जब सलमान खान और संजय दत्त को लेकर गे लव स्टोरी बनने वाली थी
Salman Khan के एक पॉपुलर गाने पर फिल्म का टाइटल रखा गया था. लेकिन ये कभी बन ही नहीं पाई.
बीते कुछ दिनों से एक पुरानी हिंदी फिल्म फिर से चर्चा में है. ये फिल्म है साल 1981 में रिलीज़ हुई ‘बसेरा’. शशि कपूर, राखी और रेखा लीड रोल में थे. इस फिल्म को रमेश तलवार ने बनाया था. रमेश बहल ने फिल्म पर पैसा लगाया था. ये वही शख्स थे जो इससे पहले ‘द ट्रेन’ और ‘कसमें वादे’ जैसी फिल्में भी प्रोड्यूस कर चुके थे. अब लौटते हैं आज पर. कार्तिक आर्यन ‘आशिकी’ की तीसरी किश्त में दिखेंगे. अनुराग बासु इस फिल्म के डायरेक्टर हैं. टी-सीरीज़ फिल्म पर पैसा लगा रहा है. मीडिया में खबरें उड़ी कि ‘आशिकी 3’, जिसे ‘तू है आशिकी’ के नाम से बनाया जा रहा है, वो फिल्म ‘बसेरा’ का रीमेक होगी.
ये खबर बाहर आई. रमेश बहल ने परिवार ने कहा कि टी-सीरीज़ वालों ने उनसे परमिशन नहीं ली. उन्होंने टी-सीरीज़ को लीगल नोटिस भेज दिया. टी-सीरीज़ ने भी अपना जवाब दिया. उनका कहना था कि ये बात सरासर गलत है कि वो लोग ‘बसेरा’ का रीमेक बनाने जा रहे हैं. ऐसी खबरों में लेशमात्र भी सच्चाई नहीं. हालांकि उन्होंने ये क्लियर नहीं किया कि ‘तू है आशिकी’ किसी और फिल्म का रीमेक या अडैप्टेशन होगी या नहीं. ‘आशिकी 3’ को लेकर फिर से ‘बसेरा’ का नाम उठने लगा. पर ये पहला मौका नहीं जब इस फिल्म से प्रेरित कहानी रचने की बात उठी हो.
झामु सुगंध नाम के एक प्रोड्यूसर थे. उन्होंने कई पॉपुलर और आर्ट हाउस फिल्मों पर पैसा लगाया. अनुराग कश्यप कहते हैं कि झामु एक बार किसी डायरेक्टर पर भरोसा कर लेते तो फिर पलटकर उनके सेट पर भी नहीं जाते. डायरेक्टर को पूरी आज़ादी से काम करने देते. अनुराग बताते हैं कि झामु फिल्म इंडस्ट्री के ढर्रे पर दौड़ने की कोशिश नहीं करते. संजय लीला भंसाली ने अपने ढंग से ‘खामोशी’ बनाई. फिल्म नहीं चली. चिंता थी कि अगली फिल्म पर पैसा लगाने के लिए कौन मानेगा. उस वक्त भंसाली उस कद के डायरेक्टर भी नहीं थे जैसे कि वो आज हैं. ऐसे में झामु आगे आए. उन्होंने भंसाली की अगली फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ प्रोड्यूस की.
इसी तरह आशुतोष गोवारिकर ने ‘बाज़ी’ बनाई. फिल्म वैसी छाप नहीं छोड़ पाई, जैसी मेकर्स ने उम्मीद की थी. अगला प्रोजेक्ट ‘लगान’ जैसी ऐम्बिशियस फिल्म थी. यहां भी फिल्म को सपोर्ट करने के लिए झामु ने हाथ बढ़ाया. अनुराग कश्यप की पहली फिल्म ‘पांच’ रिलीज़ नहीं हुई. दूसरी फिल्म ‘ब्लैक फ्राइडे’ पर बैन लग गया. तीसरी फिल्म ‘गुलाल’ बनाना चाहते थे. लेकिन कोई पैसा लगाने को राज़ी नहीं. झामु उनसे मिले. ‘गुलाल’ को प्रोड्यूस किया. झामु ने जितने फिल्ममेकर्स पर दांव लगाया, सभी ने अपने ढंग से हिंदी सिनेमा का रुख बदल दिया.
लेट नाइंटीज़ की बात है. झामु एक फिल्म बनाने की सोच रहे थे. सलमान खान और संजय दत्त को अहम किरदारों में साइन करना चाहते थे. फिल्म का टाइटल ‘साजन जी घर आए’ रखा गया. बता दें कि इसी टाइटल से ‘कुछ कुछ होता है’ में सलमान खान का गाना भी था. झामु चाहते थे कि अपनी फिल्म के लिए ‘बसेरा’ की कहानी को अजीब सा ट्विस्ट दिया जाए. ब्रीफ में ‘बसेरा’ की कहानी बताते हैं. बलराज (शशि कपूर) और शारदा (राखी) शादीशुदा हैं. शारदा की एक छोटी बहन है, पूर्णिमा (रेखा). शादी के कुछ समय बाद ही एक हादसे में पूर्णिमा के पति की डेथ हो जाती है. ये खबर सुनने के बाद हड़बड़ाहट में शारदा सीढ़ियों से गिर जाती है. चोट आने की वजह से उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है. उसे एक हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया जाता है.
दूसरी ओर बलराज और पूर्णिमा की शादी हो जाती है. उनका जीवन अपनी गति पर चलने लगता है. इस बात को 14 साल बीत जाते हैं. हॉस्पिटल में कोई शारदा पर हमला कर देता है, जिस वजह से उसकी मानसिक स्थिति फिर से पहले जैसी हो जाती है. खैर अब शारदा फिर से अपने घर आ रही है. सभी घरवाले उसके सामने 14 साल पुरानी ज़िंदगी बनाने की कोशिश करते हैं. वही ज़िंदगी जहां बलराज और पूर्णिमा की शादी नहीं हुई होती.
अब बताते हैं कि झामु इस कहानी को कैसे अडैप्ट करने वाले थे. बलराज यानी शशि कपूर वाले कैरेक्टर में संजय दत्त को लेने का प्लान था. शारदा यानी राखी वाले कैरेक्टर को मेल बनाया जाता. उस रोल में सलमान खान को लेना चाहते थे. ट्विस्ट था कि सलमान को एक साइको लवर की तरह दिखाया जाए. अब यहां एक बात क्लियर नहीं. कि क्या सलमान का किरदार संजय दत्त से प्रेम करता था. या वो किसी और से प्रेम करता था और अब संजय दत्त से बदला लेना चाहता हो. बाकी अगर इन्हें बलराज और शारदा के जूतों में कदम रखने होते तो एक कपल की तरह ही दिखाया जाता.
सलमान और संजय दत्त इस फिल्म के लिए मान गए. लेकिन दोनो की डेट्स मैच नहीं हो पा रही थी. झामु ने इस प्रोजेक्ट को टाइम दिया लेकिन फिर भी बात नहीं बनी. अंत में फैसला लिया गया कि इस फिल्म को अभी होल्ड पर डाला जाएगा. उसकी जगह वो संजय दत्त और उर्मिला मातोंडकर को लेकर ‘खूबसूरत’ बनाने लगे. साल 1999 में ‘खूबसूरत’ रिलीज़ हो गई. लेकिन संजय-सलमान वाली फिल्म फिर कभी ट्रैक पर नहीं आ पाई. आखिरकार उस कहानी को डिब्बाबंद ही कर दिया गया.
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