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क्या स्ट्रेस से मौत हो सकती है? डॉक्टर से आज सब जान लीजिए

स्ट्रेस हमारी फिज़िकल, मेंटल और इमोशनल हेल्थ पर बहुत बुरा असर डालता है.

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can stress kill you know everything about it
बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेने से सीधे तौर पर मौत नहीं होती (सांकेतिक तस्वीर)
25 सितंबर 2024 (Published: 15:05 IST)
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स्ट्रेस से हमारे शरीर, हमारे दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. ये तो हम जानते ही हैं. लेकिन, क्या स्ट्रेस से मौत तक हो सकती है? ये हमने पूछा डॉक्टर स्नेहा शर्मा से. 

डॉक्टर स्नेहा कहती हैं कि स्ट्रेस फिज़िकल, मेंटल और इमोशनल हेल्थ पर बुरा असर डालता है. जब भी हम स्ट्रेस में होते हैं तो शरीर को कुछ लक्षण महसूस होते हैं. जैसे हमारे सिर और शरीर में बहुत दर्द उठता है. कभी-कभी सीने में भी दर्द शुरू हो जाता है. पाचन तंत्र से जुड़ी दिक्कतें होने लगती हैं. अपच और डायरिया हो सकता है.

doctor sneha sharma
डॉ. स्नेहा शर्मा, साइकेट्रिस्ट एंड को-फाउंडर, अनवाया हेल्थकेयर

स्ट्रेस सीधे तौर पर तो हमारी जान नहीं लेता. लेकिन, अगर इस पर ध्यान न दिया जाए तो शरीर को बहुत नुकसान पहुंचता है. फिर जिसकी वजह से जान ज़रूर जा सकती है.

देखिए, जब हम घंटों ऑफिस में काम करते हैं. कुर्सी पर जमे रहते हैं. खाना सही से नहीं खाते. लगातार स्ट्रेस में रहते हैं. तब शरीर में एड्रेनलिन रश (Adrenaline Rush) होता है. एड्रेनलिन एक हॉर्मोन है. जब भी हम बहुत स्ट्रेस में होते हैं. तब हमारी धड़कनें बढ़ जाती हैं. पसीना आने लगता है. तब एड्रेनल ग्रंथि हमारे खून में एड्रेनलिन हॉर्मोन छोड़ देती है. इससे शरीर में एक रिएक्शन होता है. जिसे एड्रेनलिन रश कहते हैं. लगातार एड्रेनलिन रश रहने से दिल की धमनियां सिकुड़ने लगती हैं.

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स्ट्रेस से हार्ट अटैक आने का रिस्क बढ़ जाता है

हमारे दिल में तीन मुख्य आर्टरी होती हैं, जो खून ले जाने का काम करती हैं. इससे दिल को ऑक्सीजन और मज़बूती मिलती है. अब अगर कोई आर्टरी बंद हो जाए या वो सिकुड़ने लगे तो खून का फ्लो कम हो जाता है. उनमें प्लाक, जो एक तरह का फैट है, वो तेज़ी से जमने लगता है. इससे अंदरूनी सूजन आ जाती है. आर्टरी को किसी भी तरह का नुकसान यानी देर-सवेर हार्ट अटैक. फिर मौत.

बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेने से कोर्टिसोल हॉर्मोन (Cortisol Hormone) का लेवल भी बढ़ जाता है. ये हमारे दिल के साथ-साथ दिमाग को भी नुकसान पहुंचाता है. दरअसल लंबे समय से चल रहे स्ट्रेस से हमारे ब्रेन सेल्स खत्म होने लगते हैं. प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal cortex) सिकुड़ने लगता है. प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स दिमाग का एक हिस्सा है, जो याद्दाश्त और नई चीज़ें सीखने के लिए ज़िम्मेदार है. ये हिस्सा हमारे दिमाग के बाकी हिस्सों से कनेक्शन भी बनाता है. हमारे विचारों, कामों और भावनाओं को कंट्रोल करता है.

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बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेने से नई चीज़ें सीखने की क्षमता घटती है

अब अगर हम ज़्यादा स्ट्रेस में रहेंगे तो हमारी याद्दाश्त पर असर पड़ेगा. नई चीज़ें सीखने की क्षमता भी कम हो जाएगी.

डॉक्टर स्नेहा कहती हैं कि स्ट्रेस से डिप्रेशन भी हो सकता है. ऐसा मुमकिन है कि आपका कोई दोस्त, कोई कलीग हाई फंक्शनिंग डिप्रेशन से जूझ रहा हो. इस तरह के डिप्रेशन में इंसान बाहर से तो खुश नज़र आता है. मगर अंदर से बहुत हताश और निराश रहता है. उसे हमेशा एक खालीपन महसूस होता है. वो नाउम्मीद हो जाता है. लेकिन अपने चेहरे, अपनी बातों से ये सब ज़ाहिर नहीं होने देता. अगर किसी को लगातार ये लक्षण महसूस होते रहें तो इंसान खुद को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचने लगता है.

एक बात और. अगर हम काम के इतने दबाव में हैं कि अपने खाने-पीने का ध्यान नहीं रख रहे. एक हेल्दी डाइट नहीं ले रहे तो हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो सकता है. जिससे हमें बीमारियों और इंफेक्शन का ज़्यादा खतरा रहता है. नतीजा? समय से पहले मौत. इसलिए स्ट्रेस को मैनेज करना बेहद ज़रूरी है. अगर आप लंबे समय से बहुत स्ट्रेस में हैं तो प्रोफेशनल मदद ज़रूर लें.
 (यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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