मुसलमानों पर बोलने वाले जस्टिस शेखर यादव को हटाने की तैयारी, राज्यसभा में महाभियोग नोटिस आया
नोटिस में सांसदों ने आरोप लगाया है कि जस्टिस यादव के भाषण को देखने से लगता है कि यह "नफरत फैलाने वाला" और "सांप्रदायिक सद्भावना को खराब" करने वाला है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव (Justice Shekhar Yadav) को पद से हटाने विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सौंपा है. उनके खिलाफ इस प्रस्ताव पर विपक्षी दलों के 55 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं. यानी ये संख्या राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी 50 सांसदों की संख्या से अधिक है. जस्टिस शेखर यादव ने हाल में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बयान दिया था.
13 दिसंबर को विपक्षी सांसदों ने कपिल सिब्बल के नेतृत्व में महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस राज्यसभा के महासचिव को सौंपा. जस्टिस शेखर के खिलाफ न्यायाधीश (जांच) कानून, 1968 और संविधान के अनुच्छेद-218 के तहत ये महाभियोग का नोटिस दिया गया है. इस प्रस्ताव पर इसी शीतकालीन सत्र पर चर्चा होने की उम्मीद है. नोटिस पर हस्ताक्षर करने वालों में पी चिदंबरम, रणदीप सुरजेवाला, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक, राघव चड्ढा, संजय सिंह, वी शिवदासन और रेणुका चौधरी भी हैं.
'जस्टिस शेखर ने हेट स्पीच दिया'बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, नोटिस में सांसदों ने आरोप लगाया है कि जस्टिस यादव के भाषण को देखने से लगता है कि यह "नफरत फैलाने वाला" और "सांप्रदायिक सद्भावना को खराब" करने वाला है, जो भारत के संविधान का उल्लंघन करता है. ये भी लिखा गया है कि जस्टिस यादव ने अपनी टिप्पणियों से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए उनके प्रति पूर्वाग्रह और पक्षपात को जाहिर किया है.
नोटिस में ये भी कहा गया है कि जस्टिस शेखर यादव ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर बयान देकर 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुर्नकथन, 1997' (Restatement of Values of Judicial Life, 1997) का उल्लंघन किया है. इस पुनर्कथन के क्लॉज-8 में लिखा है कि किसी भी जज को, राजनीतिक मसलों या वैसे मसले जिन पर न्यायिक रूप से विचार होने की संभावना हो, सार्वजनिक रूप से बयान नहीं देना चाहिए.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सांसदों ने नोटिस में कहा है कि जस्टिस यादव का बयान संविधान के अनुच्छेद-51 (A)(E) के तहत नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जो सद्भाव और लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय भाईचारे को बढ़ावा देने की बात करता है.
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नोटिस में राज्यसभा के सभापति से अपील की गई है कि वे इस प्रस्ताव को स्वीकार करें और इसे न्यायाधीश (जांच) कानून, 1968 के तहत राष्ट्रपति को भेजें. और जज के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करें. यह भी मांग की गई है कि अगर जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ आरोप साबित हो जाएं तो उन्हें पद से हटाने के लिए उचित कार्यवाही शुरू करें.
जस्टिस शेखर ने क्या कहा था?8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद की लीगल शाखा की तरफ से प्रयागराज में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. ये कार्यक्रम हाई कोर्ट परिसर के भीतर लाइब्रेरी हॉल में आयोजित किया गया था. यहीं पर जस्टिस शेखर यादव ने कहा था,
“ये कहने में बिल्कुल गुरेज नहीं है कि ये हिंदुस्तान है. हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा. यही कानून है. आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं. कानून तो भईया बहुसंख्यक से ही चलता है. परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए. जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है.”
जस्टिस शेखर ने ये भी कहा था कि 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं. उन्होंने कहा था,
“जो कठमुल्ला हैं, शब्द गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं. जनता को बहकाने वाले लोग हैं. देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं. उनसे सावधान रहने की जरूरत है.”
उनकी इन टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था. 10 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने उनके बयान को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट से विस्तृत ब्योरा मांगा था.
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