रास्ता नहीं देने पर ड्रग्स केस में फंसाया, जांच में पैरासिटामोल निकली, SI पर दो लाख का जुर्माना
3 दिसंबर को हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित को एक महीने के भीतर 2 लाख रुपये का मुआवजा दे. इस मुआवजे की 50 फीसदी राशि दोषी SI के वेतन से वसूल की जाए.
क्या पुलिस की गाड़ी को साइड न देने पर आपको जेल हो सकती है? आपके मन में सवाल आएगा कि ऐसा कहां होता है. लेकिन पंजाब में कुछ ऐसा ही हुआ है. पंजाब पुलिस के एक अधिकारी की कार को रास्ता न देना एक व्यक्ति को बहुत महंगा पड़ गया. पुलिस ने उस व्यक्ति को ड्रग्स केस में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. बाद में फोरेंसिक रिपोर्ट से पता चला कि जब्त सामग्री पैरासिटामोल की दवा थी. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पीड़ित को बरी करते हुए राज्य पुलिस को जमकर फटकार लगाई.
पंजाब के कपूरथला के रहने वाले पीड़ित व्यक्ति ने हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की. उसने कोर्ट को बताया कि उसे झूठे केस में फंसाया गया. याचिकाकर्ता ने बताया कि उसने सब इंस्पेक्टर राजिंदर सिंह की गाड़ी को साइड नहीं दी थी. क्योंकि रास्ता संकरा था. इस बात से नाराज SI ने पहले उसे धमकाया, फिर कुछ दवाइयां रखकर उसे झूठे ड्रग्स केस में फंसा दिया.
इंडिया टुडे से जुड़ीं अनीषा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित व्यक्ति ने बताया कि उसे 24 जून 2024 को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने 26 जून को FIR दर्ज की थी. पीड़ित के मुताबिक उसे अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया. और उसके परिवार को सूचना तक नहीं दी गई.
इस मामले में 21 अगस्त को पंजाब सरकार ने फोरेंसिक साइंस लैब (FSL) की रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपी. इसमें पता चला कि जब्त सामग्री एसिटामिनोफेन (पैरासिटामोल) थी. याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे जबरन 2 महीने 15 दिन तक हिरासत में रखा गया.
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इसके बाद, 13 सितंबर को ही हाई कोर्ट ने पीड़ित व्यक्ति को जमानत दे दी. मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट ने IG अधिकारी को जांच के आदेश दिए. IG ने जांच करते हुए मामले की रिपोर्ट नवंबर में कोर्ट में जमा कर दी.
इसके बाद 3 दिसंबर को हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित को एक महीने के भीतर 2 लाख रुपये का मुआवजा दे. इस मुआवजे की 50 फीसदी राशि दोषी SI के वेतन से वसूल की जाए. जस्टिस कीर्ति सिंह की बेंच ने फैसले में कहा,
"हम पुलिस अधिकारियों की मनमानी से बहुत परेशान हैं. ऐसे घोर उल्लंघन को देखना भयावह है. जहां कानून के शासन को बनाए रखने का कर्तव्य निभाने में विफलता हुई है. यह आचरण अस्वीकार्य और अत्यंत चिंताजनक है. दोषी अधिकारियों के आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता."
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि पीड़ित की निजता का भी ध्यान रखा जाए. हाई कोर्ट ने सभी डिजिटल रिकॉर्ड से पीड़ित का नाम और पहचान गुप्त रखने का निर्देश दिया है.
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