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कंपनियों ने जमकर कमाया मुनाफा, मगर कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ाई

व्यापारिक संगठन FICCI और क्वेस कॉर्प लिमिटेड ने सरकार के लिए एक रिपोर्ट तैयार की है. कर्मचारियों के लिए ये स्थिति बदतर इसलिए भी है क्योंकि इन्फ्लेशन रेट, उनकी सैलरी के बढ़ने की दर से कहीं ज्यादा है.

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Economic Growth Rate
कंपनियों का मुनाफा जिस गति से बढ़ी है, उस गति से उनकी आय नहीं बढ़ी. (सांकेतिक तस्वीर: AI)
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रवि सुमन
12 दिसंबर 2024 (Published: 11:54 IST)
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कंपनियों का मुनाफा तो बढ़ा लेकिन कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ी! मतलब बढ़ी, लेकिन इतनी भी नहीं कि कर्मचारी बढ़ती महंगाई को संभाल पाएं. इस साल के जुलाई से सितंबर की तिमाही में देश के आर्थिक विकास दर (economic growth rate) में भारी गिरावट आई है. पॉलिसी मेकर्स के लिए चिंताजनक स्थिति बनाते हुए आर्थिक विकास दर 5.4 प्रतिशत हो गई है. चिंता की बात इसलिए भी है कि पिछले 4 साल में कॉरपोरेट सेक्टर को 4 गुना मुनाफा हुआ है. लेकिन इसके बावजूद उनकी आय में बहुत ही कम वृद्धि हुई है. आय में सिंगल डिजिट की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इस मामले को आसान भाषा में समझते हैं. नंबरों का ये जाल बना कैसे?

किसी अवधि में GDP जिस गति से बदल रही होती है, उसी को आर्थिक विकास दर कहते हैं. इसको प्रतिशत में मापते हैं. और आसान करते हैं. किसी देश में किसी खास समय अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में आने वाले बदलाव को आर्थिक विकास दर कहते हैं. देश के लोग जितना खर्च करते हैं, उससे भी GDP और आर्थिक विकास दर पर असर पड़ता है. अब ज्यादा मुनाफे के बाद भी उसी तुलना में कंपनी की आय क्यों नहीं बढ़ी, इसको एक उदाहरण से आगे समझेंगे.

कोई कंपनी एक प्रोडक्ट बनाती है. इस प्रोडक्ट को बनाने में 30 रुपये का रॉ मटेरियल लगता है, 10 रुपये मजदूरों को सैलरी दी जाती है, 10 रुपये मार्केटिंग और 10 रुपये के अतिरिक्त खर्च होते हैं. इस तरह प्रोडक्ट की लागत हुई 60 रुपये. कंपनी ने उस सामान को 100 रुपये में बेचा. ऐसे ही कंपनी ने कुल 5 सामान बेचा. इस तरह कंपनी के पास 500 रुपये आए. मतलब कि कंपनी की आय 500 रुपये हुई. आय में शेयर और निवेश जैसी चीजें भी शामिल होती हैं, लेकिन फिलहाल उसको शून्य मान कर चलते हैं. इस तरह कंपनी को एक प्रोडक्ट पर 40 रुपये का मुनाफा (आय 100 - लागत 60) हुआ. कंपनी ने 5 प्रोडक्ट बेचे थे तो कुल 200 रुपये का मुनाफा हुआ.

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अब तक कंपनी की आय 500 रुपये है और मुनाफा 200 रुपया है. अब स्थिति बदलते हैं. उसी प्रोडक्ट में कंपनी 30 रुपये का रॉ मटेरियल लगाती है. लेकिन अब मजदूरी के लिए दी जाने वाली सैलरी मात्र 5 रुपये है, मार्केटिंग के लिए 10 रुपये और अन्य खर्चों के लिए 5 रुपये हैं. तो इस बार इस सामान को बनाने में 50 रुपये का खर्च आया. 100 रुपये के मूल्य से कंपनी ने 5 सामान बेचा. कंपनी की आय फिर से 500 रुपये ही हुई. लेकिन चूंकि, पहले की तुलना में लागत कम थी, इसलिए उस सामान को बेचने से कंपनी को ज्यादा मुनाफा हुआ. कंपनी ने पहले इसी सामान को बनाने में 300 रुपये खर्च किए थे. लेकिन इस बार कंपनी ने सिर्फ 250 रुपये खर्च किए. इस तरह कंपनी को इस बार 250 रुपये का मुनाफा हुआ.

