ISKCON ने चिन्मय कृष्ण दास से किया किनारा, इतनी चर्चा में कब से और कैसे आए?
ISKCON ने 28 नवंबर को एक बयान जारी कर कहा कि चिन्मय कृष्णा दास का बयान उनकी निजी राय है. इससे पहले 25 नवंबर को ISKCON ने एक पोस्ट कर चिन्मय दास को गिरफ्तार किए जाने की निंदा की थी
ISKCON बांग्लादेश ने हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण दास के मुद्दे से खुद को अलग कर लिया है. संस्था ने 28 नवंबर को एक बयान जारी कर कहा कि चिन्मय कृष्ण दास का बयान उनकी निजी राय है. इससे पहले 25 नवंबर को ISKCON ने एक पोस्ट कर चिन्मय दास को गिरफ्तार किए जाने की निंदा की थी. उधर, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी चिन्मय की गिरफ्तारी की निंदा की है.
इस्कॉन का चिन्मय दास से किनाराइंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कॉन्शियसनेस यानी ISKCON के दुनियाभर में एक हज़ार से अधिक केंद्र हैं. ISKCON बांग्लादेश के महासचिव चारु चंद्र दास ने 28 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की. बांग्लादेशी मीडिया संस्थान ‘ढाका ट्रिब्यून’ की वेबसाइट पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चारु चंद्र दास ने चिन्मय कृष्ण दास को लेकर बयान जारी किया. उन्होंने कहा,
“लीलाराज गौर दास, गौरांग दास और चिन्मय कृष्ण दास को कुछ महीने पहले अनुशासनत्मक कार्रवाई के तहत ISKCON से जुड़े सभी पदों और संगठनात्मक गतिविधियों से हटा दिया गया था. यह साफ तौर पर कहा गया था कि उनके बयानों से इस्कॉन का कोई संबंध नहीं है.”
ISKCON बांग्लादेश ने 26 नवंबर को जारी किए एक लेटर में इस्कॉन बांग्लादेश ने चिन्मय दास को अपनी संस्था का सदस्य नहीं बताया था. लेटर में चिन्मय दास को बांग्लादेश सम्मिलितो सनातनी जागरण जोत का प्रवक्ता बताया था. यह संस्था बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों से जुड़े मसले उठाती है.
इससे पहले चिन्मय दास की 25 नवंबर को हुई गिरफ्तारी के बाद ISKCON ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपने आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किया था. इसमें चिन्मय दास को गिरफ्तार किए जाने की निंदा करने के साथ उनको तुरंत रिहा करने की मांग की गई थी. ISKCON ने अपने पोस्ट में चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेश का एक प्रमुख नेता बताया था.
कौन हैं चिन्मय कृष्ण दास?बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े शहर चट्टगांव के करियानगर में 1985 के मई महीने में पैदा हुए चिन्मय कृष्ण दास की बचपन से ही धार्मिक चर्चाओं में रुचि थी. बताते हैं कि वो बचपन से ही धर्म-कर्म की बातें करने लगे थे और इलाके में बाल वक्ता के रूप में मशहूर हो गए थे. उन्होंने बाल्यकाल में धार्मिक दीक्षा हासिल की और साल 1997 में महज 12 साल की उम्र में ISKCON ब्रह्मचारी बन गए.
ISKCON चट्टगांव को पुंडरीक धाम भी कहा जाता है. यह बांग्लादेश में हिंदुओं के दो सबसे पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है. चिन्मय दास कुछ महीनों पहले तक इसी पुंडरीक धाम के अध्यक्ष भी थे.
बीबीसी बांग्ला की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चिन्मय कृष्ण देश शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से चर्चा में आए हैं. वे इसके बाद से ही, यानी अगस्त महीने से बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकार और उन पर हो रहे हमले के खिलाफ रैलियां कर रहे हैं. उन्होंने हाल के महीनों में हिंदुओं पर हो रहे कथित अत्याचारों के खिलाफ दो-तीन बड़ी रैलियां की थीं. इनमें हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.
