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कहानी 'वास्तव' के डेढ़ फुट्या की, जिनको बैठने के लिए कुर्सी न मिली तो संजय दत्त नाराज़ हो गए थे

संजय नार्वेकर को 'वास्तव' ने एक खास पहचान दी. उनके डेढ़ फुट्या वाले रोल ने बहुत शोहरत दिलाई. आज हम उन्हीं के करियर और ज़िंदगी की बात करेंगे.

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कहां हैं आजकल डेढ़ फुटिया
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अनुभव बाजपेयी
24 अगस्त 2022 (Updated: 26 अगस्त 2022, 19:40 IST)
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मराठी कलाकार सदा से भारतीय सिनेमा को आगे की ओर धक्का देते रहे हैं. भारत की पहली फ़िल्म 'राजा हरिश्चंद्र' एक मराठी रंगमंच के कलाकर दादा साहब फाल्के ने बनाई. पहला नेशनल अवॉर्ड भी मराठी फ़िल्म को ही मिला. मराठी कलाकारों का एक पूल रहा, जिसने बॉलीवुड में अच्छा खासा नाम कमाया. नाना पाटेकर, रीमा लागू, अतुल कुलकर्णी और अमृता सुभाष सरीखे समर्थ मराठी कलाकारों ने हिन्दी फिल्मों में छाप छोड़ी. छाप छोड़ने से याद आया कि ऐसी तमाम फिल्में बनती हैं, जिसमें हीरो के साइड किक का किरदार निभाने वाले अभिनेता भी जबर लोकप्रियता पाते हैं. संजय दत्त की मुन्ना भाई सीरीज़ में अरशद वारसी को ही ले लीजिए. मराठी से शुरू हुई बात साइड किक तक कैसे पहुंच गई. देख रहा है ना बिनोद मुद्दे को कैसे भटकाया जा रहा है. यू टर्न लेते हैं.

संजय और तमाम मराठी कलाकारों की 

बीसवीं सदी के उतरते-उतरते संजय दत्त ने 11 फ्लॉप फिल्मों के बाद एक बड़ी हिट दी, नाम था 'वास्तव'. इस फ़िल्म ने संजय दत्त के करियर की धज तो सिरे से बदली ही, कुछ मराठी कलाकारों के भाग्य को भी नए सिरे से लिख दिया. मराठी फिल्मों से आए मांजरेकर ने इस फ़िल्म में पूरी मराठी मंडली उतार दी. और सबने एक से बढ़कर एक परफ़ॉर्मेंस दी. रीमा लागू को इस फ़िल्म ने हिन्दी सिनेमा में अमर कर दिया. शिवाजी साटम, नम्रता शिरोडकर के काम को भी सराहा गया. इन सबसे इतर एक और मराठी अभिनेता संजय नार्वेकर को 'वास्तव' ने एक खास पहचान दी. उनके डेढ़ फुट्या वाले रोल ने बहुत शोहरत पाई. आज हम उन्हीं के करियर और ज़िंदगी की बात करेंगे. 

