पंजाब: पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने 'तनखैया' के तौर पर सेवा दी, ये होता क्या है?
Tankhaiya होता क्या है? इसके तहत Sukhbir Badal को सजा सुनाई गई है. उन्हें सेवादार का चोला पहनकर पहरेदारी करनी होगी.
पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Badal) ने ‘तनखैया’ के तौर पर अपनी सेवा दी. सिख समाज की सबसे बड़ी संस्था श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से दी गई सजा को ‘तनखैया’ कहते हैं. ये एक तरह की 'धार्मिक सजा' होती है जो किसी सिख को ही दी जाती है. 3 दिसंबर को सुखबीर बादल का तनखैया के रूप में सेवा देते हुए दृश्य सामने आए.
उन्हें श्री दरबार साहिब, अमृतसर के परिसर के बाहर हाथ में बरछा थामे सेवा देते देखा गया. उनके गले में तख्ती लगी थी जिस पर पंजाबी भाषा में लिखा था,
पूरा मामला क्या है?“मैं पापी हूं, आप क्षमाशील (माफ करने वाले) हैं. जिस पापी को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिलती, यदि वो आपकी शरण में आए तो वो निष्कलंक और शुद्ध हो जाता है.”
सुखबीर बादल के साथ-साथ 17 लोगों को ये सजा सुनाई गई है. इनमें 2015 की अकाली सरकार की कैबिनेट का हिस्सा रहे नेता भी शामिल हैं. इन सभी की सजा आज यानी 3 दिसंबर से शुरू हो गई है. श्री अकाल तख्त ने इस मामले को लेकर 2007 से 2017 तक सरकार की पूरी अकाली कैबिनेट को तलब किया था. साथ ही पार्टी की कोर कमेटी और 2015 शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की आंतरिक कमेटी को भी तलब किया था. इस मामले पर 4 घंटे तक सजा की सुनवाई की गई.
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30 अगस्त को इन 17 लोगों को तनखैया घोषित किया गया था. सुखबीर पर आरोप था कि साल 2015 में उन्होंने सिखों की पवित्र पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब के बेअदबी मामले में दोषियों को सजा नहीं दी. और श्रीगुरु गोविंद सिंह जी की तरह कपड़े पहनकर अमृत छकाने का स्वांग रचने के आरोपी गुरमीत राम रहीम सिंह को माफी दिलाने में भूमिका निभाई. जिस वक्त ये सब मामले हुए तब सुखबीर के पिता प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री थे.
इनको दरबार साहिब के बाथरूम की सफाई करने की सजा दी गई है. साथ ही इन्हें अपने घर के आसपास के गुरुद्वारा में जाना होगा. और वहां एक घंटे तक बर्तन साफ करने होंगे. ये लंगर में भी सहयोग करेंगे. बर्तन भी साफ करेंगे.
Tankhaiya की शुरुआत कैसे हुई?ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, तनखैया की शुरुआत 10वें सिख गुरु और खालसा परंपरा के संस्थापक, गुरु गोबिंद सिंह से हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1707 में गुरु गोबिंद सिंह राजस्थान में दादू द्वार मंदिर पहुंचे थे. वहां उन्होंने सिख संहिता का उल्लंघन करते हुए संत दादू दयाल की समाधि (मकबरा) पर तीर चढ़ाया. इसका उद्देश्य उनके खालसा अनुयायियों की शिक्षा के प्रति आस्था का परीक्षण करना था. उनकी खुद की तैयार की गई संहिता के उल्लंघन के लिए उन्हें कराह प्रसाद चढ़ाकर प्रायश्चित करने को कहा गया. गुरुद्वारों में चढ़ाए जाने वाले हलवा को कराह प्रसाद कहते हैं. गुरु गोबिंद सिंह ने कराह प्रसाद चढ़ाकर इस प्रक्रिया को सम्मान और विश्वसनियता प्रदान की.
इस परंपरा के अनुसार, कोई भी सिख अपने धार्मिक दुराचार को स्वीकार करने के लिए अकाल तख्त साहिब में आत्मसमर्पण कर सकता है. और अकाल तख्त, उल्लंघन करने वाले सिख को तलब भी कर सकते हैं. ज्यादातर मामलों में, तनखैया को उनकी सजा के रूप में कराह प्रसाद चढ़ाने, गुरबानी या भजन सुनाने, बर्तन धोने और जूते साफ करने जैसी सेवाएं करने के लिए कहा जाता है.
सेवा नहीं देने वालों के साथ क्या होता है?कोई भी सिख किसी ऐसे व्यक्ति से संवाद या संबंध नहीं रख सकता जिसे तनखैया घोषित किया गया हो. तनखैया का बहिष्कार तभी समाप्त हो सकता है जब वो संबंधित तख्त द्वारा घोषित सजा के अनुसार अपना प्रायश्चित पूरा कर लें. तनखैया सिख स्वर्ण मंदिर में प्रार्थना कर सकते हैं, लेकिन अकाल तख्त साहिब में नहीं.
इतिहास में शेर-ए-पंजाब यानी महाराजा रणजीत सिंह को एक मुस्लिम महिला के घर जाने के लिए तनखैया करार दिया गया था. सजा के तौर पर उनपर कोड़े बरसाए गए थे. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कई बड़े नेताओं को तनखैया घोषित किया गया था. इस लिस्ट में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, राजीव गांधी के करीबी रहे और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह जैसे नाम शामिल हैं. साथ ही दिवंगत अकाली नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला को भी तनखैया घोषित किया गया था.
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