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"बहुसंख्यकों से ही देश चलेगा" कहने वाले जस्टिस शेखर यादव के ये फैसले जानने लायक हैं

Justice Shekhar Kumar Yadav के बयान पर कानून के जानकारों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. उनके बयान पर राजनीति भी हुई. जहां बीजेपी नेता शलभ मणि त्रिपाठी ने बयान की तारीफ की है, वहीं AIMIM प्रमुख औवेसी ने जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान की आलोचना की है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव (बाएं) ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में भाषण दिया जिसपर विवाद खड़ा हो गया. (तस्वीर:फेसबुक/मुकेश द्विवेदी)
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शुभम सिंह
9 दिसंबर 2024 (Published: 23:05 IST)
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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के एक बयान से विवाद खड़ा हो गया है. बयान में उन्होंने समान नागरिक संहिता यानी UCC पर अपने विचार रखे. साथ ही ये भी कह दिया कि ये भारत है और ये अपने ‘बहुमत की इच्छा के अनुसार चलेगा’. जस्टिस शेखर के बयान पर राजनीतिक दल, खासकर विपक्ष के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. वहीं, विवाद के बीच जस्टिस शेखर यादव ने भी अपना पक्ष रखा है.

क्या कहा था जस्टिस शेखर यादव ने?

विश्व हिंदू परिषद की लीगल शाखा की तरफ से प्रयागराज में ‘समान नागरिक संहिता की संवैधानिक ज़रूरत’ नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. ये कार्यक्रम हाई कोर्ट परिसर के भीतर लाइब्रेरी हॉल में आयोजित किया गया था. इस दौरान वक्फ कानून, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और धर्मांतरण के कारणों और उनकी रोकथाम पर चर्चा की गई थी.

जब जस्टिस शेखर कुमार की बारी आई तो उन्होंने हिंदू धर्म और भारतीयों को लेकर अपनी बात रखी. कहा,

“केवल इसलिए कि मैंने VHP की बात की, RSS की बात की और भारतीय संस्कृति की बात की, इसका ये मतलब नहीं है कि अगर मैं हिंदू हूं तो मुझे अन्य धर्मों से कोई मतभेद है. या मैं उनसे इतर अपनी कोई सोच रखता हूं. हां, इतना जरूर है कि ये देश भारत है. यहां के रहने वाले भारतीय हैं. बाहर के लोग यह नहीं समझ पाते कि हिंदू कौन है. वे केवल उसी को समझते हैं जो पूजा करता है, गंगा में नहाता है और चंदन लगाता है. लेकिन यह सच नहीं है.”

उन्होंने कहा,

“हिंदू वह है जो इस देश (भारत) में रहता है, जो भारत भूमि को अपनी मां कहता है, जो देश पर संकट आने पर अपना बलिदान दे सकता है. उसकी पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है, वह कुरान या बाइबल में विश्वास कर सकता है, लेकिन वह एक हिंदू है.”

जस्टिस शेखर यादव ने समान नागरिक संहिता के बारे में अपने विचार रखते हुए सवाल किया कि अगर देश एक है और संविधान एक है, तो यहां का कानून एक क्यों नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि हिंदू कानून में भी सती और जोहर जैसी कुप्रथाएं थीं, लेकिन राजा राम मोहन रॉय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे लोगों ने इन बुराइयों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई. हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने आगे कहा, “वहीं इस तथ्य के बावजूद कि मुस्लिम कानून में भी तलाक, भरण-पोषण और गोद लेने जैसी समस्याएं थीं, लेकिन उस समुदाय की तरफ से इसे बदलने के लिए कोई पहल नहीं की गई. ऐसी चिंताएं न केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ में, बल्कि ईसाई और पारसी पर्सनल लॉ में भी हो सकती हैं.”

जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि अगर पर्सनल कानूनों से ऐसी खामियां दूर नहीं की गईं तो पूरे देश के लिए एक समान कानून लाया जाएगा. उन्होंने अपने भाषण में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को जमकर लताड़ा. बोले,

“ये कहने में बिल्कुल गुरेज नहीं है कि ये हिंदुस्तान है. हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा. यही कानून है. आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं. कानून तो भईया बहुसंख्यक से ही चलता है. परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए. जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है.”

उन्होंने ये भी कहा कि 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं. जस्टिस शेखर ने कहा,

“जो कठमुल्ला हैं, शब्द गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं. जनता को बहकाने वाले लोग हैं. देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं. उनसे सावधान रहने की जरूरत है.”

VHP के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव
VHP के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव. (तस्वीर:फेसबुक/मुकेश द्विवेदी)
बयान पर दी सफाई

जस्टिस शेखर यादव के 34 मिनट के भाषण से जिन दो चीज़ों पर बवाल मचा है वे हैं ‘हिंदुस्तान बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा’ और ‘कठमुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना. इन दोनों पर उन्होंने अपना पक्ष रखा है. ‘बीबीसी हिंदी’ से बातचीत में जस्टिस शेखर यादव ने कहा है,

“मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर चलाया जा रहा है. बहुसंख्यक का मतलब हैं जिनकी सोच अच्छी है यानी प्रगतिशील सोच है, तो उनके आधार पर यह देश चलना चाहिए. हिंदू-मुस्लिम का इसमें गलत सेंस लिया जा रहा है. बहुसंख्यक का सीधा सा मतलब है इस देश का आगे लेकर जाने वाले लोग."

