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नहीं रहा वो महान फिल्मकार, जिसकी नक़ल पूरी दुनिया के फ़िल्ममेकर करते हैं

गोदार की फिल्मों ने 1960 के दशक में बने बनाए रूल्स को बदला. नई तरह की फ़िल्ममेकिंग को जन्म दिया.

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वो महातम फ़िल्मकार, फ़िल्में जिसका उधार कभी नहीं चुका पाएंगी
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अनुभव बाजपेयी
13 सितंबर 2022 (Updated: 13 सितंबर 2022, 22:07 IST)
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एक इंसान जो कहता था, सिनेमा मेरा नशा है. सिनेमा को जो घोटकर पी गया. ऐसा सिनेपान करने वाला महान फिल्मकार 91 की उम्र में दुनिया से चला गया, नाम है जॉन लुक गोदार. फ्रेंच न्यू वेव का एक मजबूत पाया जिसके लिए फ्रांस के प्रेसीडेंट ने लिखा: 'हमने राष्ट्रीय खजाना खो दिया, एक जीनियस चला गया.'  गोदार को विश्व के सबसे अक्लेम्ड फ़िल्म डायरेक्टर्स में से एक के रूप में जाना जाता है. ‘ब्रेथलेस’ और ‘कन्टेम्प्ट’ जैसे क्लासिक सिनेमा ने उन्हें अमर कर दिया. उन्होंने सिनेमा के ढर्रे में कई बदलाव किए. सिनेमैटिक बॉउन्ड्रीज को तोड़ा. रूढ़ियों को बदलने वाले कई प्रयोगधर्मी निर्देशकों को इंस्पायर किया.

महान फिल्मकार गोदार 
फ़िल्म क्रिटिक के तौर पर शुरू किया करियर 

गोदार का 1930 में पेरिस में जन्म हुआ. थोड़ा बड़े हुए तो पढ़ाई के लिए स्विट्ज़रलैंड चले गए. 1949 में पेरिस लौटे. फिर इंटलैक्चुअल सिने क्लब में जगह पाई. जिसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद शुरू किया गया था. यही क्लब आगे चलकर फ्रेंच न्यू वेव के लिए निर्णायक साबित हुआ. उस दौरान गोदार ने फ़िल्म क्रिटिक के तौर पर मैगजीन में लिखना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे फिल्मों में आ गए. पारंपरिक हॉलीवुड फ़िल्ममेकिंग उन्हें खास पसंद नहीं थी. किसी मेनस्ट्रीम फ़िल्ममेकर की जगह उन्हें होवार्ड हॉक्स जैसे फिल्मकार पसंद थे. बोगार्ट का भी उन पर खासा प्रभाव रहा. इन सभी का प्रभाव उनकी पहली फ़िल्म 'ब्रेथलेस' में दिखता भी है.

'ब्रेथलेस' का एक सीन 
पहली फ़िल्म 'ब्रेथलेस' ने तहलका मचा दिया

हालांकि इससे पहले उन्होंने कई शॉर्ट फिल्में बनाई. उनके ज़रिए सीखा. अपने कॉन्सेप्ट को क्लियर किया. उसी दौरान ट्रूफौ (Truffaut) एक फ़िल्म बनाना चाहते थे. जो एक क्रिमिनल और उसकी प्रेमिका की कहानी थी. पर उन्होंने इसे किसी वज़ह से ड्रॉप कर दिया. पर गोदार को वो आइडिया पसंद आया. उन्होंने ट्रूफौ से इजाज़त मांगी और फ़िल्म पर काम शुरू कर दिया. उसी समय ट्रूफौ की एक फ़िल्म 'द फोर हंड्रेड ब्लोज' ने खूब सराहना पाई थी. इसका भी गोदार को लाभ मिला. उन्होंने पेरिस की गलियों में घूम-घूमकर 1959 में फ़िल्म शूट की. इसमें ना के बराबर आर्टिफिशियल लाइट का इस्तेमाल हुआ. साथ ही गोदार इसकी स्क्रिप्ट हर रोज़ लिखते थे और हर रोज़ शूट करते थे. 'ब्रेथलेस' रिलीज़ हुई और बड़ी सांस्कृतिक घटना बन गई. इसके लिए बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में गोदार को बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड भी मिल गया.  

'द लिटल सोल्जर' फ़िल्म से एक तस्वीर 
सरकार ने बैन कर दी फ़िल्म

इसके बाद 1960 के दशक में गोदार ने ऐसी ही फिल्में बनाना ज़ारी रखा. उनकी अगली फ़िल्म 'द लिटल सोल्जर' को सरकार विरोधी बताकर 1963 तक के लिए बैन कर दिया गया. पर यही वो फ़िल्म थी जिस दौरान उनकी अपनी फ्यूचर वाइफ एन्ना केरीना से मुलाक़ात हुई. इसी दौरान एक उनका फेमस कोट आया: Cinema is truth at 24 frames a second. फिर उन्होंने एक और क्लासिक फ़िल्म बनाई, 'कन्टेम्प्ट'. इसमें वो आखिरी समय पर इंप्रोवाइज किया करते थे. इस फ़िल्म में गोदार ने जॉनर के साथ भी एक प्रयोग किया. एक हाइब्रिड जॉनर को जन्म दिया. फ़िल्म नोआ (noir) और साइंस फिक्शन को मिलाकर एक नए कलेवर की फ़िल्म बनाई.

