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वायरल ख़बरों, ट्वीट्स, फ़ेसबुक या इंस्टाग्राम पोस्ट, वॉट्सऐप या टिकटॉक पर वायरल दावे, कुछ भी ऐसा जिसके जरिए ग़लत जानकारी फैलाई जा रही हो. पड़ताल के लिए हम उन जानकारियों को चुनते हैं, जिन्हें वायरल कर एक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हो रही हो. ऐसी जानकारियां जांचते हैं, जिनकी अगर पड़ताल न की जाए तो वो समाज और सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंचा सकती हैं. हमारे सजग पाठक ईमेल और सोशल मीडिया के ज़रिए संदिग्ध दिख रही जानकारियां हम तक भेजते हैं. हम उनकी भी पड़ताल करते हैं. हमारी कोशिश रहती है कि ग़लत जानकारी या झूठी कहानी गढ़ते हर दावे की पड़ताल करें, बिना किसी भेदभाव के, बिना पक्षपात के.
हमारी कोशिश रहती है कि दावे के मूल तक पहुंचें. यानी, जिनके साथ हुई-बीती. जो घटना के प्राथमिक स्रोत हों, प्रत्यक्षदर्शी हों. हम उन तक पहुंचें, उनसे मामले की असलियत जानें. फिर हम लोकल सोर्स, ग्राउंड रिपोर्टिंग, प्रशासन और पुलिस की मदद से प्रत्यक्षदर्शियों की कही बात को वेरिफ़ाई करते हैं. अगर मूल स्रोत कोई नामी शख़्स है तो हम उनसे सीधा संपर्क करके मामले पर उनका पक्ष जानते हैं. इस पक्ष की जानकारी लेने के बाद दावे की तथ्य और सबूतों के आधार पर पड़ताल की जाती है.
वीडियो की पड़ताल के लिए हम कीवर्ड्स सर्च करते हैं. सर्च इंजन पर उपलब्ध तमाम फ़िल्टर्स का इस्तेमाल करते हैं. वीडियो को अलग-अलग की-फ्रेम्स में तोड़ते हैं. इन की-फ्रेम्स को रिवर्स सर्च करने से असल वीडियो तक पहुंचने की गुंजाइश होती है. असल वीडियो मिलने के बाद अगर उसे वेरिफ़ाई करने की ज़रूरत हो, तो संबंधित व्यक्ति, पुलिस एवं प्रशासन के ज़िम्मेदार अधिकारियों से संपर्क किया जाता है.
वायरल हो रही तस्वीर की पुष्टि की लिए रिवर्स इमेज सर्च और कीवर्ड सर्च का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा अगर तस्वीर में दावे से जुड़ी कोई भी जानकारी दिखे, जैसे - लोग, नाम-पता, कॉन्टेक्ट नंबर, लैंडमार्क, खास बिल्डिंग, रोड पर दिखने वाले संकेत या वॉटरमार्क आदि, तो हम उसके जरिए असलियत तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. यहां भी वेरिफ़िकेशन के लिए वीडियो की तरह ही ज़रूरत पड़ने पर संबंधित व्यक्ति या प्रशासन से संपर्क किया जाता है. कई डिजिटल टूल्स भी हैं, जिनका इस्तेमाल ज़रूरत मुताबिक किया जाता है.
रिपोर्ट को स्थापित करने के लिए हम मूल आंकड़ों का इस्तेमाल करते हैं. ये आंकड़े सरकारी वेबसाइट्स, रिसर्च सेंटर्स, विश्वविद्यालयों या किसी नामी रिसर्च संस्थान के होते हैं. हमारी कोशिश रहती है कि रिसर्चर या प्रकाशक से सीधे संपर्क कर जानकारी ली जाए. दुनियाभर में सरकारें राष्ट्रीय महत्व की कई वेबसाइट्स का संचालन करती हैं. यहां लिखी बातों के- ऐतिहासिक, संवैधानिक, वैज्ञानिक एवं तथ्यात्मक आधार पर सही होने की संभावना काफ़ी ज्यादा होती है. इसलिए, हम इन वेबसाइट्स पर उपलब्ध जानकारी का इस्तेमाल रिपोर्ट में ज़रूरत के मुताबिक़ करते हैं. रिपोर्ट में लिखी बातें ऑन रिकॉर्ड होती हैं. हम गोपनीय सूत्रों के आधार पर ख़बरें नहीं लिखते. संवेदनशील मामलों में व्यक्ति को कोई नुकसान न हो या फिर किसी के आग्रह पर हम पहचान ज़ाहिर नहीं करते. लेकिन ऐसी रिपोर्ट में हम पहचान न बताने का कारण ज़रूर स्पष्ट करते हैं.
वैज्ञानिक एवं अकादमिक महत्व की बातों में कई ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनकी समान्य जीवन में ज़रूरत नहीं पड़ती. इसके अलावा समाज में फैली भ्रांतियों के आधार पर भी झूठे दावे किए जाते हैं. ऐसे दावों की सच्चाई जानने के लिए हम विशेषज्ञों की राय लेते हैं. हमारी कोशिश होती है कि एक विषय पर अधिक से अधिक विशेषज्ञों की राय लेकर पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाएं. विशेषज्ञों का चयन संबंधित विषय में उनके ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर किया जाता है. ग़लती की गुंजाइश न रहे, इसलिए हम विशेषज्ञों के राय के साथ उनके दावों की तस्दीक करने वाले सबूत भी सुधी पाठकों को सौंपते हैं.
किसी भी दावे की पड़ताल निष्पक्ष होकर, पूरी तरह तथ्यों के आधार पर की जाती है. लेखक के निजी विचार पड़ताल में कतई शामिल नहीं किए जाते हैं. पड़ताल सरल भाषा में लिखी जाती है, ताकि ये सबकी समझ में आ जाए. हम पूरी स्टोरी में दावे और पड़ताल से जुड़े ज़रूरी लिंक्स लगाते हैं, ताकि पाठक तक पहुंच रही जानकारियों में पारदर्शिता रहे. हमारी पड़ताल का मक़सद झूठे दावों का सच सामने लाने के अलावा पाठक को ख़ुद से फ़ैक्ट चेक करने के लिए प्रोत्साहित करना भी है. हर पड़ताल में हम कोशिश करते हैं कि रिपोर्ट में दी गई जानकारी- स्पष्ट, सरल और सरस हो. ताकि पड़ताल के सुधी पाठक इस प्रक्रिया को ख़ुद दोहरा सकें.
कई बार रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद आधिकारिक बयान या सवालों के जवाब हमें मिलते हैं. इसलिए जवाब मिलने या फिर किसी आधिकारिक पुष्टि, बयान या सबूत मिलने पर उसे भी रिपोर्ट में अपडेट किया जाता है. पड़ताल में जो भी अपडेट होती है, उसके बारे में रिपोर्ट के आखिर में लिखा जाता है.
सोशल मीडिया पर हर जगह पड़ताल की मौजूदगी है. पड़ताल का फ़ीडबैक आप हमें वहां दे सकते हैं. इसके अलावा अपनी बात हम तक पहुंचाने का ज़रिया है मेल और वॉट्सऐप नंबर. आप हमें mail@lallantop.com पर अपना संदेश भेज सकते हैं या फिर हमारे नंबर 9899813111 पर वॉट्सऐप कर सकते हैं. अगर हमारी रिपोर्ट में बेहतरी की गुंजाइश हुई, तो हम ज़रूर करेंगे. पाठकों से जुड़ना हमेशा सुखद होता है.
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