प्रदूषण से भारत में एक साल में '73 लाख' मौतें, ये रिपोर्ट दिल्ली-NCR छुड़वा देगी
चर्चित मेडिकल जर्नल दी लांसेट में छपे रिसर्च में बताया गया है कि वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों की संख्या 2009 में 45 लाख से बढ़कर 2019 में 73 लाख हो गई.
भारत जैसे सब-ट्रॉपिकल देश के उत्तरी हिस्से में नवंबर से जनवरी का महीना ठंड का होता है. कहीं ज्यादा, कहीं कम. ठंड अपनी छाप छोड़ती है. पर इसी के साथ पॉल्यूशन भी दस्तक देता है. खासकर देश की राजधानी दिल्ली और NCR के रीजन में. पॉल्यूशन माने कई तरह की बीमारी. खासकर सांस लेने में दिक्कत, चेस्ट में कंजेशन और लंग्स में इन्फेक्शन होना. ये पॉल्यूशन हमारे देश में लाखों लोगों की जान भी लेता है. इसी से जुड़ा एक चौंकाने वाले डेटा सामने आया है. एक ताजा रिसर्च के मुताबिक साल 2019 में एयर पॉल्यूशन से भारत में ‘73 लाख’ लोगों की मौत हुई थी.
ये रिसर्च स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने किया है. इसे द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में भी पब्लिश किया गया है. रिसर्च में भारत में एयर क्वालिटी से जुड़े नियमों को कड़ा करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है. इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ये रिसर्च PM 2.5 नामक छोटे वायु प्रदूषण कणों पर आधारित थी. ये कण फेफड़ों और ब्लडस्ट्रीम में गहराई तक जा सकते हैं, जिससे सीरियस हेल्थ इशू होने की संभावना होती है.
655 जिलों का डेटासाल 2009 से 2019 के बीच हुई इस रिसर्च में भारत के 655 जिलों के डेटा का इस्तेमाल किया गया है. जिसमें PM 2.5 के लेवल को मृत्यु दर से जोड़ कर देखा गया. रिसर्च में पाया गया कि जैसे ही PM 2.5 के लेवल में प्रति क्यूबिक मीटर 10 माइक्रोगाम की बढ़त होती है, मृत्यु दर 8.6 फीसदी बढ़ जाती है. रिसर्च के अनुसार पिछले दस सालों में लगभग 38 लाख लोगों की मौत एयर क्वालिटी के तय मानकों से ज्यादा खराब होने की वजह से हुई है. भारत में ये मानक 40 माइक्रोगाम प्रति क्यूबिक मीटर है. यानी ये मौतें इससे खराब एयर क्वालिटी की वजह से हुई हैं.
WHO के मानक और खतरनाक बनाते हैंइतना ही नहीं, ये आंकड़े और भी खतरनाक दिखते हैं जब इन्हें WHO की गाइडलाइंस से कंपेयर किया जाता है. WHO एयर क्वालिटी के मानक को 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर निर्धारित करता है. रिसर्च बताती है कि अगर इस मानक को आधार बनाया जाए तो भारत में 1 करोड़ 60 लाख लोगों की वायु प्रदूषण से मृत्यु हुई है. चौंकाने वाली बात ये है कि भारत का हर एक इंसान ऐसे क्षेत्र में रहता है जहां PM 2.5 का लेवल WHO के मानक से अधिक है.
कई क्षेत्रों में तो ये लेवल 119 micrograms per cubic metre तक पहुंचता है. जो WHO की लिमिट से 24 गुना ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में PM 2.5 का सबसे कम स्तर (11.2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में दर्ज किया गया था. वहीं सबसे अधिक स्तर (119.0 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) 2016 में गाजियाबाद और दिल्ली में पाया गया था.
रिसर्च में बताया गया कि वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों की संख्या 2009 में 45 लाख से बढ़कर 2019 में 73 लाख हो गई. स्वीडिश रिसर्चर्स ने इस बात पर जोर दिया कि PM 2.5 कण सैकड़ों किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं. इसलिए स्थानीय उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ वायु प्रदूषण के दूरगामी खतरों से निपटने की रणनीति भी अपनाई जानी चाहिए.
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