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कौन थे गायक मास्टर मदन, जिनसे प्रेरित किरदार बाबिल ने फिल्म 'क़ला' में निभाया

कहा जाता है कि 15 साल की उम्र में मास्टर मदन को दूध में पारा खिलाकर मार डाला गया था.

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फिल्म 'क़ला' के एक सीन में बाबिल खान. दूसरी तरफ मास्टर मदन.
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श्वेतांक
7 दिसंबर 2022 (Updated: 28 दिसंबर 2022, 11:27 IST)
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Qala नाम की फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है. अन्विता दत्त डायरेक्टेड इस फिल्म में तृप्ति डिमरी, स्वास्तिका मुखर्जी और बाबिल खान जैसे एक्टर्स ने काम किया है. बाबिल, इरफान के बेटे हैं. बतौर एक्टर 'क़ला' उनकी पहली फिल्म है. इस फिल्म में उन्होंने जगन नाम के उभरते हुए गायक का किरदार निभाया है. जिसे कम उम्र में खूब ख्याति मिल जाती है. समकालीन साथी गवैए ईर्ष्या रखने लगते हैं. इसी बीच जगन की आवाज़ खराब होने लगती है. क्योंकि उसे पारा (Mercury) खिला दिया जाता है. कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो जाती है.

बाबिल का निभाया जगन का ये किरदार असल जीवन से प्रेरित है. मास्टर मदन की कहानी से. मास्टर मदन छोटी उम्र में अपने इलाके के सबसे नामचीन गवैयों में गिने जाने लगे थे. साढ़े तीन साल की उम्र में पहली बार पब्लिक परफॉरमेंस दी. 10-12 साल लंबे म्यूज़िक करियर में कुल 8 गाने गाए. जिनमें से दो की रिकॉर्डिंग आसानी से उपलब्ध है. कहा जाता है कि मास्टर मदन जब 15 साल के थे, जब किसी ने दूध में पारा घोलकर उनकी जान ले ली.

# वो जबरदस्त सिंगर, जो डेढ़ महीने की उम्र में मौत की मुंह से वापस आया  

जालंधर के खानखाना गांव में अमर सिंह अपनी पत्नी पूरण देवी और बच्चों के साथ रहते थे. अमर सिंह अंग्रेज़ों के लिए काम करते थे. उनकी संगीत में बड़ी रूचि थी. घर पर कई वाद्य यंत्र रखे थे. जो कभी अमर सिंह और उनके बच्चे बजाया करते थे. खासकर उनकी बड़ी बिटिया शांति. खैर, जैसे ही गर्मी आती, अंग्रेज़ सरकार अपना बोरिया-बिस्तर लेकर शिमला शिफ्ट हो जाती थी. तब अमर सिंह की फैमिली शिमला के लोअर बाज़ार में बनी बुटैल बिल्डिंग में रहा करती थी.

28 दिसंबर, 1927 को अमर सिंह के यहां एक बच्चा पैदा हुआ. नाम रखा गया मदन. जब मदन डेढ़ महीने के थे, तब उनके घर में एक बंदर घुस आया. घरवालों के सामने से बंदर मदन को उठाकर छत पर ले गया. घरवाले रोकते-टोकते रहे. मगर कोई फर्क नहीं. सबको डर था कि बंदर बच्चे को गिरा न दे. ठीक तभी शांति को याद आया कि घर में एक संतरा पड़ा है. वो दौड़कर संतरा लाईं और बंदर के सामने फेंक दिया. फिर बंदर ने मदन को सही-सलामत जमीन पर टिकाया और संतरा लेकर भाग खड़ा हुआ.  

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अपनी पहली स्टेज परफॉरमेंस के दौरान मास्टर मदन.

# इंडिया के पहले सुपरस्टार इस बालक को सुनने उनके घर आते थे

बहरहाल, मदन जब बड़े हो रहे थे तब उनके घर का माहौल बड़ा संगीतमय था. बताया जाता है कि दो-ढाई साल की उम्र से ही वो अपनी बहन शांति से म्यूज़िक सीखने लगे थे. जून 1930 में जब मदन साढ़े 3 साल के थे, तब सोलन के धरमपुर में एक इवेंट हो रहा था. यहां मदन ने 'वंदन है शारदा नमन करूं' नाम का भजन गाया. ये उनके करियर की पहली पब्लिक परफॉरमेंस थी. जिसने उन्हें यहां गाते सुना, हैरान रह गया. क्योंकि वो तीन साल के बच्चे के लिहाज़ से काफी परिपक्व गायकी थी.

