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अनदेखी सीज़न 3: दुष्टों का सत्यबोध (Undekhi 3 Web Series REVIEW)

2020 में आई इस छोटी सी, नाचीज़ सीरीज़ ने भारतीय वेब सीरीज़ परिदृश्य में विशेष जगह बना ली. रिंकू, पापाजी, घोष बाबू के नाम ज़बानों पर चढ़े. अब Undekhi Season 3 आया है. Harsh Chhaya, Dibyendu Bhattacharya और Surya Sharma की मनरंजक भूमिकाओं से सजी Sony LIV की ये सीरीज़ कैसी है, पढ़ें हमारे इस web series Review में.

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Harsh Chaya in Undekhi season 3 web series review
विखंडन. सीरीज़ के एक अहम दृश्य में हर्ष छाया का पात्र सुरिंदर अटवाल / पापाजी. (Undekhi 3 )
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गजेंद्र
9 मई 2024 (Updated: 9 मई 2024, 02:57 IST)
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    रेटिंग - 3.5 स्टार   

Undekhi Season 3 Web Series Review


“अनदेखी 3” की दुनिया उतनी ही इंगेजिंग, ग्रिपिंग, मज़ेदार और तृप्त करने वाली है जितनी आप उम्मीद पालते हो. एक सीरीज़ के लिए ये करतब भी कम नहीं.  

ये मनाली, हिमाचल में सेट एक क्राइम थ्रिलर है. एक पावरफुल कारोबारी और ड्रग लॉर्ड है सुरिंदर सिंह अटवाल. जिसे पापाजी के नाम से जाना जाता है. बंगाल से इनवेस्टिगेट करने आए डीएसपी घोष (दिब्येंदु भट्टाचार्य) तो उसे मि. पापाजी तक कहते हैं. चतुर.

सुरिंदर अटवाल एक निकृष्ट, पशुवत, नशेड़ी, वाचाल, अस्थिर दिमाग वाला रेयर विलेन है जो इंडियन स्टोरीटेलिंग सीन में उभरा है.

सीज़न 1 में कहानी यूं शुरू हुई थी कि अटवाल के बेटे दमन (अंकुर राठी) की शादी होती है, तेजी (आंचल जी. सिंह) नाम की लड़की से. रात को सेलिब्रेशन चल रहा होता है. स्टेज पर दो डांसर नाच रही होती हैं. शराब में नशे में धुत्त अटवाल एक लड़की के सिर में गोली मार देता है. जिसका विजुअल कैमरे पर कैप्चर हो जाता है, और ऐसा होता है कि हर बार दर्शक को हिट करता है. तीसरे सीज़न तक आते आते भी हिट करता है. परंतु, इस हत्या के बाद कहानी में जो होता है, वो "अनदेखी" को अप्रत्याशित तरीके से भोगे जाने वाली एक सीरीज़ बनाता है. और होता ये है कि - पापाजी को उस डांसर को मारने का कण भर भी पछतावा नहीं होता. वो impunity के साथ बिस्तरों पर पसरा रहता है. अंत* तक.

फिर रिंकू अटवाल (सूर्या शर्मा) का पात्र है. वो दानवाकार है. भल्लालदेव से भिड़ने वाले सांड सरीखा. उसकी गोलियों जैसी तीखी डरावनी आंखें और सिंगल शेड वाला व्यक्तित्व अनवरत है. वो पापाजी का भतीजा है या मुंहबोला बेटा है, कि क्या है. लेकिन जो भी है, रिंकू के होते पापाजी को कुछ नहीं हो सकता. ये बात डीसीपी घोष को भी अगले तीनों सीज़न के करीब 28 एपिसोड्स में बार बार महसूस होती है. इस कहानी में कई लोग आते हैं, एक एक कर मरते जाते हैं लेकिन पापाजी को कुछ नहीं होता.

