The Lallantop
Advertisement

वेब सीरीज़ रिव्यू: दहन

'दहन' सीरीज़ में आपको हॉरर, मिस्ट्री और थ्रिलर सब देखने को मिलेगा.

Advertisement
Dahan
'दहन' सीरीज़ में सौरभ शुक्ला.
pic
लल्लनटॉप
20 सितंबर 2022 (Updated: 20 सितंबर 2022, 19:30 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

राजस्थान का एक कस्बा है, शिलासपुरा. एक आईएएस हैं, अवनि. जो शिलासपुरा में माइनिंग इसलिए करना चाहती हैं क्योंकि इससे वहां रोज़गार बढ़ेगा, लोगों की जिंदगी में खुशहाली आएगी. एक शिलास्थल है. और एक हज़ारों साल पुरानी कहानी, जो कारण है वहां के लोगों की उस शिला में आस्था का. हम बात कर रहे हैं ‘दहन’ की. हॉटस्टार पर 16 सितंबर को रिलीज़ हुई ये नौ एपिसोड की सीरीज़ एक रोलर कोस्टर राईड है. जो विश्वास, आस्था, विज्ञान, विकास और पर्यावरण जैसे मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करती है.

कहानी है शिलासपुरा नाम के कस्बे की, जहां दो समुदाय रहते हैं. कारापल्ली और निकासिये. इन दोनो को जोड़ती है एक शिला में इनकी आस्था.  शिलासपुरा में प्रचलित सदियों पुरानी एक कहानी है. इसके एक किरदार रिढियाकन की गरदन कारापल्लियों ने धड़ से अलग कर दी थी. उसके बाद भी रिढियाकन शोर मचाकर अपनी मां को बुलाने की कोशिश कर रहा था. इसलिए उसकी गरदन को कारापल्लियों ने एक शिला के नीचे छुपा दिया और उसे शांत रखने के लिए शिला की पूजा करना शुरू किया.

आईएएस अवनि, जो इस कहानी को अंधविश्वास मानती हैं, शिलासपुरा में माइनिंग का काम शुरू करना चाहती हैं. जिससे वहां लोगों को रोज़गार मिलेगा और उनकी ज़िंदगी में बदलाव आएगा. लेकिन वहां के कुछ प्रमुख लोगों का मनना है कि इससे शिला को नुकसान होगा और शिलासपुरा के लोगों की जान मुसीबत में पड़ जायेगी.

यहीं से शुरू होता है विज्ञान और आस्था के बीच का संघर्ष.

इन दोनो के बीच का अंतर ये है कि आस्था को सवालों का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन विज्ञान को हज़ारों सवालों से गुज़रना होता है. अगर विज्ञान सवालों का जवाब नहीं दे पाता है, तो जवाब मिलने तक आस्था को ही सही माना जाता है. ठीक उसी तरह जैसे बेनिफिट ऑफ डाउट क्रिकेट में बल्लेबाज़ को मिलता है और राजनीति में विपक्ष के कमज़ोर होने पर सत्ता पर काबिज़ पार्टी को.

लेकिन अगर इसका उल्टा होता है तो? मान लीजिए कि विज्ञान सभी सवालों का जवाब ढूंढ लेता है. तब क्या होता है? ऑफिस-ऑफिस के स्टाइल में कहें तो दो बातें होंगी. या तो आस्था सही साबित होगी, या गलत.

अगर गलत साबित होती है, तो भी नहीं कह सकते हैं कि आस्था में भरोसा करने वाले विज्ञान में भरोसा करने लगेंगे.  लेकिन अगर आस्था विज्ञान की कसौटी पर सही साबित होती है, तो वो एक ऐसा पल होता है जहां विज्ञान और आस्था एक हो जाते हैं. और ये समझ आता है कि हमारे पूर्वजों की लिखी और कही कहानियों में, हो सकता है हमारे  लिए कुछ संकेत छुपे हों.

दहन देखने के बाद कई सारे निष्कर्षों में से एक निष्कर्ष ये भी निकलता है कि किसी भी कहानी के किरदार और उनके साथ होने वाली घटना आस्था को जन्म देती है और उसमें छुपे हुए संकेत विज्ञान को.

विक्रांत पवार के डायरेक्शन में बनी सीरीज दहन को लिखा है निसर्ग मेहता, शिव बाजपेई और निखिल नायर ने. इसमें आपको हॉरर, मिस्ट्री और थ्रिलर सब देखने को मिलेगा. IAS अवनि के किरदार में टिस्का चोपड़ा की परफॉरमेंस काबिल–ए-तारीफ़ है. आईएएस के रोल में जहाँ वो प्रोफेशनल और कॉंफिडेंट दिखाई देती हैं, वहीं एक माँ के रूप में अपने बेटे के लिए भावुक और संवेदनशील भी हैं. दोनों जगह पर पूरी ईमानदारी से उन्होंने इस काम को अंजाम दिया है.  

सौरभ शुक्ला की बात करें तो शिला की रक्षा करने वाले पुजारी प्रमुख स्वरुप के किरदार में अपने हर सीन में उनकी एक्टिंग हमारी उम्मीदों पर खरी उतरती है. उनके लुक से लेकर डायलॉग डिलीवरी तक सब कुछ हमें मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है. राजेश तैलंग भी कांस्टेबल परिमल सिंह के किरदार के साथ सीरीज में एक unpredictable factor को शुरू से आखिर तक बना कर रखते हैं.

गोलमाल में वसूली का किरदार निभाने वाले मुकेश तिवारी ने भी सर्किल इंस्पेक्टर भैरों सिंह का किरदार बखूबी निभाया है. इन सब के अलावा पंकज शर्मा, रोहन जोशी, लहर खान और सिद्धार्थ भारद्वाज भी इस सीरीज में आपको देखने को मिलेंगे. सबका काम संतोषजनक है.

आईएएस अवनि, प्रमुख स्वरुप और परिमल सिंह के किरदारों की ख़ास बात यह है कि इन सब की जर्नी में काफी उतार चढ़ाव हैं, जो सीरीज के साथ हमें बांधे रखते हैं. लोकेशन, विजुअल इफेक्ट्स और प्रोडक्शन डिज़ाइन इस सीरीज़ का एक ऐसा हिस्सा है, जिसके सहारे कहानी की कुछ कमियों को कवर अप किया जा सकता है.

ये सीरीज़ हमारे सोचने के तरीके को चैलेंज करते हुए वहां तक पहुंचती है, जहां हमें किसी एक पक्ष को पूरी तरह सही या पूरी तरह गलत बताने से पहले कई सारे तथ्यों और तर्कों से होकर गुज़रना होगा. हालांकि कुछ एपिसोड्स ज़्यादा खिंचे हुए लगते हैं और कुछ बातें बार-बार दोहराई जाती है. सीरीज़ और बेहतर हो सकती थी. लेकिन अभी भी काफी कुछ ऐसा है, जिसके लिए देख सकते हैं.

ये रिव्यू हमारे साथी दीपक कौशिक ने किया है. 

वीडियो: मूवी रिव्यू: जोगी

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement