अधिकारियों के रिश्तेदारों को मिलीं यूपी विधान परिषद की नौकरियां, कोर्ट ने बताया 'चौंकाने वाला घोटाला'!
Uttar Pradesh विधानमंडल सचिवालय में 186 पदों के लिए हुई भर्ती पर Allahabad Highcourt ने सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने इस परीक्षा की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे चौंकाने वाला घोटाला बताया है. इन नौकरियों का पांचवां हिस्सा राज्य के VVIP अधिकारियों और नेताओं से जुड़े अभ्यर्थियों को मिला है.
उत्तर प्रदेश विधानमंडल के लिए 186 पदों के लिए भर्ती (Uttar Pradesh Job) निकली थी. 2020-21 में इसके लिए दो राउंड की परीक्षा कराई गई. असली खेल उसके बाद हुआ. इन नौकरियों का पाँचवां हिस्सा उन अभ्यर्थियों को मिला जो विधानमंडल से जुड़े अधिकारियों के रिश्तेदार थे. और इन्हीं अधिकारियों की निगरानी में परीक्षा आयोजित की गई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे ‘चौंकाने वाला घोटाला’ करार दिया. और अधिकारियों की निष्ठा और भाई भतीजावाद पर सवाल उठाया. इन नौकरियों के लिए लगभग 2.5 लाख लोगों ने आवेदन किया था.
इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े श्यामलाल यादव की रिपोर्ट के मुताबिक, सफल उम्मीदवारों की लिस्ट में तत्कालीन उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के PRO और उनके भाई, एक मंत्री का भतीजा, विधान परिषद सचिवालय प्रभारी का बेटा, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, संसदीय कार्य विभाग प्रभारी के बेटा और बेटी, एक उप लोकायुक्त का बेटा और दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व स्पेशल ड्यूटी अधिकारी के बेटे शामिल हैं. इसके अलावा इस लिस्ट में दो प्राइवेट फर्म TSR डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदार भी शामिल हैं. जिन्होंने कोविड की पहली लहर के दौरान यह परीक्षा आयोजित कराई थी.
इन सभी उम्मीदवारों को तीन साल पहले उत्तर प्रदेश विधानमंडल से जुड़े दो सचिवालयों में नियुक्त किया गया था. 18 सितंबर 2023 को तीन असफल उम्मीदवारों सुशील कुमार, अजय त्रिपाठी और अमरीश कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो जजों की पीठ ने मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया. कोर्ट ने इस प्रक्रिया को चौंकाने वाला और भर्ती घोटाला बताया. जहां गैरकानूनी तरीके से एक बाहरी एजेंसी द्वारा सैंकड़ों भर्तियां कराई गईं, जिसकी विश्वसनीयता पर सवाल थे.
हाई कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, विधानसभा में भर्ती का ठेका ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज (BECIL) को दिया गया था. जो केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है. BECIL ने TSR डेटा प्रोसेसिंग को काम पर रखा था. वहीं इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, विधानपरिषद में भर्ती का ठेका राभव नाम की एक प्राइवेट फर्म को दिया गया था. हालांकि, सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया में गोपनीयता का हवाला देते हुए कोर्ट में फर्म का नाम नहीं बताया.
अभ्यर्थी गए थे कोर्टइस भर्ती के खिलाफ 2021 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. 18 सितंबर 2023 को दो याचिकाओं को जोड़ते हुए कोर्ट ने इन याचिकाओं को जनहित याचिका में बदल दिया. और फिर दो जजों की बेंच को सुनवाई का जिम्मा दिया गया. दो जजों की बेंच ने मामले में सीबीआई जांच का आदेश देते हुए इस भर्ती परीक्षा में बाहरी एजेंसियों को शामिल करने की आलोचना की. कोर्ट के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, दोनों प्राइवेट फर्म के मालिकों को पहले एक अन्य भर्ती में कथित हेराफेरी के आरोप में जेल भेजा गया था. और मामला लंबित होने के चलते वे जमानत पर हैं.
साल 2016 तक सचिवालय के लिए भर्ती परीक्षा यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा कराई जाती थी. लेकिन इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा और साल 2019 में उत्तर प्रदेश विधानपरिषद ने नियम में संशोधन कर खुद से ये परीक्षाएं आयोजित कराने का निर्णय किया.
हाईकोर्ट ने इन संशोधनों पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह देखकर आश्चर्य हुआ कि क्यों नियमों में संशोधन करके परीक्षा एजेंसी को हटा दिया गया. चयन समिति के नियम को दरकिनार करके बाहरी एजेंसी को नियुक्त करने का निर्णय काफी चौंकाने वाला था.
विधानमंडल में हुई इन भर्तियों के तार उत्तर प्रदेश के राजनेताओं से भी जुड़ रहे हैं. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू के भतीजे की विधानसभा RO के पद पर नियुक्ति हुई है. वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के PRO की नियुक्ति विधानपरिषद के प्रकाशन विभाग में हुई. यह एक नव निर्मित पद है. इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस के सवाल के जवाब में हृदयनारायण दीक्षित ने बताया कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी. वह उनके साथ थे. और बाद में परिषद सचिवालय में नियुक्त हुए.
उत्तर प्रदेश विधान परिषद की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी है. और इस मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2025 को निर्धारित की गई है.
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