डीएसपी घोष, जो एक ठंडे दिमाग वाला, नरम मिजाज वाला, स्मार्ट, जेंटल पुलिस अधिकारी है. उसे दिब्येंदु भट्टाचार्य बेहद मनमोहक पात्र में तब्दील कर देते हैं. वो रॉकी बेलबोआ की तरह है. जो इसलिए अपने विरोधी से ग्रेट है, और जीतता है, क्योंकि वो बिना थके उतने मुक्के खा सकता है, जितना सामने वाला मारते मारते थक जाएगा. तीसरे सीज़न में एक जगह जब घोष फिर हार जाते हैं और कुटिल चालें चलकर सब शैतान जीत जाते हैं, तो वे अपनी टीम की मायूस, दुखी ऑफिसर राशि (लवीना टंडन) से कहते भी हैं कि वो बॉक्सिंग वाली मूवी रॉकी में एक डायलॉग होता है न - It's not over, until its over. तो अभी सब ख़त्म हुआ नहीं है. अभी और पंच खाने की ताकत है.

सीज़न 3 में भी वही कशिश, ये सीरीज पूरी कामयाबी से बरकरार रखती है जिसके लिए "अनदेखी" को जाना जाता है. और अंत तक जाते जाते एक बड़ा मोड़ इस कहानी में आता है, जो निर्णायक है. अब इसके बाद कोई अदला बदली, पासा पल्टी, या ट्रिक्स न होंगी. "अनदेखी 4" से ये कहानी कुछ और ही होगी.

सीज़न 3 में हम क्या देखते हैं? सबसे पहले तो इस सीरीज के लैगेसी कैरेक्टर्स को दिखाया जाता है. कि वो क्या कर रहे हैं. हर्ष छाया का नराधम पापाजी का किरदार नीचता में उतना ही कंसिस्टेंट बना मिलता है. ओपनिंग सीन में वो स्कॉच की जिद करता है. नहीं दी जाती तो घर की औरतों के सामने नंगा हो जाता है. निःसंशय, ये हर्ष छाया के जीवन का बेस्ट परफॉर्मेंस हैं. हम पापाजी की साइकी में, उसके पैनिक भरे मनोभावों, छटपटाहटों के जरिए हर्ष के कमाल के शेड्स देख पाते हैं. निश्चित रूप से वे इस सीरीज़ के ब्लैक/स्याह को तीसरे सीज़न में भी अटलता से पकड़े रख पाते हैं. कोई नोटिस नहीं करेगा लेकिन पूरी सीरीज़ में वे टेक-दर-टेक जिस असहज करने वाली -- झुकी कमर, धनुष की तरह मुड़ी रीढ़, भीतर को धंसता शरीर, झुकी गर्दन, लगातार खिंची हुई जोकरनुमा मुस्कान, लगातार खिंची माथे की सलवटें -- भंगिमा के साथ शारीरिक श्रम करते हैं, वो बड़ा कष्टकारी रहा होगा.

उधर, रिंकू और तेजी का शीत युद्ध चल रहा है. वे एक दूसरे को खुली धमकियां देते हैं.

मुस्कान, जो रिंकू की बीवी है, उसमें शिवांगी सिंह की कास्टिंग एकदम खरी है. वो किसी कच्ची मूरत सी है. असल लड़की सी. उसे देख लगता है कि वो रिंकू की ही है, कोई एक्टर नहीं. उसी जैसी ऊर्जा से भरी. पशुवत. अपने प्रेमी को वश में कर लेने वाली. जिसे वो डांट भी न सकेगा. वो रिंकू की ही है. वो बहन की गाली भी देती है. एक सीन में कहती है - "एक दिन उस तेजी को तो मैंने ही गोली मार देनी है." और फिर उस पर रिंकू उसे चुप कराता है. इस घर की स्त्रियों में ये भाव कॉमन है. पुरुषों की तरह वे भी असंवेदनशील हैं. गालियों, अभद्रताओं, मर्डर्स से उन्हें रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता.

