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वेब सीरीज़ रिव्यू: 'ट्रिपलिंग' सीज़न 3

सुमित व्यास की एक्टिंग अच्छी है मगर उनके राइटिंग की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम है.

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Tripling 3 Review
ट्रिपलिंग सीज़न 3 के एक सीन में कुमुद मिश्रा, सुमित व्यास, अमोल, शेरनाज़ और मानवी.
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मेघना
20 अक्तूबर 2022 (Updated: 21 अक्तूबर 2022, 12:22 IST)
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एक लाइन में कहूं तो 'ट्रिपलिंग' के तीसरे सीज़न का रिव्यू करना बहुत आसान था. मैं दो-चार घिसी-पिटी लाइनें बोलूं कि बहुत अच्छा स्क्रीनप्ले है, बहुत अच्छी स्टोरी है, बहुत अच्छी एक्टिंग है. आपको देखना चाहिए. बस, हो गया रिव्यू पूरा. अगर आप सिर्फ यही जानने आए हैं तो आपको निराशा हो सकती है. क्योंकि इस बार मेरे पाले में बहुत कुछ है बताने को. इस बार के 'ट्रिपलिंग' में आपको सिर्फ रोड ट्रिप देखने को नहीं मिलेगी. ना सैसी सॉन्ग सुनाई देंगे. इस बार रिश्तों को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां टूटेंगी. बहुत सारे संवाद ऐसे होंगे जिसे हज़म करना मुश्किल होगा. तो सीट बेल्ट बांध लीजिए क्योंकि इस बार आपके इमोशन्स की उड़ान बहुत ऊंची होने वाली है.

जिन लोगों ने 'ट्रिपलिंग' का पहला और दूसरा सीज़न नहीं देखा वो जान लें कि कहानी तीन भाई-बहनों की है. उनके रिश्तों की है. दोनों सीज़न्स में तीनों भाई-बहन एकसाथ रोड ट्रिप पर जाते हैं. जिससे उनके बीच होने वाली संकुचाहट, झिझक दूर हो जाती है. उनके रिश्ते बेहतर हो जाते हैं. अपनी-अपनी ज़िदंगी में व्यस्त रहने वाले ये तीन प्राणी एक-दूसरे के और करीब आ जाते हैं. मगर तीसरे सीज़न की कहानी इनकी नहीं है. इनके मां-बाप की है. मां-बाप के आपसी रिश्तों की है. कहानी है चंदन, चंचल और चितवन के पेरेंट्स की जो शादी के 36 साल बाद तलाक लेना चाहते हैं. अपना घर बेच कर देश के अलग-अलग हिस्सों में बसना चाहते हैं. और चाहते हैं कि उनके इस डिसिजन में बच्चे उनका साथ दें.

तलाक शब्द से इतना खौफ क्यों?

अब फर्ज़ कीजिए कि आपके पड़ोस में रहने वाले कपल का तलाक होने वाला है. आप उनसे तो कुछ कहने नहीं जाएंगे. लेकिन पीठ पीछे कई तरह की बातें होंगी. लोग अपना-अपना दिमाग खपाएंगे कि तलाक क्यों हो रहा है? इस सीज़न में भी चंदन, चंचल और चितवन का रिएक्शन ऐसा ही होता है. 

‘ट्रिपलिंग’ सीरीज़ की जान. चन्दन, चंचल और चितवन.

खबर सुनते ही तीनों पैनिक हो जाते हैं. सालों बाद फिर से एक साथ मिलने और मां-बाप को समझाने की प्लानिंग करते हैं. जो फैक्चुअली बिल्कुल करेक्ट है. मगर ट्विस्ट यहीं है. तलाक शब्द सुनते ही पूरी सोसायटी की आंख-भौ चढ़ जाती है. जब अपने मां-बाप का तलाक होना हो तब तो कुछ भी समझ नहीं आता. मगर आज की जनरेशन ये समझने की कोशिश नहीं करती कि जिस कपल ने इतने साल इतनी खूबसूरती से अपनी ज़िम्मेदारी निभाई उसके कुछ अपने सपने भी हो सकते हैं.

मां-बाप को बैकअप समझने वाली ये जनरेशन

सुमित व्यास और Arunabh Kumar ने अपनी कहानी से इसी समझ को बदलने की कोशिश की है. वो तलाक को लेकर बने तमाम तरह के पूर्वाग्रहों को तोड़ना चाहते हैं. वो दिखाना चाहते हैं कि छोटी-छोटी बातों पर ब्रेकअप और पैचअप करने वाले यंगस्टर्स अपने मां-बाप के रिश्तों को कितना समझते हैं. अपने पेरेंट्स को बैकअप समझने वाली आज की जनरेशन को मेकर्स, 'थप्पड़' मारना चाहते हैं. 

