इम्तियाज़ अली ने पुलिसवाले की बंदूक छीनी, उन्हें दिल्ली पुलिस उठा ले गई!
एक बार इरशाद कामिल ने भी किस्सा सुनाया था, जब पुलिस वालों ने उन्हें और इम्तियाज़ को 40 मिनट थाने में बिठाकर रखा था.
इम्तियाज़ अली हिंदू कॉलेज में पढ़ते थे. इस दौरान वो इब्तिदा नाम की ड्रामैटिक सोसाइटी के मेम्बर थे. नुक्कड़ नाटक किया करते थे. और इसी समय उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा था. ऐसा उन्होंने हमारे ख़ास प्रोग्राम गेस्ट इन द न्यूजरूम में बताया.
इम्तियाज़ अली से सवाल हुआ कि थाने के कितने चक्कर लगे. इस पर इम्तियाज़ ने बताया:
वो मंडल कमीशन का दौर था. बहुत सारे लोग जेलों में भरे जा रहे थे. हम लोग नुक्कड़ नाटक किया करते थे. हमें सिर्फ नाटक में दिलचस्पी थी. एक बार हमें भी जेल में भर दिया गया था.
इम्तियाज़ अली ने बताया कि उन लोगों ने एक बार किसी पुलिस वाले की गन छीन ली थी. उनके शब्द थे:
हमने किसी पुलिस वाले की गन छीन ली थी, एक ग्रुप के तौर पर. मतलब हमने छीनकर कोई गोली वगैरह नहीं चलाई थी. बस कोशिश की थी. ये मोरिस नगर थाने की बात है.
इमियाज़ से जब इस पर विस्तार से बात करने को कहा गया, तो उन्होंने बताया कि बहुत साल हो गए. ठीक से याद नहीं. मैं जो भी बताऊंगा उसमें थोड़ा बहुत फिक्शन होगा.
हिंदू कॉलेज के आसपास बहुत टीले हैं. हरियाली है. रात को वहां पुलिस वाले राइफल के साथ तैनात रहते थे. ठंड में वो एक लकड़ी के गार्ड रूम में रहते थे. जितना मुझे याद है, हमने उस गार्ड रूम को गिरा दिया. संतरी उसके अंदर था. उसकी गन हमने छीनने की कोशिश की. फिर हम लोग पकड़े गए. अफरातफरी हुई. मार भी पड़ी होगी. हालांकि ये पहली बार नहीं था कि मारे गए होंगे, इसलिए मार याद नहीं है.
इम्तियाज़ आगे बताते हैं:
हमें मोरिस नगर थाने रखा गया. वैसा कुछ नहीं था कि लॉक कर दिया था. सबको जमीन पर बिठाया गया. काफी देर तक हम वहां रहे. उस समय वहां एक सब-इंस्पेक्टर हुआ करते थे, सरीन साहब. उनसे मेरी दोस्ती हुई. खैर, वो लम्बा चैप्टर है फिर कभी.
गीतकार इरशाद कामिल ने भी एक किस्सा सुनाया था, जब उनको और इम्तियाज़ को पुलिस उठा ले गई थी. इरशाद बताते हैं:
हम उन दिनों के दोस्त हैं, जब ना वो इम्तियाज़ अली थे, ना मैं इरशाद कामिल. हम मुफलिसी के दौर के दोस्त हैं. एक कटिंग चाय के भी पैसे नहीं हुआ करते थे. एक किस्सा है. 'सोचा न था' पर काम चल रहा था. टाइटल सॉंग लिखा था. इम्तियाज़ ने इसे बकवास बताया. हम वर्सोवा बीच पर टहलने लगे. रात के ढाई बज रहे थे. पुलिस वाले आ गए. उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो? हमने कहा गाना डिस्कस. रात के ढाई बजे? वर्सोवा पुलिस स्टेशन ले गए. रास्ते में भी हम डिस्कस करते रहे. उनके लिए चाय आई तो वो उन्होंने हमें भी पिला दी.
इम्तियाज़ से पूछा, "क्या करते हो?"
उसने कहा, "जी, डायरेक्टर हूं."
"कौन सी फिल्म डायरेक्ट की है?"
" की नहीं है, अभी करूंगा."
मुझसे पूछा, “तुम क्या करते हो?”
मैंने कहा, “गाने लिखता हूं.”
“कौन सा गाना?”
“जी अभी आया नहीं है.”
उन्होंने हमें 40 मिनट तक बिठाके रखा. फिर भेज दिया. जब ऐसे किस्से आप शेयर करते हैं, तो शायद दोस्ती गहरी हो जाती है.
ऐसे ही कई लम्बे-लम्बे किस्से इम्तियाज़ अली ने गेस्ट इन द न्यूजरूम में सुनाए हैं. आप भी देख डालिए.
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