमार थी. बिहार के पहलेमुख्यमंत्री रहे श्रीकृष्ण सिंह के बेटे बंदीशंकर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्रीविनोदानंद झा के बेटे कृष्णानंद झा, केन्द्रीय मंत्री भीष्म नारायण सिंह के समधीब्रजकिशोर सिंह जैसे लोग मंत्री बना दिए गए. रघुनाथ झा जैसे जगन्नाथ मिश्र समर्थकगायब कर दिए गए. एक दिलचस्प बात और जान लीजिए. पहली बार के विधायक जीतन राम मांझीभी इस सरकार में पहली दफा राज्यमंत्री बने.मुख्यमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर सिंह ने बांका की सीट पर विधायकी का उपचुनावजीतकर विधानसभा भी पहुंच गए. लेकिन चर्चे हुए उनके कहीं भी बिना लाल बत्ती की गाड़ीके पहुंच जाने के. ताकि जमीनी हकीकत से वाकिफ रहें. फिर मौके से ही प्रशासनिक अमलेको खुराक दी जाती. चंद्रशेखर सिंह ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को भी दुरुस्त किया.इन्हीं सब वजहों से उन्हें धोती कुर्ते वाला आईएएस कहा जाने लगा. इंका महासचिवराजीव गांधी को भी इसी तरह के लोग पसंद आते थे. यानी फिलहाल के लिए कुर्सी सुरक्षितथी. लेकिन इसी फिलहाल के दौरान जगन्नाथ भी एक्टिव थे.चंद्रशेखर सीएम बनने के बाद बांका की सीट पर विधायकी का उपचुनाव जीतकर विधानसभा भीपहुंचे थे.अंक 3मैथिल ब्राह्मण वर्सेस राजपूतचंद्रशेखर सिंह ने कार्यकाल के शुरू से ही बिहार कांग्रेस में जगन्नाथ मिश्र केविरोधियों को तवज्जो दी. नागेन्द्र झा (जिनके बेटे मदन मोहन झा अभी बिहार प्रदेशकांग्रेस के अध्यक्ष हैं), ललितेश्वर प्रसाद शाही, शिवचंद्र झा जैसे लोगों की धाकजमने लगी. इसके बाद प्रदेश इंका अध्यक्ष रामशरण प्रसाद सिंह ने चुन-चुन कर जगन्नाथमिश्र समर्थक जिला अध्यक्षों की भी छुट्टी कर दी. फिर दबी छुपी खबर आई कि जिस बंगलेमें जगन्नाथ मिश्र जनता दरबार लगाते थे, वहां हड्डियां मिलीं.जगन्नाथ समर्थक अब मुखर हो गए. मुख्यमंत्री के खिलाफ साजिश करने के आरोप लगने लगे.खुद जगन्नाथ भाषा कार्ड खेलने में जुट गए. उन्होंने मैथिल अखबार निकाला और इस भाषाको संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का राग भी अलावा. चंद्रशेखर ने इसकेकाउंटर में राजपूत कार्ड खेला और आरा जाकर वीर कुंवर सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटीबनाने का ऐलान कर दिया. लोगों ने कहा कि अधिकारियों की नियुक्ति में भी राजपूतवादहावी हो गया.ये सब खबरें 24 अकबर रोड पहुंच रही थीं. राजीव ने फौरन बिहार मामलों की निगरानी केलिए तीन सदस्यों (जी के मूपनार, चंदूलाल चंद्राकर और सी एम स्टीफन) की कमेटी बनाई.फिर केसी पंत को पटना भेजकर दोनों गुटों को एक मेज पर बैठाया गया और कुछ वक्त केलिए दिखावे की एकता कायम हो गई.इसी बीच 31 अक्टूबर 1984 को इन्दिरा गांधी की हत्या हो गई और राजीव प्रधानमंत्री बनगए. पूरे देश में सिख विरोधी दंगे भड़के. बिहार के पटना, जमशेदपुर, धनबाद समेत कईशहर चपेट में आए. फिर लोकसभा चुनाव हुए तो इंका को बड़ी सफलता मिली. 54 में से 48सीटें. मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह भी बांका से सांसद हो गईं.कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव थे. लेकिन उसके पहले संगठन में एक नियुक्ति की गईऔर यहीं से खेल पलट गया.अंक 5बंसीलाल का ऐलान, बिंदेश्वरी का निशानफरवरी-मार्च 1985 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ. इसके पहले राजीव गांधी ने धनबादके मजदूर नेता और नसबंदी के दौर में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रहे बिंदेश्वरी दुबेको इंका का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. दुबे को इसलिए लाया गया ताकि जगन्नाथ मिश्र औरचंद्रशेखर सिंह का विवाद चुनावों को प्रभावित न कर सके. बिंदेश्वरी दुबे किसी गुटके नेता नहीं थे. लेकिन जब चुनाव के लिए टिकटों का बंटवारा शुरू हुआ तब जगन्नाथमिश्र समर्थक 22 लोगों का टिकट काट दिया गया. इनमें रघुनाथ झा और सदानंद सिंह(मौजूदा कांग्रेस विधायक दल के नेता) भी शामिल थे. रघुनाथ जगन्नाथ के लिए लॉबीइंगके चक्कर में रह गए. हालांकि चुनाव उन्होंने लड़ा, जनता पार्टी के टिकट पर. शिवहरसे और जीते भी. विधानसभा अध्यक्ष राधानंदन झा बॉबी हत्याकांड के चलते निपटे. लेकिनलोगों को अचरज भीष्म नारायण सिंह के समधी ब्रजकिशोर सिंह के टिकट कटने पर हुआ, वोचंद्रशेखर सिंह के समर्थक माने जाते थे.