मराठी मूवी वेलडन भाल्या का एक स्नैप
ऐसे शुरू हुआ ऐक्टिंग का सफ़र

1962. भारत-चीन सीमा पर तनातनी. एक तरफ युद्ध हो रहा है. गोलियां चल रही हैं. खून की होली खेली जा रही है. दूसरी तरफ एक मराठी परिवार में खुशी का माहौल है. क्योंकि सिंधुदुर्ग जिले में रहने वाले उस मराठी परिवार में एक बच्चे का जन्म होता है. नाम रखा गया संजय. पिता सरकारी नौकरी में थे. बच्चा बड़ा हुआ तो वहीं कस्बे के स्कूल में दाखिला करवा दिया. पढ़ने में खास रुचि नहीं थी. घर से कोई प्रेशर भी नहीं था. बस पास होना था. पास होते-होते कॉलेज पहुंच गए. कहते हैं कि संजय को अभिनय में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. वो इसे करियर के तौर पर कभी नहीं देखते थे. हां, उन्हें नई-नई चीजें करने का शौक़ था. कॉलेज के दिनों में उनके एक दोस्त के नाटक ग्रुप को ऐक्टर की ज़रूरत थी. पर वो मिल नहीं रहा था. और कुछ ही दिनों बाद इंटर कॉलेज ड्रामा कम्पटीशन था. दोस्त ने ऐक्टिंग करने का आग्रह किया. संजय टाल नहीं सके. दोस्त ने उन्हें नाटक के डायरेक्टर के सामने पेश किया. डायरेक्टर चंद्रकांत पाटिल ने पूछा, “बिना अभ्यास के नाटक के संवाद बोल पाओगे"? संजय ने पूरे कॉन्फिडेंस से कहा, “ज़रूर बोल लूंगा”. संजय को रोल मिल गया और नाटक 'कोलिया राजा' को कम्पटीशन में फर्स्ट प्राइज़. बहरहाल ये तो सुनी सुनाई बाते हैं. संजय नार्वेकर इस घटना को किसी दूसरी तरह बताते हैं. वो कहते हैं कि सबसे पहले कॉलेज के दिनों में उन्होंने पाटिल जी के साथ 'आरण्यक' किया. वहीं पर अभिनय के गुर सीखे. वो कहते हैं:

हालांकि अभिनय कोई सिखा नहीं सकता. आपको बैकस्टेज और लाइटिंग सिखाई जा सकती है, ऐक्टिंग अंदर से आती है.

ऑल दी बेस्ट प्ले के दौरान संजय
व्यवसायिक रंगमंच में डेब्यू की कहानी

संजय कॉलेज में एक के बाद एक नाटक कर रहे थे. अब सिर्फ़ अभिनेता के तौर पर नहीं, बल्कि एक निर्देशक के तौर पर भी. इसी दौरान एक प्ले होना था. जिसमें किसी गुंडे के रोल के लिए एक ऐक्टर की ज़रूरत थी. संजय कहते हैं कि उनके चेहरे पर तो गुंडा छपा ही हुआ था. चंद्रकांत पाटिल ने सिफारिश की और वो निर्देशक के पास पहुंच गए. रोल मिल भी गया. उन्हें पहली बार उस रोल में ऐक्टिंग करने के लिए पैसे भी मिले. शौकिया रंगमंच करने वाले संजय अब प्रोफेशनल हो चुके थे. अब मौक़ा आया एक बड़े प्ले 'ऑल द बेस्ट' में लीड रोल करने का. उस प्ले में तीन प्रमुख किरदार थे. एक जो बोल नहीं सकता, दूसरा जो देख नहीं सकता और तीसरा जो सुन नहीं सकता. संजय को वो डेफ किरदार ऑफर हुआ. संजय ने स्वीकार कर लिया. हालांकि शुरू में उन्हें इस किरदार में ढलने में परेशानी हुई. उनके साथ काम कर रहे अंकुश चौधरी, भरत जाधव कुछ न कुछ शरारती आवाज़ निकाल देते और स्टेज पर संजय उस आवाज़ को सुनने लगते. लोग कहते, ये न सुन सकने वाला शख्स सुन कैसे रहा है. आगे चलकर उस किरदार में खुद को ऐसा रमाया कि उसके 1000 शोज़ किए. 

‘नवसाचे पोर' फ़िल्म में संजय
संजय दत्त ने क्यों कहा: "नार्वेकर के साथ आगे कभी ऐसा न हो"

इसके बाद संजय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. रंगीला रंगीला रे, खेमेली, बाजीराव मस्त एम आई और अमहीलो रे जैसे ढेरों मराठी नाटकों में काम किया, जो आज तक बदस्तूर ज़ारी है. फिल्मों में संजय का पदार्पण 80 के दशक में ही हो गया था. 1987 में आई राज बब्बर, नाना पाटेकर स्टारिंग 'अंधा युद्ध' कैमरे के सामने उनका पहला डेब्यू था. पर इसके क़रीब 10 साल बाद तक उन्हें कोई फिल्म नहीं मिली. उनकी अगली फ़िल्म 1998 में आई ‘नवसाचे पोर'. ये उनकी पहली मराठी फ़िल्म थी. बाद के दिनों में उन्होंने टेलीविज़न पर काम करने का मन बनाया. 1999 में अलग-अलग कहानियों पर आधारित ‘गुब्बारे’ नाम की टीवी सीरीज़ में काम किया. छोटे पर्दे की शुरुआत अभी हुई ही थी कि उनके ऐक्टिंग करियर का टर्निंग पॉइंट आ गया. 