फिरंगी कलेवर वाला दमन (अंकुर राठी), बदल चुका है. उसका सतहीपन जा चुका है. दाढ़ी बढ़ चुकी है. अब उसे खुश करना, चहकाना बड़ा मुश्किल है. पिता के ड्रग्स बिज़नेस में उसकी कोई रुचि नहीं. पत्नी से भी उसे कोई खास लगाव न रहा. वो अब "गाइड" के भगवा ओढ़े राजू से डेढ़ कदम दूर है. लेकिन वो शायद इतना ही नहीं है. शायद वो कायर भी है. शायद वो स्वार्थी है. शायद वो इनडिफरेंट है.

कहानी में सबसे बड़ा खुरपेंच ये है कि मनाली में कोई नया प्लेयर आया है, जो रिंकू के ड्रग्स के धंधे में घुस रहा है. अब रिंकू क्या करेगा और वो प्लेयर किस तरह पापाजी का विनाश कर देना चाहता है, और क्यों, यही सबसे बड़ा कौतुहल है.
इस संदर्भ में जय बंसल, सुमित बिश्नोई के बोलचाल की भाषा वाले संवाद आते हैं. जहां लक्की एक सीन में कहता है - "पाजी, वो गल सही निकली. हमारे धंधे में कोई घुस आया है. ये सस्ती गोलियां बांट रहा है". इस पर रिंकू कहता है - "हमारे धंधे में सस्ती सिर्फ एक ही चीज होती है, वो है बंदे की जान. तू नाम बता उसका."

हालांकि सीरीज़ में इरीटेटिंग चीज भाषा ही है. खासकर ऐसे डायलॉग्स जिसमें पंजाबी का एक शब्द होता है और बाकी हिंदी. जिससे बोलना वाला नकली पंजाबी लगता है. और सीरीजी की भाषाई ऑथेंटिसिटी मरती है. 
एक औऱ चीज अखरती है. ये जो प्रकल्पना है कि तेजी किसी भी खिड़की के बाहर जाकर खड़ी हो जाएगी और परदा हटा होगा और अंदर सामने बैठे लोग उसे देखेंगे नहीं, ये बड़ी महंगी प्रकल्पना है, जिसका बोझ दर्शक पर डाला गया है. ये 70-80 के दशक की फ़िल्मों में खूब खर्ची गई थी. अब वर्क नहीं करती. तेजी बगैर किसी डर, एफर्ट, शारीरिक बेचैनी के रिंकू के पहरेदारों के बीच से भी निकल जाती है.

डीओपी मर्ज़ी पगड़ीवाला का कैमरा मनाली और हिमाचल की वादियों, घाटियों, पहाड़ों का सुंदर और विहंगम इस्तेमाल करता है. सिनेमैटोग्राफी और सौरभ प्रभुदेसाई की एडिटिंग इस पारंपरिक फिल्ममेकिंग वाली सीरीज़ में कहीं कहीं एक्सपेरिमेंट और कविता रचने की जगह निकालती है, जो अच्छी लगती है. मसलन, एक सीन, जब राजवीर मल्होत्रा (बरुण बडोला) की भारी एंट्री होती है एपिसोड 1 के अंत में. जब कोलकाता में शराब की गिलास में डूबे, बंगाली गाने सुनते, डीएसपी घोष और मनाली के हैवान पापाजी के फोन पर एक सनसनीखेज़ वीडियो आता है और फ्रेम में उभरता है एक मिस्टीरियस कैरेक्टर. कैमरा उसकी पीठ के पीछे से रोल हो रहा होता है. सफेद कोट पहने, कम light sources वाले अंधेरे कमरे के फ्रेम में वो एक कश खींचकर सिगरेट होठों से निकालता है. फिर बुझाता है. तीसरा फ्रेम उसके चेहरे पर आता है. लेकिन उसने जो धुआं छोड़ा है उससे उसका चेहरा ढक गया है. नाटकीयता पैदा होती है. उसके चेहरे के उद्घाटन के बाद क्रेडिट्स रोल होते हैं. इसी तरह एक सुंदर रूपक वाला सीन है, जब टूटे गमलों से ढह गए पीले फूलों पर जूता रखकर रिंकू आगे बढ़ता है, और वो फूल कोई और नहीं वो खुद होता है, जो इस घर से उनके कनेक्शन का राज़ खुलने के बाद समझ आता है.  

