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Yudhra - Movie Review

कैसी है Siddhant Chaturvedi, Malavika Mohanan और Raghav Juyal की फिल्म Yudhra?

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yudhra movie review
ये मालविका मोहनन की पहली हिंदी फिल्म भी है.
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यमन
20 सितंबर 2024 (Updated: 21 सितंबर 2024, 09:49 IST)
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Yudhra
Director: Ravi Udyawar
Cast: Siddhant Chaturvedi, Malavika Mohanan, Raghav Juyal
Rating: 2.5 Stars 

साल 2013 में सुधीर मिश्रा पर एक डाक्यूमेंट्री बनी थी, ‘बावरा मन’. वहां वो कहते हैं कि जवान लड़के-लड़कियां उनसे आकर पूछते हैं कि कौन-सी फिल्में देखते हैं. जवाब में सुधीर कहते हैं – “मैं उनसे कहता हूं फिल्में छोड़ो, ज़िंदगी जियो यार. वो सबसे ज़रूरी है’. बहुत ज़्यादा फिल्में देखने का वैसे तो कोई नुकसान नहीं, मगर अगर कोई है तो सिर्फ यही कि आपके रेफ्रेंस पॉइंट उन फिल्मों से आने लगते हैं. सुधीर का तर्क ये था कि आप ज़िंदगी जियो और वहां से अपने रेफ्रेंस लो. 20 सितंबर को Siddhant Chaturvedi, Malavika Mohanan और Raghav Juyal की फिल्म Yudhra आई है. इसे Ravi Udyawar ने डायरेक्ट किया है. ‘युध्रा’ को देखकर लगता है कि इसके रेफ्रेंस वास्तविक जीवन से नहीं बल्कि बहुत सारी फिल्मों से आए हैं. 

फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी ने टाइटल रोल प्ले किया. वो एक अनियंत्रित फोर्स है. बिना वजह पंगे लेता रहता है. अपनी लाइफ एकदम एक्सट्रीम पर जीता है. उसके रवैये को चेक में लाने के लिए नैशनल कडेट ट्रेनिंग अकैडमी भेजा जाता है. लेकिन वहां से उसका कोर्ट मार्शल हो जाता है. सज़ा के तौर पर एक ऐसी जेल में भेजा जाता है, जहां के कैदी ही सिर्फ भारतीय लगते हैं. उसके अलावा बाकी पहलू ऐसे कि मानो किसी फॉरेन के शो में देखे हों. रहमान नाम का एक पुलिस ऑफिसर युध्रा से मिलता है. उसके गुस्से को सही जगह इस्तेमाल करने के लिए उसे अपना खबरी बना लेता है. युध्रा को अब किसी भी तरह फिरोज़ नाम के गैंगस्टर की गैंग में शामिल होना है. वो वहां तक कैसे पहुंचेगा, इस दौरान उसके लिए कैसी मुश्किलें खड़ी होंगी, यही आगे की कहानी है. 

yudhra
मेकर्स ने खून-खराबे के साथ पूरी लिबर्टी ली है. 

स्क्रीनराइटिंग को लेकर एक अनकहा सा नियम है. अगर किसी सीन में दो किरदार हैं, और दोनों एक-दूसरे के साथ अग्रीमेंट में हैं तो उस सीन को आपकी फिल्म में नहीं होना चाहिए. ड्रामा तभी निकलेगा जब इन दो लोगों के बीच कंफ्लिक्ट होगा. ‘युध्रा’ के साथ मसला ये है कि फिल्म में ऐसे अनगिनत सीन हैं. जहां बस चीज़ें घट जा रही हैं, कोई कंफ्लिक्ट पैदा नहीं हो रहा. ऐसा लगता है कि उन सीन को बस इसलिए रखा गया क्योंकि ऑडियंस को बताना है कि क्या घट रहा है. बताना है, दिखाना नहीं. जबकि सिनेमा तो मीडियम ही Show, Don’t Tell वाला है. आप उपन्यासों में बातें बोलकर बताते हैं, फिल्मों में उन्हें दिखाया जाता है. बस इतनी सी बात थी. 

फिल्म की कहानी युध्रा को केंद्र में रखकर रची गई. इस वजह से बाकी सभी किरदार बस उससे जुड़े हैं, उनका अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं. यहां मेकर्स ये तर्क देकर बच सकते हैं कि एक कमर्शियल एंटरटेनर में इतनी लिबर्टी तो ले ही सकते हैं. मगर दिक्कत ये है कि फिल्म युध्रा की कहानी को भी ठीक से फ्लैश-आउट नहीं कर पाती. हम देखते हैं कि बचपन से उसकी लाइफ बहुत ट्रैजिक रही है. सभी करीबी लोग एक के बाद एक छोड़कर चले जाते हैं. बस इतनी तकलीफों का इमोशनल इम्पैक्ट आप तक नहीं पहुंचता. ऐसा लगता है कि कोई किस्सा कहकर गुज़र गया बस. 

‘युध्रा’ एक एक्शन फिल्म है. फिल्म के उस पहलू की तारीफ होनी चाहिए. फिल्म के एक्शन पर कई फिल्मों की छाप दिखती है. लेकिन फिर भी मेकर्स ने अपने ढंग से लिबर्टी ली है. उनसे एक twisted किस्म का ह्यूमर निकाला है. जैसे एक जगह मालविका मोहनन की कैरेक्टर निखत एक आदमी की गर्दन में बांसुरी घुसाकर उसे मार डालती है. उस शख्स के गले की नली से खून बह रहा है और साथ ही बांसुरी बजने की आवाज़ आ रही है. उस सीन की वीभत्सता देखकर आपको घिन आनी चाहिए या हंसी, इसका चुनाव आप पर है. इसी फैशन में एक जगह युध्रा किसी की आंख में लॉलीपॉप घुसाकर मार डालता है. आप चाहें तो पिछले वाक्य को फिर से पढ़ सकते हैं, ये काम लॉलीपॉप जैसी मासूम चीज़ से हुआ. 

raghav juyal
राघव ने शफीक का रोल किया, जिसे देखकर किसी टिपिकल साइको विलन की याद आती है. 

एक्टिंग की बात करें तो इस फिल्म में उसका ज़्यादा स्कोप नहीं था. फिल्म के साथ कमर्शियल का टैग जुडते ही एक्टर्स ज़ोर लगाकर क्यों बोलने लगते हैं. मालविका मोहनन ने पहले काफी अच्छा काम किया है. लेकिन यहां निखत के रोल में वो कई मौकों पर गैर-ज़रूरी ढंग से लाउड हो रही थीं. सिद्धांत ने ज़रूरत के अनुसार सही काम किया, लेकिन उनके हिस्से ऐसा कोई सीन नहीं जिसे एक्टिंग के लिए याद रखा जाएगा. राघव जुयाल शफीक बने हैं. वो फिरोज़ का बेटा है. शफीक रंग-बिरंगे कपड़े पहनता है. सभी को पैनी, चीर देने वाली नज़रों से देखता है. राघव के पास यहां करने को बहुत कुछ था, लेकिन स्क्रिप्ट उनके लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं छोड़ती. उन्हें एक फिक्स सांचे में रखती है. 

दो घंटे 20 मिनट के रनटाइम के साथ ‘युध्रा’ के पास यादगार एक्शन फिल्म बनने का स्कोप था. लेकिन फिल्म के साथ समस्या यही हुई कि ये काफी कुछ करने के चक्कर में उलझ गई. एक समय पर हर कहीं जाने की वजह से कहीं नहीं पहुंच पाए.            
                                              
   
 

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