वास्तव में संजय के साथ नार्वेकर

1999 में आई ‘वास्तव’ ने बॉक्स ऑफिस पर तो तहलका मचाया ही, साथ ही इसमें नार्वेकर के रोल डेढ़ फुट्या ने भी तहलका मचाया. इसके लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर का अवॉर्ड भी मिला. उसी रोल के चलते संजय आज बड़े नाम हैं. 'वास्तव' का पहला शूट शेड्यूल शुरू हो चुका था. डेढ़ फुट्या के रोल में किसी को फाइनल नहीं किया गया था. शूटिंग के दौरान महेश को नार्वेकर का नाम चमका और उन्होंने बुलावा भेज दिया. नार्वेकर उनके ऑफिस पहुंचे. ऑडीशन दिया और सेलेक्ट हो गए. दूसरे ही दिन फ़िल्म के सेट पर मढ आइलैंड पहुंचे. जब संजय दत्त शूट पर पहुंचे तो क्या देखते हैं, नार्वेकर सीढ़ियों पर एक कोने में बैठे हैं. उन्हें किसी ने कुर्सी तक नहीं दी. संजय दत्त नाराज़ हो गए. स्पॉट ब्वाय को बुलाकर उन्हें कुर्सी दिलवाई. अपने मैनेजर से कहा, 

"आगे से कभी ऐसा न हो कि नार्वेकर को कुर्सी न मिले."

संजय दत्त नार्वेकर से मिले. उनकी ऑडिशन परफ़ॉर्मेंस को खूब सराहा. 

कैसा रहा फ़िल्मी सफ़र

'वास्तव' के बाद संजय नार्वेकर आगे ही बढ़ते चले गए. 'बागी', 'हंगामा', 'जोड़ी नंबर 1' समेत एक के बाद एक क़रीब 30 फ़िल्में कीं. हिन्दी फिल्मों के साथ वो मराठी फिल्में भी कर रहे थे. जहां एक तरफ बॉलीवुड में उन्हें सपोर्टिंग रोल मिल रहे थे, दूसरी ओर मराठी फिल्मों में लीड रोल्स. इस कारण वो मराठी फिल्में करने में व्यस्त हो गए. हिंदी फिल्मों से उनकी दूरी बढ़ती ही चली गई. उन्होंने 'नौ महीने नौ दिवस', 'ख़बरदार', 'सरीवर सारी', 'अग बाई अरेच्चा' जैसी ढेरों सफल मराठी फ़िल्मों में काम किया. 'अग बाई अरेच्चा' में उनका रोल 'ऑल द बेस्ट' नाटक में निभाए उनके रोल से बिल्कुल उलट था. वहां किरदार को कुछ सुनाई नहीं देता था और यहां किरदार को मन की आवाज़ तक सुनाई दे जाती है.

सीरियस मेन में संजय 
अभी कहां हैं संजय नार्वेकर

संजय नार्वेकर फिल्में करते रहे, टेलीविज़न करते रहे और इसी के साथ रंगमंच भी ज़ारी रखा. उनका मानना ​​है कि रंगमंच अपने अभिनय कौशल को बढ़ाने और अपनी क्षमताओं को सुधारने का मौका देता है. नाटकों में ऐक्टिंग करना एक प्रयोग की तरह होता है. आप हर शो में कैरेक्टर के साथ खोज और प्रयोग कर सकते हैं. वो अब भी रंगमंच करते हैं. मराठी फिल्मों और सीरियल में काम करते हुए उन्होंने हिन्दी सिनेमा में भी दोबारा दस्तक दी है. 2020 में वो नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म 'सीरियस मेन' में नज़र आए. उनका सबसे हालिया काम है, ‘हिट द फर्स्ट केस’, जिसमें संजय, राजकुमार राव के साथ एक पुलिस ऑफिसर के रोल में नज़र आए थे.

……

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