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नॉन-स्टिक बर्तनों से होने वाला टेफ़्लॉन फ़्लू क्या है? जिससे 250 लोग हॉस्पिटल में एडमिट हो गए

टेफ़्लॉन फ़्लू को पॉलिमर फ़्यूम फ़ीवर भी कहते हैं. ये खाने की चीज़ों और धुएं के ज़रिए हमारे शरीर में पहुंचता है.

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अधिकतर नॉन-स्टिक बर्तनों में टेफ़्लॉन केमिकल की परत चढ़ी होती है
27 सितंबर 2024 (Published: 15:26 IST)
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क्या आपको पता है? आपका नॉन-स्टिक पैन, नॉन-स्टिक कढ़ाई और नॉन-स्टिक बर्तन आपको बीमार कर सकते हैं. आप इन पर मोटा पैसा खर्चा करते हैं, ये सोचकर कि इनमें खाना बढ़िया पकेगा. जलेगा नहीं. चिपकेगा नहीं. मगर कुछ नॉन-स्टिक बर्तन आपकी सेहत के दुश्मन हैं.

पिछले साल यानी 2023 में, अमेरिका में लगभग 250 लोगों को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया. इन्हीं नॉन-स्टिक बर्तनों की वजह से. 

दरअसल अधिकतर नॉन-स्टिक बर्तनों में टेफ़्लॉन नाम के केमिकल की परत चढ़ी होती है. इस परत की वजह से खाना बनाना आसान होता है. खाना जलता नहीं है. अब अगर नॉर्मल टेम्परेचर पर टेफ़्लॉन का इस्तेमाल किया जाए, तो वो सुरक्षित है. लेकिन, जब हम इन नॉन-स्टिक बर्तनों को ज़्यादा तेज़ आंच पर रखते हैं, तो टेफ़्लॉन की परत बर्तन से छूटने लगती है. वो कभी खाने में मिल जाती है तो कभी धुआं बन जाती है. फिर यही खाना और यही धुआं हमें बीमार बना देता है. इस बीमारी को टेफ़्लॉन फ़्लू (Teflon Flu) कहते हैं जिसके मामले अमेरिका में लगातार बढ़ रहे हैं.

ऐसा मुमकिन है कि टेफ़्लॉन फ़्लू के मामले भारत में भी हों. लेकिन, इस पर अभी कोई डेटा उपलब्ध नहीं है मगर सतर्कता ज़रूरी है. इसलिए, डॉक्टर से जानिए कि टेफ़्लॉन फ़्लू क्या है. ये क्यों होता है. इसके लक्षण क्या हैं. और, टेफ़्लॉन फ़्लू से बचाव और इलाज कैसे किया जाए. 

टेफ़्लॉन फ़्लू क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर चारु दत्त अरोड़ा ने. 

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डॉ. चारु दत्त अरोड़ा, इंफेक्शियस डिज़ीज़ स्पेशलिस्ट, एशियन हॉस्पिटल, फरीदाबाद

टेफ़्लॉन फ़्लू को पॉलिमर फ़्यूम फ़ीवर (Polymer fume fever) भी कहते हैं. ये खाने की चीज़ों के ज़रिए हमारे शरीर में फैलता है. पिछले साल अमेरिका में टेफ़्लॉन फ़्लू के 250 से ज़्यादा मरीज़ अस्पतालों में भर्ती हुए थे. टेफ़्लॉन एक केमिकल है जो खाना बनाने के कुछ बर्तनों में पाया जाता है ताकि बर्तन कम घिसे और खाना बनाने में आसानी हो. मगर जब बर्तन ज़्यादा गर्म हो जाता है तो पॉलीटेट्राफ्लोरोएथिलीन यानी टेफ़्लॉन केमिकल की कोटिंग निकलने लगती है. फिर इसके ज़हरीले धुएं से सांस लेने में दिक्कतें आने लगती हैं, जिसे टेफ़्लॉन फ्लू कहते हैं.

टेफ़्लॉन फ़्लू होने का कारण?

टेफ़्लॉन की कोटिंग में PTFE और PFOA जैसे केमिकल्स पाए जाते हैं. अगर टेफ़्लॉन की कोटिंग वाले किसी बर्तन को 500 डिग्री फॉरेनहाइट से ज़्यादा तापमान पर गर्म किया जाए. या फिर उसे खुरोंचा जाए तो इन केमिकल्स से उठे धुएं में कैंसर फैलाने वाले तत्व होते हैं. साथ ही, ये हमें थायरॉइड, सांस और दिल से जुड़ी दिक्कतें भी दे सकता है. जब इन केमिकल्स का धुआं हमारे शरीर में जाता है, खासकर उन लोगों में जो मेटल वेल्डिंग या कुकिंग इंडस्ट्री में काम करते हैं. तो उन्हें कुछ लक्षण महसूस होते हैं और फिर टेफ़्लॉन फ़्लू हो जाता है.

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टेफ़्लॉन फ़्लू होने पर बुखार आता है (सांकेतिक तस्वीर)
टेफ़्लॉन फ़्लू के लक्षण

- बुखार आना

- खांसी

- सिरदर्द

- मांसपेशियों में दर्द

- गले में दर्द

- जोड़ों में दर्द और अकड़न

अगर इन लक्षणों का इलाज न किया जाए तो किडनी, दिल और श्वसन तंत्र पर असर पड़ता है. इससे मल्टीपल ऑर्गन फेलियर हो सकता है. ये तब होता है जब दो या उससे अधिक अंग काम करना बंद कर दें. हालांकि अधिकतर लक्षण सेल्फ लिमिटिंग होते हैं यानी कुछ ही दिनों में थोड़े से उपचार के बाद ठीक हो जाते हैं. 

बचाव और इलाज

ICMR की नई गाइडलाइंस के मुताबिक, टेफ़्लॉन फ़्लू से बचने के लिए आप मिट्टी के बर्तन, ग्रेनाइट के बर्तन और बिना टेफ़्लॉन कोटिंग वाले बर्तन इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं अगर कोई व्यक्ति कुकिंग इंडस्ट्री या मेटल वेल्डिंग इंडस्ट्री में काम करता है तो उसे टेफ़्लॉन के साइड इफेक्ट्स बताएं ताकि वो अपना बचाव कर सकें. इसके अलावा, अगर किसी को टेफ़्लॉन फ़्लू के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो वो तुरंत डॉक्टर से मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप' आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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