दिल्ली में UPSC के छात्र को हुई थी दूसरे विश्व युद्ध के सैनिकों जैसी बीमारी, क्या है Pilonidal Sinus?
पायलोनिडल साइनस एक तरह का इंफेक्शन है. ये पीठ के निचले हिस्से में कूल्हों के बीच होता है.
World War 2 साल 1939 से लेकर 1945 के बीच लड़ा गया. इस दौरान कई सैनिकों को एक बीमारी हुई. नाम था, पायलोनिडल साइनस (Pilonidal Sinus). फिर वक्त बीता और ये बीमारी धीरे-धीरे खत्म ही हो गई.
मगर एक बार फिर, पायलोनिडल साइनस के मामले सामने आने लगे हैं. 21 साल का एक लड़का दिल्ली में UPSC की तैयारी कर रहा था. अब UPSC निकालने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है, ये तो आप जानते ही हैं. वो लड़का घंटों एक ही जगह पर बैठे-बैठे पढ़ता रहता था. इस वजह से उसकी कमर के निचले हिस्से में, कूल्हों के बीच, एक गांठ पड़ गई. लड़के ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया तो गांठ गंभीर हो गई. उससे पस निकलने लगा. फिर जब चलना-फिरना, उठना-बैठना दूभर हो गया तो उसने डॉक्टर को दिखाया. पता चला कि उसे यही, वर्ल्ड वॉर टू वाली पायलोनिडल साइनस बीमारी हो गई है.
पायलोनिडल साइनस बीमारी पुरुषों में होना आम है क्योंकि उनकी स्किन पर ज़्यादा बाल होते हैं और वो सख्त होते हैं. लिहाज़ा डॉक्टर से समझिए कि पायलोनिडल साइनस क्या है. ये क्यों होता है. इसके लक्षण क्या हैं. और, पायलोनिडल साइनस से बचाव और इलाज कैसे किया जाए.
पायलोनिडल साइनस क्या होता है?ये हमें बताया डॉ. राजीव मानेक ने.
पायलोनिडल साइनस एक तरह का इंफेक्शन है. ये पीठ के निचले हिस्से में नेटल क्लेफ़्ट के ऊपर होता है. नेटल क्लेफ़्ट यानी कूल्हों के बीच की वो जगह, जो शरीर के निचले हिस्से में होती है. ये अक्सर 20 से 40 साल के पुरुषों में पाया जाता है. ये उन लोगों में ज़्यादा होता है, जिनकी पीठ पर बहुत बाल होते हैं या जिन्हें लंबे समय तक बैठना पड़ता है. जैसे स्टूडेंट्स या आईटी प्रोफेशनल्स. लंबे समय तक बैठने से उनकी पीठ के बाल टूटकर नेटल क्लेफ़्ट के ऊपर गिर जाते हैं. इससे पीठ के उस हिस्से में इंफेक्शन हो जाता है.
अगर किसी के परिवार में ये बीमारी पहले से चली आ रही है. तो उनमें पायलोनिडल साइनस होने का चांस ज़्यादा होता है. पायलोनिडल साइनस को जीप्स बॉटम (Jeep's Bottom) भी कहा जाता है. दरअसल कार चलाने वाले लोग लंबे समय तक एक ही सीट पर बैठकर ड्राइविंग करते हैं. इससे ये इंफेक्शन उनमें भी बहुत आम हो जाता है.
पायलोनिडल साइनस के लक्षणपीठ के निचले हिस्से में नेटल क्लेफ़्ट के ऊपर एक गांठ दिखाई देगी. इस गांठ में दर्द होगा. जब ये गांठ फटेगी तो उसमें से पस, पानी, मवाद या खून निकल सकता है. ये कंडीशन काफी दर्दनाक होती है. इंफेक्शन के दौरान मरीज़ को बुखार भी आ सकता है. इसके अलावा, लगातार दर्द बना रहेगा. उठने-बैठने में परेशानी होगी. चलने-फिरने के दौरान नेटल क्लिफ्ट के आसपास गीलापन महसूस हो सकता है.
पायलोनिडल साइनस से बचाव और इलाजपायलोनिडल साइनस का इलाज दवाइयों से मुमकिन नहीं है. इसे सर्जरी से ही ठीक किया जा सकता है. इसके लिए आमतौर पर ओपन सर्जरी की जाती है. कुछ मामलों में लेज़र सर्जरी का भी उपयोग किया जा सकता है. जिन लोगों को बार-बार पायलोनिडल साइनस हो रहा है, उनमें प्लास्टिक सर्जरी की जा सकती है.
बचाव के लिए पर्सनल हाईजीन मेंटेन करें. कमर और नेटल क्लेफ़्ट के हिस्से को रोज़ साफ रखें. यहां पर बहुत ज़्यादा बाल न हों. बालों को ट्रिम करा लें. कई मरीज़ लेज़र हेयर रिमूवल का सहारा भी लेते हैं. जब तक ये हिस्सा साफ रहेगा, वहां बाल नहीं होंगे, तब तक उस जगह पर पसीना और कीटाणु भी नहीं जमेंगे. इससे पायलोनिडल साइनस होने का चांस कम हो जाएगा.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप' आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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