क्यों आए विवादों में?हिंदू हितों की आवाज उठाने का दावा करने वाले चिन्मय कृष्ण दास को देशव्यापी चर्चा मिली 25 अक्टूबर, 2024 के दिन. बांग्लादेशी हिंदुओं के अधिकारों से जुड़ी 8 सूत्रीय मांगों को लेकर बांग्लादेश सम्मिलितो सनातनी जागरण जोत ने चट्टगांव में एक विशाल रैली आयोजित की थी. इसके 6 दिन बाद यानी 31 अक्टूबर को संस्था के प्रवक्ता चिन्मय दास समेत 17 अन्य हिंदू नेताओं के खिलाफ चटगांव के कोतवाली पुलिस स्टेशन में देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया गया. मामला राष्ट्रीय ध्वज के अपमान से जुड़ा था. आरोप लगा कि 25 अक्टूबर को रैली के दौरान चिन्मय दास के संगठन से जुड़े लोगों ने चटगांव के न्यूमार्केट इलाके में कथित तौर पर राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा रंग का झंडा लगाया था.
हालांकि, चिन्मय दास ने इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान इन आरोपों से इनकार किया था. उन्होंने कहा,
“सनातन संगठनों का भगवा झंडे लगाए जाने से कोई लेना-देना नहीं था. यह घटना प्रदर्शन स्थल से 2 किमी दूर हुई थी.”
बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस मसले को लेकर बांग्लादेश के हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन एकता परिषद के नेता राणा दासगुप्ता का बयान छपा है. उन्होंने कहा कि चिन्मय कृष्ण दास के ऊपर झूठा केस बनाया गया है. राणा दासगुप्ता का कहना था कि जिस झंडे के ऊपर भगवा झंडा फहराया गया था, वो बांग्लादेश का राष्ट्रीय झंडा नहीं है.
लेकिन 25 नवंबर को बांग्लादेश पुलिस की खुफिया पुलिस ने चिन्मय कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया. उनकी गिरफ्तारी उस वक्त हुई जब वे ढाका से चटगांव जा रहे थे. अगले दिन चिन्मय दास को अदालत में पेश किया गया. कोर्ट ने चिन्मय की जमानत याचिका खारिज कर दी.
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देशद्रोह के केस के बाद चिन्मय की लोकप्रियता और बढ़ गई39 साल के चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के केस के बाद बांग्लादेशी हिंदुओं के बीच काफी चर्चा मिली. देश-दुनिया में उनको लेकर खबरे छपीं. हज़ारों की संख्या में हिंदू समुदाय के लोग उनके खिलाफ लगे देशद्रोह के केस को वापस लेने की मांग करने लगे.
चटगांव में हुई रैली के बाद बांग्लादेश सम्मिलितो सनातनी जागरण जोत ने अगली बड़ी रैली रंगपुर में आयोजित करने का फैसला किया था. यह इलाका भारत के सिलगुड़ी कॉरिडोर के नज़दीक है. इस रैली पर बांग्लादेश की अवाम के साथ-साथ वहां की सरकार के नुमाइंदों की भी नज़र थी. लेकिन 22 नंवबर को रैली से पहले उन्हें प्रशासन ने गिरफ्तार करने की कोशिश की. हालांकि वे इसमें सफल नहीं रहे.
आलम ये था कि चिन्मय दास ने रैली से पहले रंगपुर के जिस होटल में ठहरने के लिए बुकिंग की थी, उसे रद्द करने के लिए कथित तौर पर प्रशासन ने होटल संचालकों पर दवाब बनाया. उन्हें ऐन मौके पर रंगपुर में रैली आयोजन करने की अनुमति नहीं दी गई जिसके बाद रैली को रंगपुर में ही दूसरी जगह शिफ्ट करना पड़ा. प्रशासन ने लोगों को कार्यक्रम स्थल में पहुंचने से रोकने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रैली में भारी भीड़ उमड़ी.
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