मूवी रिव्यू - सलाम वेंकी
फिल्म का सबसे मज़बूत पक्ष हैं उसके दो मुख्य किरदार, सुजाता और वेंकी. और उन्हें निभाने वाले एक्टर.
‘लव’ और ‘रात’ जैसी फिल्मों की एक्ट्रेस रेवती की डायरेक्ट की हुई नई फिल्म आई है. नाम है ‘सलाम वेंकी’. श्रीकांत मूर्ति ने एक किताब लिखी थी, The Last Hurrah. ये फिल्म उसी पर आधारित है. कहानी के सेंटर में हैं एक मां और बेटा. सुजाता और वेंकटेश, जिसे लोग प्यार से वेंकी भी बुलाते हैं. प्यार से इसलिए क्योंकि सब वेंकी से प्यार करते हैं. उसकी ज़िंदादिल स्पिरिट के लिए. उसके ‘ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं’ वाले फलसफे के लिए. और ऊपर से भाईसाहब शाहरुख खान के फैन हैं. ‘कल हो ना हो’ से लेकर DDLJ तक के डायलॉग रटे हुए हैं.
वेंकी एक रेयर मसल डिसऑर्डर से जूझ रहा है. डॉक्टर्स ने जन्म के वक्त कहा था कि ये बच्चा 15-16 साल से ज़्यादा जी नहीं पाएगा. वेंकी अब 24 साल का है और उसकी हालत बिगड़ने लगती है. डॉक्टर्स बचने की कोई उम्मीद नहीं देखते. ऐसे में वेंकी यूथनेशिया चाहता है, यानी इच्छा मृत्यु. पहले तो ये सुजाता को ही मंज़ूर नहीं. ऊपर से उस समय का भारतीय कानून इसकी इजाज़त नहीं देता. वेंकी चाहता है कि उसके अंग किसी के काम आ जाएं. उसकी आखिरी इच्छा अपनी मंज़िल ढूंढ पाती है या नहीं, आगे पूरी फिल्म यही सफर तय करती है.
डेथ एक बहुत सेंसिबल टॉपिक है. घरों में हल्का सा भी ज़िक्र छिड़ जाए तो हम ठिठकने लगते हैं. ‘सलाम वेंकी’ का पूरा आइडिया ही उसके इर्द-गिर्द रहता है. फिल्म अपने सब्जेक्ट को वो सेंसीबिलिटी देती है जिसकी उसे ज़रूरत है. इच्छा मृत्यु पर होने वाला विमर्श सेंसीटिव बना रहता है. बस यहां एक लेकिन है. फिल्म अपने सब्जेक्ट और उसके मैसेज को लेकर ईमानदार है. हालांकि वो ईमानदारी स्क्रीन पर ठीक से ट्रांसलेट नहीं हो पाती. और इसमें एक्टर्स का दोष नहीं. समीर अरोड़ा ने The Last Hurrah से कहानी और स्क्रीनप्ले अडैप्ट किया है. फिल्म का स्क्रीनप्ले उसके सबसे कमजोर पॉइंट्स में से एक बनकर उभरता है. सीन्स में कंसिस्टेंसी की कमी दिखती है. जैसे कहानी का कुछ हिस्सा चल रहा है. लेकिन फिर अचानक से याद आया हो कि ये दिखाना है. फिर उससे शिफ्ट कर के कुछ और. ये कहानी में आपको डूबने नहीं देता.
कहानी की सिर्फ लिखाई ही नहीं खटकती. बैकग्राउंड म्यूज़िक भी कोई मदद नहीं कर पाता. म्यूज़िक को बहुत हद तक इन योर फेस रखा गया है. एक सीन में आप देखते हैं कि वेंकी से हॉस्पिटल में गुरुजी मिलने आते हैं. गुरुजी हॉस्पिटल बेड के पास बैठे हैं. तभी वीणा का संगीत बजने लगता है. किसी आश्रम के गुरुजी का एकदम स्टीरियोटिपिकल ब्योरा, जो ऑब्वीयस होकर दिया गया. इन सब खामियों के बावजूद मेरा स्टैंड यही है कि फिल्म अपने सब्जेक्ट को लेकर असंवेदनशील नहीं. बस उसे ठीक से दिखा नहीं पाती. इस वजह से अपनी मैसेजिंग में मिक्स अप हो जाती है.
फिल्म का ट्रेलर आने के बाद सबसे पहला ध्यान गया उसकी कास्ट पर. प्रकाश राज, राहुल बोस, अहाना कुमरा, राजीव खण्डेलवाल, कमल सदाना और आमिर खान जैसे एक्टर्स. ऊपर से काजोल और विशाल जेठवा, इस फिल्म की जान. काजोल ने सुजाता का किरदार निभाया. उनका किरदार मैच्योर है. ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा अपने बेटे के हॉस्पिटल बेड के सिरहाने बीता. उम्मीद हारने को तैयार नहीं, ऐसे स्थिति में भी जब कोई रास्ता ही न हो. काजोल उस मैच्योरिटी का भार पूरी फिल्म में अच्छे से उठा पाती हैं. आपने शुरुआती सीन्स में उन्हें देखा और उनके किरदार को लेकर एक आइडिया बना लिया, काजोल बस कैरेक्टर की उसी लाइन पर चलती हैं. कैरेक्टर ब्रेक नहीं करती.
दूसरे अहम पहलू हैं विशाल जेठवा. आपने उन्हें ‘मर्दानी 2’ में भी देखा है, जहां से उनका काम हाइलाइट हुआ था. वेंकी बने विशाल के बास सीमित संसाधन थे. मसल काम न करने की वजह से एक पॉइंट पर उनका किरदार बोलना बंद कर देता है. फिर एक वक्त आता है जब उनके चेहरे की मसल काम करने बंद कर देती हैं. विशाल को ऐसी सेटिंग में देखकर ये नहीं लगता कि उन्हें हाव-भाव और बोली की कमी खल रही है. वो अपने भाव व्यक्त करने के लिए अपनी बॉडी को सही तरीके से इस्तेमाल करते हैं. ‘सलाम वेंकी’ का सबसे मज़बूत पक्ष है उसके दो मुख्य किरदार और उन्हें निभाने वाले एक्टर. बस उनके आसपास रची गई दुनिया उनकी कहानी को ज़्यादा मदद नहीं कर पाती.
वीडियो: मूवी रिव्यू - डॉक्टर G