इस तरह मजदूरी की सैलरी और दूसरे खर्चे कम करने से कंपनी की आय तो उतनी ही रही लेकिन मुनाफा बढ़ गया. कर्मचारियों की सैलरी से समझौता या सैलरी को इग्रनोर करना इनके कारणों में से एक हो सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यापारिक संगठन FICCI और क्वेस कॉर्प लिमिटेड ने सरकार के लिए एक रिपोर्ट तैयार की है. FICCI यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री. क्वेस कॉर्प आउटसोर्सिंग के जरिए ग्राहकों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए काम करती है. वर्तमान में इसके 3 हजार से ज्यादा क्लाइंट हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 तक 6 क्षेत्रों में मिलने वाली मजदूरी में सलाना मात्र 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. ये वृद्धि इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रोसेस और इंफ्रास्ट्रक्चर (EMPI) कंपनियों में हुई है. वहीं फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) फर्म्स में इन सालों में मजदूरी को 5.4 प्रतिशत बढ़ाया गया है. FMCG में कम कीमत पर बेचे जाने वाले रोजमर्रा के उत्पाद से जुड़ी कंपनियां आती हैं.

यानी कि अगर आप EMPI क्षेत्र में सलाना 100 रुपये की मजदूरी पर काम करते थे तो एक साल बाद इसे बढ़ाकर औसतन 100 रुपये 80 पैसेे कर दिया गया. वहीं अगर आप इसी कीमत पर FMCG में काम करते हैं तो एक साल में इसे बढ़ाकर औसतन 105 रुपये और 40 पैसेे किया गया है. कर्मचारियों के लिए ये स्थिति बदतर इसलिए भी है कि इन्फ्लेशन रेट, उनकी सैलरी के बढ़ने की दर से कहीं ज्यादा है. इन्फ्लेशन रेट माने कि महंगाई बढ़ने की दर. 

2019-20 से 2023-24 तक रिटेल इन्फ्लेशन क्रम से 4.8 प्रतिशत, 6.2 प्रतिशत, 5.5 प्रतिशत, 6.7 प्रतिशत और 5.4 प्रतिशत तक बढ़े हैं. 

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन ने कॉरपोरेट सम्मेलनों में अपने दो संबोधनों में फिक्की-क्वेस रिपोर्ट का उल्लेख किया. उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय उद्योग जगत को अपने भीतर झांकने की जरूरत है, और संभवत: इस बारे में कुछ करने की जरूरत है. सरकार से जुड़े सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कम आय, कम खपत का एक कारण है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. सूत्र ने कहा कि कोविड के बाद खपत बढ़ी थी. लेकिन सैलरी बढ़ने की धीमी गति के कारण चिंता की स्थिति बन गई.

FICCI-क्वेस रिपोर्ट के परिणाम पब्लिक डोमेन में नहीं है. लेकिन मीडिया ने इस तक अपनी पहुंच बनाई. इसके अनुसार, BFSI (बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, बीमा) क्षेत्र में 2019-23 के दौरान मजदूरी में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. खुदरा क्षेत्र में 3.7 प्रतिशत, IT में 4 प्रतिशत और लॉजिस्टिक्स में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

स्पष्ट अंकों में बात करें तो 2023 में FMCG क्षेत्र के लिए औसत वेतन सबसे कम औसतन 19,023 रुपये रहा. 2023 में IT क्षेत्र के लिए सबसे अधिक वेतन औसतन 49,076 रुपये रहा.

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