उन दिनों K.L Saigal शिमला में ही रेमिंगटन नाम की टाइपराइटर कंपनी के लिए काम करते थे. वर्ड ऑफ माउथ से मास्टर मदन नाम के गवैए की खबर उन तक पहुंची. वो अमर सिंह के यहां पहुंचे. मदन के साथ मुलाकात की. उन्हें रियाज़ करते सुना. वो भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. इसके बाद मदन का यहां उनका आना-जाना तब तक लगा रहा, जब तक वो न्यू थिएटर जॉइन करने के लिए कलकत्ता नहीं चले गए.  

ये वही कुंदन लाल सहगल थे, जो आगे चलकर देश के लेजेंड्री सिंगर और एक्टर बने. उन्हें इंडिया का पहला सुपरस्टार भी माना जाता है. उन्होंने कुल 36 फिल्मों में काम किया, जिसमें से 28 हिंदी फिल्में थीं और बाकी बांग्ला. उन्होंने 'सुबह का सितारा', 'तानसेन', 'देवदास', 'शाहज़हां' और 'परवाना' जैसी फिल्मों में काम किया. उन्होंने 'जब दिल ही टूट गया', 'जीने का ढंग सिखा जा' और 'ऐ दिल-ए-बेक़रार झूम' जैसे गाने गाए थे.

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एक परफॉरमेंस के दौरान मास्टर मदन. वो अपने सारे मेडल अपनी कोट में टंकवा लेते थे.

# देशभर के दिग्गजों के साथ रेडिया पर गाते थे मास्टर मदन

मास्टर मदन की स्कूली पढ़ाई-लिखाई शिमला के ही सनातन धर्म स्कूल से हुई. मैट्रिक उन्होंने रामजस स्कूल दिल्ली से की. इस दौरान वो देश के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूमकर स्टेज परफॉर्मेंस करते रहे. इसके अलावा 1931 से लेकर 1942 तक वो AIR (All India Radio) के साथ काम करते रहे. ऑल इंडिया रेडिया के इस लाइनअप में बड़े गुलाम अली खान, दिलीप चंदरवेदी, दीना क़व्वाल, मुबारक अली फतेह अली जैसे दिग्गजों के साथ मास्टर मदन भी थे. जो कि उनकी उम्र के हिसाब से बहुत बड़ी बात थी. कहा जाता है कि उनकी पॉपुलैरिटी से देश के तमाम नए सिंगर नाखुश से रहने लगे. उन्हें लग रहा था कि मास्टर मदन की वजह से उन्हें अच्छे मौके नहीं मिल पा रहे.  

# साथी गवैयों ने दूध में पारा घोलकर ले ली जान

खैर, 1942 में मास्टर मदन ने कलकत्ता में एक स्टेज परफॉरमेंस दी. यहां उन्होंने 'विनती सुनो मोरी अवधपुर के बसैया' गाया था. उनके गायन से इंप्रेस होकर जनता ने उन्हें खूब इनाम दिए. पैसों से लेकर सोना और क्या नहीं. इसके बाद वो लौटकर दिल्ली आए और AIR के लिए गाना जारी रखा. मगर उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. बुखार आया, जो जा ही नहीं रहा था. बताया जाता है कि उन्हें किसी ने दूध में पारा घोलकर पिला दिया था. इसकी वजह से वो बीमार रहे और कुछ ही दिनों बाद जून 1942 में उनकी डेथ हो गई. तब वो मात्र 15 साल के थे. कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ के मुताबिक उनके ही किसी साथी सिंगर ने ऐसा किया था. क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अगर मास्टर मदन रह गए, तो उन्हें लांघकर कोई आगे नहीं जा पाएगा.  

मास्टर मदन ने अपने करियर में कई गाने, गज़ल और ठुमरियां गाईं. मगर उनमें से सिर्फ 8 की रिकॉर्डिंग हो पाई. इसमें दो गज़ल, दो पंजाबी गीत, दो ठुमरी और गुरबानी के दो टुकड़े शामिल हैं. मगर मास्टर मदन को आज भी 'यूं न रह-रह के हमें तरसाइए' और 'हैरत से तक रहा जहान-ए-वफा मुझे' की वजह से याद किया जाता है. इन दोनों ही गज़लों को सागर निज़ामी ने लिखा था. इन दोनों ग़ज़लों को आप यूट्यूब पर आसानी से सुन सकते हैं. 

वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- क़ला

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