वहीं,'कठमुल्ला' शब्द का इस्तेमाल किए जाने पर उन्होंने कहा कि यह एक प्रचलित शब्द हो गया है जो हमारे हिंंदू में भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में जो गलत ढंग से काम करने वाले लोग हैं उनको भी 'कठमुल्ला' कहते हैं. हाई कोर्ट के जज के मुताबिक, “मुल्ला तो अच्छा शब्द है. कठ का मतलब लकड़ी होता है. जिसके अंदर लकड़ी का दिमाग़ होता है वो कठमुल्ला होता है. वो हिंदू और मुस्लिम कोई भी हो सकता है.”

यह भी पढ़ें:विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में पहुंचे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज, बोले-'बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा भारत'

राजनीतिक हल्कों की प्रतिक्रिया

जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान पर राजनीतिक हल्कों में घमासान मच गया. AIMIM के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दुीन ओवैसी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट लिखकर बयान का विरोध किया. उन्होंने लिखा,

“कई मौकों पर विहिप पर प्रतिबंध लगाया गया है. यह आरएसएस से जुड़ा है, एक ऐसा संगठन जिसे सरदार वल्लभाई पटेल ने 'नफरत और हिंसा फैलाने' के कारण प्रतिबंधित कर दिया था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाई कोर्ट के एक जज ने ऐसे संगठन के सम्मेलन में भाग लिया. इस ‘भाषण’ का आसानी से खंडन किया जा सकता है, लेकिन यहां माननीय को याद दिलाना जरूरी है कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है.”

औवेसी ने आगे लिखा, 

“यह भाषण कॉलेजियम प्रणाली को कटघरे में खड़ा करता है और न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है. एक अल्पसंख्यक दल विहिप के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है?”

वहीं, देवरिया से बीजेपी के विधायक और प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने जस्टिस शेखर के बयान की तारीफ की है. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा,

“हमारे यहां बच्चा जन्म लेता है तो उसे ईश्वर की तरफ़ ले जाते हैं, वेद मंत्र बताते हैं. उनके यहां बच्चों के सामने बेजुबानों का बेरहमी से वध होता है, सैल्यूट है जस्टिस शेखर यादव, सच बोलने के लिए!!”

संविधान और कानून के जानकारों ने क्या कहा?

जस्टिस शेखर यादव के बयान पर कानून और संविधान के जानकारों की तरफ से प्रतिक्रियाएं आई हैं. चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना के कुलपति फैजान मुस्तफा ने दी लल्लनटॉप से बातचीत में कहा,

“मेरे हिसाब से हर फैसले को मेरिट के हिसाब से देखना चाहिए. बहुत धार्मिक लोग भी जब न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठते हैं, तो वे न्याय करते हैं.”

वे आगे कहते हैं,

“देश में सरकार बनती है बहुसंख्यकों की पसंद से, लेकिन देश इस बहुसंख्यक को जाति और धर्म के हिसाब से नहीं देखता. जब अगर ये कहा जाए कि बहुसंख्यक जो चाहेंगे वो सरकार बनेगी, उसका ये मतलब नहीं है कि हिंदू जो चाहेंगे वो सरकार बनेगी, क्योंकि उसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख पारसी सब होंगे. लेकिन संविधान जो है वो बहुसंख्यकवाद के सख्त खिलाफ है. अगर बहुसंख्यक आबादी ने एक सरकार चुनी और उसने एक कानून बनाया जोकि संविधान के कानूनों का पालन नहीं करता तो कोर्ट ज्यूडिशियल रिव्यू का इस्तेमाल करके उस कानून को निरस्त कर सकता है.”

उन्होंने कहा कि हर कानून में सुधार की जरूरत होती है. बेहतर होता कि जजों को अपने भाषणों में कम और फैसलों में ज्यादा बोलना चाहिए.

वहीं, सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट इंदिरा जय सिंह ने ‘दि प्रिंट’ से बातचीत में जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान को अन्य समुदायों के लिए बहुत ‘अपमानजनक’ बताया है. उन्होंने कहा,

"यह न्यायपालिका द्वारा ही संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है. वही कोर्ट, जो धर्मनिरपेक्षता और संविधान की कसम खाता है, अपने ही निर्णयों का अनादर कर रहा है.”

कौन हैं जस्टिस शेखर यादव?

16 अप्रैल, 1964 को जन्मे जस्टिस शेखर यादव ने इलाहाबाद विश्विद्यालय से LLB की पढ़ाई की और 8 सितंबर, 1990 को एडवोकेट बने. इसके बाद उन्होंने 2019 तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में बतौर वकील सिविल और संवैधानिक मामलों पर काम किया. वकालत के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के एडिश्नल गवर्मेंट एडवोकेट और स्टैंडिंग काउंसेल भी रहे. इसके अलावा भारत सरकार के लिए उन्होंने बतौर एडिश्नल चीफ़ स्टैंडिंग काउंसेल और सीनियर काउंसेल भी काम किया. उन्होंने भारतीय रेल और वीबीएस पूर्वांचल विश्व विद्यालय के स्टैंडिंग काउंसेल के रूप में भी सेवाएं दीं.

