The Lallantop
Advertisement

नवाज़ ने बताया, जब उनका कोई डायलॉग पॉपुलर होता है, तो उन्हें गुस्सा क्यों आ जाता है!

वो नाटक जिसने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का जीवन एक झटके में बदल दिया.

Advertisement
nawazuddin siddiqui, guest in the newsroom,
लल्लनटॉप के साथ इंटरव्यू के दौरान नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी.
font-size
Small
Medium
Large
18 सितंबर 2022 (Updated: 19 सितंबर 2022, 14:08 IST)
Updated: 19 सितंबर 2022 14:08 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

नवाज़ुदीन सिद्दीकी लल्लनटॉप के न्यूज़रूम पहुंचे थे. यहां नवाज़ ने अपनी बचपन, जवानी से लेकर अपनी ज़िंदगी बदल देने वाली बातें बताईं. हिंदी फिल्म एक्टर तो बन गए, मगर उनका कोई डायलॉग पॉपुलर होता है, तो नाराज़ हो जाते हैं. क्योंकि वो उस तरह का एक्टर बनना ही नहीं चाहते थे.    

नवाज़ुदीन सिद्दीकी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला पाया. अमेरिकी-यूरोपियन सिनेमा देखना शुरू किया. मगर एक रशियन व्यक्ति ने उनकी ज़िंदगी बदल दी. उस आदमी का नाम था वैलेंटिन तेप्लाकोव (Valentin Teplyakov). 'था' इसलिए क्योंकि नवंबर 2020 में तेप्लाकोव का निधन हो गया.

नवाज़ ने NSD में रहने के दौरान अपने अनुभवों पर बात की. एक्टिंग स्कूल से उनके लिए सबसे यादगार पल वो था, जब उन्होंने 'इबानो' नाम के नाटक में काम किया. इस नाटक को डायरेक्ट किया था वैलेंटिन तेप्लाकोव. मशहूर थिएटर वेटरन थे. मगर रशियन भाषा NSD में पढ़ रहे उन बच्चों को कैसे समझ आती थी, जिनका हाथ अंग्रेज़ी में भी तंग था. नवाज बताते हैं कि इस काम के लिए-  

''एक रशियन ट्रांसलेटर होता था, जो उसे (तेप्लाकोव की कही बातों को) इंग्लिश में ट्रांसलेट करता. इंग्लिश से फिर हिंदी करके वो हम तक पहुंचता था. दो चार दिनों तक ऐसा रहा. फिर वो रशियन में बोलते, तब भी हमें समझ में आने लगा था.''   

नवाज़ बताते हैं कि उनकी एक्टिंग को 'स्टैनिसलॉस्की' (Stanislavski) ने बदला. स्टैनिसलॉस्की मेथड एक्टिंग की एक विधा होती है. इसका नाम मशहूर रशियन थिएटर आर्टिस्ट कॉन्सटैंटिन स्टैनिसलॉस्की (Konstantin Stanislavski) के नाम पर रखा गया था. तेप्लाकोव ने नवाज को ये प्रक्रिया समझाई. जिसे नवाज ने आत्मसात कर लिया. इसीलिए उन्हें उनके किसी डायलॉग के चर्चा में आने से नाराज़गी है. स्टैनिसलॉस्की मेथड एक्टिंग की खासियत बताते हुए नवाज़ कहते हैं-

''जब आप किसी किरदार को निभाते हैं, तो ये कॉस्ट्यूम, लफ्फाज़ी और डायलॉग ये बहुत छोटा सा पार्ट है एक्टिंग का. उसका इंटरनल प्रोसेस बहुत ज़रूरी है. हमारे बॉलीवुड में इस चीज़ की बहुत कमी है. हमारे यहां डायलॉग ओरिएंटेड सिनेमा है. कि क्या डायलॉग बोलता है! जब भी मेरा कोई डायलॉग पॉपुलर होता है, मुझे बड़ा गुस्सा आता है. मैं उस तरह का एक्टर नहीं बनना चाहता था. मगर वो इंटरनल प्रोसेस है. अगर आप ये इंसान हैं, तो उसे कैसे स्टडी करें. कैसे प्रेज़ेंट करें उसको. कितना ईमानदार हो सकते हैं उसके लिए. ऑनेस्टी की जो मैं बात कर रहा था, वो थॉट प्रोसेस के बारे में है. कि जैसा वो इंसान सोचता है, वैसा ही आप सोचने लगें.''

मगर नवाज इसे बिल्कुल आसान काम नहीं मानते. उनके मुताबिक यही अच्छे और बहुत अच्छे एक्टर के बीच का फर्क होता है. बकौल नवाज़,  

''अच्छे एक्टर और बहुत अच्छे एक्टर में जमीन आसमान का फर्क होता है. अच्छे एक्टर तो सब हैं. मगर बहुत अच्छे एक्टर बनने के लिए पसीना आ जाता है. ये रियलिस्टिक एक्टिंग थोड़ी है. रियल एक्टिंग वो है, जब आप खुद को उस स्थिति में डालकर देखें. फिल्मों में तो गोली मारना बहुत आसान है. आपको हर सीरियल में टीवी पर ओटीटी पर मिल जाएगा. मगर रियल लाइफ में आपको सेम सिचुएशन दे दूं, तो आपको पसीने आ जाएंगे कि नहीं आ जाएंगे? ये हमारे यहां थोड़ा है. रियलिस्टिक एक्टिंग के नाम पर हमारे यहां चलता है कुछ भी. यही तेप्लिकोव ने मुझको सिखाया.''

तेप्लाकोव से ट्रेनिंग के पाने के बाद नवाज़ को धीरे-धीरे चीज़ें समझ आनी शुरू हुईं. उन्हें समझ आया कि एक्टिंग को ईमानदार काम क्यों माना जाता है. मगर वो इस बात से निराश रहते हैं कि हिंदी सिनेमा में डायलॉगबाज़ी को एक्टिंग मान लिया जाता है. जबकि डायलॉग एक छोटा सा पार्ट है एक्टिंग का.

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के साथ 'गेस्ट इन द न्यूज़रूम' का फुल एपिसोड आप नीचे देख सकते हैं:

thumbnail

Advertisement

Advertisement