"अनदेखी 3" की कहानी को डायरेक्टर आशीष शुक्ल बड़े निरपेक्ष भाव से दिखलाते हैं. एक बड़ा "मार्मिक" सीन होता है, जब घोष की टीम का कोई पुलिसवाला मारा जाता है. बहुत साज़िशन उसकी मौत हुई होती है. अगले ही पल अटवाल के घर के गेट पर नगाड़े बज रहे होते हैं और ढोली गाता है - "बारी बरसी खटन गया सी, खट के ले आंदा तेल - पंगड़ा तां सजदा, पापाजी जाण तो बच गए जेल". इससे फनी मूमेंट तीनों सीज़न में कोई नहीं. और इससे बड़ी विडंबना कोई नहीं. इससे बड़ी ट्रैजेडी कोई नहीं. इस पल में रसूखदार, गुंडे, क्रिमिनल, शैतानों को लेकर डायरेक्टर दर्शक के मन में घिन्न भर देते हैं. वो भी हंसाते हुए. यही "अनदेखी" की ब्रिलियंस है.

लेकिन फिर एपिसोड 7 में एक मौका ऐसा भी आता है जब रिंकू, तेजी, डीएसपी घोष सब एक साथ मिलकर किसी से लड़ रहे होते हैं और बड़ा हीरोइक सा बैकग्राउंड स्कोर बजता है. इस बैकग्राउंड स्कोर से ऐसा लगता है कि मेकर्स के लिए अच्छे और बुरे का भेद ख़त्म हो गया है. ये बस एक ग्लैमराइज्ड स्टंट सीन है. एक्शन सीक्वेंस है. वहीं पर घोष और रिंकू जो परम दुश्मन हैं, वे एक दीवार की ओट में खड़े होते हैं और उनकी गोलियां ख़त्म हो गई होती हैं. दोनों यहां एक टीम हो जाते हैं.

गुड और बैड एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, द्वैत हैं, संभवतः ये विचार रहा हो मेकर के मन में. वो रिंकू और घोष को अच्छे-बुरे की तरह जज ही न करता हो. तो फिर पूरी कहानी का मतलब क्या रह गया? मतलब ये रह गया कि चिल करो. गांभीर्य त्योग. ये बस एक किस्सा, कहानी है, मनोरंजन है. चोर पुलिस का खेल है.  

इसमें दुष्टों का सत्य बोध सबसे संतोषदायक पल हैं. चाहे वो लक्की हो, रिंकू हो या पापाजी हो. या फिर कुछ हद तक घोष और तेजी भी हो.

आप हैरान रह जाते हैं जब रिंकू जैसा जड़बुद्धि भी सीरीज के अधबीच में कहता है - "सबके कर्मों का हिसाब होता है लक्की". और आप दुष्टों के सत्यबोध के पहली बार वाकिफ होते हो और तसल्ली करते हो.

ये बात यहीं तक.

Series: Undekhi Season 3 । Creator/Director: Ashish R Shukla । Cast: Harsh Chhaya, Dibyendu Bhattacharya, Surya Sharma, Aanchal G Singgh, Ankur Rathee, Ayn Zoya, Shivangi Singh, Vaarun Bhagat, Varun Badola । Episodes: 8 । OTT Platform: Sony LIV (10 May, 2024 Release)

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