12 दिसंबर, 2019 को जस्टिस शेखर यादव इलाहाबाद हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए गए. 26 मार्च, 2021 को उन्होंने स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. बतौर जज, जस्टिस शेखर कुमार यादव की पोस्टिंग अब तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही रही है. इसके अलावा वो कौशांबी ज़िले के प्रशासनिक न्यायाधीश भी हैं.

निर्णय जो चर्चा का कारण बने

# 31 जुलाई, 2021 को जस्टिस शेखर यादव ने जावेद उर्फ़ जाबिद अंसारी नाम के एक शख़्स को कथित लव जिहाद के मामले में बेल देने से इनकार कर दिया था. अपने ऑर्डर में उन्होंने लिखा था कि जब देश के बहुसंख्यक समाज से कोई अपना धर्म परिवर्तन करता है तो देश कमज़ोर होता है और विनाशकारी ताकतों को बढ़ावा मिलता है.

# 25 अगस्त, 2021 को जस्टिस यादव ने साइबर फ़्रॉड से जुड़े एक मामले में आदेश पारित किया. एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज के अकाऊंट से पैसे की चोरी के इस मामले में उन्होंने कहा कि सरकार को सोचना चाहिए कि ऐसे अपराधों को सख्ती से कैसे रोका जाए. 13 जनवरी, 2022 को इसी मामले में चार आरोपियों की बेल याचिका खारिज करते हुए जस्टिस यादव ने केंद्र सरकार के आधार और बैंक अकाऊंट लिंक करने के फ़ैसले से सहमति जताई थी.

# 1 सितंबर, 2021 को अपने एक आदेश में जस्टिस यादव ने गोहत्या के एक आरोपी जावेद को बेल देने से इनकार कर दिया था. आदेश में उन्होंने कहा कि गाय को देश का राष्ट्रीय जानवर घोषित कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि गाय एकमात्र पशु है जो ऑक्सीजन लेती और छोड़ती है; और, जब गाय का कल्याण होगा, तभी देश का कल्याण होगा. वो आगे कहते हैं, “हमारे देश में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि जब-जब हम अपनी संस्कृति को भूले, विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बनाया. आज भी हम नहीं जागे तो ना भूलें कि अफगानिस्तान में तालिबान ने क्या किया.”

# 9 अक्टूबर, 2021 को फेसबुक पर एक पोस्ट के लिए गिरफ़्तार हुए सूर्य प्रकाश को बेल देते हुए जस्टिस यादव कहते हैं कि प्रभु श्री राम और कृष्ण हमारे दिलों में रहते हैं. वो आगे कहते हैं, “भारत की संसद को श्री राम, श्री कृष्ण, श्रीमदभगवद्गीता, रामायण, महर्षि वेद व्यास और महर्षि वाल्मीकि का सम्मान करने के लिए कानून पारित करना चाहिए.”

# 23 दिसंबर, 2021 को एक बेल आदेश पारित करते हुए जस्टिस यादव ने कोरोना वैक्सीन के लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की. साथ ही उन्होंने आग्रह किया था कि कोरोना के ओमिक्रोन वेरिएंट के मद्देऩज़र चुनावों की तारीख आगे बढ़ा दी जानी चाहिए.

# 13 अप्रैल, 2022 को जस्टिस यादव ने एक समलैंगिक कपल की उनकी शादी को मान्यता प्रदान करने की याचिका खारिज कर दी थी. हालांकि, कोर्ट ने एक समलैंगिक की माता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी खारिज की थी. याचिका में मां ने कहा था कि दूसरी लड़की ने उसकी बेटी को किडनैप किया था, और उसे छुड़ाने का आग्रह किया था.

# 13 फरवरी, 2023 को एक महत्वपूर्ण आदेश में जस्टिस यादव ने कहा कि औरतों को भी गैंगरेप या सामूहिक बलात्कार के केस में आरोपित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि भले ही एक औरत किसी दूसरी औरत का बलात्कार नहीं कर सकती हो, लेकिन गैंगरेप में सहयोग करने के लिए उन्हें प्रोसेक्यूट किया जा सकता है.

# 31 अक्टूबर, 2024 को जस्टिस यादव ने चार साल की एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार में आरोपी को बेल देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि हमारा देश में बच्चियों की पूजा की जाती है. बलात्कार ना सिर्फ पीड़िता, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ़ अपराध है.

जस्टिस शेखर कुमार यादव का कार्यकाल 15 अप्रैल 2026 को समाप्त होगा.

(हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे प्रखर के इनपुट के साथ.)

वीडियो: VHP के कार्यक्रम में इलाहाबाद के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने ऐसा क्या कहा कि वीडियो वायरल हो गया!

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