ब्रजकिशोर सिंह पूर्वी चंपारण की मधुबन सीट से विधायक थे. चंद्रशेखर सिंह की सरकारमें स्वास्थ्य मंत्री भी थे. वह 2 वजहों से विवादों में आ गए.पहली वजह : पूर्वी चंपारण के डीएम राजकुमार सिंह (वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकारमें ऊर्जा मंत्री) ने अवैध अतिक्रमण हटाने के क्रम में मोतीहारी में ब्रजकिशोर सिंहके घर की बाउंड्री वॉल को गिराया. मंत्री जी ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लियाऔर आरके सिंह का ट्रांसफर हो गया. मगर ऊपर बात नोट कर ली गई.दूसरी वजह : 1984 के लोकसभा चुनाव में शिवहर लोकसभा सीट पर इंका कैंडिडेट रामदुलारीसिनहा से भितरघात का इल्जाम. ब्रजकिशोर की एक कठित चिट्ठी वायरल हुई, उनकी अपनीहैंड राइटिंग में. इसमें वो समर्थकों से रामदुलारी के मुकाबले जनता पार्टीउम्मीदवार हरिकिशोर सिंह को तरजीह देने की बात कर रहे थे. इस चिट्ठी की एक प्रतिराजीव गांधी तक पहुंच गई. उलटी गिनती यहीं से शुरू हो गई.अब 1985 के विधानसभा चुनाव पर लौटते हैं. इंका ने 324 सदस्यीय बिहार विधानसभा में198 सीटें जीतीं. मगर चंद्रशेखर सिंह खुश नहीं दिख रहे थे. उन्हें दिल्ली में बैठेमित्रों से कुछ और ही संकेत मिल रहे थे. फिर पटना पहुंचे केंद्रीय रेल मंत्री औरहरियाणा के नेता बंसीलाल. उन्होंने विधायकों से एक एक कर मुलाकात की. फिर राजीव कोफोन पर बतायामान्यवर, चंद्रशेखर के पक्ष में 30 जबकि विपक्ष में 100 से ज्यादा विधायक हैं. बाकीकह रहे हैं, जो आप तय करें.राजीव तो पहले ही तय करे बैठे थे, उन्होंने बंसीलाल को बिंदेश्वरी दुबे के नाम काऐलान करने को कह दिया.और इस तरह चुनाव जीतकर भी सत्ता गंवाने वाले चंद्रशेखर सिंह बिहार के इकलौतेमुख्यमंत्री बन गए. ठाकुरवाद और भ्रष्टाचार के आरोप चुनावी सफलता पर भारी पड़े.चंद्रशेखर अनुभवी विधायक थे और बड़े विपक्षी नेता को हरा दिल्ली पहुंचे थे. इंदिराने इसका ख्याल रखा और उन्हें मंत्रिपरिषद में स्थान दिया.अंक 6जॉर्ज द जाइंट किलर को हराने वालामुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद राजीव गांधी ने चंद्रशेखर सिंह को अपनी कैबिनेट मेंएडजस्ट करने की योजना बनाई. चंद्रशेखर सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह ने बांका कीलोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. 1985 के आखिर में उपचुनाव तय हुए. और आ गयाकहानी में ट्विस्ट. 1984 में बिहार की मुजफ्फरपुर छोड़ बेंगलुरु सीट से लड़े औरहारे जनता पार्टी के फायरब्रैंड नेता जॉर्ज फर्नांडिस बांका आ गए. जोरदार मुकाबलाऔर दोनों तरफ से गड़बड़ी. जनसत्ता अखबार के लिए चुनाव कवर कर रहे थे सुरेंद्रकिशोर. उनकी खबर का शीर्षक था, दो तरफा धांधली. चंद्रशेखर सिंह के लिए प्रशासनिकअमला लगा था तो जॉर्ज के लिए धनबाद के बाहुबली सूर्यदेव सिंह छपाई कर रहे थे.आखिर में सरकार भारी पड़ी. चंद्रशेखर सांसद और फिर मंत्री हो गए. पहले राज्यमंत्रीऔर फिर पेट्रोलियम का कैबिनेट प्रभार. इस बीच उन्हें कैंसर हो गया. एम्स में इलाजशुरू हुआ और यहां 9 जुलाई 1986 को उनका निधन हो गया.बांका में फिर उपचुनाव हुआ. इंका की तरफ से चंद्रशेखर की पत्नी और पूर्व सांसदमनोरमा सिंह. जनता पार्टी से एक बार फिर जॉर्ज. मनोरमा जीत गईं. लेकिन 1989 मेंउन्हें जनता दल के टिकट पर लड़ रहे वीपी सिंह के समधी प्रताप सिंह ने हरा दिया.चंद्रशेखर की राजनीतिक विरासत यहीं पर थमी. उनके बेटे विधुशंकर सिंह I.R.S. अधिकारीहैं और दिल्ली में रहते हैं जबकि बेटी कंचन सिंह अपने परिवार के साथ जमशेदपुर मेंरहती हैं.