ग्लाइफोसेट के खतरे से कितने वाकिफ हैं आप? कैंसर तक का डर है!
ग्लाइफोसेट एक हर्बिसाइड है. यानी खरपतवारनाशी. WHO की एक एजेंसी IARC ने इसे कैंसर फैलाने वाला बताया है.
WHO यानी World Health Organization की एक एजेंसी है- International Agency for Research on Cancer. जैसा नाम से पता चल रहा है. इसका काम है कैंसर पर रिसर्च करना. इसने एक खरपतवारनाशी यानी हर्बीसाइड को कैंसर फैलाने वाला बताया है. इस हर्बीसाइड का नाम है, ग्लाइफोसेट.
लेकिन, ये हर्बीसाइड होता क्या है? देखिए, कई बार फसलों के आसपास कुछ अनचाहे पौधे भी उग जाते हैं. ये पौधे फसलों के विकास में रुकावट पैदा करते हैं. उनका पानी सोख लेते हैं. इससे फसलों को नुकसान पहुंचता है. इन्हीं पौधों को खत्म करने के लिए ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल होता है. छिड़कने के दौरान, कई बार ग्लाइफोसेट फसलों पर भी पड़ता है. फिर जब ये फसल हम तक पहुंचती है और हम उसका इस्तेमाल करते हैं, तो ग्लाइफोसेट हमारे शरीर के संपर्क में आता है. नतीजा? स्किन, नाक, गले में जलन होती है. सांस लेने में परेशानी होती है. पेट से जुड़ी गंभीर दिक्कतें होने लगती हैं.
सबसे ख़तरनाक, ग्लाइफोसेट से कैंसर का ख़तरा होता है. अब सोचिए ये कितना ख़तरनाक है. इसलिए हम ग्लाइफोसेट पर डिटेल में बात करेंगे. डॉक्टर से जानेंगे कि ग्लाइफोसेट क्या है. इसका इस्तेमाल कहां होता है. ये हमारे शरीर में कैसे पहुंचता है और इसकी एंट्री के बाद हमें क्या लक्षण महसूस होते हैं. साथ ही जानेंगे, इससे बचाव के तरीके.
ग्लाइफोसेट क्या होता है?ये हमें बताया दीप्ति खटूजा ने.
ग्लाइफोसेट एक तरह का हर्बिसाइड (खरपतवारनाशी) है. यानी ये पौधों को बढ़ने से रोकता है और उन्हें मुरझा देता है. इसके कुछ सॉल्ट, जैसे सोडियम सॉल्ट, कुछ फसलों को सड़ाने में मदद करते हैं. आमतौर पर इसे अनचाहे पौधों और घास पर छिड़का जाता है ताकि उनमें शिकिमिक एसिड पाथवे न बन सके. दरअसल इस पाथवे में एक खास प्रोटीन बनता है जो पौधों के विकास के लिए ज़रूरी है. ग्लाइफोसेट इस प्रोटीन पाथवे को रोक देता है. जिससे प्रोटीन नहीं बन पाता और फिर पौधों का विकास भी नहीं होता. इससे अनचाहे पौधे मुरझा जाते हैं.
हालांकि ग्लाइफोसेट कई तरीकों से हमारे शरीर में भी प्रवेश कर सकता है. आमतौर पर इसका इस्तेमाल गेहूं, ओट्स, सोया और मक्का के खेतों में अनचाहे पौधों को सड़ाने में होता है. साल 2015 में WHO ने इसे कार्सिनोजेनिक (कैंसर फैलाने वाला) घोषित किया था.
ग्लाइफोसेट हमारे शरीर में कैसे प्रवेश करता है?- ये हमारे शरीर में कई तरीकों से प्रवेश कर सकता है
- जब हम सांस लेते हैं, तब ये शरीर में आ सकता है
- छूने से आ सकता है यानी स्किन और आंखों के ज़रिए
- वहीं अगर इसे पत्तों पर छिड़का गया है और ये सूखा नहीं है. तब उस पत्ते को छूने से ये हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है
लक्षणशरीर के संपर्क में आने से स्किन और आंखों में जलन होती है. नाक और गले में जलन होती है. थूक ज़्यादा बनता है. मुंह और गले में जलन हो सकती है. सांस लेने में भी दिक्कत आ सकती है. ग्लाइफोसेट हमारे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट यानी पाचन तंत्र पर असर डालता है. इसकी वजह से उल्टियां और दस्त जैसी परेशानियां हो सकती हैं.
बचाव के तरीकेजितना मुमकिन हो, फसलों में हर्बिसाइड्स का इस्तेमाल न हो. अगर करें भी तो उसका लेबल ज़रूर चेक करें. कोशिश करें कि ग्लाइफोसेट फ्री हर्बिसाइड्स उपयोग करें. साथ ही, जितना हो सके, ऑर्गेनिक फूड्स का इस्तेमाल करें, ये फायदेमंद होगा.
देखिए, भारत में ग्लाइफोसेट बैन नहीं है. इसलिए, सावधानी हमें ही बरतनी होगी. आप कोशिश करें कि ऑर्गेनिक चीज़ें इस्तेमाल करें. अगर इन्हें इस्तेमाल नहीं कर सकते तो फूड लेबल देखें. आमतौर पर जिन फसलों पर ग्लाइफोसेट नहीं पड़ा होता, उनके प्रोडक्ट पर ये बात लिखी होती है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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