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दिल्ली फायर डिपार्टमेंट सिर्फ आग बुझाएगा, बाकी ये सारे काम अब बंद...

Delhi Fire Services ने शहर में अपने पशु और पक्षी बचाव कार्य को बंद करने का फ़ैसला किया है. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि Delhi fire department और Wildlife Department इसे लेकर चर्चा के लिए बैठक करेंगे.

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‘मैनपावर की कमी’ के चलते ये फ़ैसला लिया गया है. (फ़ोटो - आजतक/सोशल मीडिया)
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हरीश
27 नवंबर 2024 (Published: 15:16 IST)
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घनी आबादी वाली दिल्ली में अग्निशमन विभाग (Delhi fire department) काफ़ी व्यस्त रहता है. ख़ासकर गर्मी के महीनों में. लेकिन ये डिपार्टमेंट आग बुझाने के अलावा भी कई और कामों के लिए जाना जाता है. मसलन, अलग-अलग इलाक़ों में फंसे जानवरों को बचाने या उनकी मदद करने के लिए. लेकिन अब ख़बर है कि इस तरह की मदद के लिए फायरमैन यानी दमकलकर्मियों का आना संभव नहीं होगा.

क्योंकि दिल्ली फायर सर्विसेज (Delhi Fire Services) ने शहर में अपने पशु और पक्षी बचाव कार्य को बंद करने का फ़ैसला किया है. कारण बताया गया, ‘मैनपावर की कमी’. हालांकि, DFS के पास इस तरह के बचाव के कामों के लिए कोई अलग से समर्पित टीम नहीं है. लेकिन वो बीते 3 दशकों से इस तरह के बचाव के लिए आए कॉल का जवाब देती रही है. इससे जुड़ी कई ख़बरें अक्सर सुर्खियों में आती रहती हैं.

एक उदाहरण एक चिड़िया को बचाए जाने का है. दिसंबर, 2023 की बात है. ख़बर आई कि पूर्वी दिल्ली के मंडावली में बिजली के तार में एक चिड़िया उलझ गई. आसपास के लोगों ने इसकी ख़बर फायर ब्रिगेड की टीम को दी. बाद में टीम आई. इसके कर्मचारी एक गाड़ी पर चढ़े और चिड़िया को सुरक्षित रूप से निकाल लिया गया.

इसे लेकर इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ीं साक्षी चंद ने एक रिपोर्ट तैयार की है. उन्हें सूत्रों ने बताया कि इस तरह से बचाव के काम बंद करने का फ़ैसला बीते हफ़्ते दिल्ली के गृह सचिव अनबरसु ने एक बैठक में लिया था. गर्मी के महीनों में आग लगने की सबसे ज़्यादा कॉल आती हैं. एक दिन में 200 तक कॉल फायरमैन को अटेंड करनी पड़ती हैं. सर्दियों के महीनों में ये कॉल धीरे-धीरे कम होती जाती हैं. और स्टाफ़ की कमी भी उतनी गंभीर नहीं होती.

बताया गया कि 24 नवंबर, 2024 तक पक्षियों को बचाने के लिए 2,688 कॉलों तथा पशुओं को बचाने के लिए 3,163 कॉलों का जवाब DFS अधिकारियों ने दिया है. क्योंकि उनके काम की नीति ‘सभी की जान मायने रखती है’ के इर्द-गिर्द रहती है. एक सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि फायरमैन्स के लिए ऐसे बचाव कॉल का जवाब न देना मुश्किल होता है. वो किसी भी अन्य आपात स्थिति की तरह ऐसे कॉल का जवाब देते रहे हैं.

सूत्र ने आगे बताया कि समय के साथ, दमकलकर्मियों को ऐसे बचाव कार्यों को संभालने के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है. हालांकि, दिल्ली सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वो पशु और पक्षियों के बचाव के लिए और कई उपायों पर विचार कर रहे हैं. एक नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के लिए वन्यजीव विभाग (Wildlife Department) के साथ काम कर रहे हैं.

दिल्ली सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,

वन्यजीव विभाग के पास जानवरों, सांपों और चिड़ियों के बचाव से निपटने के लिए एक तंत्र है. आम तौर पर, वो बचाव के संबंध में हस्तक्षेप करेंगे. अग्निशमन सेवाएं सिर्फ़ ज़्यादा जोखिम वाले मामलों में ही तस्वीर में आएंगी, जिसमें मदद की बहुत ही ज़्यादा ज़रूरत होगी. वन्यजीव विभाग और अग्निशमन सेवा. दोनों विभागों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने के लिए इस हफ़्ते के आख़िर में वन्यजीव विभाग के साथ एक बैठक की योजना बनाई गई है. हर एजेंसी, दूसरी एजेंसियों की कोशिशों का समर्थन करेगी. ताकि कोई कन्फ़्यूजन ना हो.

दूसरी तरफ़, हालांकि आधिकारिक आदेश ऐसे किसी भी बचाव कॉल को सुनने से मना करते हैं. लेकिन फायरमैन अभी फिलहाल ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. एक सूत्र ने बताया,

दिल्ली फायर सर्विसेज(DFS) को बीते हफ़्ते एक और कॉल आई. इसमें 'एक नाले में फंसी गाय' के लिए मदद मांग गई. हमने (कॉल करने वाले को) बताया कि हम कुछ नहीं कर पाएंगे, लेकिन वो लगातार कॉल करता रहा और विनती करता रहा. बाद में हमें एक बचाव दल भेजना पड़ा.

हालांकि, दिल्ली फायर सर्विसेज के डायरेक्टर अतुल गर्ग की तरफ़ से बचाव काम को बंद करने को लेकर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. ना ही इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब. बीते गर्मियों के दौरान इंडियन एक्सप्रेस की एक और ख़बर सामने आई थी. इसमें बताया गया कि तब दिल्ली भर में DFS 3,200 कर्मचारियों को रोजगार दे रहा था. इसमें 2,300 फील्ड पर और 900 ट्रेनिंग में बताए गए. 

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हालांकि, अधिकारियों ने तब भी कहा था कि ये पर्याप्त नहीं है. बताया गया कि DFS को स्टेशन अधिकारियों की भी भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें लगभग 70% पद खाली हैं. कारण बताया गया कि स्टेशन अधिकारी से नीचे के रैंक को 4,000 रुपये राशन भत्ता, 8,000 रुपये सालाना बोनस और एक महीने का अतिरिक्त वेतन जैसे भत्ते मिलते हैं.

लेकिन एक बार स्टेशन अधिकारी बनने के लिए पदोन्नत होने के बाद, काम के घंटे बढ़ने के बावजूद ये प्रोत्साहन गायब हो जाते हैं. वहीं, स्टेशन अधिकारियों को हफ़्ते में 72 घंटे की शिफ़्ट करनी पड़ती है. यानी 12 घंटे रोज़.

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