राजनीति का फ़िल्मी करियर पर पड़ा प्रभाव

1965 में उनका एन्ना से तलाक हो गया. दोनों ने साथ में जो आखिरी फीचर बनाई, उसे अमेरिका में कॉपीराइट के झमेले में भी फंसना पड़ा. इस दौरान गोदार पॉलिटिकली अवेयर हुए. पेरिस में स्टूडेंट दंगों से सहानुभूति दिखाते हुए 1968 का कान फ़िल्म फेस्टिवल स्थगित करा दिया. इस राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता ने उनके सिनेमा पर भी प्रभाव पड़ा. मार्क्सिज्म की ओर उनका झुकाव हुआ है. उन्होंने वियतनाम वॉर पर कई पीस बनाए. जैसे-जैसे 70 का दशक आगे बढ़ा, अपनी राजनीतिक और बौद्धिक सक्रियता के चलते उनका प्रभाव धीरे-धीरे फिल्मों में कम होने लगा. 

अपनी पत्नी के साथ गोदार
2010 में मिला ऑनरेरी ऑस्कर

फिर 1987 में आई King Lear ने उनकी दोबारा वापसी कराई. ये फ़िल्म शेक्सपीयर के नाटक को फ्रेंच न्यू वेव की स्टाइल में ढालकर बनाई गई थी. इसमें ऐक्शन स्पेशलिस्ट कैनन फ़िल्म्स ने पैसा लगाया था. 2001 में उनकी 'इन प्रेज ऑफ लव' रिलीज हुई. इसे खूब सराहा गया. इसे कान्स फ़िल्म फेस्टिवल में भी चुना गया. 2010 में उन्हें ऑनरेरी ऑस्कर से नवाज़ा गया. यानी उनकी किसी एक फ़िल्म को नहीं बल्कि उनके करियर को ऑस्कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने कई और फिल्में बनाईं. इसमें डिजिटल टेक्नॉलजी में हाथ आजमाए. 2014 में 'गुडबाय टू लैंग्वेज' थ्री डी में बनाई. इसे कान्स में ज्यूरी प्राइज़ मिला. उनकी आखिरी फ़िल्म ‘द इमेज बुक’ थी, जो उन्होंने 2018 में रिलीज की. उनके फिल्मी जुनून का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो 80 से ज़्यादा की उम्र में दो साल तक अरब देशों में घूमते रहे.

'गुडबाय टू लैंग्वेज' फ़िल्म
गोदार क्यों महान हैं?

उनकी फिल्मों ने 1960 के दशक में फ्रेंच सिनेमा के बने बनाए रूल्स को बदला. नई तरह की फ़िल्ममेकिंग को जन्म दिया. एक जगह कैमरे को प्लेस करके शूट करने की बजाय हैंडहेल्ड कैमरे का इस्तेमाल किया. सबसे महत्वपूर्ण जंपकट, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है. जम्प कट फ़िल्म एडिटिंग का एक कट होता है, जिसमें किसी कॉन्टीनुअस सीक्वेंस को दो हिस्सों में ब्रेक कर दिया जाता है. फुटेज के एक हिस्से को बीच से हटा दिया जाता है. ताकि स्क्रीन पर समय के आगे बढ़ने के सेंस को डेवलप किया जा सके. गोदार ने फ़िल्म के फिक्स नरेटिव को ब्रेक किया. अपनी फिल्मों की स्टोरीटेलिंग में टाइम और स्पेस को आपस में मिला दिया. उनकी इसी तकनीक ने नॉन लीनियर नरेटिव की फिल्मों को जन्म दिया. एक बार उन्होंने कहा था: एक कहानी में आदि, अंत और मध्य होना चाहिए, पर ज़रूरी नहीं कि ये एक सीक्वेंस में हों.

वो इसलिए तो महान हैं कि उन्होंने फ़िल्म में कहानी कहने की नई तकनीक ईजाद की. पर वो इसलिए भी भी महान फिल्मकार हैं क्योंकि उन्होंने विश्व के तमाम बड़े फिल्ममेकर्स को प्रेरित किया. टेरेंटीनो ने उनके बारे में कहा था कि गोदार ने एक निर्देशक के तौर पर मुझे बहुत प्रभावित किया. गोदार ने मुझे फन और फ़्रीडम सिखाया. खुशी-खुशी सिनेमा के रूल तोड़ना सिखाया. उनके बारे में मार्टिन स्कॉरसेजी ने भी कहा था: गोदार सिनेमा के मॉडर्न विजुअल आर्टिस्ट हैं.  

कहते हैं, आप की वैल्यू इस बात से तय होती है कि आपने भविष्य को क्या दिया. आपको जो मिला उसका आपने क्या किया. गोदार को जैसा सिनेमा मिला, वो उसे मीलों आगे लेकर गए. वो कहते भी थे: इसके कोई मायने नहीं कि आपने चीजें कहां से ली हैं, बल्कि ये महत्वपूर्ण है कि आप चीजों को कहां तक लेकर गए.

अलविदा जीनियस!

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