आज की यंग जनरेशन जो खुद के रिश्तों को संभाल नहीं पाती वो अपने मां-बाप के बीच रिश्तों को ठीक करने का ठेका कैसे ले सकती है! अपने मां-बाप को रिश्तों का पाठ कैसे पढ़ा सकती है! पांच एपिसोड की इस छोटी सी सीरीज़ में कई बड़े डायलॉग्स हैं. जो दिमाग पर छप जाएंगे. जैसे एक सीन में मां बनीं शेरनाज़ पटेल कहती हैं-

''कम्पैनियनशिप का मतलब ये नहीं है कि एक-दूसरे का दम घुटने तक साथ रहो.''

फिर एक सीन में कुमुद मिश्रा कहते हैं-

‘’बहुत इंट्रस्टिंग जनरेशन है आप लोगों की. कोई इंजीनियरिंग करके सिंगर बनना चाहता है, कोई डॉक्टरी की पढ़ाई करके शेफ बनना चाहता है. मां-बाप को ये समझना चाहिए. क्योंकि दिस इज़ अनकन्वेंशनल च्वॉइस, बिकॉज़ किड्स आर फॉलोइंग देयर हार्ट्स. बट, मां-बाप शुड नॉट फॉलो देयर हार्ट! मां-बाप को बच्चों की फोटोवॉल पर तालियां बजानी चाहिए. हर डिसिजन पर आशीर्वाद देना चाहिए, उनके फोटोवॉल पर मुस्कुराते रहना चाहिए.''

सुमित व्यास की एक्टिंग अच्छी है मगर उनके राइटिंग की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम है. सीरीज़ के डायलॉग्स उन्होंने इतने असरदार और आम बोलचाल की भाषा में लिखे हैं कि वो सीधा दिल पर लगते हैं. वो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं. जैसे एक इमोशनल सीन में ये तीनों भाई-बहन सीढ़ियों पर बैठे हैं. तब अमोल पराशर का किरदार, 'चितवन' कहता है-

''बाबा, यू मिस मी?''

इसी बातचीत में सुमित कहते हैं-

''भाई-बहन झगड़ा कर सकते हैं, नाराज़ हो सकते हैं, मगर वी कैन नॉट अनसिबलिंगआवर सेल्फ्स.''

फिर चितवन कहता है

''अजीब जनरेशन हैं हम. हम एक-दूसरे से कह भी नहीं सकते कि हम एक-दूसरे को मिस करते हैं.''

कितनी सही लाइन है ना. भागने-दौड़ने वाली इस जनरेशन को अपने भाई-बहनों से बात करने, उन्हें गले लगाने तक का समय नहीं. रुककर, आहिस्ता से ये पूछने का वक्त नहीं कि तू ठीक है? इसी इमोशन्स को छूती है ट्रिपलिंग की ये सीरीज़. जिसका डायरेक्शन किया है नीरज उधवानी ने. ये नीरज वही हैं जिन्होंने इससे पहले 'मस्का', 'मेरे डैड की मारुति' और 'दिल तो बच्चा है' जैसी फिल्में बनाई हैं. रिश्तों को कैमरे में कैप्चर करने का उनका अनुभव पुराना है. जिसका रिज़ल्ट आपको स्क्रीन पर दिखाई भी देगा.

यहां एक-दो सीन का ज़िक्र ज़रूरी है. जहां नीरज का शानदार डायरेक्शन दिखता है. एक सीन में 'चंचल' बनी मानवी गगरू अपने पिता से उनके तलाक के बारे में बात करने आती है. तब उसकी परेशानी को दिखाने के लिए नीरज का कैमरा चंचल के हाथों की तरफ घूमता है. जहां वो तेज़ी से अपने स्वेटर को नोचती दिख रही हैं. इसे इंसान के मनोविज्ञान से जोड़ कर देख सकते हैं. जैसे जब हम नर्वस होते हैं तो खुद को शांत रखने के लिए पैर हिलाते हैं या बार-बार अपने हाथों को छूते हैं. फिर एक सीन में तीनों भाई-बहन सीढ़ियों पर बैठे दिख रहे हैं. ये सीन बेहद इमोशनल है. जिसमें डार्क कलर का इस्तेमाल किया गया है.

एक्टिंग का रुख करें तो कोई किसी से कम नहीं है. लेकिन इस बार भी पूरा अटेंशन चितवन का किरदार यानी अमोल ले गए हैं. इतना चिल और कूल दिखने वाला चितवन जब पहाड़ की ऊंचाई पर बैठा आंसू बहाता है तो आपके अंदर कुछ टूट जाता है. आप मनाते हैं कि काश सब ठीक हो जाए. ओवरऑल इस सीरीज़ पर लिखने को बहुत कुछ है. लेकिन सबकुछ पढ़ लेंगे तो इसे देखने का मज़ा नहीं रहेगा. इसलिए वक्त निकालिए और इसे देख डालिए. इसे ज़ी 5 पर प्रीमियर कर सकते हैं. 

वीडियो: प्योर पॉलिटिकल सीरीज़ है द ग्रेट इंडियन मर्डर

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